Wednesday, June 18, 2014

मंगली दोश के प्रभाव

मंगली दोश के प्रभाव : :
मंगली दोश का जो सबसे बड़ा आंतक जनमानस के
मसितश्क में बैंठाया गया है, वह यह भी है
कि पति या पत्नी की मृत्यु। किन्तु इस
विडम्बना के लिए अकेले मंगल
को ही उत्तरदायी कैसे
ठहराया जा सकता है? अन्य पृथôीकरण के
स्वभाव वाले ग्रह-षनि, केतु, राहू, तथा सुर्य
की सिथति भी विचारनी चाहिए।
ैम्ग् के कारक सौम्य ग्रह षुक्र एवं अतिसौम्य ग्रह
(जो महिलाओं में पति का कारक है और पुरूशों में षुक्र
स्त्री कापत्नी का कारक
भी है)
की सिथति भी विचारनी चाहिए।
साथ ही यह भी देखना चाहिए
कि कुंडली में वैधव्य योग, विधुर योग, पुनर्विवाह
आदि का योग बनता है। या नहीं तथा जातक
की कुंडली में 'अल्पायु योग'
भी बनता है। या नहीं। यदि अल्पायु
योग तथा वैधव्य योग आदि नहीं बनते है। तो मंगल
या कोर्इ भी ग्रह कैसे विवाह होते
ही पतिपतिन की मृत्यु करा सकता है?
यही कारण है। कि हमारे प्राचीन
ज्योतिशाचार्यो-पाराषर, जैमिनी, वराहमिहिर, वैधनाथ
आदि ने मंगली दोश के मामलें को महत्व
नही दिया है।
किन्तु इसका यह अर्थ भी नहीं है
कि मंगली दोश का दुश्प्रभाव जातक
को झेलना पड़ता हैै। प्राय: विवाह में विलम्ब, विवाह में बाधाएं,
गृहस्थ सुख का अभाव, वैवाहिक जीवन में
अषांतिकलहअसफलता आदि के प्रभाव 'मंगली दोश'
से ग्रस्त जांतको को कमोबेष झेलने ही पड़ते है।
लेकिन ऐसा नहीं है। कि मंगली दोश के
सभी मामलों में पतिपतिन
अथवा दोनों की मृत्यु अनिवार्य ही हो।
जैसा कि कुछ ज्योतिशाचार्यो ने जनमानस को भ्रमित व आंतकित कर
दिया है। जिसका कोर्इ ठोस आधार नहीं है। लग्न,
चन्द्र व षुक्र से मंगली दोश को कन्फर्म
करना चाहिए।

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