Friday, August 1, 2014

नाग पंचमी का महत्व

नाग पंचमी का महत्व
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चातुर्मास के अंतर्गत आने वाले श्रावण मास जो नागेश्वर भगवान शिव
को अत्यंत प्रिय है, के शुक्ल पक्ष
की पंचमी अर्थात् नाग
पंचमी का क्या महत्व है, आइये यह जानते हैं। यूं
तो प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष
वाली पंचमी का अधिष्ठाता नागों को बतलाया गया है।
पर श्रावण शुक्ला पंचमी एक विशेष महत्व
रखती है। शायद ही कोई हो जो नाग/सर्प
से अपरिचित होगा। लगभग हर जगह देखने को मिल जाते हैं ये
सर्प। नाग हमेशा से ही एक रहस्य में लिपटे हुए
रहे हैं इनके विषय में फैली अनेक किंवदंतियों के कारण।
जैसे नाग इच्छाधारी होते हैं, मणि धारण करते हैं, मौत
का बदला लेते हैं आदि-आदि। पर जो भी हो, सर्प छेड़ने
या परेशान करने पर ही काटते हैं। आप अपने रास्ते
जाइए साँप अपने रास्ते चला जाएगा। हाँ कभी मार्ग
भटककर अचानक इनका घर में आ जाना डर का कारण हो सकता है
पर ऐसे में या किसी भी परिस्थिति में इन
साँपों को मारना नहीं चाहिए। कोशिश
यही करनी चाहिए कि इनको एक सुरक्षित
स्थान पर छोड़ दिया जाये।
भगवान नागेश्वर सदाशिव के गले का आभूषण हैं नाग सर्प विष से
विविध प्रकार की महत्वपूर्ण औषधियों का निर्माण
किया जाता है, विशेष रूप से
होम्योपैथी की दवाइयों में। हमारे हिन्दू
धर्मग्रन्थों में भी नागों का वर्णन मिलता है
कहीं भगवान शिव के गले के आभूषण के रूप में
तो कहीं भगवान विष्णु के शेषनाग के रूप में।
ऐसी मान्यता है कि शेषनाग
ही श्रीरामचंद्र जी के
भ्राता लक्ष्मण जी के रूप में अवतरित हुए थे।
तारा महाविद्या सर्पों के आभूषणों से युक्त
कही गयी हैं।
कालिय नाम के नाग का मर्दन श्रीकृष्ण
द्वारा किया गया था और तारा महाविद्या को भी सर्पों के
आभूषणो से युक्त बतलाया गया है। यज्ञोपवीत
का संस्कार करते समय भी उसमें रुद्रादि देवों के साथ साथ
सर्पानावाहयामि कहकर सर्पों का आवाहन किया जाता है
ताकि यज्ञोपवीत भली प्रकार द्विज
की रक्षा कर सके। भगवान विष्णु
की शय्या शेषनाग
ही श्रीरामचंद्र जी के
भ्राता लक्ष्मण जी के रूप में अवतरित हुए थे।
साँप को दूध पिलाना गलत है। कहीं-
कहीं इस दिन कुप्रथा के चलते भूखे रखे गए
साँपों को जबरन दूध पिलाकर मारा जाता है क्योंकि साँप दूध
नहीं पीते;
यदि पी भी लें तो पाचन न होने से
या प्रत्यूर्जता से उनकी मृत्यु हो जाती है।
एक भ्रांति सी फैली हुई है कि शास्त्रों में
नाग को दूध पिलाने को कहा है जबकि ऐसा नहीं है।
यदि कहीं ऐसी प्रथा हो तो- उसमें
शास्त्रों का दोष नहीं है, ऐसा करने वालों या उनके
पूर्वजों द्वारा ही अपने मन से उस
प्रथा को जोड़ा गया है- यह समझें। शास्त्रों में
तो पंचमी को नागों को दूध से स्नान करवाने को कहा गया है
वह भी जरूरी नहीं कि नाग
असली हो, ताँबे या गोबर या मिट्टी से बने नाग
का ही स्नान/अभिषेक किया जाना चाहिए। पुराणों के अनुसार
किसी भी पंचमी तिथि को जो नागों को दुग्धस्नान
करवाता है उसके कुल को वासुकि, तक्षक, कालिय, मणिभद्र, ऐरावत,
धृतराष्ट्र, कर्कोटक तथा धनञ्जय–ये सभी नाग
अभयदान देते हैं।
द्वापरयुग में कालिय नामक नाग का मर्दन श्री कृष्ण
जी ने किया था।
इस संबंध में श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर
को कही गयी एक कथा है कि एक बार
राक्षसों व देवताओं ने मिलकर जब सागर मंथन
किया था तो उच्चैःश्रवा नामक अतिशय श्वेत घोड़ा निकला जिसे देख
नागमाता कद्रू ने अपनी सपत्नी/सौत विनता से
कहा कि, “देखो! यह अश्व श्वेतवर्ण का है परन्तु इसके बाल
काले दिखाई पड़ रहे हैं।" तब विनता बोली, “यह अश्व
न तो सर्वश्वेत है, न काला है और न ही लाल रंग
का।” यह सुनकर कद्रू बोली, “अच्छा? तो मेरे साथ शर्त
करो कि यदि मैं इस अश्व के बालों को कृष्णवर्ण का दिखा दूँ तो तुम
मेरी दासी हो जाओगी और
यदि नहीं दिखा सकी तो मैं
तुम्हारी दासी हो जाऊँगी।”
विनता ने शर्त स्वीकार कर ली और फिर
वो दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने
स्थानों को चली गयीं। कद्रू ने अपने
पुत्रों को सारा वृत्तान्त कह सुनया और कहा, “पुत्रों! तुम अश्व के
बालों के समान सूक्ष्म होकर उच्चैःश्रवा के शरीर से
लिपट जाओ, जिससे यह कृष्ण वर्ण का दिखने लगेगा और मैं शर्त
जीतकर
विनता को दासी बना सकूंगी।” यह सुन नाग
बोले, “माँ! यह छल तो हम लोग नहीं करेंगे, चाहे
तुम्हारी जीत हो या हार। छल से
जीतना बहुत बड़ा अधर्म है।” पुत्रों के ऐसे वचन
सुनकर कद्रू ने क्रुद्ध होकर कहा, “तुमलोग
मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिए मैं
तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम सब, पांडवों के वंश में
उत्पन्न राजा जनमेजय के सर्पयज्ञ में अग्नि में जल जाओगे।”
नागगण, नागमाता का यह शाप सुन बहुत घबड़ाये और वासुकि को साथ
लेकर ब्रहमाजी को सारी बात कह सुनाई।
ब्रह्मा जी ने कहा, “वासुके! चिंता न करो। यायावर वंश
का बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारू नामक ब्राह्मण
होगा जिसके साथ तुम अपनी जरत्कारू नाम
की बहिन का विवाह कर देना और वह
जो भी कहे, उसका वचन स्वीकार लेना।
उनका पुत्र आस्तीक उस यज्ञ को रोक तुम
लोगों की रक्षा करेगा।” यह सुन वासुकि आदि नाग प्रसन्न
हो उन्हें प्रणाम कर अपने लोक को चले गए। कालांतर में वह
यज्ञ जब हुआ तो नाग पंचमी के दिन
ही आस्तीक मुनि ने
नागों की सहायता की थी।
अतः उस दाह की व्यथा को दूर करने के लिए
ही गाय के दुग्ध द्वारा नाग प्रतिमा को स्नान कराने
की मान्यता है जिससे व्यक्ति को सर्प का भय
नहीं रहता इसीलिए यह दंष्ट्रोद्धार
पंचमी भी कहलाती है।
जिनकी कुंडली में कालसर्प दोष या सर्प दोष
हो तो निम्न मंत्र का पाठ करें -
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
"ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा" मंत्र का जाप करने से सर्प
दोष दूर होता है।
इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन
के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद
शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से
पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। तत्पश्चात् यह सर्प
सूक्त का पाठ करें-
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।२।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।३।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।५।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।६।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।७।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।८।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।९।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१०।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।११।।
प्रार्थना-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापी तडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
नागपंचमी को किसी भी समय घर
के मुख्य द्वार के दोनों ओर नागों के चित्र या एक-एक गोबर से नाग
बनाकर उनका दही, दूध, दूर्वा, पुष्प, कुश, गंध, अक्षत
और नैवेद्य अर्पित कर पूजन करना चाहिये। तत्पश्चात
ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करवाने से व्यक्ति के कुल में
कभी सर्पों का भय नहीं होता। 'नमोsस्तु
सर्व सर्पेभ्यो' सभी सर्पों को नाग पंचमी पर
नमन...!!

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