अन्नपूर्णा साधना
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आदि शक्ति श्री भगवती के कई कई स्वरुप
है जिसके माध्यम से वह इस संसार का नित्य कल्याण हर क्षण
करती ही रहती है. निश्चय
ही हर एक कण कण में बसने
वाली शक्ति के विविध स्वरुप तो हम स्थूल और शुक्ष्म
दोनों रूप में हर क्षण प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से अनुभव तो करते
ही है. चाहे वह
किसी भी जिव की सूक्ष्म से
सूक्ष्मतम प्राणशक्ति हो या फिर ब्रहमांड को नियंत्रित रखने
वाली वृहद अर्थात महाविद्या शक्ति हो.
सभी स्वरुप में शक्ति का हम साहचर्य प्राप्त करते
ही रहते है. खुद आदि पुरुष भगवान शिव
भी तो बिना शक्ति के शव हो जाते है तो फिर सामान्य
जीव मनुष्य के बारे में तो कहना ही क्या.
इन्ही लीला क्रम में भगवती के
कई स्वरुप का वर्णन हमारे महर्षियो ने पुरातन ग्रंथो में लिपिबद्ध
किया. तथा किस प्रकार से इन महाशक्तियों का हमारे
जीवन में कृपा कटाक्ष प्राप्त हो तथा जीवन
में सहयोग निरंतर प्राप्त होता रहे इसका विवरण
भी उन्होंने सहज रूप से किया. लेकिन काल क्रम में
वह क्रियात्मक पक्ष लोप होता गया, और तंत्र का एक विकृत रूप
ही जनमानस के मध्य में उभरने लगा, लेकिन निश्चित
गति से देवी कृपा प्राप्ति से सबंधित कई कई प्रयोग
तो साधको के मध्य गुरुमुखी प्रथा से प्रचलित रहे.
इसी क्रम में भगवती अन्नपूर्णा से सबंधित
क्रम भी तो बहोत कम ही प्रचलित है.
भगवती का यह स्वरुप भी अपने आप में
अत्यंत निराला है. जो स्वयं भगवान शिव को भिक्षा प्रदान कर
सकती है वह भला मनुष्यों को क्या देने में असमर्थ
होंगी? निश्चय ही यह
देवी जिव मात्र के कल्याण हेतु सर्वस्व प्रदान करने
का सामर्थ्य रखती है तभी तो इनके बारे में
यह भी कहा जाता है की पूर्ण रूप से
अन्नपूर्णा साधना कर लेने वाले व्यक्ति को महाविद्या स्वरुप के
भी दर्शन अपने आप होने लगते है
तथा सभी साधनाए सहज हो जाती है.
लेकिन देवी से सबंधित कई विधान ऐसे भी है
जो की गुप्त है और साधक को कई प्रकार के सुख भोग
की प्राप्ति करा सकते है. देवी से सबंधित
प्रस्तुत साधना प्रयोग के
द्वारा भी देवी की कृपा साधक
को प्राप्त होती है जिसके माध्यम से साधक के
जीवन में साधक को सुख भोग
की इच्छा रुपी अग्नि को हविष्य अन्न
रुपी धन ऐश्वर्य और मानसन्मान
की प्राप्ति होती है. इस प्रयोग के माध्यम
से साधक अपने जीवन के
सभी पक्षों का सौंदर्य बढ़ा सकता है, जीवन
में धन और यश की प्राप्ति तो कर
ही सकता है साथ ही साथ अपने घर
परिवार में भी सुख तथा ऐशवर्य के वातावरण का निर्माण
करता है.
यह प्रयोग साधक शुक्लपक्ष के रविवार के दिन शुरू करे.
साधक दिन या रात्री के कोई भी समय में यह
प्रयोग कर सकता है.
साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर पीले
वस्त्रों को धारण करना चाहिए तथा पीले रंग के आसन पर
बैठना चाहिए. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ हो.
साधक अपने सामने किसी बाजोट पर
देवी अन्नपूर्णा का चित्र या यंत्र स्थापित करे तथा उसके
सामने पांच प्रकार के धान रखे. इसमें कोई भी धान
का प्रयोग किया जा सकता है (गेहूं, चावल, उडद, चना या चने
की दाल तथा मक्का उत्तम है; लेकिन साधक चाहे
तो अपनी सुविधा अनुसार कोई भी धान को रख
सकता है).
दीपक शुद्ध घी का हो तथा साधना में
पीले पुष्प का प्रयोग करना चाहिए. इसके बाद साधक
गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप कर देवी अन्नपूर्णा के
विग्रह या यंत्र का पूजन करे.
पूजन के बाद साधक निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप
करे. यह जाप साधक शक्ति माला से या स्फटिक माला से कर
सकता है.
ॐ ह्रीं महेश्वरी अन्नपूर्णे नमः
(om hreem maheshwari annapoorne namah)
मन्त्र जाप पूर्ण होने पर साधक देवी को जाप समर्पित
कर पूर्ण श्रद्धा भाव से वंदन करे.साधक को यह क्रम ३ दिन तक
रखना है
3 दिन पूर्ण होने पर साधक धान तथा पीले वस्त्र
को किसी ब्राम्हण को या किसी ज़रूरतमंद
व्यक्ति को दक्षिणा के साथ भेंट कर दे. अगर संभव
हो तो कुमारी को भोज कराये. तथा जब
भी संभव हो इस मन्त्र का यथा संभव या कम से कम
११ बार उच्चारण पूजा स्थान पर करना चाहिए. साधक माला का प्रयोग
भविष्य में भी कर सकता है.
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आदि शक्ति श्री भगवती के कई कई स्वरुप
है जिसके माध्यम से वह इस संसार का नित्य कल्याण हर क्षण
करती ही रहती है. निश्चय
ही हर एक कण कण में बसने
वाली शक्ति के विविध स्वरुप तो हम स्थूल और शुक्ष्म
दोनों रूप में हर क्षण प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से अनुभव तो करते
ही है. चाहे वह
किसी भी जिव की सूक्ष्म से
सूक्ष्मतम प्राणशक्ति हो या फिर ब्रहमांड को नियंत्रित रखने
वाली वृहद अर्थात महाविद्या शक्ति हो.
सभी स्वरुप में शक्ति का हम साहचर्य प्राप्त करते
ही रहते है. खुद आदि पुरुष भगवान शिव
भी तो बिना शक्ति के शव हो जाते है तो फिर सामान्य
जीव मनुष्य के बारे में तो कहना ही क्या.
इन्ही लीला क्रम में भगवती के
कई स्वरुप का वर्णन हमारे महर्षियो ने पुरातन ग्रंथो में लिपिबद्ध
किया. तथा किस प्रकार से इन महाशक्तियों का हमारे
जीवन में कृपा कटाक्ष प्राप्त हो तथा जीवन
में सहयोग निरंतर प्राप्त होता रहे इसका विवरण
भी उन्होंने सहज रूप से किया. लेकिन काल क्रम में
वह क्रियात्मक पक्ष लोप होता गया, और तंत्र का एक विकृत रूप
ही जनमानस के मध्य में उभरने लगा, लेकिन निश्चित
गति से देवी कृपा प्राप्ति से सबंधित कई कई प्रयोग
तो साधको के मध्य गुरुमुखी प्रथा से प्रचलित रहे.
इसी क्रम में भगवती अन्नपूर्णा से सबंधित
क्रम भी तो बहोत कम ही प्रचलित है.
भगवती का यह स्वरुप भी अपने आप में
अत्यंत निराला है. जो स्वयं भगवान शिव को भिक्षा प्रदान कर
सकती है वह भला मनुष्यों को क्या देने में असमर्थ
होंगी? निश्चय ही यह
देवी जिव मात्र के कल्याण हेतु सर्वस्व प्रदान करने
का सामर्थ्य रखती है तभी तो इनके बारे में
यह भी कहा जाता है की पूर्ण रूप से
अन्नपूर्णा साधना कर लेने वाले व्यक्ति को महाविद्या स्वरुप के
भी दर्शन अपने आप होने लगते है
तथा सभी साधनाए सहज हो जाती है.
लेकिन देवी से सबंधित कई विधान ऐसे भी है
जो की गुप्त है और साधक को कई प्रकार के सुख भोग
की प्राप्ति करा सकते है. देवी से सबंधित
प्रस्तुत साधना प्रयोग के
द्वारा भी देवी की कृपा साधक
को प्राप्त होती है जिसके माध्यम से साधक के
जीवन में साधक को सुख भोग
की इच्छा रुपी अग्नि को हविष्य अन्न
रुपी धन ऐश्वर्य और मानसन्मान
की प्राप्ति होती है. इस प्रयोग के माध्यम
से साधक अपने जीवन के
सभी पक्षों का सौंदर्य बढ़ा सकता है, जीवन
में धन और यश की प्राप्ति तो कर
ही सकता है साथ ही साथ अपने घर
परिवार में भी सुख तथा ऐशवर्य के वातावरण का निर्माण
करता है.
यह प्रयोग साधक शुक्लपक्ष के रविवार के दिन शुरू करे.
साधक दिन या रात्री के कोई भी समय में यह
प्रयोग कर सकता है.
साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर पीले
वस्त्रों को धारण करना चाहिए तथा पीले रंग के आसन पर
बैठना चाहिए. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ हो.
साधक अपने सामने किसी बाजोट पर
देवी अन्नपूर्णा का चित्र या यंत्र स्थापित करे तथा उसके
सामने पांच प्रकार के धान रखे. इसमें कोई भी धान
का प्रयोग किया जा सकता है (गेहूं, चावल, उडद, चना या चने
की दाल तथा मक्का उत्तम है; लेकिन साधक चाहे
तो अपनी सुविधा अनुसार कोई भी धान को रख
सकता है).
दीपक शुद्ध घी का हो तथा साधना में
पीले पुष्प का प्रयोग करना चाहिए. इसके बाद साधक
गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप कर देवी अन्नपूर्णा के
विग्रह या यंत्र का पूजन करे.
पूजन के बाद साधक निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप
करे. यह जाप साधक शक्ति माला से या स्फटिक माला से कर
सकता है.
ॐ ह्रीं महेश्वरी अन्नपूर्णे नमः
(om hreem maheshwari annapoorne namah)
मन्त्र जाप पूर्ण होने पर साधक देवी को जाप समर्पित
कर पूर्ण श्रद्धा भाव से वंदन करे.साधक को यह क्रम ३ दिन तक
रखना है
3 दिन पूर्ण होने पर साधक धान तथा पीले वस्त्र
को किसी ब्राम्हण को या किसी ज़रूरतमंद
व्यक्ति को दक्षिणा के साथ भेंट कर दे. अगर संभव
हो तो कुमारी को भोज कराये. तथा जब
भी संभव हो इस मन्त्र का यथा संभव या कम से कम
११ बार उच्चारण पूजा स्थान पर करना चाहिए. साधक माला का प्रयोग
भविष्य में भी कर सकता है.
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