Monday, June 30, 2014

तंत्र AUR प्रेट सिद्धी

तंत्र AUR प्रेट सिद्धी

हमारे चारों ओर फैला ब्रह्मांड हवा और धुएं का केन्द्र मात्र नहीं है, अपितु इसमें निहित है ऐसे रहस्य और ऐसा ज्ञान जिसका अगर एक अंश मात्र भी यदि किसी की भी समझ में आ जाये तो उसकी जीवन धारा ही बदल जाती है!!!! क्योंकि ब्रह्मांडीय ज्ञान कोई कोरी कपोल कल्पना ना हो के इस समस्त चराचर विश्व की उत्पत्ति और विध्वंस का करोडों बार साक्षी बन चुका है और जब तक सृजन और संहार का क्रम चलता रहेगा इस ब्रह्मांडीय ज्ञान में इजाफा होता जायेगा.......पर यह ज्ञान हम किताबों से या बड़े बड़े ग्रंथो को पढ़ कर प्राप्त नहीं कर सकते...किन्तु यह ग्रंथ उस ज्ञान को कुछ हद तक समझने में हमारी संभव सहायता जरूर करते हैं.
परमसत्ता अपना ज्ञान देने में कभी कोई कोताहि नहीं करती पर उसके लिए मात्र एक ही शर्त है की आप में पात्रता होनी चाहिए. ब्रह्मांडीय ज्ञान को हम दो तरह से अर्जित कर सकते हैं – १) आगम स्तर २) निगम स्तर !!!! आगम ६४ तरह के तांत्रिक ज्ञान पर आधारित है और निगम वेदों पर निर्भर करता है.....खैर निगम ज्ञान या वेद शास्त्र यहाँ हमारा विषय नहीं है तो हम बात करते हैं तंत्र ज्ञान की जिसे गुहा ज्ञान या रहस्यमय ज्ञान भी कहते हैं. क्योंकि तंत्र कोई चिंतन-मनन करने वाली विचार प्रणाली नहीं है या यूँ कहें की तंत्र कोई दर्शन शास्त्र नहीं है यह शत प्रतिशत अनुभूतियों पर आधारित है.
अब जब अनुभूतियों की बात करते हैं तो एक साधक साधना करते समय तीन तरह की अनुभूतियों का अनुभव करता है –
१) साधना के प्रथम स्तर पर उसे अपनी इन्द्रियों का बोध होता है जिसे हम ऐसे समझते हैं की हाथ पैर दुःख रहे हैं.....आसन पर बैठा नहीं जाता.
२) दूसरे स्तर पर हमें उस दूसरे की अनुभूति होती है जिसे हम सिद्ध कर रहे होते हैं या जिसका आवाहन किया जा रहा होता है.
३) अंतिम अनुभूति होती है उस अलौकिक, अखंड परम सत्ता की जिसे हम समाधि की अवस्था कहते हैं.
पर यहाँ हम बात कर रहे हैं प्रेत सिद्धि की तो वो दूसरे स्तर की अनुभूति है. यदि आप सब को याद होगा तो पिछले लेख में हमने पढ़ा था की प्रेत जिस लोक में रहते हैं उसे वासना लोक कहते हैं और वासना जितनी गहन होगी उतना ही अधिक समय लगेगा आत्मा को प्रेत योनि से मुक्त हो के सूक्ष्म योनि प्राप्त करने में और साथ ही साथ हमने यह भी समझा था की इन प्रेतों और पिशाचों का भू लोक पर आने वाला मार्ग महावासना पथ कहलाता है किसका महादिव्योध मार्ग से एकीकरण पृथ्वी के केन्द्र में होता है.......
पर हमने तब यह तथ्य नहीं समझा था की पृथ्वी के केन्द्र में ही यह दोनों मार्ग क्यों मिलते हैं कहीं और क्यों नहीं तो इसका एक सीधा सरल उत्तर यह है की भू के गर्भ में अर्थात उसके केन्द्र में ऊर्जा का घ्न्तत्व सबसे अधिक मात्रा में होता है या यूँ कहें की केन्द्र में कहीं ओर की तुलना में गुरुत्वाकर्षण की क्रिया सबसे ज्यादा होती है और इसी गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण ही प्रेत योनियाँ भू लोक की तरफ खींची चली आती हैं.
इस प्रयोग के विधान को समझने से पहले या ये प्रयोग करने से पहले आपको दो अति महत्वपूर्ण बातों को अपने ज़हन में रखना होगा –
१) यह साधना प्रेत प्रत्यक्षीकरण साधना है तो हम ये भी जानते हैं की यदि आपने उसे प्रत्यक्ष करके सिद्ध कर लिया तो वो आपके द्वारा दिए गए हर निर्देश का पालन करेगा किन्तु उससे यह सब करवाने के लिए आपको अपने संकल्प के प्रति दृढ़ता रखनी पड़ेगी अर्थात आपको पूरे मन, वचन और क्रम से ये साधना करनी पड़ेगी, क्योंकि जहाँ आप कमजोर पड़े आपकी साधना उसी एक क्षण विशेष पर खत्म हो जायेगी......और हाँ एक बात और अब चूंकी ये योनियाँ मंत्राकर्षण की वजह से आपकी तरफ आकर्षित होती है तो यथा संभव कोशिश करें की यदि आपने आसन सिद्ध किया हुआ है तो आप उसी आसन पर बैठ कर इस प्रयोग को करें... क्योंकि वो आसन भू के गुरुत्व बल से आपका सम्पर्क तोड़ देता है.
२) हम में से बहुत कम लोग यह बात जानते है की दिन के २४ घंटों में एक क्षण ऐसा भी होता है जब हमारी देह मृत्यु का आभास करती है अर्थात यह क्षण ऐसा होता है जब हमारी सारी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती है और ह्रदय की गति रुक जाती है.... रोज मरा की दिनचर्या में यह पल कौन सा होता है और कब आता है यह तो बहुत आगे का विधान है पर इस प्रयोग को करते समय यह पल तब आएगा जब आप साधना सम्पूर्णता की कगार पर होंगे तो आपको उस समय खुद के डर पर नियंत्रण करते हुए उस मूक संकेत को समझना है......वो जिसका कोई अस्तित्व नहीं है उसके अस्तित्व को पहचानते हुए उसकी मूल पद ध्वनि को सुनना है.
विधान – मूलतः ये साधना मिश्रडामर तंत्र से सम्बंधित है.
अमावस्या की मध्य रात्रि का प्रयोग इसमें होता है,अर्थात रात्रि के ११.३० से ३ बजे के मध्य इस साधना को किया जाना उचित होगा.
वस्त्र व आसन का रंग काला होगा.
दिशा दक्षिण होगी.
वीरासन का प्रयोग कही ज्यादा सफलतादायक है.
नैवेद्य में काले तिलों को भूनकर शहद में मिला कर लड्डू जैसा बना लें,साथ ही उडद के पकौड़े या बड़े की भी व्यवस्था रखें और एक पत्तल के दोनें या मिटटी के दोने में रख दें..
दीपक सरसों के तेल का होगा.
बाजोट पर काला ही वस्त्र बिछेगा,और उस पर मिटटी का पात्र स्थापित करना है जिसमें यन्त्र का निर्माण होगा.
रात्रि में स्नान कर साधना कक्ष में आसन पर बैठ जाएँ. गुरु पूजन,गणपति पूजन,और भैरव पूजन संपन्न कर लें. रक्षा विधान हेतु सदगुरुदेव के कवच का ११ पाठ अनिवार्य रूप से कर लें.
अब उपरोक्त यन्त्र का निर्माण अनामिका ऊँगली या लोहे की कील से उस मिटटी के पात्र में कर दें और उसके चारों और जल का एक घेरा मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए कर बना दें,अर्थात छिड़क दें.
और उस यन्त्र के मध्य में मिटटी या लोहे का तेल भरा दीपक स्थापित कर प्रज्वलित कर दें.और भोग का पात्र जो दोना इत्यादि हो सकता है या मिटटी का पात्र हो सकता है.उस प्लेट के सामने रख दें.अब काले हकीक या रुद्राक्ष माला से ५ माला मंत्र जप निम्न मंत्र की संपन्न करें.मंत्र जप में लगभग ३ घंटे लग सकते हैं.
मंत्र जप के मध्य कमरे में सरसराहट हो सकती है,उबकाई भरा वातावरण हो जाता है,एक उदासी सी चा सकती है.कई बार तीव्र पेट दर्द या सर दर्द हो जाता है और तीव्र दीर्घ या लघु शंका का अहसास होता है.दरवाजे या खिडकी पर तीव्र पत्रों के गिरने का स्वर सुनाई दे सकता है,इनटू विचलित ना हों.किन्तु साधना में बैठने के बाद जप पूर्ण करके ही उठें. क्यूंकि एक बार उठ जाने पर ये साधना सदैव सदैव के लिए खंडित मानी जाती है और भविष्य में भी ये मंत्र दुबारा सिद्ध नहीं होगा.
जप के मध्य में ही धुएं की आकृति आपके आस पास दिखने लगती है.जो जप पूर्ण होते ही साक्षात् हो जाती है,और तब उसे वो भोग का पात्र देकर उससे वचन लें लें की वो आपके श्रेष्ट कार्यों में आपका सहयोग ३ सालों तक करेगा,और तब वो अपना कडा या वस्त्र का टुकड़ा आपको देकर अदृश्य हो जाता है,और जब भी भाविओश्य में आपको उसे बुलाना हो तो आप मूल मंत्र का उच्चारण ७ बार उस वस्त्र या कड़े को स्पर्श कर एकांत में करें,वो आपका कार्य पूर्ण कर देगा. ध्यान रखिये अहितकर कार्यों में इसका प्रयोग आप पर विपत्ति ला देगा.जप के बाद पुनः गुरुपूजन,इत्यादि संपन्न कर उठ जाएँ और दुसरे दिन अपने वस्त्र व आसन छोड़कर,वो दीपक,पात्र और बाजोट के वस्त्र को विसर्जित कर दें. कमरे को पुनः स्वच्छ जल से धो दें और निखिल कवच का उच्चारण करते हुए गंगाजल छिड़क कर गूगल धुप दिखा दें.
मंत्र:-
इरिया रे चिरिया,काला प्रेत रे चिरिया.पितर की शक्ति,काली को गण,कारज करे सरल,धुंआ सो बनकर आ,हवा के संग संग आ,साधन को साकार कर,दिखा अपना रूप,शत्रु डरें कापें थर थर,कारज मोरो कर रे काली को गण,जो कारज ना करें शत्रु ना कांपे तो दुहाई माता कालका की.काली की आन.

मुझे आशा है की आप इस अहानिकर प्रयोग के द्वारा लाभ और हितकर कारों को सफलता देंगे. भय को त्याग कर तीव्रता को आश्रय दें,यही मैं सदगुरुदेव से हम सभी के लिए प्राथना करत हूँ.

वास्तु शास्त्र और घर की साज-सज्जा


वर्तमान समय में सुविधाएं जुटाना बहुत आसान है। परंतु शांति इतनी सहजता से नहीं प्राप्त होती।

हमारे घर में सभी सुख-सुविधा का सामान है, परंतु शांति पाने के लिए हम तरस जाते हैं।

वास्तु शास्त्र द्वारा घर में कुछ मामूली बदलाव कर आप घर एवं बाहर शांति का अनुभव कर सकते हैं।
 कुछ ऐसे ही उपाय नीचे दिए गए हैं :


  • घर में कोई रोगी हो तो एक कटोरी में केसर घोलकर उसके कमरे में रखे दें। वह जल्दी स्वस्थ हो जाएगा
  • घर में ऐसी व्यवस्था करें कि वातावरण सुगंधित रहे। सुगंधित वातावरण से मन प्रसन्न रहता है
  • घर में जाले न लगने दें, इससे मानसिक तनाव कम होता है
  • दिन में एक बार चांदी के ग्लास का पानी पिये, इससे क्रोध पर नियंत्रण होता है
  • अपने घर में चटकीले रंग नहीं कराये
  • किचन का पत्थर काला नहीं रखें
  • कंटीले पौधे घर में नहीं लगाएं
  • भोजन रसोईघर में बैठकर ही करें
  • शयन कक्ष में मदिरापान नहीं करें अन्यथा रोगी होने तथा डरावने सपनों का भय होता है
 इन छोटे-छोटे उपायों से आप जरूर शांति का अनुभव करेंगे।
 वास्तु शास्त्र के हिसाब से कौन सी वस्तु कहां रखें:
  • सोते समय सिर दक्षिण में पैर उत्तर दिशा में रखें। या सिर पश्चिम में पैर पूर्व दिशा में रखना चाहिए
  • अलमारी या तिजोरी को कभी भी दक्षिणमुखी नहीं रखें
  • पूजा घर ईशान कोण में रखें
  • रसोई घर मेन स्वीच, इलेक्ट्रीक बोर्ड, टीवी इन सब को आग्नेय कोण में रखें
  • रसोई के स्टेंड का पत्थर काला नहीं रखें।दक्षिणमुखी होकर रसोई नहीं पकाए
  • शौचालय सदा नैर्ऋत्य कोण में रखने का प्रयास करें
  • फर्श या दिवारों का रंग पूर्ण सफेद नहीं रखें
  • फर्श काला नहीं रखें
  • मुख्य द्वार की दांयी और शाम को रोजाना एक दीपक लगाएं
 वास्तु शास्त्र के हिसाब से घर का बाहरी रंग कैसा हो:

  • यदि आपका घर पूर्वमुखी हो तो फ्रंट में लाल, मैरून रंग करें
  • पश्चिममुखी हो तो लाल, नारंगी, सिंदूरी रंग करें
  • उत्तरामुखी हो तो पीला, नारंगी करें
  • दक्षिणमुखी हो तो गहरा नीला रंग करें
  • किचन में लाल रंग।बेडरूम में हल्का नीला, आसमानी
  • ड्राइंग रूम में क्रीम कलर
  • पूजा घर में नारंगी रंग
  • शौचालय में गहरा नीला
  • फर्श पूर्ण सफेद न हो क्रीम रंग का होना चाहिए
 वास्तु शास्त्र के हिसाब कमरो का निर्माण कैसा हो?

कमरों का निर्माण में नाप महत्वपूर्ण होते हैं। उनमें आमने-सामने की दिवारें बिल्कुल एक नाप की हो, उनमें विषमता न हो।

कमरों का निर्माण भी सम ही करें। 20-10, 16-10, 10-10, 20-16 आदि विषमता में ना करें जैसे 19-16, 18-11 आदि।

बेडरूम में शयन की क्या स्थिति।बेडरूम में सोने की व्यवस्था कुछ इस तरह हो कि सिर दक्षिण मे एवं पांव उत्तर में हो।

यदि यह संभव न हो तो सिराहना पश्चिम में और पैर पूर्व दिशा में हो तो बेहतर होता है।

रोशनी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि आंखों पर जोर न पड़े।

बेड रूम के दरवाजे के पास पलंग स्थापित न करें। इससे कार्य में विफलता पैदा होती है।

कम समान बेड रूम के भीतर रखे। 

वास्तु शास्त्र और घर की साज-सज्जा

घर की साज सज्जा बाहरी हो या अंदर की वह हमारी बुद्धि मन और शरीर को जरूर प्रभावित करती है।

घर में यदि वस्तुएं वास्तु अनुसार सुसज्जित न हो तो वास्तु और ग्रह रश्मियों की विषमता के कारण घर में क्लेश, अशांति का जन्म होता है।

घर के बाहर की साज-सज्जा बाहरी लोगों को एवं आंतरिक शृंगार हमारे अंत: करण को सौंदर्य प्रदान करता है। जिससे सुख-शांति, सौम्यता प्राप्त होती है।

भवन निर्माण के समय ध्यान रखें। भवन के अंदर के कमरों का ढलान उत्तर दिशा की तरफ न हो। ऐसा हो जाने से भवन स्वामी हमेशा ऋणी रहता है।

ईशान कोण की तरफ नाली न रखें। इससे खर्च बढ़ता है।
 शौचालय: शौचालय का निर्माण पूर्वोत्तर ईशान कोण में न करें।इससे सदा दरिद्रता बनी रहती है।
 शौचालय का निर्माण वायव्य दिशा में हो तो बेहतर होता है। कमरों में ज्यादा छिद्रों का ना होना आपको स्वस्थ और शांतिपूर्वक रखेगा।
 कौन से रंग का हो study room?
 रंग का भी अध्ययन कक्ष में बड़ा प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं कौन-कौन से रंग आपके अध्ययन को बेहतर बनाते हैं तथा कौन से रंग का स्टडी रूम में त्याग करना चाहिए।

अध्ययन कक्ष में हल्का पीला रंग, हल्का लाल रंग, हल्का हरा रंग आपकी बुद्धि को ऊर्जा प्रदान करता है तथा पढ़ी हुयी बाते याद रहती है।

पढ़ते समय आलस्य नही आता, स्फुर्ती बनी रहती है। हरा और लाल रंग सर्वथा अध्ययन के लिए उपयोगी है।

लाल रंग से मन भटकता नहीं हैं, तथा हरा रंग हमें सकारात्मक उर्जा प्रदान करता है।

नीले, काले, जामुनी जैसे रंगो का स्टडी रूम में त्याग करना चाहिए, यह रंग नकारात्मक उर्जा के कारक है।

ऐसे कमरो में बैठकर कि गयी पढ़ाई निरर्थक हो जाती है।

 मित्रों, अपने बहुमूल्य विचार हमें नीचे Comment के माध्यम से दें!

‘कुंजिका स्तोत्र’ और ‘बीसा यन्त्र’ का अनुभूत अनुष्ठान

‘कुंजिका स्तोत्र’ और ‘बीसा यन्त्र’ का अनुभूत अनुष्ठान
प्राण-प्रतिष्ठा करने के पर्व
चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, दीपावली के
तीन दिन (धन तेरस, चर्तुदशी, अमावस्या),
रवि-पुष्य योग, रवि-मूल योग तथा महानवमी के दिन
‘रजत-यन्त्र’ की प्राण प्रतिष्ठा, पूजादि विधान करें। इनमे
से जो समय आपको मिले, साधना प्रारम्भ करें। 41 दिन तक विधि-
पूर्वक पूजादि करने से सिद्धि होती है। 42 वें दिन नहा-
धोकर अष्टगन्ध (चन्दन, अगर, केशर, कुंकुम, गोरोचन, शिलारस,
जटामांसी तथा कपूर) से स्वच्छ 41 यन्त्र बनाएँ।
पहला यन्त्र अपने गले में धारण करें।
बाकी आवश्यकतानुसार बाँट दें।
प्राण-प्रतिष्ठा विधि
सर्व-प्रथम किसी स्वर्णकार से 15 ग्राम
का तीन इंच का चौकोर चाँदी का पत्र (यन्त्र)
बनवाएँ। अनुष्ठान प्रारम्भ करने के दिन ब्राह्म-मुहूर्त्त में उठकर,
स्नान करके सफेद धोती-कुरता पहनें। कुशा का आसन
बिछाकर उसके ऊपर मृग-छाला बिछाएँ। यदि मृग छाला न मिले, तो कम्बल
बिछाएँ, उसके ऊपर पूर्व को मुख कर बैठ जाएँ।
अपने सामने लकड़ी का पाटा रखें। पाटे पर लाल
कपड़ा बिछाकर उस पर एक थाली (स्टील
की नहीं) रखें। थाली में पहले
से बनवाए हुए चौकोर रजत-पत्र को रखें। रजत-पत्र पर अष्ट-
गन्ध की स्याही से अनार या बिल्व-वृक्ष
की टहनी की लेखनी के
द्वारा ‘यन्त्र लिखें।
पहले यन्त्र की रेखाएँ बनाएँ। रेखाएँ बनाकर
बीच में ॐ लिखें। फिर मध्य में क्रमानुसार 7, 2,
3 व 8 लिखें। इसके बाद पहले खाने में 1, दूसरे में 9,
तीसरे में 10, चैथे में 14, छठे में 6, सावें में 5, आठवें में
11 नवें में 4 लिखें। फिर यन्त्र के ऊपरी भाग पर
‘ॐ ऐं ॐ’ लिखें। तब यन्त्र
की निचली तरफ ‘ॐ
क्लीं ॐ’ लिखें। यन्त्र के उत्तर तरफ
‘ॐ श्रीं ॐ’ तथा दक्षिण
की तरफ ‘ॐ क्लीं ॐ’
लिखें।
प्राण-प्रतिष्ठा
अब ‘यन्त्र’ की प्राण-प्रतिष्ठा करें। यथा- बाँयाँ हाथ
हृदय पर रखें और दाएँ हाथ में पुष्प लेकर उससे ‘यन्त्र’ को छुएँ
और निम्न प्राण-प्रतिष्ठा मन्त्र को पढ़े -
“ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं
हंसः सोऽहं मम प्राणाः इह प्राणाः, ॐ आं
ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सोऽहं मम सर्व
इन्द्रियाणि इह सर्व इन्द्रयाणि, ॐ आं
ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सोऽहं मम वाङ्-
मनश्चक्षु-श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राण इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु
स्वाहा।”
‘यन्त्र’ पूजन
इसके बाद ‘रजत-यन्त्र’ के नीचे थाली पर
एक पुष्प आसन के रूप में रखकर ‘यन्त्र’ को साक्षात्
भगवती चण्डी स्वरूप मानकर
पाद्यादि उपचारों से उनकी पूजा करें। प्रत्येक उपचार के
साथ ‘समर्पयामि चन्डी यन्त्रे नमः’ वाक्य का उच्चारण
करें। यथा-
1. पाद्यं (जल) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 2.
अध्र्यं (जल) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 3.
आचमनं (जल) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 4.
गंगाजलं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 5. दुग्धं
समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 6. घृतं
समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 7. तरू-पुष्पं
(शहद) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 8. इक्षु-
क्षारं (चीनी) समर्पयामि चण्डी-
यन्त्रे नमो नमः। 9. पंचामृतं (दूध, दही, घी,
शहद, गंगाजल) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 10.
गन्धम् (चन्दन) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 11.
अक्षतान् समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 12 पुष्प-
माला समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 13. मिष्ठान्न-
द्रव्यं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 14. धूपं
समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 15. दीपं
समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 16.
पूगी फलं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः।
17 फलं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 18.
दक्षिणा समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 19.
आरतीं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः।
तदन्तर यन्त्र पर पुष्प चढ़ाकर निम्न मन्त्र बोलें-
पुष्पे देवा प्रसीदन्ति, पुष्पे देवाश्च संस्थिताः।।
अब ‘सिद्ध कुंजिका स्तोत्र’ का पाठ कर यन्त्र को जागृत करें। यथा-
।।शिव उवाच।।
श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि, कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्र प्रभावेण, चण्डी जापः शुभो भवेत।।
न कवचं नार्गला-स्तोत्रं, कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च, न न्यासो न च वार्चनम्।।
कुंजिका पाठ मात्रेण, दुर्गा पाठ फलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि ! देवानामपि दुलर्भम्।।
मारणं मोहनं वष्यं स्तम्भनोव्च्चाटनादिकम्।
पाठ मात्रेण संसिद्धयेत् कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम्।।
मन्त्र – ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल
ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं
ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं
क्षं फट् स्वाहा।।
नमस्ते रूद्र रूपायै, नमस्ते मधु-मर्दिनि।
नमः कैटभ हारिण्यै, नमस्ते महिषार्दिनि।।1
नमस्ते शुम्भ हन्त्र्यै च, निशुम्भासुर घातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जप ! सिद्धिं कुरूष्व मे।।2
ऐं-कारी सृष्टि-रूपायै,
ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी काल-रूपिण्यै, बीजरूपे
नमोऽस्तु ते।।3
चामुण्डा चण्डघाती च,
यैकारी वरदायिनी।
विच्चे नोऽभयदा नित्यं, नमस्ते मन्त्ररूपिणि।।4
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नीः,
वां वीं वागेश्वरी तथा।
क्रां क्रीं श्रीं में शुभं कुरू, ऐं ॐ ऐं
रक्ष सर्वदा।।5
ॐॐॐ कार-रूपायै, ज्रां ज्रां ज्रम्भाल-
नादिनी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिकादेवि ! शां शीं शूं में शुभं
कुरू।।6
ह्रूं ह्रूं ह्रूंकार रूपिण्यै, ज्रं ज्रं ज्रम्भाल नादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! भवानि ते
नमो नमः।।7
अं कं चं टं तं पं यं शं बिन्दुराविर्भव।
आविर्भव हं सं लं क्षं मयि जाग्रय जाग्रय
त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरू कुरू स्वाहा।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं
खेचरी तथा।।8
म्लां म्लीं म्लूं दीव्यती पूर्णा,
कुंजिकायै नमो नमः।
सां सीं सप्तशती सिद्धिं, कुरूश्व जप-
मात्रतः।।9
।।फल श्रुति।।
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्र-जागर्ति हेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देवि ! हीनां सप्तशती पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
फिर यन्त्र की तीन बार प्रदक्षिणा करते
हुए यह मन्त्र बोलें-
यानि कानि च पापानि, जन्मान्तर-कृतानि च।
तानि तानि प्रणश्यन्ति, प्रदक्षिणं पदे पदे।।
प्रदक्षिणा करने के बाद यन्त्र को पुनः नमस्कार करते हुए यह
मन्त्र पढ़े-
एतस्यास्त्वं प्रसादन, सर्व मान्यो भविष्यसि।
सर्व रूप मयी देवी, सर्वदेवीमयं
जगत्।।
अतोऽहं विश्वरूपां तां, नमामि परमेश्वरीम्।।
अन्त में हाथ जोड़कर क्षमा-प्रार्थना करें। यथा-
अपराध सहस्त्राणि, क्रियन्तेऽहर्निषं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा, क्षमस्व परमेश्वरि।।
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि, क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-
हीनं सुरेश्वरि !
यत् पूजितम् मया देवि ! परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अपराध शतं कृत्वा, जगदम्बेति चोच्चरेत्।
या गतिः समवाप्नोति, न तां ब्रह्मादयः सुराः।।
सापराधोऽस्मि शरणं, प्राप्यस्त्वां जगदम्बिके !
इदानीमनुकम्प्योऽहं, यथेच्छसि तथा कुरू।।
अज्ञानाद् विस्मृतेर्भ्रान्त्या, यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत् सर्वं क्षम्यतां देवि ! प्रसीद परमेश्वरि !
कामेश्वरि जगन्मातः, सच्चिदानन्द-विग्रहे !
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या, प्रसीद परमेश्वरि !
गुह्याति-गुह्य-गोप्त्री त्वं, गुहाणास्मत् कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि ! त्वत् प्रसादात् सुरेश्वरि।।

भाग्य को मजबूत कैसे करें

भाग्य को मजबूत कैसे करें
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भारतीय ज्योतिष अपने आप में सम्पूर्ण है और इसे
किसी भी कसौटी पर परखने
की आवश्यकता नहीं है .मूल तत्व वही रहेंगे
किन्तु समझाने की प्रक्रिया थोडा बदलाव
चाहती है.
ग्रहों में सूर्य देव को महत्त्व,पावर ,और विस्तार हासिल है.ये
ग्रहों के राजा हैं और
कभी वक्री नहीं होते.किसी भी ग्रह
के प्रभाववश ऐसा नहीं होता की ये
उगना भूल जाएँ .जहाँ तक मेरे अध्ययन का सवाल है मैं सदा से
ही सूर्य देव से सर्वाधिक प्रभावित
होता हूँ,मेरा मानना है और शाश्त्र
भी ऐसा ही संकेत करते हैं
की यदि कुंडली में हजारों दोष
भी हों तो सूर्य उनका हनन कर देते हैं.जब
जीवन में आप सब प्रकार के उपाय कर के हार चुके
हों व
किसी भी समस्या का कहीं से
भी कुछ भी निदान न निकल
रहा हो तो सब कुछ भूलकर सूर्य देव के उपाय करें.मैं दावे के
साथ कहता हूँ की मात्र नब्बे दिनों में आप
अपनी समस्याओं का हल स्वयं
ही पा लेंगे.कुछ उपाय सूर्य को प्रबल करने के
बता रहा हूँ,इन्हें अपनाएं और फिर
जैसा भी रिजल्ट आये मुझे जरूर सूचित
करें .शनि कामों को ,भाग्य को .काम के परिणाम को जमा देने या कहें
रोक देने के लिए जाने जाते हैं.आप जानते ही हैं
की सूर्य
की गर्मी को सोकने में काला रंग अधिक
सक्षम होता है.शनि महाराज काले हैं,अततः सूर्य के प्रभाव
को बढाने के लिए सबसे पहले शनि के प्रभाव को कम
करना जरूरी है.आलस देने
वाली वस्तुओं तला- भुना,मांस -मदिरा,ढीले
कपड़ों ,बड़े बालों,दाढ़ी का त्याग करें व हाथ में
घड़ी अवश्य पहने.
१. रात को अधिक देर तक घर से बाहर न रहें.रात का भोजन
किसी भी हालत में नौं बजे से पहले
कर लें.
२ . सुबह किसी भी अवस्था में
सूर्योदय से पहले ही उठकर ताम्बे के बर्तन
का पानी पियें.
३. मल त्याग भी सूर्योदय से पहले
ही कर लें.
४. रोज सुबह किसी ऐसे मंदिर में लाल फूल चढ़ाएं
जो घर से कम से कम दो किलोमीटर दूर हो,व ध्यान
रखें की घर से मंदिर के रास्ते में आपने
किसी से भी बात
नहीं करनी है,जरा भी नहीं.
५. किसी भी काम के लिए निकलने से
पहले पिता के चरण स्पर्श करें.
६. रविवार का व्रत रखें,व उस दिन अपने व्यक्तिगत
कपड़ों,फाइलों,दस्तावेजों को व्यवस्थित करें.
७.राजा अर्थात सरकार के क्रियाकलापों से अखबार व
समाचारों द्वारा संपर्क में रहें.
इन उपायों को दिल से करें और विधि के चमत्कारों को महसूस करें.
अपने अनुभव व राय से मुझे भी सूचित करें.आपके
कीमती कमेन्ट ही मुझे
आगे लिखने को प्रोत्साहित करते हैं.

::::वास्तु टिप्स:::::

::::::वास्तु टिप्स:::::
घर का वास्तु ठीक हो तो आपको परेशानियां स्पर्श
भी नहीं कर सकती हैं।
इन आसान से वास्तु टिप्स को आजमाकर आप
हमेशा खुशी और
हर्षोउल्लास से अपनी ज़िंदगी को और
भी ज्यादा बेहतर तरीके से
जी सकते हैं।
1. घर के मुख्य द्वारा की सजावट करें ऐसा करने से
आपके धन की वृद्धि होती है।
2. घर की खिड़कियों में सुंदर कांच लगाएं, आपके
संबंधों में
मधुरता आएगी।
3. घर में दर्पण कुछ इस तरह से लटकाएं कि उसमें लॉकर
या केश
बॉक्स का
प्रतिबिम्ब बने ऐसा करने से आपकी धन दौलत और
शुभ
अवसरों पर दो
गुनी वृद्धि होती है।
4. अपने मास्टर बेडरूम को हल्के रंगों से पेंट करना चाहिए जैसे
समुंदरी हरा, हल्का गुलाबी और
हल्का नीला ये वो रंग हैं जो बेडरूम
के लिहाज से अच्छे रहते हैं।
5. घर में रखी बेकार की वस्तुओं
को समय-
समय पर फेंकते रहना चाहिए।
क्यों कि वास्तु के अनुसार घर में पड़ी वस्तुओं से
प्रेम में
बाधा पहुंचती है।

Sunday, June 29, 2014

कलाकार बनने के योग कुण्डली में

कलाकार बनने के योग कुण्डली में
ज्योतिषशास्त्र में शुक्र को कला एवं सौन्दर्य का कारक
माना जाता है. शुक्र से ही संगीत,
नृत्य, अभिनय की योग्यता आती है.
बुध बुद्धि का तथा चन्द्रमा मन एवं
कल्पनाशीलता का कारक ग्रह होता है. कला जगत
में कामयाबी के लिए इन
तीनों ग्रहों का शुभ एवं मजबूत होना बहुत
ही आवश्यक है.
अभिनय तथा गायन में वाणी प्रमुख होता है.
वाणी का भाव दूसरा भाव होता है. पांचवां भाव मनोरंजन
स्थान होता है. इन दोनों भावों के साथ ही साथ दशम
भाव जो आजीविका का भाव माना जाता है इन
सभी से यह आंकलन किया जाता है कि कोई
व्यक्ति कलाकार बनेगा या नहीं अथा कला के किस
क्षेत्र में उसे अधिक सफलता मिलेगी. लग्न
तथा लग्नेश भी इस विषय में
काफी प्रमुख माने जाते हैं
वृष लग्न अथवा तुला लग्न
की कुण्डली शुक्र एवं बुध
की युति दशम अथवा पंचम में भाव में
हो तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में ख्याति प्राप्त कर
सकता है. पंचम भाव जिसे मनोरंजन भाव कहते हैं उस पर
लग्नेश की दृष्टि हो साथ ही शुक्र
या गुरू भी उसे देखते हों तो व्यक्ति अभिनय
की दुनियां में अपना कैरियर बना सकता है. शुक्र, बुध
एवं लग्नेश जिस व्यक्ति की कुण्डली में
केन्द्र भाव में बैठे हों उन्हें कला जगत में
कामयाबी मिलने
की अच्छी संभावना रहती है.
तृतीय भाव का स्वामी शुक्र के साथ
युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति कलाकर बना सकता है.
कुण्डली में मालव्य योग, शश योग,
गजकेशरी योग, सरस्वती योग
हों तो व्यक्ति के अंदर कलात्मक गुण मौजूद होता है.
अपनी रूचि के अनुरूप वह जिस क्षेत्र में
अपनी योग्यता को निखारता है उसमें सफलता मिलने
की पूरी संभावना रहती है.
चन्द्रमा पंचम, दशम अथवा एकादश भाव में स्वराशि में
बैठा हो तथा शुक्र शुक्र दूसरे घर में स्थित हो या चन्द्र के साथ
इन भावों में युति बनाये तो कलाकार बनने के लिए
व्यक्ति को प्रेरणा मिलता है. शुक्र चन्द्र की इस
स्थिति में व्यक्ति अभिनय या गीत, संगीत
में नाम रोंशन कर पाता है. गुरू चन्द्र एक दूसरे को षष्टम अष्टम
दृष्ट से देखता है साथ ही गुरू यदि आय भाव
का स्वामी हो तो व्यक्ति कला जगत से आय प्राप्त
करता है.

कुछ विशेष दिनों में बाल नहीं कटवाते क्यूं

कुछ विशेष दिनों में बाल नहीं कटवाते क्यूं :
हमारे दैनिक जीवन से जुडी कई
ऐसी बातें हैं जिनकों कब और कैसे करना है
इसका निर्देश धर्म शास्त्रों में दिया गया है। आज के समय में
बहुत से लोग उनकों अंधविश्वास का नाम देते हैं
क्योंकि उनका प्रभाव प्रत्यक्षत: देखने
को नहीं मिलता लेकिन सच्चाई यही हैं
कि चीन काल में ऋषि-मुनियों ने जो परंपराएं बनाई हैं,
अप्रत्यक्ष रूप से इन मान्यताओं का हम पर एक गहरा प्रभाव
पडता है। शायद इसीलिए बहुत से लोग आज
भी इन परम्पराओं को खूब महत्त्व देते हैं।
उन्हीं में से एक परम्परा है दाढी और
बाल कटवाने की। आज भी घर के बड़े
और बुजुर्गों द्वारा बताया जाता है कि शनिवार, मंगलवार और गुरुवार
के दिन बाल नहीं काटवाने चाहिए। ऐसा माना जाता है
कि सप्ताह के कुछ ऐसे दिन हैं जब ग्रहों से कुछ विशेष
प्रकार की किरणें निकलती हैं। ये किरणे
हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।
मानव एक मस्तिष्क प्रधान जीव है। हमारे
शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग मस्तिष्क
ही है। मस्तिष्क सिर में पाया जाता है। सिर
का मध्य भाग अति संवेदनशील और बहुत
ही कोमल होता है।
जिसकी सुरक्षा बालों से होती है
यही कारण है कि प्रकृति ने हमारे सिर को बालों से
आच्छादित किया है। यदि शनिवार, मंगलवार और गुरुवार को निकलने
वाली विशेष प्रकार
की किरणों वाली बात
सही है तो उस दिन बाल कटवाने से इन
किरणों का सीधा प्रभाव हमारे सिर पर पडेगा।
फलस्वरूप हमारा मस्तिष्क भी प्रभावित होगा।
इसी वजह से इन दिनों में बालों को न कटवाने
की बात कही गई है।
शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि मंगलवार को बाल कटवाने
से हमारी आयु आठ माह कम
हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार मंगलवार का दिन
मंगल ग्रह का दिन होता है। शरीर में मंगल
का निवास हमारे रक्त में रहता है और रक्त से
बालों की उत्पत्ति होती है। इस दिन
बाल कटवाने से रक्त विकार होने की सम्भावना बढ
जाती है।
गुरुवार धन के कारक बृहस्पति का दिन माना गया है,
बृहस्पति संतान और ज्ञान का भी कारक ग्रह
है। साथ ही कुछ विद्वान गुरुवार
को देवी लक्ष्मी का दिन
भी मानते हैं अत: इस दिन बाल कटवाने से धन
की कमी, संतान कष्ट व ज्ञान
क्षीणता होने की संभावनाएं
रहती हैं।
शनिवार शनि ग्रह का दिन है। शनि आयु या मृत्यु देने वाला ग्रह
है और शनि का संबंध हमारी त्वचा से
भी होता है। अत: शनिवार को बाल कटवाने से
उपरोक्त बातों पर दुष्प्रभाव पडता है। इसीलिए
इसदिन बाल कटवाने से आयु में सात माह
की कमी हो जाने की बात
कही गई है।
शायद इनसे बचने के लिए ही शनिवार, मंगलवार और
गुरुवार के दिन बाल न कटवाने की बात
कही जाती है।

नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम

आज भले हम अंग्रेजों के कलेंडर का अनुसरण कर रहे हों, परन्तु
हमारा अपना वैदिक कलेंडर सबसे उत्तम है जो ऋतुओं (मौसम) के
अनुसार चलता है l
हमारे वैदिक मासों के नाम
1. चैत्र 2. वैशाख
3. ज्येष्ठ 4. आषाढ़
5. श्रावण 6. भाद्रपद
7. अश्विन 8. कार्तिक
9. मार्गशीर्ष 10. पौष
11. माघ 12. फाल्गुन
चैत्र मास या महीना ही हमारा प्रथम मास
होता है, जिस दिन ये मास आरम्भ होता है, उसे
ही वैदिक नव-वर्ष मानते हैं l
चैत्र मास अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल में
आता है, चैत्र के बाद वैशाख मास आता है जो अप्रैल-मई के मध्य
में आता है, ऐसे
ही बाकी महीने आते हैं l
फाल्गुन मास हमारा अंतिम मास है जो फरवरी-मार्च में
आता है, फाल्गुन की अंतिम तिथि से वर्ष
की सम्पति हो जाती है, फिर अगला वर्ष
चैत्र मास का पुन: तिथियों का आरम्भ होता है जिससे नव-वर्ष
आरम्भ होता है l
हमारे समस्त वैदिक मास (महीने) का नाम 28 में से 12
नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं l
जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर
होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम हुआ
l
1. चित्रा नक्षत्र से चैत्र मास l
2. विशाखा नक्षत्र से वैशाख मास l
3. ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ मास l
4. पूर्वाषाढा या उत्तराषाढा से आषाढ़ l
5. श्रावण नक्षत्र से श्रावण मास l
6. पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद से भाद्रपद l
7. अश्विनी नक्षत्र से अश्विन मास l
8. कृत्तिका नक्षत्र से कार्तिक मास l
9,. मृगशिरा नक्षत्र से मार्गशीर्ष मास l
10. पुष्य नक्षत्र से पौष मास l
11. माघा मास से माघ मास l
12. पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी से
फाल्गुन मास l

माला का प्रयोग

भौतिक सुखों जैसे- द्रव्य प्राप्ति, संतान प्राप्ति, परिवार
शांति आदि के लिए माला अंगूठे पर रखकर
मध्यमा उंगली से फेरने का विधान है जबकि मोक्ष
हेतु अनामिका अंगुली से और बैर-क्लेश आदि के
नाश के लिए तर्जनी उंगली से
माला फेरना उचित है| माला को सदैव दाहिने हाथ के अंगूठे पर
रख हृदय के पास स्पर्श करते हुए फेरना चाहिए| साथ
ही ध्यान रखें कि माला के मणियों को फिराते समय
उनके नख न लगें और सुमेरू का उल्लंघन न हो, अन्यथा लाभ
कम होता है| इसके अतिरिक्त ये भी नियम हैं
कि माला साफ, समान व पूरे १०८ मणियों तथा सुंदर
सुमेरूवाली हो| शुभ कार्यों के लिए सफेद माला व कष्ट
निवारण के लिए लाल माला का प्रयोग प्रायः किया जाता है|

रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं

रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस
प्रकार हैं-
• जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
• असाध्य रोगों को शांत करने के लिए
कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
• भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक
करें।
• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस
से रुद्राभिषेक करें।
• धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक
करें।
• तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष
की प्राप्ति होती है।
• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से
बीमारी नष्ट होती है ।
• पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और
यदि संतान उत्पन्न होकर मृत
पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक
करें।
• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान
संतान की प्राप्ति होती है।
• ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/
गंगाजल से
रुद्राभिषेक करें।
• सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए
घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश
का विस्तार होता है।
• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से
हो जाती है।
• शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर
जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
• सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु
पराजित होता है।
• शहद के द्वारा अभिषेक करने पर
यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।
• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर
भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
• गो दुग्ध से तथा शुद्ध
घी द्वारा अभिषेक करने से
आरोग्यता प्राप्त होती है।
• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर
मिश्रित जल से अभिषेक करें।

Lal Kitab Upay For Love Marriage

Lal Kitab Upay For Love Marriage
Lal Kitab Remedies For Love Marriage and Love
Back
Use green colour bangles, On Friday wear white
clothes and on Thursday, yellow colour clothes.
It
is very effective remedies success in Love,
relationship and early marriage.
If you want to marry with your desired partner
or you lover / beloved / girl friend / boy friend,
take an earthen lamp (mitti ka deepak) pour oil
in it and lit it and then keep it in the South-
West
side / corner of your house.
To get love of your desired person do this kriya,
you may get desired success
Take some sand or dust from under the feet of
person you love. You can collect it where he /
she
normally stands or walks. And keep it in a piece
of paper.
Now take 21 grains of Urad dal and 7 pieces of
clove (Lavang).
Keep all three things in your hands and pray
God or your Ishta Dev to make him / her your
love /
friend. Then keep it at some safe place in your
house.
On getting success in your effort, throw these
items in a river.
If you want to attract your desired boyfriend or
girl friend, do this remedy, hopefully you will get
success in your effort and you desired person
will get attracted soon.
Take a betel leaf and black ink pen.
Write the name of your desired person.
And, put it in a bottle of honey.
Go on dating on full moon night to meet with
your boy friends or girl friend.
Lal Kitab Upay for Early Marriage and Love
Relationship
Wear a Gauri Shankar Rudraksha or you may
keep it in your purse or at the place of worship
in your
house.
Take an old lock without any key and rotate it
around your head 7 times and throw it at any
crossing, and do not look back.
Offer Red chunni, red bangles and sindur etc to
Lord Shiva and Parvati in the temple.
Keeping fast for 16 Mondays is well known
remedy for removing delay in marriage.
Keep Rabbits in your house and feed them with
your own hands.
Planting a Banana & Anar (Pomegranate) plant
in temple or at any place of worship for
expediting the
matter.
Offer green grass or spinach (Palak) to Cow
daily
Keep a Tulsi plant in your house and give it
water mixed with kesar (Saffron)
Mix a pinch of Haldi (Turmeric) in the water and
take bath with it.

विवाह और सातवां भाव

विवाह और सातवां भाव :
सातवें भाव का अर्थ:
जन्म कुन्डली का सातंवा भाव विवाह
पत्नी ससुराल प्रेम
भागीदारी और गुप्त व्यापार के लिये
माना जाता है। सातवां भाव अगर
पापग्रहों द्वारा देखा जाता है,उसमें अशुभ राशि या योग
होता है,तो स्त्री का पति चरित्रहीन
होता है,स्त्री जातक
की कुंडली के सातवें भाव में पापग्रह
विराजमान है,और कोई शुभ ग्रह उसे नही देख
रहा है,तो ऐसी स्त्री पति की मृत्यु
का कारण बनती है,परंतु
ऐसी कुंडली के द्वितीय भाव
में शुभ बैठे हों तो पहले स्त्री की मौत
होती है,सूर्य और चन्द्रमा की आपस
की द्रिष्टि अगर शुभ होती है
तो पति पत्नी की आपस
की सामजस्य
अच्छी बनती है,और अगर सूर्य
चन्द्रमा की आपस की १५०
डिग्री,१८० डिग्री या ७२
डिग्री के आसपास
की युति होती है
तो कभी भी किसी भी समय
तलाक या अलगाव हो सकता है।केतु और मंगल का सम्बन्ध
किसी प्रकार से आपसी युति बना ले
तो वैवाहिक जीवन आदर्शहीन
होगा,ऐसा जातक कभी भी बलात्कार
का शिकार
हो सकता है,स्त्री की कुंडली में
सूर्य सातवें स्थान पर पाया जाना ठीक
नही होता है,ऐसा योग वैवाहिक जीवन
पर गहरा प्रभाव डालता है,केवल गुण मिला देने से
या मंगलीक वाली बातों को बताने से इन
बातों का फ़ल
सही नही मिलता है,इसके लिये
कुंडली के सातंवे भाव का योगायोग
देखना भी जरूरी होता है।
*सातवां भाव और पति पत्नी*
सातवें भाव को लेकर पुरुष जातक के योगायोग अलग बनते
है,स्त्री जातक के योगायोग अलग बनते है,विवाह
करने के लिये सबसे पहले शुक्र पुरुष कुंडली के
लिए और मंगल
स्त्री की कुन्डली के लिये
देखना जरूरी होता है,लेकिन इन सबके बाद
चन्द्रमा को देखना भी जरूरी होता है,मनस्य
जायते चन्द्रमा,के अनुसार चन्द्रमा की स्थिति के
बिना मन की स्थिति नही बन पाता है।
पुरुष कुंडली में शुक्र के अनुसार
पत्नी और स्त्री कुंडली में
मंगल के अनुसार पति का स्वभाव सामने आ जाता

नौकरी के लिये शनि के उपाय

नौकरी के लिये शनि के उपाय:
नौकरी का मालिक शनि है लेकिन
शनि की युति अगर छठे भाव के मालिक से है और
दोनो मिलकर छठे भाव से अपना सम्बन्ध स्थापित किये है
तो नौकरी के लिये फ़लदायी योग होगा,अगर
किसी प्रकार से छठे भाव का मालिक अगर क्रूर ग्रह
से युति किये है,अथवा राहु केतु या अन्य प्रकार से खराब जगह
पर स्थापित है,अथवा नौकरी के भाव का मालिक धन
स्थान या लाभ स्थान से सम्बन्ध नही रखता है
तो नौकरी के लिये फ़लदायी समय
नहीं होगा। आपके पास बार बार
नौकरी के बुलावे आते है और आप
नौकरी के लिये चुने नहीं जाते
है,तो इसमे इन कारणों का विचार आपको करना पडेगा:-
(अ) यह कि नौकरी की काबलियत
आपके अन्दर है,अगर
नहीं होती तो आपको बुलाया नहीं जाता।
(ब) यह कि नौकरी के लिये परीक्षा देने
की योग्यता आपके अन्दर है,अगर
नहीं होती तो आप सम्बन्धित
नौकरी के लिये पास की जाने
वाली परीक्षायें
ही उत्तीर्ण नहीं कर
पाते।
(स) नौकरी के लिये तीन बातें बहुत
जरूरी है,पहली वाणी,दूसरी खोजी नजर,और
तीसरी जो नौकरी के बारे में
इन्टरव्यू आदि ले रहा है उसकी मुखाकृति और
हाव भाव से उसके द्वारा प्रकट किये जाने वाले विचारों को उसके
पूंछने से पहले समझ जाना,और जब वह पूंछे तो उसके पूंछने
के तुरत बाद ही उसका उत्तर दे दे।
(द) वाणी के लिये बुध,खोजी नजर के
लिये मन्गल और बात करने से पहले ही समझने
के लिये चन्द्रमा।
(य) नौकरी से मिलने वाले लाभ का घर चौथा भाव
है,इस भाव के
कारकों को समझना भी जरूरी है,चौथे भाव
में अगर कोई खराब ग्रह है और नौकरी के भाव के
मालिक का दुश्मन ग्रह है तो वह चाह कर
भी नौकरी नहीं करने
देगा,इसके लिये उसे चौथे भाव से हटाने
की क्रिया पहले से
ही करनी चाहिये। जैसे अगर मन्गल
चौथे भाव मे है और नौकरी के भाव का मालिक बुध है
तो मन्गल के लिये शहद चार दिन लगातार बहते
पानी में बहाना है,और अगर शनि चौथे भाव में है,
और नौकरी के भाव का मालिक सूर्य है तो चार नारियल
लगातार पानी मे बहाने होते
है,इसी प्रकार से अन्य ग्रहों का उपाय
किया जाता है।

Saturday, June 28, 2014

अन्नपूर्णा साधना

अन्नपूर्णा साधना
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आदि शक्ति श्री भगवती के कई कई स्वरुप
है जिसके माध्यम से वह इस संसार का नित्य कल्याण हर क्षण
करती ही रहती है. निश्चय
ही हर एक कण कण में बसने
वाली शक्ति के विविध स्वरुप तो हम स्थूल और शुक्ष्म
दोनों रूप में हर क्षण प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से अनुभव तो करते
ही है. चाहे वह
किसी भी जिव की सूक्ष्म से
सूक्ष्मतम प्राणशक्ति हो या फिर ब्रहमांड को नियंत्रित रखने
वाली वृहद अर्थात महाविद्या शक्ति हो.
सभी स्वरुप में शक्ति का हम साहचर्य प्राप्त करते
ही रहते है. खुद आदि पुरुष भगवान शिव
भी तो बिना शक्ति के शव हो जाते है तो फिर सामान्य
जीव मनुष्य के बारे में तो कहना ही क्या.
इन्ही लीला क्रम में भगवती के
कई स्वरुप का वर्णन हमारे महर्षियो ने पुरातन ग्रंथो में लिपिबद्ध
किया. तथा किस प्रकार से इन महाशक्तियों का हमारे
जीवन में कृपा कटाक्ष प्राप्त हो तथा जीवन
में सहयोग निरंतर प्राप्त होता रहे इसका विवरण
भी उन्होंने सहज रूप से किया. लेकिन काल क्रम में
वह क्रियात्मक पक्ष लोप होता गया, और तंत्र का एक विकृत रूप
ही जनमानस के मध्य में उभरने लगा, लेकिन निश्चित
गति से देवी कृपा प्राप्ति से सबंधित कई कई प्रयोग
तो साधको के मध्य गुरुमुखी प्रथा से प्रचलित रहे.
इसी क्रम में भगवती अन्नपूर्णा से सबंधित
क्रम भी तो बहोत कम ही प्रचलित है.
भगवती का यह स्वरुप भी अपने आप में
अत्यंत निराला है. जो स्वयं भगवान शिव को भिक्षा प्रदान कर
सकती है वह भला मनुष्यों को क्या देने में असमर्थ
होंगी? निश्चय ही यह
देवी जिव मात्र के कल्याण हेतु सर्वस्व प्रदान करने
का सामर्थ्य रखती है तभी तो इनके बारे में
यह भी कहा जाता है की पूर्ण रूप से
अन्नपूर्णा साधना कर लेने वाले व्यक्ति को महाविद्या स्वरुप के
भी दर्शन अपने आप होने लगते है
तथा सभी साधनाए सहज हो जाती है.
लेकिन देवी से सबंधित कई विधान ऐसे भी है
जो की गुप्त है और साधक को कई प्रकार के सुख भोग
की प्राप्ति करा सकते है. देवी से सबंधित
प्रस्तुत साधना प्रयोग के
द्वारा भी देवी की कृपा साधक
को प्राप्त होती है जिसके माध्यम से साधक के
जीवन में साधक को सुख भोग
की इच्छा रुपी अग्नि को हविष्य अन्न
रुपी धन ऐश्वर्य और मानसन्मान
की प्राप्ति होती है. इस प्रयोग के माध्यम
से साधक अपने जीवन के
सभी पक्षों का सौंदर्य बढ़ा सकता है, जीवन
में धन और यश की प्राप्ति तो कर
ही सकता है साथ ही साथ अपने घर
परिवार में भी सुख तथा ऐशवर्य के वातावरण का निर्माण
करता है.
यह प्रयोग साधक शुक्लपक्ष के रविवार के दिन शुरू करे.
साधक दिन या रात्री के कोई भी समय में यह
प्रयोग कर सकता है.
साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर पीले
वस्त्रों को धारण करना चाहिए तथा पीले रंग के आसन पर
बैठना चाहिए. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ हो.
साधक अपने सामने किसी बाजोट पर
देवी अन्नपूर्णा का चित्र या यंत्र स्थापित करे तथा उसके
सामने पांच प्रकार के धान रखे. इसमें कोई भी धान
का प्रयोग किया जा सकता है (गेहूं, चावल, उडद, चना या चने
की दाल तथा मक्का उत्तम है; लेकिन साधक चाहे
तो अपनी सुविधा अनुसार कोई भी धान को रख
सकता है).
दीपक शुद्ध घी का हो तथा साधना में
पीले पुष्प का प्रयोग करना चाहिए. इसके बाद साधक
गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप कर देवी अन्नपूर्णा के
विग्रह या यंत्र का पूजन करे.
पूजन के बाद साधक निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप
करे. यह जाप साधक शक्ति माला से या स्फटिक माला से कर
सकता है.
ॐ ह्रीं महेश्वरी अन्नपूर्णे नमः
(om hreem maheshwari annapoorne namah)
मन्त्र जाप पूर्ण होने पर साधक देवी को जाप समर्पित
कर पूर्ण श्रद्धा भाव से वंदन करे.साधक को यह क्रम ३ दिन तक
रखना है
3 दिन पूर्ण होने पर साधक धान तथा पीले वस्त्र
को किसी ब्राम्हण को या किसी ज़रूरतमंद
व्यक्ति को दक्षिणा के साथ भेंट कर दे. अगर संभव
हो तो कुमारी को भोज कराये. तथा जब
भी संभव हो इस मन्त्र का यथा संभव या कम से कम
११ बार उच्चारण पूजा स्थान पर करना चाहिए. साधक माला का प्रयोग
भविष्य में भी कर सकता है.

श्रीः तन्त्र

श्रीः तन्त्र
तंत्र से लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग
नागेश्वर तंत्रः
नागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं।
काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल
घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से
आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर
शीतलचीनी (कबाबचीनी)
के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर
प्रयोजनीय माना गया है।
१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध
की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर
ले आइए। बुध की होरा काल में
ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक
अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर
को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न
बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने
स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक
देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-
साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ।
आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह
प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक
नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार
ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग
के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान
में छोड़ दें।
२॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र
स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन
शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-
पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त
किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण
करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें
‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार
२१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर
नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते
हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के
पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-
ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन,
वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।
इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र
द्वारा की गई यह
शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से
मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।
३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी,
सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल
पोटली बना लें। इस
पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-
दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर
आलमारी, तिजोरी, भण्डार में
कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है।
इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ
नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।
४॰ कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस
जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-
किसी भी शुक्ल पक्ष
की अष्टमी को रुई धुनने वाले से
थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ।
उसकी चार बत्तियाँ बना लें।
बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल
(तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके
सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें।
रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल
का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें।
अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक
बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित
व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार
पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित
आपकी धनराशि आपको अवश्य
ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे
मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक
रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके
तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।
५॰ जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग
करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर,
किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच
बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए।
इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद,
दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें।
यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस
पूजा में एक दिन
का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर
आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर
किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने
तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस
एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से
पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने
के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल
तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ।
इन्हें घर, दुकान,
फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के
स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प
चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।
मार्जारी तंत्र :
मार्जारी अर्थात् बिल्ली सिंह परिवार
का जीव है। केवल आकार का अंतर इसे सिंह से पृथक
करता है, अन्यथा यह सर्वांग में, सिंह का लघु संस्करण
ही है। मार्जारी अर्थात्
बिल्ली की दो श्रेणियाँ होती हैं-
पालतू और जंगली। जंगली को वन बिलाव
कहते हैं। यह आकार में बड़ा होता है, जबकि घरों में घूमने
वाली बिल्लियाँ छोटी होती हैं। वन
बिलाव को पालतू नहीं बनाया जा सकता, किन्तु घरों में घूमने
वाली बिल्लियाँ पालतू हो जाती हैं।
अधिकाशतः यह काले रंग की होती हैं,
किन्तु सफेद, चितकबरी और लाल (नारंगी) रंग
की बिल्लियाँ भी देखी जाती हैं।
घरों में घूमने वाली बिल्ली (मादा)
भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त
कराने में सहायक होती है, किन्तु यह तंत्र प्रयोग
दुर्लभ और अज्ञात होने के कारण सर्वसाधारण के लिए
लाभकारी नहीं हो पाता। वैसे यदि कोई
व्यक्ति इस मार्जारी यंत्र का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से
वह लाभान्वित हो सकता है।
गाय, भैंस, बकरी की तरह लगभग
सभी चौपाए मादा पशुओं के पेट से प्रसव के पश्चात् एक
झिल्ली जैसी वस्तु निकलती है।
वस्तुतः इसी झिल्ली में गर्भस्थ
बच्चा रहता है। बच्चे के जन्म के समय वह भी बच्चे
के साथ बाहर आ जाती है। यह पॉलिथीन
की थैली की तरह
पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और
पानी के मिश्रण से तर होती है।
सामान्यतः यह नाल या आँवल कहलाती हैं।
इस नाल को तांत्रिक साधना में बहुत महत्व प्राप्त है।
स्त्री की नाल का उपयोग
वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्रियों के लिए परम हितकर माना गया है।
वैसे अन्य पशुओं की नाल के भी विविध
उपयोग होते हैं। यहाँ केवल
मार्जारी (बिल्ली) की नाल
का ही तांत्रिक प्रयोग लिखा जा रहा है, जिसे सुलभ हो,
इसका प्रयोग करके लक्ष्मी की कृपा प्राप्त
कर सकता है।
जब पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो, उसके लिए
रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें
कि वह आपके कमरे में ही रहे। यह कुछ कठिन
कार्य नहीं है, प्रेमपूर्वक पाली गई
बिल्लियाँ तो कुर्सी, बिस्तर और गोद तक में बराबर मालिक
के पास बैठी रहती हैं। उस पर बराबर
निगाह रखें। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे
रही हो, सावधानी से
उसकी रखवाली करें। बच्चों के जन्म के तुरंत
बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली)
निकलती है और स्वभावतः तुरंत
ही बिल्ली उसे खा जाती है।
बहुत कम लोग ही उसे प्राप्त कर पाते हैं।
अतः उपाय यह है कि जैसे ही बिल्ली के
पेट से नाल बाहर आए, उस पर कपड़ा ढँक दें। ढँक जाने पर
बिल्ली उसे तुरंत
खा नहीं सकेगी। चूँकि प्रसव
पीड़ा के कारण वह कुछ शिथिल
भी रहती है, इसलिए तेजी से
झपट नहीं सकती। जैसे
भी हो, प्रसव के बाद उसकी नाल
उठा लेनी चाहिए। फिर उसे धूप में सुखाकर
प्रयोजनीय रूप दिया जाता है।
धूप में सुखाते समय
भी उसकी रखवाली में
सतर्कता आवश्यक है। अन्यथा कौआ, चील,
कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज
धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े
की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके
चौकोर टुकड़े (दो या तीन वर्ग इंच के या जैसे
भी सुविधा हो) कर लें और उन पर
हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण
अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार
हल्दी लगाया हुआ
बिल्ली की नाल
का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।
तंत्र साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान-
पूजा करके शुद्ध स्थान पर बैठ जाएँ और
हल्दी लगा हुआ नाल का सीधा टुकड़ा बाएँ
हाथ में लेकर मुट्ठी बंद कर लें और
लक्ष्मी, रुपया, सोना,
चाँदी अथवा किसी आभूषण का ध्यान करते
हुए 54 बार यह मंत्र पढ़ें- ‘मर्जबान उल किस्ता’।
इसके पश्चात् उसे माथे से लगाकर अपने संदूक, पिटारी,
बैग या जहाँ भी रुपए-पैसे या जेवर हों, रख दें। कुछ
ही समय बाद आश्चर्यजनक रूप से श्री-
सम्पत्ति की वृद्धि होने लगती है। इस नाल
यंत्र का प्रभाव विशेष रूप से धातु लाभ (सोना-
चाँदी की प्राप्ति) कराता है।
दूर्वा तंत्र :
दूर्वा अर्थात् दूब एक विशेष प्रकार की घास है।
आयुर्वेद, तंत्र और अध्यात्म में
इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। देव पूजा में
भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है।
गणेशजी को यह बहुत प्रिय है। साधक
किसी दिन शुभ मुहूर्त में
गणेशजी की पूजा प्रारंभ करे और प्रतिदिन
चंदन, पुष्प आदि के साथ प्रतिमा पर 108 दूर्वादल (दूब के टुकड़े)
अर्पित करे। धूप-दीप के बाद गुड़ और गिरि का नैवेद्य
चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन दूर्वार्पण करने से
गणेशजी की कृपा प्राप्त
हो सकती है। ऐसा साधक जब
कभी द्रव्योपार्जन के कार्य से
कहीं जा रहा हो तो उसे चाहिए कि गणेश प्रतिमा पर
अर्पित दूर्वादलों में से 5-7 दल प्रसाद स्वरूप लेकर जेब में रख ले।
यह दूर्वा तंत्र कार्यसिद्धि की अद्भुत
कुंजी है।
अश्व (वाहन) नाल तंत्र :
नाखून और तलवे की रक्षा के लिए लोग प्रायः घोड़े के पैर
में लोहे की नाल जड़वा देते हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन
पक्की सड़कों पर दौड़ना पड़ता है। यह नाल
भी बहुत प्रभावी होती है।
दारिद्र्य निवारण के लिए इसका प्रयोग अनेक प्राचीन
ग्रंथों में वर्णित है।
घोड़े की नाल तभी प्रयोजनीय
होती है, जब वह अपने आप घोड़े के पैर से उखड़कर
गिरी हो और शनिवार के दिन किसी को प्राप्त
हो। अन्य दिनों में मिली नाल प्रभावहीन
मानी जाती है। शनिवार को अपने आप, राह
चलते कहीं ऐसी नाल दिख जाए, भले
ही वह घोड़े के पैर से
कभी भी गिरी हो उसे प्रणाम
करके ‘ॐ श्री शनिदेवाय नमः’ का उच्चारण करते
हुए उठा लेना चाहिए।
शनिवार को इस प्रकार प्राप्त नाल लाकर घर में न रखें, उसे बाहर
ही कहीं सुरक्षित छिपा दें। दूसरे दिन रविवार
को उसे लाकर सुनार के पास जाएँ और उसमें से एक टुकड़ा कटवाकर
उसमें थोड़ा सा तांबा मिलवा दें। ऐसी मिश्रित धातु (लौह-
ताम्र) की अंगूठी बनवाएँ और उस पर
नगीने के स्थान पर ‘शिवमस्तु’ अंकित करा लें। इसके
पश्चात् उसे घर लाकर देव प्रतिमा की भाँति पूजें और
पूजा की अलमारी में आसन पर प्रतिष्ठित कर
दें। आसन का वस्त्र नीला होना चाहिए।
एक सप्ताह बाद अगले शनिवार को शनिदेव का व्रत रखें।
सन्ध्या समय पीपल के वृक्ष के नीचे
शनिदेव की पूजा करें और तेल का दीपक
जलाकर, शनि मंत्र ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ का जाप करें। एक
माला जाप पश्चात् पुनः अंगूठी को उठाएँ और 7 बार
यही मंत्र पढ़ते हुए पीपल
की जड़ से स्पर्श कराकर उसे पहन लें। यह
अंगूठी बीच की या बगल
की (मध्यमा अथवा अनामिका) उँगली में
पहननी चाहिए। उस दिन केवल एक बार
संध्या को पूजनोपरांत भोजन करें और संभव हो तो प्रति शनिवार
को व्रत रखकर पीपल के वृक्ष के नीचे
शनिदेव की पूजा करते रहें। कम से कम सात शनिवारों तक
ऐसा कर लिया जाए तो विशेष लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति को यथासंभव
नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए और कुछ न हो सके
तो नीला रूमाल य अंगोछा ही पास में
रखा जा सकता है।
इस अश्व नाल से बनी मुद्रिका को साक्षात् शनिदेव
की कृपा के रूप में समझना चाहिए। इसके धारक को बहुत
थोड़े समय में ही धन-धान्य
की सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है।
दरिद्रता का निवारण करके घर में वैभव-सम्पत्ति का संग्रह करने में
यह अंगूठी चमत्कारिक प्रभाव दिखलाती है।