विवाह और नाड़ी मिलान :
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विवाह में वर-वधू के गुण-मिलान में नाड़ी का महत्व
इसी से ज्ञात होता है कि 36 गुणांक में 8 गुणांक
नाड़ी के होते हैं।
दो अपरिचितों की मनःस्थिति और शारीरिक
सामंजस्य की जानकारी नाड़ियों के मिलान से
की जाती है। भावी संतान
सुख
की जानकारी भी नाड़ी से
ही मिलती है।
वर-कन्या के जन्म नक्षत्र एक
ही नाड़ी के नहीं होने
चाहिए। दोनों की नाड़ियाँ भिन्ना होना शुभ
माना जाता है। वर-कन्या की यदि नाड़ियाँ आद्य-आद्य
या अन्त्य-अन्त्य हैं तो अच्छा मिलान
नहीं माना जाता है, परंतु
दोनों की यदि मध्य नाड़ियाँ हैं तो अति अशुभ माने जाने
से यदि नाड़ी दोष का परिहार न हुआ हो तो विवाह
करना उचित नहीं होता है।
नाड़ियाँ तीन- आद्य, मध्य और अन्त्य
मानी गई हैं, जो नक्षत्रानुसार इस प्रकार
होती हैं-
अश्वनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पू. फाल्गुनी,
हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पू. भाद्र की आद्य
नाड़ी
भरणी, मृगशिरा, पुष्य, उ. फाल्गुनी,
चित्रा, अनुराधा, पू.षा. घनिष्ठा, उ. भाद्र की मध्य
नाड़ी
कृतिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उ.षा.,
श्रवण, रेवती की अंत्य
नाड़ी होती है।
गण दोष, योनि दोष, वर्ण दोष और षड़ाष्टक ये चारों दोष वर-
कन्या में गुण ग्रहमैत्री होने पर दोष
नहीं रहते परंतु नाड़ी दोष
बना रहता है। नाड़ी दोष का विचार ब्राह्मणों में विशेष
रूप से करने का उल्लेख है।
नाड़ी दोष परिहार : निम्नांकित परिस्थितियों में
नाड़ी दोष परिहार
स्वतः ही हो जाता है।
(उद्धरण चिह्न)
राश्यैक्ये चेद्भिन्नामृक्षं द्वियों स्वान्नाक्ष त्रैम्ये राशि युग्मं
तथैव।
नाड़ी दोषो नो गणानां च दोषो नक्षत्रैक्ये पाद भेदे शुभं
स्यात।
अर्थात (1) एक ही राशि हो, परंतु नक्षत्र
भिन्ना हों,
(2) एक नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो,
(3) एक नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हों।
(4) नक्षत्र एवं चरण एक होने पर
भी भरणी, कृतिका, रोहिणी,
मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, विशाखा, श्रवण, घनिष्ठा, पू. भाद्र, उ.
भाद्र एवं रेवती में जन्म होने पर
नाड़ी दोष नहीं रहता है।
(5) कन्या के नक्षत्र से मध्य
नाड़ी नहीं है तो पार्श्व
नाड़ी पर दोष नहीं रहता है।
एक राशि-नक्षत्र होने पर गुण मिलान में 36 में से 28
गुणों का मिलान हो जाता है और नाड़ी दोष का परिहार
होने पर विवाह विचारणीय होता है।
नाड़ी से भावी संतान सुख ज्ञात
किया जाता है। इसलिए नाड़ी दोष होने पर
भी यदि वर-कन्या दोनों की जन्म
कुंडलियों के पंचम भाव में शुभ ग्रह है, शुभ ग्रहों से दृष्ट
है तथा पंचमेश की शुभ स्थिति है तो विवाह
विचारणीय हो सकता है।
विवाह में कोई बाधा नहीं है। पहले
चिकित्सा सुविधाएँ नहीं होने से
नाड़ी मिलान की संतान सुख
की दृष्टि से उपयोगिता रही है। जाँच के
परिणाम निर्दोष हों तो नाड़ी दोष होने पर
भी विवाह किया जा सकता है। नाड़ी के
संबंध में आधी-
अधूरी जानकारी के आधार पर केवल
नाड़ी दोष देखकर विवाह को अविचारणीय
मान लेना भूल होगी।
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विवाह में वर-वधू के गुण-मिलान में नाड़ी का महत्व
इसी से ज्ञात होता है कि 36 गुणांक में 8 गुणांक
नाड़ी के होते हैं।
दो अपरिचितों की मनःस्थिति और शारीरिक
सामंजस्य की जानकारी नाड़ियों के मिलान से
की जाती है। भावी संतान
सुख
की जानकारी भी नाड़ी से
ही मिलती है।
वर-कन्या के जन्म नक्षत्र एक
ही नाड़ी के नहीं होने
चाहिए। दोनों की नाड़ियाँ भिन्ना होना शुभ
माना जाता है। वर-कन्या की यदि नाड़ियाँ आद्य-आद्य
या अन्त्य-अन्त्य हैं तो अच्छा मिलान
नहीं माना जाता है, परंतु
दोनों की यदि मध्य नाड़ियाँ हैं तो अति अशुभ माने जाने
से यदि नाड़ी दोष का परिहार न हुआ हो तो विवाह
करना उचित नहीं होता है।
नाड़ियाँ तीन- आद्य, मध्य और अन्त्य
मानी गई हैं, जो नक्षत्रानुसार इस प्रकार
होती हैं-
अश्वनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पू. फाल्गुनी,
हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पू. भाद्र की आद्य
नाड़ी
भरणी, मृगशिरा, पुष्य, उ. फाल्गुनी,
चित्रा, अनुराधा, पू.षा. घनिष्ठा, उ. भाद्र की मध्य
नाड़ी
कृतिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उ.षा.,
श्रवण, रेवती की अंत्य
नाड़ी होती है।
गण दोष, योनि दोष, वर्ण दोष और षड़ाष्टक ये चारों दोष वर-
कन्या में गुण ग्रहमैत्री होने पर दोष
नहीं रहते परंतु नाड़ी दोष
बना रहता है। नाड़ी दोष का विचार ब्राह्मणों में विशेष
रूप से करने का उल्लेख है।
नाड़ी दोष परिहार : निम्नांकित परिस्थितियों में
नाड़ी दोष परिहार
स्वतः ही हो जाता है।
(उद्धरण चिह्न)
राश्यैक्ये चेद्भिन्नामृक्षं द्वियों स्वान्नाक्ष त्रैम्ये राशि युग्मं
तथैव।
नाड़ी दोषो नो गणानां च दोषो नक्षत्रैक्ये पाद भेदे शुभं
स्यात।
अर्थात (1) एक ही राशि हो, परंतु नक्षत्र
भिन्ना हों,
(2) एक नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो,
(3) एक नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हों।
(4) नक्षत्र एवं चरण एक होने पर
भी भरणी, कृतिका, रोहिणी,
मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, विशाखा, श्रवण, घनिष्ठा, पू. भाद्र, उ.
भाद्र एवं रेवती में जन्म होने पर
नाड़ी दोष नहीं रहता है।
(5) कन्या के नक्षत्र से मध्य
नाड़ी नहीं है तो पार्श्व
नाड़ी पर दोष नहीं रहता है।
एक राशि-नक्षत्र होने पर गुण मिलान में 36 में से 28
गुणों का मिलान हो जाता है और नाड़ी दोष का परिहार
होने पर विवाह विचारणीय होता है।
नाड़ी से भावी संतान सुख ज्ञात
किया जाता है। इसलिए नाड़ी दोष होने पर
भी यदि वर-कन्या दोनों की जन्म
कुंडलियों के पंचम भाव में शुभ ग्रह है, शुभ ग्रहों से दृष्ट
है तथा पंचमेश की शुभ स्थिति है तो विवाह
विचारणीय हो सकता है।
विवाह में कोई बाधा नहीं है। पहले
चिकित्सा सुविधाएँ नहीं होने से
नाड़ी मिलान की संतान सुख
की दृष्टि से उपयोगिता रही है। जाँच के
परिणाम निर्दोष हों तो नाड़ी दोष होने पर
भी विवाह किया जा सकता है। नाड़ी के
संबंध में आधी-
अधूरी जानकारी के आधार पर केवल
नाड़ी दोष देखकर विवाह को अविचारणीय
मान लेना भूल होगी।
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