विषम परिस्थिति में मृत्युंजय मंत्र ----
आपके मन मे बैचनी का अनुभव होना,
किसी कार्य मे मन नहीं लगाना ,
दुर्घटना होते रहना, बीमारी से त्रस्त
रहना, अपनों से मनमुटाव होना, शत्रुओं
की संख्या मे निरंतर वृद्धि होना एवं कार्य पूरा होते
होते रह जाना और समाज मे मान और सम्मान
की कमी होना | यह सब
आपकी बुरी ग्रह दशा ,मारकेश
की दशा या
कुण्डली या गोचर मे कुयोग का लक्षण हैं
जो प्रारम्भ मे दृष्टिगोचर होते हैं | महामृत्युंजय मन्त्र का जप
ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति को मुक्त करता है | धन बल और
किर्ति सम्पन्न बनाता है | अतः जो व्यक्ति इन परेशानियों से
पीड़ित है उन्हें महामृत्युंजय मन्त्र का जप
अवश्य करना या ब्राह्मणों द्वारा कराना
चाहिए |
जप नियम
-जप निर्धारित मात्रा मे तथा निर्धारित समय पर प्रतिदिन के हिसाब
से होना चाहिए |
-जप के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, सत्य
बचन, अहिंसा का पालन , वाणी नियंत्रण
होना जरूरी है | अन्यथा यह जप पूर्ण
फलदायी नहीं होता है |
-जप मे नियम बद्धता का होना ज्यादा जरूरी है नियम
से किया हुआ जप ही पूर्ण
फलदायी होता है
-जप करते समय तर्जनी एवं कनिष्ठ
अंगुली का स्पर्श माला के साथ
नहीं होना चाहिए।
-जप करते समय मुंह से आवाज
नहीं निकालना चाहिए ।
- जप रुद्राक्ष की माला से
ही करना चाहिए ।
-अपानवायु व शौच के बाद पुनः स्नान करके
जप करना चाहिए ।
-जप के दौरान जम्हाई आने से वाये हाथ
की उंगली से
चुटकी बजाना चाहिए जिससे आपके अन्दर
जमा हो रहे सात्विक प्रभाव जमा रहे
-अपना पूर्ण ध्यान जप पर लगा होना चाहिए ।
-जप के समय शिव का स्मरण सदैव करते रहना चाहिए ।
-जप के पूर्ण होने पर हवन, दान एवं ब्राह्मण भोजन
करवाना चाहिए।
- मुहूर्त शुद्धि आवश्यक है --
जप उसी समय प्रारम्भ करना चाहिए जब शिव
का निवास कैलाश पर्वत पर, गौरी के सान्निध्य
हों या शिव वृषभ पर आरूढ़ हों शिव का वास जब शमशान मे
हो तो जप की शुरुआत
नहीं करनी चाहिए।
आपके मन मे बैचनी का अनुभव होना,
किसी कार्य मे मन नहीं लगाना ,
दुर्घटना होते रहना, बीमारी से त्रस्त
रहना, अपनों से मनमुटाव होना, शत्रुओं
की संख्या मे निरंतर वृद्धि होना एवं कार्य पूरा होते
होते रह जाना और समाज मे मान और सम्मान
की कमी होना | यह सब
आपकी बुरी ग्रह दशा ,मारकेश
की दशा या
कुण्डली या गोचर मे कुयोग का लक्षण हैं
जो प्रारम्भ मे दृष्टिगोचर होते हैं | महामृत्युंजय मन्त्र का जप
ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति को मुक्त करता है | धन बल और
किर्ति सम्पन्न बनाता है | अतः जो व्यक्ति इन परेशानियों से
पीड़ित है उन्हें महामृत्युंजय मन्त्र का जप
अवश्य करना या ब्राह्मणों द्वारा कराना
चाहिए |
जप नियम
-जप निर्धारित मात्रा मे तथा निर्धारित समय पर प्रतिदिन के हिसाब
से होना चाहिए |
-जप के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, सत्य
बचन, अहिंसा का पालन , वाणी नियंत्रण
होना जरूरी है | अन्यथा यह जप पूर्ण
फलदायी नहीं होता है |
-जप मे नियम बद्धता का होना ज्यादा जरूरी है नियम
से किया हुआ जप ही पूर्ण
फलदायी होता है
-जप करते समय तर्जनी एवं कनिष्ठ
अंगुली का स्पर्श माला के साथ
नहीं होना चाहिए।
-जप करते समय मुंह से आवाज
नहीं निकालना चाहिए ।
- जप रुद्राक्ष की माला से
ही करना चाहिए ।
-अपानवायु व शौच के बाद पुनः स्नान करके
जप करना चाहिए ।
-जप के दौरान जम्हाई आने से वाये हाथ
की उंगली से
चुटकी बजाना चाहिए जिससे आपके अन्दर
जमा हो रहे सात्विक प्रभाव जमा रहे
-अपना पूर्ण ध्यान जप पर लगा होना चाहिए ।
-जप के समय शिव का स्मरण सदैव करते रहना चाहिए ।
-जप के पूर्ण होने पर हवन, दान एवं ब्राह्मण भोजन
करवाना चाहिए।
- मुहूर्त शुद्धि आवश्यक है --
जप उसी समय प्रारम्भ करना चाहिए जब शिव
का निवास कैलाश पर्वत पर, गौरी के सान्निध्य
हों या शिव वृषभ पर आरूढ़ हों शिव का वास जब शमशान मे
हो तो जप की शुरुआत
नहीं करनी चाहिए।
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