तीव्र इच्छा पूर्ति शाबर योगिनी प्रयोग
एक साधक के लिए काल ज्ञान अत्यधिक आवश्यक है
क्यों की सिद्ध योगो मे उर्जा का प्रवाह अत्यधिक वेगवान
होता है, विशेष काल मे विशेष देवी देवता अपने पूर्ण रूप
मे जागृत होते है. तथा ब्रम्हांड मे शक्ति का संचार स्वतः बढ़
जाता है. साधको के लिए इन विशेष काल मे साधना करने से साधना मे
सफलता की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है.
इस दिशा मे ग्रहण का समय अपने आप मे साधको के लिए
महत्वपूर्ण है. इस काल मे साधक
किसी भी मंत्र जाप को करे तो उस मंत्र और
प्रक्रिया से सबंधित योग्य परिणाम प्राप्त करना सहज हो जाता है.
यु तो इस काल मे कोई भी साधना या मंत्र जाप
किया जा सकता है लेकिन कुछ विशेष शाबर साधनाए ग्रहण काल के
लिए ही निहित है, जिसे मात्र और मात्र ग्रहण के
समय ही किया जाता है. इस क्रम मे ऐसे कई दुर्लभ
विधान है जो की साधक को सफलता के द्वार तक ले के
जाता है. वस्तुतः हमारा जीवन इच्छाओ के
आधीन है, और अगर मनुष्य की इच्छाए
ही ना रहे तो फिर जीवन
ही ना रहे. क्यों की इच्छा मुख्य
त्रिशक्ति मे से एक है, क्रियाज्ञानइच्छा च शक्तिः .
अपनी इच्छा ओ
की पूर्ति करना किसी भी रूप मे
अनुचित नहीं है. तंत्र तो श्रृंगार
की प्रक्रिया है, जो नहीं प्राप्त किया है
उसे प्राप्त करना और जो प्राप्त हुआ है उसे और
भी निखारना. यु भी तन्त्र दमन का समर्थन
नहीं करता. अपनी योग्य इच्छाओ
की साधक पूर्ति करे और अपने आपको पूर्णता के पथ
पर आगे बढ़ने के लिए कदम भरता जाए. ग्रहण काल से सबंधित कई
दुर्लभ विधानों मे इच्छापूर्ति के लिए भी विधान है. अगर
इन विधानों को साधक विधिवत पूर्ण कर ले तब साधक के लिए निश्चित
रूप से सफलता मिलती ही है. ऐसे
ही विधानों मे से एक विधान है ‘तीव्र
योगिनी इच्छापूर्ति प्रयोग’. जो की आप सब के
मध्य इस ग्रहणकाल को ध्यान मे रखते हुए रख रहा हू.
इस साधना के लिए साधक को अपने आसान
की ज़मीं को गाय के गोबर से लिप दे. और उस
पर आसान लगा कर बैठ जाए. अगर साधक के लिए यह संभव
नहीं हो तो वह भूमि पर बैठ जाए. यह
साधना निर्वस्त्र हो कर करे, अगर यह संभव
नहीं है तो सफ़ेद वस्त्रों को धारण करे. साधना कक्ष मे
और कोई व्यक्ति ना हो तो उत्तम है. साधक अपने सामने तेल
का बड़ा दीपक लगाए और ६४ योगिनी को मन
ही मन प्रणाम करते हुए मिठाई का भोग लगाये. और
अपनी इच्छा को साफ साफ ३ बार दुहराए तथा योगोनियो से
उसकी पूर्ति के लिए प्रार्थना करे. इसके बाद साधक निम्न
मंत्र का जाप प्रारंभ कर दे. इसमें
किसी भी प्रकार
की माला की ज़रूरत नहीं है
फिर भी अगर साधक चाहे तो रुद्राक्ष
की माला उपयोग कर सकता है. साधक को यह
प्रक्रिया ग्रहण काल शुरू होने से एक घंटे पहले
ही शुरू कर देनी चाहिए
तथा जितना भी संभव हो जाप करना चाहिए, यु उत्तम
तो ये रहता है की साधक ग्रहण समाप्त हो जाने के
बाद भी एक घंटे तक जाप करता रहे.
ओम जोगिनी जोगिनी आवो आवो कल्याण
धारो इच्छा पूरो आण दुर्गा की गोरखनाथ गुरु को आदेश
आदेश आदेश.
मंत्र जाप की समाप्ति पर मिठाई का भोग स्वयं ग्रहण करे
तथा स्नान करे. साधक की इच्छा शीघ्र
ही निश्चित रूप से
पूरी होती है.
एक साधक के लिए काल ज्ञान अत्यधिक आवश्यक है
क्यों की सिद्ध योगो मे उर्जा का प्रवाह अत्यधिक वेगवान
होता है, विशेष काल मे विशेष देवी देवता अपने पूर्ण रूप
मे जागृत होते है. तथा ब्रम्हांड मे शक्ति का संचार स्वतः बढ़
जाता है. साधको के लिए इन विशेष काल मे साधना करने से साधना मे
सफलता की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है.
इस दिशा मे ग्रहण का समय अपने आप मे साधको के लिए
महत्वपूर्ण है. इस काल मे साधक
किसी भी मंत्र जाप को करे तो उस मंत्र और
प्रक्रिया से सबंधित योग्य परिणाम प्राप्त करना सहज हो जाता है.
यु तो इस काल मे कोई भी साधना या मंत्र जाप
किया जा सकता है लेकिन कुछ विशेष शाबर साधनाए ग्रहण काल के
लिए ही निहित है, जिसे मात्र और मात्र ग्रहण के
समय ही किया जाता है. इस क्रम मे ऐसे कई दुर्लभ
विधान है जो की साधक को सफलता के द्वार तक ले के
जाता है. वस्तुतः हमारा जीवन इच्छाओ के
आधीन है, और अगर मनुष्य की इच्छाए
ही ना रहे तो फिर जीवन
ही ना रहे. क्यों की इच्छा मुख्य
त्रिशक्ति मे से एक है, क्रियाज्ञानइच्छा च शक्तिः .
अपनी इच्छा ओ
की पूर्ति करना किसी भी रूप मे
अनुचित नहीं है. तंत्र तो श्रृंगार
की प्रक्रिया है, जो नहीं प्राप्त किया है
उसे प्राप्त करना और जो प्राप्त हुआ है उसे और
भी निखारना. यु भी तन्त्र दमन का समर्थन
नहीं करता. अपनी योग्य इच्छाओ
की साधक पूर्ति करे और अपने आपको पूर्णता के पथ
पर आगे बढ़ने के लिए कदम भरता जाए. ग्रहण काल से सबंधित कई
दुर्लभ विधानों मे इच्छापूर्ति के लिए भी विधान है. अगर
इन विधानों को साधक विधिवत पूर्ण कर ले तब साधक के लिए निश्चित
रूप से सफलता मिलती ही है. ऐसे
ही विधानों मे से एक विधान है ‘तीव्र
योगिनी इच्छापूर्ति प्रयोग’. जो की आप सब के
मध्य इस ग्रहणकाल को ध्यान मे रखते हुए रख रहा हू.
इस साधना के लिए साधक को अपने आसान
की ज़मीं को गाय के गोबर से लिप दे. और उस
पर आसान लगा कर बैठ जाए. अगर साधक के लिए यह संभव
नहीं हो तो वह भूमि पर बैठ जाए. यह
साधना निर्वस्त्र हो कर करे, अगर यह संभव
नहीं है तो सफ़ेद वस्त्रों को धारण करे. साधना कक्ष मे
और कोई व्यक्ति ना हो तो उत्तम है. साधक अपने सामने तेल
का बड़ा दीपक लगाए और ६४ योगिनी को मन
ही मन प्रणाम करते हुए मिठाई का भोग लगाये. और
अपनी इच्छा को साफ साफ ३ बार दुहराए तथा योगोनियो से
उसकी पूर्ति के लिए प्रार्थना करे. इसके बाद साधक निम्न
मंत्र का जाप प्रारंभ कर दे. इसमें
किसी भी प्रकार
की माला की ज़रूरत नहीं है
फिर भी अगर साधक चाहे तो रुद्राक्ष
की माला उपयोग कर सकता है. साधक को यह
प्रक्रिया ग्रहण काल शुरू होने से एक घंटे पहले
ही शुरू कर देनी चाहिए
तथा जितना भी संभव हो जाप करना चाहिए, यु उत्तम
तो ये रहता है की साधक ग्रहण समाप्त हो जाने के
बाद भी एक घंटे तक जाप करता रहे.
ओम जोगिनी जोगिनी आवो आवो कल्याण
धारो इच्छा पूरो आण दुर्गा की गोरखनाथ गुरु को आदेश
आदेश आदेश.
मंत्र जाप की समाप्ति पर मिठाई का भोग स्वयं ग्रहण करे
तथा स्नान करे. साधक की इच्छा शीघ्र
ही निश्चित रूप से
पूरी होती है.
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