Friday, May 30, 2014

सपने तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल

सपने तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल
1- सांप दिखाई देना- धन लाभ
2- नदी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
3- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग
4- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति
5- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति
6- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि
7- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना
8- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल
9- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना
10- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि
11- स्वयं की बहन को देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा
12- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि
13- भाई को देखना- नए मित्र बनना
14- भीख मांगना- धन हानि होना
15- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता
16- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति
17- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना
18- पैसा दिखाई- देना धन लाभ
19- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि
20- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढ़ना
21- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना
22- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में
भारी संकट
23- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि
24- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा
25- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
26- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि
27- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना
28- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना
29- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति
30- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
31- भोजन की थाली देखना- धनहानि के
योग
32- इलाइची देखना- मान-सम्मान
की प्राप्ति
33- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग
34- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत
35- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय
36- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति
37- कन्या को घर में आते देखना-
मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
38- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
39- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग
40- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ
61- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
62- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
63- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
64- चांदी देखना- धन लाभ होना
65- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
66- कैंची देखना- घर में कलह होन
67- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
68- लाठी देखना- यश बढऩा
69- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना
70- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
51- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय
की शुरुआत
52- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि
53- ताश देखना- समस्या में वृद्धि
54- तीर दिखाई- देना लक्ष्य की ओर बढऩा
55- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या
56- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश
57- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति
58- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
59- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ
60- दूध देखना- आर्थिक उन्नति
41- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग
42- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
43- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
44- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
45- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
46- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
47- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
48- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
49- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
50- चील देखना- शत्रुओं से हानि
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना-
किसी परिजन की मृत्यु के योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु
का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु
होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना- सरकार
से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और
सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना-
किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा
96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दुख मिलना
98- मृत व्यक्ति से बात करना-
मनचाही इच्छा पूरी होना
99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट
व्यक्ति से धोखा मिलना
121- गुरु दिखाई देना- सफलता मिलना
122- गोबर देखना- पशुओं के व्यापार में लाभ
123- देवी के दर्शन करना- रोग से मुक्ति
124- चाबुक दिखाई देना- झगड़ा होना
125- चुनरी दिखाई देना- सौभाग्य की प्राप्ति
126- छुरी दिखना- संकट से मुक्ति
127- बालक दिखाई देना- संतान की वृद्धि
128- बाढ़ देखना- व्यापार में हानि
129- जाल देखना- मुकद्में में हानि
130- जेब काटना- व्यापार में घाटा
11- चेक लिखकर देना- विरासत में धन मिलना
112- कुएं में पानी देखना- धन लाभ
113- आकाश देखना- पुत्र प्राप्ति
114- अस्त्र-शस्त्र देखना- मुकद्में में हार
115- इंद्रधनुष देखना- उत्तम स्वास्थ्य
116- कब्रिस्तान देखना- समाज में प्रतिष्ठा
117- कमल का फूल देखना- रोग से छुटकारा
118- सुंदर स्त्री देखना- प्रेम में सफलता
119- चूड़ी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
120- कुआं देखना- सम्मान बढऩा
101- अनार देखना- धन प्राप्ति के योग
102- गड़ा धन दिखाना- अचानक धन लाभ
103- सूखा अन्न खाना- परेशानी बढऩा
104- अर्थी देखना- बीमारी से
छुटकारा
105- झरना देखना- दु:खों का अंत होना
106- बिजली गिरना- संकट में फंसना
107- चादर देखना- बदनामी के योग
108- जलता हुआ दीया देखना- आयु में वृद्धि
109- धूप देखना- पदोन्नति और धनलाभ
110- रत्न देखना- व्यय एवं दु:ख
131- चंदन देखना- शुभ समाचार मिलना
132- जटाधारी साधु देखना- अच्छे समय
की शुरुआत
133- स्वयं की मां को देखना- सम्मान
की प्राप्ति
134- फूलमाला दिखाई देना- निंदा होना
135- जुगनू देखना- बुरे समय की शुरुआत
136- टिड्डी दल देखना- व्यापार में हानि
137- डाकघर देखना- व्यापार में उन्नति
138- डॉक्टर को देखना- स्वास्थ्य संबंधी समस्या
139- ढोल दिखाई देना-
किसी दुर्घटना की आशंका
140- मंदिर देखना- धार्मिक कार्य में सहयोग करना
141- तपस्वी दिखाई- देना दान करना
142- तर्पण करते हुए देखना- परिवार में
किसी बुर्जुग की मृत्यु
143- डाकिया देखना- दूर के रिश्तेदार से मिलना
144- तमाचा मारना- शत्रु पर विजय
145- उत्सव मनाते हुए देखना- शोक होना
146- दवात दिखाई देना- धन आगमन
147- नक्शा देखना- किसी योजना में सफलता
148- नमक देखना- स्वास्थ्य में लाभ
149- कोर्ट-कचहरी देखना- विवाद में पडऩा
150- पगडंडी देखना- समस्याओं का निराकरण
151- सीना या आंख खुजाना- धन लाभ

क्या है ज्योतिषी

क्या है ज्योतिषी ?------
वाराह मिहिर वृहद सहिंता के अनुसार
ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले
व्यक्ति को ज्योतिषी, ज्योतिर्विद, कालज्ञ,
त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ आदि शब्दों से संबोधित
किया जाता है। सांवत्सर, गुणक देवज्ञ, ज्योतिषिक,
ज्योतिषी, मोहूर्तिक, सांवत्सरिक आदि शब्द
भी ज्योतिषी के लिए प्रयुक्त किए जाते
हैं।और आधुनिक युग
मे astrologer याastroशब्द प्रयुक्त किये जाते है !
ज्योतिषी के लक्षण
एक ज्योतिषी के लक्षण बताते हुए आचार्य
वराहमिहिर कहते हैं कि ज्योतिषी को देखने में
प्रिय, वाणी में संयत, सत्यवादी,
व्यवहार में विनम्र होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वह
दुर्व्यसनों से दूर, पवित्र अन्तःकरण वाला, चतुर, सभा में
आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला, प्रतिभाशाली,
देशकाल व परिस्थिति को जानने वाला, निर्मल हृदय वाला, ग्रह
शान्ति के उपायों को जानने वाला, मन्त्रपाठ में दक्ष, पौष्टिक कर्म
को जानने वाला, अभिचार मोहन विद्या को जानने वाला, देवपूजन,
व्रत-उपवासों को निरंतर, प्राकृतिक शुभाशुभों के संकेतों को समझाने
वाला, ग्रहों की गणित, सिद्धांत संहिता व
होरा तीनों में निपुण ग्रंथी के अर्थ
को जानने वाला व मृदुभाषी होना चाहिए।
सामुद्रिक शास्त्र में ज्योतिषी के लिए हिदायत
दी गई है कि सूर्योदय के पहले, सूर्यास्त के बाद,
मार्ग में चलते हुए, जहाँ हँसी-मनोविनोद होता हो,
उस स्थान में एवं
अज्ञानी लोगों की सभा में
भविष्यवाणी न करें।
ज्योतिषी को अधिकतम अपने स्थान पर बैठकर
जिज्ञासु व्यक्ति की दक्षिणा का फल, पुष्प व पुण्य
भाव को प्राप्त करने के पश्चात अपने ईष्ट को ध्यान करके
ही हस्तरेखाओं एवं कुण्डलियों पर फलादेश
करना चाहिए क्योंकि ईश्वर, ज्योतिषी व राजा के पास
खाली हाथ
आया व्यक्ति खाली ही जाता है।

भगवान शंकर चढ़ाएं मसूर की दाल, मिलेगी कर्ज से मुक्ति

भगवान शंकर चढ़ाएं मसूर की दाल,
मिलेगी कर्ज से मुक्ति
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वर्तमान समय में कर्ज यानी लोन
लेना बुरा नहीं माना जाता। व्यक्ति अपने
जीवन की दैनिक जरुरतों के लिए
भी कई बार कर्ज ले लेता है लेकिन
परेशानी तब शुरु होती है जब कर्ज
चुकाने का समय आता है। कई बार कर्ज के रूप में लिए गए
रुपयों से कई गुना धन चुकाने के बाद भी कर्ज
पूरा नहीं हो पाता। अगर आपके साथ
भी यही परेशानी है
तो यह उपाय करें-
उपाय
भगवान शंकर सभी की मनोकामना पूर्ण
करते हैं। कर्ज से मुक्ति के लिए प्रति मंगलवार
को किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर मसूर
की दाल(यथाशक्ति) चढ़ाएं साथ ही यह
मंत्र भी बोलें- ऊँ ऋणमुक्तेश्वराय नम:। कम से
कम 5 माला जप अवश्य करें। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष
की माला का उपयोग करें। कुछ ही दिनों में
कर्ज
संबंधी आपकी समस्या का निराकरण
हो जाएगा।

आइए जाने व्यक्ति के हस्ताक्षर से स्वभाव के बारे मे

आइए जाने व्यक्ति के हस्ताक्षर से स्वभाव के बारे मे
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर का पहला शब्द
काफी बडा रखता है, वह
व्यक्ति उतना ही विलक्षण
प्रतिभा का घनी, समाज में काफी लोकप्रिय
व उच्चा पद प्राप्त
करने वाला होता है। जीवन के उत्तरार्द्ध में
आपको काफी पैसा व
पूर्ण सम्मान प्राप्त होता है।
जो व्यक्ति बिना पेन उठाए एक ही बार में पूरा शब्द
लिखने वाले रहस्यवादी, गुप्त प्रवृत्ति एवं वाद-
विवादकर्ता होते हैं।
जो व्यक्ति ऊपर से नीचे की ओर
हस्ताक्षर करने वाले नकारात्मक विचारों वाले एवं अव्यावहारिक
होते हैं।
इनकी मित्रता कम लोगों से रहती है।
जो व्यक्ति हस्ताक्षर में पहला शब्द बडा व
बाकी के शब्द सुन्दर व छोटे आकार में होते हैं,
ऎसा व्यक्ति घीरे-घीरे उच्चा पद
प्राप्त करते हुए सर्वोच्चा स्थान पाता है।
ऎसा व्यक्ति जीवन में पैसा बहुत कमाता है।
जो व्यक्ति अंत में डॉट या डेश लगाने वाले व्यक्ति डरपोक, शंकालु
प्रवृत्ति के होते हैं किन्तु कुछ रंगीत तबियत का व
संकोची स्वभाव होते हैं।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर इस प्रकार से लिखता है
जो काफी अस्पष्ट होते हैं
तथा जल्दी-जल्दी लिखे गये होते हैं,
वह
व्यक्ति जीवन को सामान्य रूप से
नहीं जी पाता है। हर समय ऊँचाई पर
पहुँचने की ललक लिए रहता है। इस प्रकार
का व्यक्ति राजनीति, अपराघी,
कूटनीतिज्ञ या बहुत
बडा व्यापारी बनता है। जीवन
आपाघापी में व्यतीत करने के कारण
समाज से कटने लगता है
तथा लोगों की अपेक्षा का शिकार
भी बनता है। यह व्यक्तिगत रूप से पूर्ण संपन्न
तथा इनका वैवाहिक जीवन कम सामान्य रहता है।
घोखा दे सकता है परंतु घोखा खा नहीं सकता है।
जो व्यक्ति जल्दी से हस्ताक्षर करने वाले कार्य
को गति से हल करने व तीव्र तात्कालिक बुद्धि वाले
होते हैं।
जो व्यक्ति स्पष्ट हस्ताक्षर करने वाले खुले मन के, विचारवान
तथा पारदर्शी प्रवृत्ति कार्य करने वाले वैवाहिक
जीवन सुखी व संतानों से
भी सुख प्राप्त होता है वह अपने कुल
का काफी नाम ऊँचा करता है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर में नाम का पहला अक्षर सांकेतिक
रूप में तथा उपनाम पूरा लिखता है तथा हस्ताक्षर के
नीचे बिन्दु
लगाता है, ऎसा व्यक्ति भाग्य का घनी होता है।
मृदुभाषी, व्यवहार कुशल, समाज में पूर्ण सम्मान
प्राप्त करता है। ईश्वरवादी होने के
कारण इन्हें किसी भी प्रकार
की लालसा नहीं सताती,
इसके फलस्वरूप जो भी चाहता है स्वत:
ही प्राप्त हो जाता है।
जो व्यक्ति पेन पर जोर देकर लिखने वाले भावुक, उत्तेजक,
हठी और स्पष्टवादी होते हैं।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर स्पष्ट लिखते हैं
तथा हस्ताक्षर के अंतिम शब्द की लाइन
या मात्रा को इस प्रकार खींच देते हैं
जो ऊपर की तरफ जाती हुई दिखाई
देती हे, ऎसे व्यक्ति शिक्षक,
लेखक, विद्वान, बहुत ही तेज दिमाग के शातिर
अपराघी होते हैं।
ऎसे व्यक्ति दिल के बहुत साफ होते हैं हरेक के साथ
सहयोग करने
के लिए तैयार रहते हैं। मिलनसार, मृदुभाषी,
परोपकारी होते हैं। यह
व्यक्ति कभी किसी का बुरा नहीं सोचते
हैं, सामने
वाला व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो हमेशा उसे सम्मान
देते हैं।
सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद भी आपको समाज
में सम्मान घीरे-घीरे प्राप्त होता है।
जीवन में इच्छाएं सीमित होने के कारण
इन्हें
जो भी घन व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
जो व्यक्ति अवरोधक चिह्न लगाने वाले व्यक्ति कुंठाग्रस्त,
की देते हैं एवं आलसी प्रवृत्ति के
होते हैं।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर के अंतिम शब्द के
नीचे बिंदु (.) रखता है। ऎसा व्यक्ति विलक्षण
प्रतिभा का घनी होता है।
ऎसा व्यक्ति जिस क्षेत्र में जाता है
काफी प्रसिद्धि प्राप्त
करता है और ऎसे व्यक्ति से बडे-बडे लोग सहयोग लेने
को उत्सुक
रहते हैं समाज में काफी लोकप्रिय होता है।
जो व्यक्ति हस्ताक्षर में अक्षर नीचे से ऊपर
की ओर जाते हैं तो वह ईश्वर पर आस्था रखने
एवं आशावादी और साफ दिल
के रहते हैं, लेकिन इनका स्वभाव तार्किक रहता है
जो व्यक्ति हस्ताक्षर काफी छोटा व शब्दों को तोड-
मरोडकर उनके साथ खिलवाड करता है जिसके फलस्वरूप
हस्ताक्षर
बिल्कुल पढने में नहीं आता है वह
व्यक्ति बहुत ही घूर्त व चालाक होता है। अपने
फायदे के लिए किसी का भी नुकसान करने

नुकसान पहुँचाने से नहीं चूकता। पैसा घन
भी गलत रास्ते से कमाता है
तथा ऎसा व्यक्ति राजनीति एवं अपराघ के क्षेत्र में
काफी नाम कमाता है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर के
शब्दों को काफी घुमाकर सजाकर प्रदर्शित करके
करता है वह व्यक्ति किसी न
कसी हुनर का मालिक अवश्य होता है,
यानि कलाकार, गायक, व्यग्यकार व
अपराघी होता है। ऎसे व्यक्तियों का समय
जीवन के उत्तरार्द्ध में अच्छा होता है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर के नीचे दो लाइनें
खींचता है वह व्यक्ति भावुक होता है।
पूरी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता,
मानसिक रूप से थोडा कमजोर होता है। जीवन में
असुरक्षा की भावना रहती है, जिसके
कारण आत्महत्या करने का विचार मन में रहता है।

धनवान बनने के चमत्कारिक उपाय

धनवान बनने के चमत्कारिक उपाय
घर में सुख-समृद्धि बनी रहे। आर्थिक पक्ष
को लेकर समस्याएं न उत्पन्न हों, ऐसी प्रत्येक
व्यक्ति की कामना होती है। यहॉ मैं
आर्थिक सम्पन्नता देने
वाली ऐसी छोटी-
छोटी बातें लिख रहा हॅू जो अधिकांश
लोगों को पता तो होती हैं, परंतु कुछ तो आलस्यवश
तथा कुछ अज्ञानतावश वह उनसे मिलने वाले लाभ से वंचित रह
जाते हैं। इन्हें अपनाने का कोई विशेष नियम
भी नहीं है। सहज मन से
कभी और किसी भी समय
इन्हें प्रारंभ किया जा सकता है। अन्य
उपायों की तरह इनके प्रयाग से अहित
की लेशमात्र
भी संभावना नहीं है। इन
छोटी-छोटी बातों के लिए आत्मविश्वास
परम आवश्यक है। इन उपायों के शुभप्रभाव में विलम्ब
तो अवश्य हो सकता है परंतु उनसे जब लाभ मिलना प्रारंभ
होगा तो वह होगा स्थाई रूप से।
ऽ प्रातःकाल उठ कर सर्वप्रथम अपने
दोनों हाथों की हथेलियों को कुछ क्षण देखकर उन्हें
चूमें और उन्हें परस्पर रगड़ कर अपने चेहरे पर
तीन चार बार फिराएं।
ऽ नाक के छिद्रों में से एकाग्र होकर यह देखें
कि उसका दायों स्वर चल रहा है या बायां।
जो भी स्वर चल रहा हो, सर्वप्रथम उस ओर के
हाथ की उंगली से
धरती का स्पर्श करके माथे से लगाएं और उसके बाद
पहला स्वर चलने वाला पैर
ही धरती से लगाएं।
ऽ घर में बनने वाले खाने में से
पहली रोटी गाय की निकालें।
ऽ अपने खाने में से थोड़ा सा अंश निकाल कर कौओें अथवा अन्य
पक्षीयों को डाला करें।
ऽ रात्रि के खाने के पश्चात बचे खाने का कुछ भाग कुत्ते के नाम
का निकाला करें। घर का बचा खाना नाली में न फेकें,
पशु-पक्षियों को दे दिया करें।
ऽ यदि घर में आटा गेंहॅू पीस कर उपलब्ध
होता है तो आटा केवल शनिवार को ही पिसवाने
का नियम बना लें। आटा पिसते समय उसमें 100 ग्राम काले चने
भी पिसने के लिए डाल दिया करें।
ऽ शनिवार को खाने में किसी भी रुप में
काला चना अवश्य ले लिया करें।
ऽ घर की रसोई में
किसी भी दिन कहीं से एक
काली तुम्वी लाकर टांग दें।
ऽ जब भी मन करे
चीटिंयों को चीनी मिश्रित
आटा खिलाया करें। यथा संभव यह प्रयास किया करें आपके पैरों से
चीटियॉ अथवा अन्य निरीह छोटे-छोटे
कीट-पतंगे कुचले न जाएं।
ऽ घर में उपलब्ध प्रत्येक देवी-देवताओं और टंगे
हुए दिवंगत आत्माओं के चित्रों पर रोली, अष्टगंध
तथा अक्षत का तिलक अवश्य लगा लिया करें। अपने पूर्वजों के
चित्रों पर फूलों का हार भी चढ़ाया करें।
ऽ प्रातःकाल कुछ भी खाने से पूर्व सर्वप्रथम घर
में झाड़़ू. अवश्य लगानी चाहिए।
ऽ संध्या समय जब दोनों समय मिलते है, घर में झाड़़ू.-पोंछे
का कार्य न करें।
ऽ संध्या होने पूर्व घर का कोई भी सदस्य घर में
प्रकाश अवश्य कर दिया करे।
ऽ घर की कोई सौभाग्यशाली विवाहित
स्त्री इस समय तैयार होकर प्रफुल्ल मन से
देवी-देवताओं धूप-दीप दिखाया करें।
ऽ घर से प्रातः चाहे
जितनी जल्दी निकलना पड़े, बिना झाड़़ू.
लगे न निकले।
ऽ घर से बाहर जब भी किसी उद्देश्य
से अथवा धन सम्बन्धी किसी कार्य
को निकलें, निराहार मॅुह न निकलें। कुछ न कुछ खा अवश्य लें।
निकलने से पूर्व यदि मीठा दही खाकर
निकलें तो और भी सौभाग्यशाली है।
ऽ घर की कोई
स्त्री व्यक्ति को विदा करने से पूर्व नहा-धोकर
स्वच्छ अवश्य हो जाए।
ऽ किसी सुहागिन स्त्री को गुरुवार के
दिन सुहाग अथवा श्रृंगार प्रसाधन देने से
लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
ऽ घर बाहर स्त्री का आदर करने से
तथा कुआरी कन्याओं (दस वर्ष से कम आयु
की) को देवी स्वरुप मान कर प्रसन्न
करने से सुख-
समृद्धि की वृद्धि होती है।
ऽ किसी दरिद्र अथवा असहाय
व्यक्ति की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर सकते है
तो कर दें, उसका तिरस्कार अथवा उपहास कदापि न करें।
ऽ किसी न किसी तरह दरिद्र,
असहाय और हिजड़ों की शुभकामनाएं लिया करें।
ऽ शीतकाल में
किसी भी अमवस्या की अर्द्धरात्रि में
एक कम्बल शीत से ठिठुरते
किसी भिखारी के ऊपर चुपचाप डाल कर
घर लौट आएं।
ऽ दरिद्र को यथाशक्ति भोजन और कपड़ा दान दिया करें।
ऽ धन सम्बन्धी समस्त कार्यो के लिए सोमवार
अथवा बुधवार चुना करें।
ऽ घर के पूजास्थल में एक जटा वाला नरियल रखा करें।
ऽ धन सम्बन्धी कार्य पर निकलने से पूर्व घर में
उपलब्ध देवी-देवताओं के चित्र, मूर्ति अथवा यंत्र के
दर्शन अवश्य किया करें। उन पर चढ़ाये हुए फूलों में से एक
अपनी जेब में रखकर साथ ले जाया करें।
ऽ किसी प्रकार अपने पूर्वजों के चित्र
आदि भी देखकर यात्रा किया करें।
‘प्रबिशि नगर कीजे सब काजा, हृदय राखि कौशलपुर
राजा।’
मंत्र बोलकर घर से प्रस्थान करने पर प्रभु
आपकी सद्यात्रा में सदैव रक्षा करते हैं।
ऽ नौकरी, व्यवसाय आदि शुभकार्यों में प्रस्थान करने
से पूर्व घर कोई भी सदस्य एक
मुठठी काले उड़द आपके ऊपर से
धरती पर छोड़ दें, कार्य सिद्ध होगा।
ऽ घर खाली हाथ कभी न लौटें।
बिना क्रय की हुई कोई भी वस्तु घर
लाने का नियम बना लें, भले ही वह राह में
पड़ा हुआ कागज का टुकड़ा अथवा ऐसा ही कुछ
अन्य।
ऽ रविवार को सहदेई वृक्ष की जड़ घर लायें। उसे
लाल कपड़े में लपेटकर कहीं पवित्र स्थान पर रख
दें।
ऽ काली हल्दी मिल जाए तों घर में रख
लें।
ऽ सफेद रत्ती, एकाक्षी नरियल,
दक्षिणवर्ती शंख, हाथ जोड़ी, सियार
सिंही, बिल्ली की जेल, एक
मुखी रुद्राक्ष, गोरोचन, नागकेसर, सांप
की अखंडित केंचुली, मोर के पंख,
अष्टगंध आदि में
श्री लक्ष्मी जी को रिझाने
का विलक्षण गुण होता है। ये वस्तुएं, सुलभ हो सकें तो उन्हें
ऐसे ही घर में रख लें,
लक्ष्मी प्रसन्न होगीं।
ऽ मिर्च तथा नींबू की तरह
निर्गुण्डी का जड़ सहित पूरा पौधा, नागकेसर और
पीली सरसों के दाने एक साथ
किसी बुधवार को दुकान के द्वार पर टांगने से व्यापार में
वृद्धि होती है।
ऽ पुष्य नक्षत्र में बहेड़ा वृक्ष की जड़
तथा उसका एक पत्ता लाकर पैसे रखने के स्थान में रख लिया करें।
ऽ शंखपुष्पी की जड़ रवि-पुष्य
नक्षत्र में लाकर घर में रखा करें। इसे
चांदी की डिब्बी में रख सकें
तो अधिक शुभ होगा।
ऽ घर की दीवारों, फर्श आदि में
बच्चों को पेन्सिल, चॉक, कोयले आदि से लकीरें न
बनाने दें, इससे ऋण बड़ता है।
ऽ शेर का दॉत मिल जाए तो जेब में रखा करें।
ऽ बरगद अथवा बड़ के ताजे तोड़े पत्ते पर
हल्दी से स्वास्तिक बना कर पुष्य नक्षत्र में घर
में रखें।
ऽ खच्चर का दॉत बुधवार को धोकर साफ कर लें। धन
सम्बन्धी कार्य पर जाते समय उसे साथ रखा करें।
ऽ दीवाली की रात
अथवा किसी भी ग्रहण काल में एक-
एक लौंग तथा छोटी इलाइची जला कर
भस्म बना लें। इस भस्म से देवी देवताओं के
चित्रों अथवा यंत्रों पर तिलक लगाया करें।
ऽ किसी भी सूर्य के नक्षत्र में ऐसे
पेड़ की टहनी तोड़ कर
अपनी कुर्सी अथवा गद्दी के
नीचे रख लें, जहॉ चमगादड़ों का स्थाई वास हो।
ऽ व्यापार सम्बन्धी पत्राचार करते समय उस पर
हल्दी अथवा केसर के छींटे
लगा दिया करें।
ऽ ऐसे पत्रों में देवताओं पर चढ़े फूल के टुकड़े
भी रख दिया करें।
ऽ बैंक में पैसा जमा करते समय
लक्ष्मी जी का कोई मंत्र मन
ही मन जप लिया करें।
ऽ बैंक की किताब, चैक बुक अथवा धन
सम्बन्धी पेपर आप श्रीयंत्र
अथवा कुबेर यंत्र के पास रखा करें।
ऽ मुर्गे के पेट में यदा-कदा एक सफेद रंग
की पथरी निकलती है, उसे
साफ करके घर में रख लें। शुभ कार्य में जाते समय यह साथ
रखें।
ऽ सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें नियमित रुप से लाल
फूल, लाल चंदन, गौरोचन, केसर, जावित्री,
जौ अथवा तिल युक्त जल चढ़ाएं।
ऽ कार्यालय, दुकान आदि खोलने पर सर्वप्रथम अपने इष्टदेव
को अवश्य याद किया करें।
ऽ अपने से बड़ों को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद
लिया करें।
ऽ कभी कोई कर्म ऐसा न करें जिससे
किसी की आत्मा को लेशमात्र
भी कष्ट पहॅुचे।
ऽ गीता के नवे अध्याय का नित्य पाठ करें।
ऽ विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जिस घर में होता है
वहॉ लक्ष्मी जी निवास
करती हैं।
ऽ दुर्गा सप्तशती का नियमित रुप से पाठ करें।
ऽ वेदों में ‘अधमर्षण सूक्त’ दरिद्रता नाश करने
वाला माना गया है।
ऽ इसी प्रकार ‘श्री सूक्त’,
‘नासदीय सूत्र’ धन सम्बन्धी कायरें में
लाभदायक है।
ऽ ‘राम रक्षा स्तोत्र’ का लक्ष्मी दायक यह मंत्र
धनलाभ करवाने में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।
‘‘आपदाम् अपहर्तारम् दातारम् सर्व सम्पदाम्।
लोकाभिरामम् श्री रामम् भूयो भूयो नमाम्यहम्।।
ऽ श्रम प्रधान बनें और ऋण लेने से सर्वदा बचे रहें।
ऽ लक्ष्मी-साधकों के लिए ऊनी और
रेशमी आसन तथा कमलगट्टे
की माला विशेष रुप से सिद्धि प्रदायक
होती है।
ऽ आध्यात्मिक क्षेत्र में आडम्बर के स्थान पर पवित्रतता और
सात्विकता को महत्व देना आवश्यक है।
ऽ लक्ष्मी जी का परमप्रिय फूल कमल
माना गया है।

लक्ष्मी जी को तुलसी अर्थात्
मंजरी भेंट
नहीं करनी चाहिए।
ऽ साधना कक्ष में लक्ष्मी उपासना के समय पुष्प
उनके सामने, अगरबत्ती बाएं, नैवेद्य दक्षिण में
तथा दीप सदा दायीं ओर रखें।
ऽ साधना के समय पश्चिम अथवा पूरब दिशा की ओर
ही मुंह करके बैठें।
ऽ हवन सामग्री में काले तिल, जौ,
देसी घी और कमल गट्टे
भी अवश्य मिलाया करें, इससे
लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
ऽ यह धारणा मन में स्थिर कर लें कि प्रारब्ध के अतिरिक्त
वर्तमान में किए गए सत्कर्म भी धन
सम्बन्धी विषयों में आशानुकूल परिणाम देते हैं।
ऽ प्रत्येक शनिवार को घर से गन्दगी निकालने
का नियम बना लें। इस दिन घर के मकड़ी के जाले,
रद्दी, टूटी-फूटी घर में
प्रयोग होने वाली सामग्री आदि घर से
बाहर कूड़े में फेंक दिया करें।
ऽ घर के मुख्य द्वार के ऊपर गणेश
जी की प्रतिमा अथवा चित्र इस प्रकार
लगाएं जिससे कि उनका मुंह घर के अन्दर की ओर
रहे।
ऽ मन में पूर्णतया यह निष्ठा जागृत कर लें कि मैं धनवान
बनूंगा ही।
ऽ प्रातः और सांय काल जहॉ तक सम्भव हो घर का प्रत्येक
सदस्य प्रसन्नचित रहे।
ऽ सूर्योदय और सूर्यास्त के समय घर में बच्चे और
बीमार के अतिरिक्त अन्य कोई न सोया करे।
ऽ बिल्ली की जेल,
हत्था जोड़ी तथा सफेद आक में
लक्ष्मी जी को रिझाने का गुणधर्म
छुपा है। यह पदार्थ कहीं सुलभ हो तो घर में रख
लें।
ऽ हीरा रत्न यदि रास आ जाए तो अतुलित वैभव
देता है।
ऽ घर में
यदि तुलसी लगी हो तो सायंकाल
वहॉ एक दीपक जला दिया करें।
ऽ शंखपुष्पी की जड़ घर में
लाना मंगलकारी है।
ऽ कभी ऐसा देखने को मिलता है कि एक वृक्ष पर
दूसरा वृक्ष निकल आता है। यह वृक्ष के सन्धि स्थल पर
होता है। इस संयोग को बांदा कहते हैं। अशोक,
पीपल, अनार, वट, गूलर, आम, बड़ आदि वृक्षों के
बांदे मिल जाएं तो शुभ मुहुर्त में घर ले आएं।
ऽ श्वेत अपराजिता का पौधा धन
लक्ष्मी को आकर्षित करता है।
ऽ जिस सघन वृक्ष पर चमगादड़ों का स्थाई वास होता है,
उसकी छोटी-
सी लकड़ी ग्रहण काल में तोड़ लाएं।
इसे अपने कर्म स्थल
की कुर्सी अथवा गद्दी के

Thursday, May 29, 2014

बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग

दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य
शारीरिक कष्ट रुके कार्य को दूर करने के लिए
-----------बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग-
==============================
============
संकटमोचक हनुमान की उपासना मानवीय
जीवन के दु:ख, भय और चिंता को दूर करने के लिए
अचूक मानी जाती है।
श्री हनुमान साधना की इस
कड़ी में बजरंग बाण का जप और पाठ हनुमान
जयंती, शनिवार व मंगलवार के दिन करने का महत्व
है। इस दिन यथाशक्ति श्री हनुमान
की प्रसन्नता के लिए व्रत भी रख
सकते हैं।
अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल
अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक
चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें।
ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें।
अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक
है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त
स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर
में प्रयोग करें।
हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में
दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच
अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से
पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल
में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर
उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए
अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें
अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग
लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे
की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में
डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह
दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल
की धूनी की भी व्यवस्था रखें।
जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य
जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त
नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से
हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित
करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–”
से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में
ही इसकी एक माला जप
करनी है।
गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण
का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत
का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ
ही नहीं पाते। समयाभाव में
जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम
प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।
बजरंग बाण ध्यान
श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख
दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।
सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु
अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु
निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले।
वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।

ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत
कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर
शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम
डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं
वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर
मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद
नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न
लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख
नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु
हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं
सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल
दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन
कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार
नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु
भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं
विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन
करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग
जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण
की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र
नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल
नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

. यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो

. यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह
आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक ,
भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।
२. यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो ,
वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ
ही वह जातक को हंसमुख , चंचल ,
विलासी स्वभावबनाता
है।
३. मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर
जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह
कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है।
जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।
४. यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक
को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है।
यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान
पाता है।
५. यदि गुरु उच्च राशी कर्क (४) का हो तो , जातक
चतुर , विवेक शील , सोच- समझकर कार्य करने
वाला , ऐश्वर्य वान होता है।
६. यदि शुक्र उच्च राशी मीन (१२)
का हो जातक संगीतज्ञ , अभिनेता , उन्नत भाग्य
वाला होता है।
७. यदि शनि उच्च राशि तुला (७) का हो तो जातक को विशेष धन
की प्राप्ति होती है , अचानक धन
मिलता है , सट्टे , शेयर , या लॉटरी से धन लाभ।
८. यदि राहू उच्च का होतो, स्पष्ट वादी , गूढ़
विद्या की प्राप्ति होती। है
९. यदि केतू उच्च राशी का हो तो, राज्य में
पदोन्नति पाता है. किन्तु जातक नीच, लम्पट,
धोखेबाज़ दोस्तों से हानी पाने वाला ,
किसी टीम का नायक होता। है

राम रक्षा स्त्रोत---चारों ओर संकट हो, बाधाएं, मुश्किलें आ रही हों

राम रक्षा स्त्रोत---चारों ओर संकट हो, बाधाएं, मुश्किलें आ
रही हों, कोई अनिष्ट
की आशंका हो या किसी अपने
की चिंता हो आप बस इस मन्त्र को अपना कर
देखिये
==============================
=============
एक अत्यंत चमत्कारी स्त्रोत है I इसका प्रयोग
किसी भी व्याधी या आपदा के
लिए किया जा सकता है I अनेक लोग इसका चमत्कार देख चुके हैं
I प्रसन्नता की बात यह है कि इसका प्रयोग करने
वाले
को कभी निराशा नहीं होती I
विशेषकर जिन लोगों कि जान खतरे में हो,
किसी असाध्य बीमारी से
ग्रस्त हों, कोई शत्रु परेशान कर रहा हो, चोट चपेट का डर
हो या लड़ाई झगडे कि आशंका हो तो इससे
सभी अंगों कि रक्षा होती है क्योंकि इस
मन्त्र में आपके शरीर के हर अंग
की रक्षा के लिए मन्त्र बोले जाते हैं I
नौकरी चली जाए
या नौकरी जाने वाली हो आप इस मन्त्र
से परिस्थितियों को अपने अनुरूप ढाल सकते हैं I चारों ओर संकट
हो, बाधाएं, मुश्किलें आ रही हों, कोई अनिष्ट
की आशंका हो या किसी अपने
की चिंता हो आप बस इस मन्त्र को अपना कर
देखिये और आप पायेंगे कि आपका काम बन गया है I इस मन्त्र
में भगवान् श्रीराम
कि स्तुति की जाती है और उनसे अपने
लिए सफलता की मांग
की जाती है I
राम रक्षा स्त्रोत की विधि
=====================================
राम रक्षा स्त्रोत को ग्यारह बार एक बार में पढ़ लिया जाए तो पूरे
दिन तक इसका प्रभाव रहता है I अगर आप रोज ४५ दिन तक
राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करते हैं तो इसके फल
की अवधि बढ़ जाती है I मेरे
निजी अनुभव के अनुसार इसका प्रभाव
दुगुना तथा दो दिन तक रहने लगता है I और
भी अच्छा होगा यदि कोई राम रक्षा स्त्रोत
को नवरात्रों में प्रतिदिन ११ बार पढ़े I
माना जाता है कि जब आपको यह मन्त्र पूरी तरह
से याद हो जाए तो सिद्ध हो जाता है I मेरे विचार से
ऐसा नहीं है, परन्तु याद होने के बाद इस मन्त्र
को आप प्रयोग अवश्य कर सकते हैं I
सरसों के दाने एक कटोरी में दाल लें I
कटोरी के नीचे कोई
ऊनी वस्त्र या आसन होना चाहिए I राम
रक्षा मन्त्र को ११ बार पढ़ें और इस दौरान
आपको अपनी उँगलियों से सरसों के
दानों को कटोरी में घुमाते रहना है I ध्यान रहे
कि आप किसी आसन पर बैठे हों और राम
रक्षा यंत्र आपके सम्मुख हो या फिर श्री राम
कि प्रतिमा या फोटो आपके आगे होनी चाहिए जिसे
देखते हुए आपको मन्त्र पढ़ना है I ग्यारह बार के जाप से
सरसों सिद्ध हो जायेगी और आप उस सरसों के
दानों को शुद्ध और सुरक्षित पूजा स्थान पर रख लें I जब
आवश्यकता पड़े तो कुछ दाने लेकर आजमायें I सफलता अवश्य
प्राप्त होगी I यह मेरा स्वयं का अनुभव है
जो कई बार आजमाया जा चूका है I
वाद विवाद या मुकदमा हो तो उस दिन सरसों के दाने साथ लेकर जाएँ
और वहां दाल दें जहाँ विरोधी बैठता है या उसके
सम्मुख फेंक दें I सफलता आपके कदम चूमेगी I
खेल या प्रतियोगिता या साक्षात्कार में आप सिद्ध सरसों को साथ ले
जाएँ और अपनी जेब में रखें I
अनिष्ट की आशंका हो तो भी सिद्ध
सरसों को साथ में रखें I
यात्रा में साथ ले जाएँ आपका कार्य सफल होगा I
राम रक्षा स्त्रोत से पानी सिद्ध करके
रोगी को पिलाया जा सकता है परन्तु
पानी को सिद्ध करने कि विधि अलग है I इसके लिए
ताम्बे के बर्तन को केवल हाथ में पकड़ कर रखना है और
अपनी दृष्टि पानी में रखें और महसूस
करें
कि आपकी सारी शक्ति पानी में
जा रही है I इस समय अपना ध्यान
श्री राम की स्तुति में लगाये रखें I मन्त्र
बोलते समय प्रयास करें कि आपको हर वाक्य का अर्थ ज्ञात
रहे I
राम रक्षा स्त्रोत को किसी भी पुस्तक
विक्रेता से प्राप्त किया जा सकता है
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥
श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान्‌ कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे
जपे विनियोग: ॥
अर्थ: — इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक
ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद
हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान
जी कीलक है
तथा श्री रामचंद्र
जी की प्रसन्नता के लिए राम
रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं
नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन
की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर
पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान
स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित
सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं-
उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित
तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार
वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने
वाला है |
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्

जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले ,
जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण
सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर,
धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार
तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु
अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र
का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के
पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे
कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण
की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख
की रक्षा करें |
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ
की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और
भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने
वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
मेरे
हाथों की सीता पति श्रीराम
रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र
(परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग
की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और
नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |
सुग्रीवेश: कटी पातु
सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
मेरे कमर की सुग्रीव के
स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु
और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले
रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥
९॥
मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं
की दशानन वधकर्ता,
चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान
करने वाले और सम्पूर्ण शरीर
की श्रीराम रक्षा करें |
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु:
सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्
॥१०॥
शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल
से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह
दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान,
विजयी और विनयशील हो जाता हैं |
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में
विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम
नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख
भी नहीं पाते |
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने
वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता.
इतना ही नहीं, वह अवश्य
ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस
स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त
हो जाती हैं |
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं,
उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन
नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल
की ही प्राप्ति होती हैं |
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध
कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे
वैसा ही लिख दिया |
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले
हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने
थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल
आपदा = सारी विपत्तियों को) और
जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम)
हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥
१७॥
जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल
(पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं,
मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण
करते हैं |
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं,
जो संयमी , तपस्वी एवं
ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और
लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त
प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और
राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय
बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण
मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण
तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे
चलकर हमारी रक्षा करें |
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
भगवान् का कथन है की श्रीराम,
दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली,
काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम:
॥२३॥
वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ,
श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से
अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं
|
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं
पीतांबरधारी श्रीराम
की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र
में नहीं पड़ता |
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
लक्ष्मण जी के पूर्वज ,
सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन,
करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक ,
राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति,
सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु
भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं
सीताजी के
स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान्
राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम
श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के
चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ,
वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ
भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके
चरणों की शरण लेता हूँ |
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे
स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु
श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में
किसी दुसरे को नहीं जानता |
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और
जानकी जी और सामने हनुमान
ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ
जी की वंदना करता हूँ |
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं
रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥
३२॥
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में
धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक,
करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार
की श्रीराम की शरण में हूँ
|
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
३३॥
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान
(अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ
हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत
की शरण लेता हूँ |
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर
अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए
वाल्मीकि रुपी कोयल
की वंदना करता हूँ |
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार
नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले
तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं |
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट
समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य
प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत
सदा भयभीत रहते हैं |
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते
हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम
का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले
श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ |
श्रीराम के समान अन्य कोई
आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास
हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं
ही लीन रहूँ | हे
श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
(शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी !
राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम
का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण
करता हूँ |
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्त
ोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

क्या कहती है आपकी भाग्य कुंडली

क्या कहती है आपकी भाग्य
कुंडली ?
क्या आप अपने पूर्वजों मे से एक है या किसी दूसरे
परिवार से आए है ?
लोगो को जानने की इच्छा रहती है
कि हम या हमारा बेटा या बेटी हमारे पूर्वजों मे से
कोई एक जन्म लेकर आया है या कही दूसरे परिवार
से आया है । या हम किसी की म्रत्यु
के बाद जानना चाहते है कि म्रत्यु के बाद
आदमी क्या बापिस हमारे खानदान मे जन्म लेगा ।
यह जानकर उत्सुकता बढ़ जाती है
तथा दुखी इंसान को शांति मिल जाती है ।
और जन्म लेने वाले का मान सम्मान बढ़ जाता है । अगर
आपकी होरा कुंडली मे
चंद्रमा की होरा हो तो आपको समझना चाहिए
कि आपका जन्म अपने पूर्वजों मे से ही हुआ है
। अगर जन्म के समय
आपकी कुंडली मे सूर्य
की होरा आ जाये तो समझना चाहिए कि आपका जन्म
किसी दुसरे परिवार से आपका जन्म हुआ है ।
अगर आपकी होरा कुंडली मे
चंद्रमा की होरा हो और चंद्रमा सूर्य
की होरा मे बैठा हो समझना चाहिए कि मरने के बाद
आप अपने परिवार मे जन्म नहीं लेंगे ।
आपका जन्म किसी दूसरे परिवार मे होगा या आप
देवलोक चले जाओगे । अगर आपका जन्म सूर्य
की होरा मे हुआ तथा सूर्य
चंद्रमा की होरा मे बैठा हुआ है तो आप मरने के
बाद अपने ही परिवार मे जन्म लेंगे । तथा अपने
पिछले जन्म के अधूरे कार्यों को पूरा करेंगे

कालसर्प योग क्या है

कालसर्प योग क्या है?
कालसर्प योग का विचार करनेसे पहले राहू केतू का विचार
करना आवश्यक है। राहू सर्प का मु़ख माना गया है। तो केतू को पूंछ
मानी जाती है। इस दो ग्रहोंकें कारण
कालसर्प योग बनता है। इस संसार में जब कोई
भी प्राणी जिस पल मे जन्म लेता है, वह
पल(समय) उस प्राणी के सारे जीवन के लिए
अत्यन्त ही महत्वपुर्ण माना जाता है।
क्यों की उसी एक पल को आधार बनाकर
ज्योतिष शास्त्र की सहायता सें उसके समग्र
जीवन का एक ऐसा लेखा जोखा तैयार किया जा सकता है,
जिससे उसके जीवन में समय समय पर घटने
वाली शुभ-अशुभ घटनाऔं के विषय में समय से पूर्व
जाना जा सकता है।
जन्म समय के आधार पर बनायी गयी जन्म
कुंडली के बारह भाव स्थान होते है ।
जन्मकुंडली के इन भावों में
नवग्रहो की स्थिती योग
ही जातक के भविष्य के बारे में
जानकारी प्रकट करते है। जन्मकुंडली के
विभिन्न भावों मे इन नवग्रहों कि स्थिति और योग से अलग अलग
प्रकार के शुभ-अशुभ योग बनते है। ये योग ही उस
व्यक्ती के जीवन पर अपना शुभ-अशुभ
प्रभाव डालते है।
जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु और
केतु के एक ही और स्थित
हों तो ऐसी ग्रह स्थिती को कालसर्प योग
कहते है। कालसर्प योग एक कष्ट कारक योग है।
सांसारीक ज्योतिषशास्त्र में इस योग के विपरीत
परिणाम देखने में आते है। प्राचीन भारतीय
ज्योतिषशास्त्र कालसर्प योग के विषय में मौन साधे बैठा है। आधुनिक
ज्योतिष विव्दानों ने भी कालसर्प योग पर कोई प्रकाश डालने
का कष्ट नहीं उठाया है की जातक के
जीवन पर इसका क्या परिणाम होता है ?
राहु-केतु यानि कालसर्प योग
वास्तव में राहू केतु छायाग्रह है।
उनकी उपनी कोई
दृष्टी नही होती। राहू
का जन्म नक्षत्र भरणी और केतू का जन्म नक्षत्र
आश्लेषा हैं। राहू के जन्म नक्षत्र भरणी के
देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र आश्लेषा के देवता सर्प है।
इस दोष निवारण
हेतू हमारे वैदिक परंपरा के अनुसार ग्रह्शांती पुजन मे
प्रमुख देवता राहू का उनके अधिदेवता काल और प्रत्यादि देवता सर्प
सहित पुजन अनिवार्य है।
काल
यदि काल का विचार किया जाये तो काल हि ईश्वर के प्रशासन क्षेत्र
का अधिकारी है जन्म से लेकर मृत्यू तक
सभी अवस्थाओं
के परिवर्तन चक्र काल के आधीन है। काल हि संसार
का नियामक है।
कालसर्प योग से पिडीत जातक का भाग्य प्रवाह राहु केतु
अवरुध्द करते है। जिसके परिणाम स्वरुप जातक
की प्रगति नही होती। उसे
जीवीका चलाने का साधन
नहीं मिलता अगर मिलता है तो उसमें अनेक समस्यायें
पैदा होती है। जिससे
उसको जिविका चलानी मुश्किल हो जाती है।
विवाह नही हो पाता। विवाह हो भी जाए
तो संतान-सुख में बाधाएं आती है।
वैवाहीक जीवन मे कलहपुर्ण झगडे
आदि कष्ट रहते हैं। हमेशा कर्जं के बोझ में दबा रहाता है और
उसे अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पडते है।
दुर्भाग्य
जाने अन्जाने में किए गए कर्मो का परिणाम दुर्भाग्य का जन्म होता है।
दुर्भाग्य चार प्रकार के होते है-
1. अधिक परिश्रम के बाद भी फल न मिलना धन
का अभाव बने रहना।
2. शारीरीक एवं मानसिक दुर्बलता के कारण
निराशा उत्पन्न होती है। अपने
जीवीत तन का बोझ ढाते हुए
शीघ्र से
शीघ्र मृत्यु की कामना करता है।
3. संतान के व्दारा अनेक कष्ट मिलते है
4. बदचनल एवं कलहप्रिय पति या पती का मिलना है।
उपरोक्त दुर्भाग्य के चारों लक्षण कालसर्प युक्त जन्मांग में पूर्ण रूप
से दृष्टिगत होते है।
कालसर्प योग से पिडित जातक दुर्भाग्य से मूक्ति पाने के लिए अनेक
उपायो का सहारा लेता है वह हकीम वैदय डॉक्टरों के
पास जाता है। धन प्राप्ति के अनेक उपाय करता है बार बार प्रयास
करने पर भी सफलता नही मिलने पर अंत में
उपाय ढुंढने के लिए वह ज्योतिषशास्त्र का सहारा लेता है।
अपनी जन्म पत्री मे कौन कौन से दोष है
कौन कौन से कुयोग से है उन्हें तलाशता है। पुर्वजन्म के पितृशाप,
सर्पदोष, भातृदोष आदि दोष कोई
उसकी कुंडली में है - कालसर्प योग।
कोई माने या न माने कालसर्प योग होता है। किसी के मानने
या न मानने से शास्त्री य सिध्दांत न
कभी बदले थे औ न ही बदलेंगे । शास्त्र
आखिर शास्त्र हैं इसे कोई माने या न माने इससे कोई अंतर
नही पडता । कालसर्प योग प्रमाणित है इसे प्रमाणित
करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
कालसर्प योगके बाराह प्रकार है।
१) अनंत कालसर्प योग
जब कुंडली मे प्रथम एवंम सप्तम स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को अनंत कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के चिंता, न्युनगंड, जलसे
भय आदी प्रकारसे नुकसान होता है।
२) कुलिक कालसर्प योग
जब कुंडली मे दुसरे एवंम आठवे स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को कुलिक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को आर्थिक
हानी, अपघात, वाणी मे दोष, कुटुंब मे कलह,
नर्व्हस ब्रेक डाउन आदी
आपतीयोंका सामना करना पडता है।
३) वासुकि कालसर्प योग
जब कुंडली मे तीसरे एवंम नवम स्थान मे
राहू, केतु होते है। तब इस योग को वासुकि कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को भाई बहनोंसे
हानी, ब्लडप्रेशर, आकस्मित मृत्यु तथा रिश्तेदारोंसे
नुकसान होता है।
४) शंखपाल कालसर्प योग
जब कुंडली मे चौथे एवंम दसवे स्थान मे राहू, केतु होते
है। तब इस योग को शंखपाल कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके माता को पिडा, पितृसुख
नही, कष्टमय जिवन, नोकरी मे
बडतर्फी, परदेश जाकर
बुरी तरह मृत्यु आदी।
५) पद्दम कालसर्प योग
जब कुंडली मे पांचवे एवंम ग्यारहवे स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को पद्दम कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके विध्याअध्ययन मे रुकावट,
पत्नी को बिमारी, संतान प्राप्ती मे
विलंब, मित्रोंसे हानी होती है।
६) महापद्दम कालसर्प योग
जब कुंडली मे छ्ठे एवंम बारहवे स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को महापद्दम कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को कमर
की पिडा, सरदर्द्, त्वचारोग्, धन
की कमी, शत्रुपीडा यह सब
हो सकता है
७) तक्षक कालसर्प योग
जब कुंडली मे सातवे एवंम पहले स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को तक्षक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के दुराचारी,
व्यापार मे हानी, वैवाहिक जीवन मे दु:ख,
अपघात, नौकरीमे परेशानी
होती है। ७) तक्षक कालसर्प योग
जब कुंडली मे सातवे एवंम पहले स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को तक्षक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के दुराचारी,
व्यापार मे हानी, वैवाहिक जीवन मे दु:ख,
अपघात, नौकरीमे परेशानी
होती है।
८) कर्कोटक
जब कुंडली मे आठवे एवंम दुसरे स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को कर्कोटक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को पितृक
संपत्ती का नाश, गुप्तरोग, हार्ट अटैक, कुटुंब मे तंटे
और जहरीले जनवरोंसे
डर रहता है।
९) शंखचुड कालसर्प योग
जब कुंडली मे नवम एवंम तीसरे स्थान मे
राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखचुड कालसर्पयोग कहते
है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती धर्म का विरोध, कठोर
वर्तन, हाय ब्लड प्रेशर, सदैव चिंता, संदेहास्पद
चरीत्रवाला
होता है।
१०) पातक कालसर्प योग
जब कुंडली मे दशम एवंम चौथे स्थान मे राहू, केतु होते
है। तब इस योग को पातक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती दुष्ट,
दुराचारी लो ब्लड प्रेशर जीवन मे कष्ट, घर
मे पिशाच्च पीडा, चोरी की
संभावना होती है।
११) विषधर कालसर्प योग
जब कुंडली मे ग्यारहवे एवंम पांचवे स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को विषधर कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को अस्थिरता,
संततीसंबंधी चिंता, जेल मे कैद होने
की संभावना होती है।
१२) शेषनाग कालसर्प योग
जब कुंडली मे बारहवे एवंम छ्ठे स्थान मे राहू, केतु
होते है। तब इस योग को शेषनाग कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती अपयश, ऑंख
की बिमारी, गुप्त
शत्रुअओंकी पिडा, तंटे बखेडे
आदी मुकाबला करना
पडता है।
नियम :
१) नारायण नागबली-नारायणबली,
नागबली तीन दिन में संपन्न

हमारे घर में सदा कलह होता रहता है

कुछ लोगो की सदा शिकायत रहती है
की हमारे घर में सदा कलह होता रहता है .धन
टिकता नहीं है.जबसे हम यहाँ आये है हमारे
घर में कोई न कोई बीमार
रहता ही है.या अन्य कोई
विपदा आती ही रहती है
जिसके कारण मानसिक
अशांति बनी रहती है.मित्रो उसके कई
कारण हो सकते है.घर में नकारत्मक उर्जा के होने से
भी ये सब होता ही है.अतः करे ये लघु
प्रयोग।
सामग्री : हल्दी की ७
साबूत गाठ,पूजा की ५ सुपारी,ताम्बे
का लोटा ढक्कन सहित,चांदी का चोकोर
चोड़ा टुकड़ा,चांदी का सर्प
सर्पिनी का जोड़ा।
प्रयोग किसी भी सोमवार को प्रातः काल में
करे,लोटे में थोडा सा गंगा जल भरे,गंगाजल न हो तो शुद्ध जल भर
दे.बाकि उपरोक्त सभी सामग्री लोटे में
डाल दे.तथा लोटे को ताम्बे के ढक्कन से ढ़क दे.और इस लोटे
को बिना खोले मकान के मुख्य द्वार
की दाहिनी और ज़मीन में
गाड दे.स्मरण रहे घर से बाहर जाते वक़्त आपको आपके
दाहिनी हाथ की और इसे
गाड़ना है.यदि आप बाहर खड़े होंगे तो ये
हिस्सा आपकी बायीं और आएगा।

Tuesday, May 27, 2014

पति पत्नी के आपसी रिश्ते कडवाहट में बदल जाते है

 पति पत्नी के आपसी रिश्ते कडवाहट में बदल जाते है !
 कई बार पुरुष परायी स्त्री के चंगुल में फंस जाते है और अपनी पत्नी बच्चो तक को भूल जाते है ! इसी प्रकार स्त्रियाँ भी अपने पति को भूल पर-पुरुष के जाल में फंस जाती है ! केवल पति पत्नी ही नहीं पिता पुत्र के रिश्ते में भी विद्वेषण आदि तांत्रिक प्रयोगों द्वारा कडवाहट पैदा हो जाती है !
ऐसे में वशीकरण मंत्र ही इस कडवाहट को खत्म करने का सबसे सरल उपाएँ है ! प्रस्तुत मंत्र द्वारा आप अपनी इस प्रकार की सभी समस्याओं का निवारण कर सकते है ! इतना ही नहीं इस मंत्र द्वारा आप अपने मालिक का वशीकरण कर सकते है और नौकर का भी ! इसके अलावा प्रेमी प्रेमिका और सगे सम्बन्धियों का वशीकरण कर उनसे इच्छित कार्य करवाया जा सकता है !
हम यहाँ वशीकरण से सम्बंधित एक सरल प्रयोग दे रहे है ताकि आपको यह ना लगे कि हम जानबूझकर कठिन प्रयोग देते है जिसका आम आदमी प्रयोग भी ना कर पायें !
|| मंत्र ||
Lसत नमो आदेश ! गुरूजी को आदेश ! ॐ गुरूजी !
ॐ कौली आई मात की लीजे दो कर जोड़ आगे पांच
महेश्वर पीछे देवी देवता तैतीस करोड़ करे कौली मुखे
बाला हिर्दे जपो तपो श्री सुंदरी बाला औ कौली
आवे कौली जावे कौली गत गंगा में समावे सुगुरा होके
कौली चेते इको त्तर सौ पुरुषा ले उतरे पार,
नुगुरा होके कौली चेते गत गंगा के भार आई लेजा
बरसे धर्ती निपजे आकाश सांधा पार जुठी आद शक्ति महामाई !
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश ! आदेश ! आदेश 
|| विधि ||
ग्रहण काल में १०८ बार जप करे ! ऐसा करने पर मंत्र सिद्ध हो जायेगा !
|| प्रयोग विधि ||
इस मंत्र को २१ बार पढ़कर किसी भी वस्तु को अभिमंत्रित करे और इच्छित व्यक्ति क ो खिला दे ! आपका कार्य सिद्ध हो जायेगा 

रसोईघर के लिए वास्तु टिप्स

रसोईघर के लिए वास्तु टिप्स – Vastu Tips for Kitchen in
Hindi
घर में अच्छे स्वास्थ्य और उर्जा के लिए वास्तु उन्मुख एक रसोई
घर का एक बहुत महत्वपूर्ण महत्व है. रसोईघर के डिजाइन
और वहा उपयोग में आने वाले सामान को जमाने के लिए कुछ वास्तु
दिशा निर्देश / टिप्स .
रसोईघर का स्थान
रसोई घर के लिए सबसे उपयुक्त स्थान आग्नेय कोण यानि दक्षिण
पूर्वी दिशा है जो कि अग्नि का स्थान होता हैं,
दक्षिण
पूर्व दिशा के बाद, दूसरी वरिएता का उपयुक्त स्थान
उत्तर पश्चिम दिशा है |
रसोईघर में सामान रखने के उपयुक्त स्थान
कुकिंग स्टोव, गैस का चूल्हा या कुकिंग रेंज रसोई घर के दक्षिण
पूर्वी कोने में होना चाहिए| यह स्टोव इस तरह से
रखा जाना चाहिए जिससे की खाना बनाने वाला व्यक्ति,
खाना बनाते वक्त पूर्व का सामना करे.
पानी के भंडारण, आर ओ, पानी फिल्टर
और
इसी तरह के अन्य सामानों के लिए
जहा पानी संग्रहीत किया जाता है,
उपयुक्त जगह उत्तर पूर्व दिशा हें.
पानी के सिंक के लिए जगह उत्तर पूर्व में
होनी चाहिए.
बिजली के सामान के लिए, दक्षिण पूर्व या दक्षिण
दिशा है.
फ्रिज पश्चिम, दक्षिण, दक्षिण पूर्व या दक्षिण पश्चिम दिशा में
रखा जा सकता है.
खाना पकाने में इस्तेमाल किये जाने वाली वस्तुए,
अनाज,
मसाले, दाल, तेल, आटा और अन्य खाद्य सामग्रियों, बर्तन,
क्रॉकरी इत्यादि के भंडारण के लिए स्थान पश्चिम
या दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए.
वास्तु अनुसार रसोई घर की कोई दिवार शौचालय
या बाथरूम
के साथ
लगी नहीं होनी चाहिए
और
रसोईघर, शौचालय और बाथरूम के नीचे या ऊपर
भी नहीं होना चाहिए.
रसोई का दरवाजा उत्तर, पूर्व या पश्चिम दिशा में खुलना चाहिए.
खिड़किया और हवा वाहर फेखने वाला पंखा (exhaust fan)
पूर्व
में होना चाहिए, यह उत्तरी दीवार में
भी लगाया जा सकता है.
रसोई घर में पूजा का स्थान यथा संभव
नहीं होना चाहिए.
खाने की मेज को रसोई घर में
नहीं रखा जाना चाहिए और
रखनी पड़ती हें तो यह उत्तर पश्चिम
दिशा में रखा जाना चाहिए और भोजन करते समय चेहरा पूर्व
या उत्तर
की देखते होना अच्छा है