Sunday, June 29, 2014

विवाह और सातवां भाव

विवाह और सातवां भाव :
सातवें भाव का अर्थ:
जन्म कुन्डली का सातंवा भाव विवाह
पत्नी ससुराल प्रेम
भागीदारी और गुप्त व्यापार के लिये
माना जाता है। सातवां भाव अगर
पापग्रहों द्वारा देखा जाता है,उसमें अशुभ राशि या योग
होता है,तो स्त्री का पति चरित्रहीन
होता है,स्त्री जातक
की कुंडली के सातवें भाव में पापग्रह
विराजमान है,और कोई शुभ ग्रह उसे नही देख
रहा है,तो ऐसी स्त्री पति की मृत्यु
का कारण बनती है,परंतु
ऐसी कुंडली के द्वितीय भाव
में शुभ बैठे हों तो पहले स्त्री की मौत
होती है,सूर्य और चन्द्रमा की आपस
की द्रिष्टि अगर शुभ होती है
तो पति पत्नी की आपस
की सामजस्य
अच्छी बनती है,और अगर सूर्य
चन्द्रमा की आपस की १५०
डिग्री,१८० डिग्री या ७२
डिग्री के आसपास
की युति होती है
तो कभी भी किसी भी समय
तलाक या अलगाव हो सकता है।केतु और मंगल का सम्बन्ध
किसी प्रकार से आपसी युति बना ले
तो वैवाहिक जीवन आदर्शहीन
होगा,ऐसा जातक कभी भी बलात्कार
का शिकार
हो सकता है,स्त्री की कुंडली में
सूर्य सातवें स्थान पर पाया जाना ठीक
नही होता है,ऐसा योग वैवाहिक जीवन
पर गहरा प्रभाव डालता है,केवल गुण मिला देने से
या मंगलीक वाली बातों को बताने से इन
बातों का फ़ल
सही नही मिलता है,इसके लिये
कुंडली के सातंवे भाव का योगायोग
देखना भी जरूरी होता है।
*सातवां भाव और पति पत्नी*
सातवें भाव को लेकर पुरुष जातक के योगायोग अलग बनते
है,स्त्री जातक के योगायोग अलग बनते है,विवाह
करने के लिये सबसे पहले शुक्र पुरुष कुंडली के
लिए और मंगल
स्त्री की कुन्डली के लिये
देखना जरूरी होता है,लेकिन इन सबके बाद
चन्द्रमा को देखना भी जरूरी होता है,मनस्य
जायते चन्द्रमा,के अनुसार चन्द्रमा की स्थिति के
बिना मन की स्थिति नही बन पाता है।
पुरुष कुंडली में शुक्र के अनुसार
पत्नी और स्त्री कुंडली में
मंगल के अनुसार पति का स्वभाव सामने आ जाता

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