Sunday, June 15, 2014

शंख के दर्शन मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं।

शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य
में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और
सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से
जो लाभ मिलता है, वही लाभ षंख के दर्शन और
पूजन से मिलता है। इसीलिए षंख
की पूजा की जाती है। जिस
प्रकार धूप की गर्मी से बर्फ पिघल
जाती है, उसी प्रकार शंख के दर्शन
मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं। अथर्व वेद में शंख
को पापहारी, दीर्घायु प्रदाता और शत्रुओं
को परास्त करने वाला कहा गया है। रामायण, महाभारत
आदि काव्यों में भी शंख का उल्लेख मिलता है।
कई देवी देवतागण शंख को अस्त्र (आयुध) रूप में
धारण किए हुए हैं। महाभारत में युद्धारंभ
की घोषणा और उत्साहवर्धन हेतु षंख किया गया था,
जिसका उल्लेख गीता में इस प्रकार आया है-
पांचजन्यं ऋषीकेशो देवदत्तं धनंजय पौण्ड्रं
दध्यमौ महाशंख भीमकर्मो वृकोदर।
महाभारत में सूर्योदय के समय युद्धारंभ और सूर्यास्त के समय
युद्धावसान दोनों की घोषणा षंखनाद से
ही की जाती थी।
आदि ग्रंथों में शंख को विजय, यश व
पवित्रता का प्रतीक कहा गया है। सनातन धर्म
संस्कृति में इसकी विशेष महत्ता है।
इसकी इसी महत्ता के कारण
इसकी पूजा होती है और
सभी शुभ अवसरों पर इसे बजाया जाता है। यह बात
वैज्ञानिक जांच में भी सिद्ध हो चुकी है
कि शंख नाद से वातावरण हानिकारक जीवाणुओं व
प्रकोपों से मुक्त रहता है। प्राप्ति स्थान : वैसे तो शंख लगभग
हर समुद्र में पाया जाता है, परंतु भारतवर्ष में यह
मुख्यतः बंगाल की खाड़ी, मद्रास,
पुरी तट, रामेश्वरम, कन्या कुमारी और
हिंद महासागर में मिलता है।
शंख के प्रमुख भेद : शंख के मुख्यतः तीन प्रकार
प्रकार होते हैं - वामावर्ती,
दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख।
वामावर्ती शंख का प्रयोग सबसे ज्यादा होता है।
इसका उपयोग पूजा अनुष्ठान और अन्य मांगलिक कार्यों के समय
बजाने व कहीं-कहीं सजावट के लिए
किया जाता है। इसे प्रातः और सायं काल आरती के
पश्चात बजाने की प्रथा है। इसे दो प्रकार से
सीधे होठों से व धातु के बेलन पर रखकर
बजाया जाता है जिन्हें क्रमशः धमन व पुराण कहते हैं।
षंखवादन के औषधीय गुण भी हैं। इसे
बजाने से ष्वास रोग से बचाव होता है।
यही नहीं, इसमें रखे जल
तथा इसकी भस्म का सेवन करने से अन्य अनेक
बीमारियों से
भी रक्षा होती है। इसके इन
औषधीय गुणों का आयुर्वेद में विशेष उल्लेख है।
दक्षिणावर्ती शंख
को लक्ष्मी का साक्षात स्वरूप माना जाता है। यह
अत्यंत मूल्यवान होता है और सर्वत्र सुलभ
नहीं होता। यह दाईं ओर से खुला होता है। इस
शंख के दो भेद होते हैं - पुरुष और स्त्री। यह
बजाने के काम नहीं आता। घर में
लक्ष्मी के स्थिर वास तथा अन्य वांछित
फलों की प्राप्ति के लिए
इसकी स्थापना की जाती है।
गणेश शंख पिरामिडनुमा होता है। इसकी स्थापना और
पूजा ऋण तथा दरिद्रता से मुक्ति और
विद्या की प्राप्ति हेतु
की जाती है। गणेश इन
सभी कार्यों के देव हैं इसलिए इसे गणेश स्वरूप
माना गया है। शंख का ज्योतिषीय महत्व ज्योतिष में
षंख को बुध ग्रह से संबंधित माना गया है। इसे चार वर्णों में
बाटा गया है जिसका आधार इसका रंग है। इस दृष्टि से षंख चार
रंग के होते हैं - सफेद, गाजर के रंग के समान व भूरे, हल्के
पीले और स्लेटी।
वैज्ञानिक महत्व
शंख एक समुद्री उत्पाद है, जिसे मोलस्कश परिवार
में रखा गया है। यह एक विषेष किस्म के
समुद्री जीव का कवच है। ऊपर इसके
विभिन्न वैज्ञानिक व औषधीय गुणों का उल्लेख
किया जा चुका है। ऊपर वर्णित तीन प्रमुख षंखों के
अतिरिक्त कुछ अन्य षंखों का विवरण इस प्रकार है।
गोमुखी शंख
इस शंख की आकृति गाय के मुख के समान
होती है। इसे शिव पावर्ती का स्वरूप
माना जाता है। धन-संपत्ति की प्राप्ति तथा अन्य
मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए
इसकी स्थापना दक्षिणावर्ती षंख के
समान उत्तर की ओर मुंह कर के
की जाती है। मान्यता है कि इसमें
रखा पानी पीने से गौहत्या के पाप से
मुक्ति मिलती है। विशाखा, पुष्य,
अश्लेषा आदि नक्षत्रों में इसकी साधना विषेष रूप से
की जाती है। इसे कामधेनु शंख
भी कहा जाता है।
विष्णु शंख
यह सफेद रंग और गरुड़ की आकृति का होता है।
इसे वैष्णव सप्रंदाय के लोग विष्णु स्वरूप मानकर घरों में रखते
हैं। मान्यता है कि जहां विष्णु होते हैं,
वहां लक्ष्मी भी होती हैं।
इसीलिए जिस घर में इस षंख
की स्थापना होती है, उसमें
लक्ष्मी और नारायण का वास होता है। मान्यता यह
भी है कि इस शंख में रोहिणी, चित्रा व
स्वाति नक्षत्रों में गंगाजल भरकर और मंत्र का जप कर
किसी गर्भवती को उस जल का पान कराने
से सुंदर, ज्ञानवान व स्वस्थ संतान
की प्राप्ति होती है।
पांचजन्य शंख
यह भगवान कृष्ण भगवान का आयुध है। इसे विजय व यश
का प्रतीक माना जाता है। इसमें पांच
उंगलियों की आकृति होती है। घर
को वास्तु दोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह
राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।
अन्नपूर्णा शंख
यह अन्य शंखों से भारी होता है। इसका प्रयोग
भाग्यवृद्धि और सुख-समृद्धि की प्राप्ति हेतु
किया जाता है। इस शंख में गंगाजल भरकर प्रातःकाल सेवन करने
से मन में संतुष्टि का भाव जाग्रत होता है
तथा व्याकुलता समाप्तहोती है।
मोती शंख
यह आकार में छोटा व
मोती की आभा लिए होता है। इसे
भी लक्ष्मी की कृपा के लिए
दक्षिणावर्ती शंख के समान पूजाघर में स्थापित
किया जाता है। इसकी स्थापना से
समृद्धि की प्राप्ति व व्यापार में
उन्नति होती है। इसमें नियमित रूप से
लक्ष्मी मंत्र का जप करते हुए ११ दाने चावल
लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न
होती है।
हीरा शंख
यह स्फटिक के समान धवल, पारदर्शी व
चमकीला होता है। यह ऐष्वर्यदायक किंतु अत्यंत
दुर्लभ है। इससे हीरे के समान सात रंग निकलते
हैं। इसका प्रयोग प्रेम वर्धन व शुक्र दोष से रक्षा हेतु
किया जाता है। इसकी स्थापना से षुक्र ग्रह
की कृपा भी प्राप्त
होती है।
टाइगर शंख
इस शंख पर बाघ के समान धारियां होती हैं जो बहुत
ही सुंदर दिखती हैं। ये धारियां लाल,
गुलाबी, काली व कत्थई
रंगों की होती हैं।
इसकी स्थापना से आत्मविश्वास में
वृद्धि होती है तथा शनि, राहु और केतु ग्रह
की व्याधियों से मुक्ति मिलती है। साथ
ही साधक के मन में तंत्र शक्ति का संचार
भी होता है। तात्पर्य यह कि शंख में अनेक गुण
हैं। ये गुण आध्यात्मिक भी हैं, वैज्ञानिक
भी और औषधीय भी। इनके
इन गुणों को देखते हुए इनकी स्थापना अवश्य
करनी चाहि

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