**** ऋण क्या है****
सामान्यतः लोग इस शब्द से केवल मात्र उधार लिये हुये धन से
समझते है । लेकिन यह शब्द केवल मात्र इतने में
ही नहीं सिमटा हुआ है । इस ऋण
शब्द कि व्याख्या कि जाये तो इस पर पूरी एक किताब
कि रचना कि जा सकती है ।
संसार में आये हुये प्रत्येक मानव पर तीन ऋण
होते है ।
1. पितृ ऋण:--
2. देव ऋण
3. ऋषि ऋण
पितृ ऋण से हम संतान को जन्म देकर के मुक्त होते है
देव ऋण से मुक्ति के लिये हम यज्ञ,पूजा इत्यादि करते है ।
3. ऋषि ऋण से मुक्ति के लिये हम ऋषियों को तर्पण प्रदान
करते है ।
यह तो प्रत्येक मानव के उपर होने वाले ऋण है ।
अब बात करते है कि मानव स्वार्थ के वशीभूत
होकर किस प्रकार ऋणी बनता है ।
1. कई बार लोग दुकान पर लोग सामान खरीदते समय
10 , 20 रूपये कम पडने पर दुकान वाले से बोल देते है,
भैया बाद मैं आयेंगे तब दे जायेंगे ओर वहाँ से आने पर मन में पाप
आ जाता है ।
2. जब आप कहीं मार्ग भटक जायें ओर कोई
आपको सही मार्ग बताये, तो उस व्यक्ति का ऋण
आप पर चढ जाता है, कम से कम उस व्यक्ति को धन्यवाद
तो देना ही चाहिये ।
3. जब आप मन्दिर में जाने पर
पुजारी जी, या ब्राह्मण के हाथों अपने
मस्तक पर तिलक लगवाते हो ओर बदले में उन्हे कुछ
नहीं देते हो तो आप ऋणी हो जाते
हो, अगर यदि आप के पास देने के लिये धन
नहीं हो तो कम से कम प्रणाम तो अवश्य करे,
किन्तु एसे पण्डितों से बचे
जो आपको जबरदस्ती पूजा या दान या तिलक के लिये
कहे ।
4. जब आप कहीं कथा, प्रवचन में जाते
हो तो कुछ ना कुछ अवश्य चढाकर आयें
क्यों कि आपको वहाँ कथावाचक से ज्ञान मिलता है ।
नहीं चढाने पर आप पर कथावाचक या ज्ञान देने
वाले का ऋण हो जायेगा ।
4. जब आप किसी के यहाँ भोजन करने जाते
हो तो कम से कम आपके भोजन के मूल्य कि कीमत
जितना उपहार वहाँ भेंट करके जरूर आये। या भोजन करवाने वाले
को को भी आप भोजन करवाये ।
5.जब आप किसी गुरू से ज्ञान ग्रहण करते है
तथा बदले में उन्हे दक्षिणा नहीं देते हो तो आप
के जीवन में गुरू का वह ज्ञान फलित
नहीं होगा । एकलव्य ने गुरू द्रोणाचार्य को हाथ
का अंगुठा काटकर एसे ही नहीं दे
दिया था ।
6. जब आप किसी ज्योतिषी से
अपनी जन्मपत्रिका का या हस्तरेखा का परीक्षण
करवाते हो ओर बदले में कुछ नहीं देते हो तो उस
ज्योतिषी द्वारा बताई गई बातें आपके
जीवन में फलित
नहीं होती है , बाद में लोग
ज्योतिषी पर दोषारोपण किया करते है।
ज्योतिषी का आप पर ऋण चढ जाता है
क्यों कि ज्योतिषी अपने अनमोल जीवन
का कुछ समय ओर अपना ज्ञान आपको देता है !
7. जब आप किसी से भी अपना कार्य
करवाकर उसको उसका मेहनताना नहीं देते
हो तो आप ऋणी हो जाते हो ।
मानव का विवेक उसे सब कुछ बताता है
कि सही क्या है ओर गलत क्या है किन्तु मानव
कि आँखों पर स्वार्थ कि पट्टी बंध
जाती है ।
यह सब ऋण हमें किसी ना किसी रूप
में 100% ब्याज सहित चुकाना पडता है , इस जन्म में
नहीं तो अगले जन्म में चुकाना पडेगा लेकिन
चुकाना पडेगा ।
आपने देखा होगा कि एक ताँगे वाला घोडे से धन कमाता है, उस
घोडे के उपर उस घोडे के मालिक का ऋण होता है जिसे वह
कमाकर सारी जिन्दगी चुकाता है ।
एसे ही एक घर कि रखवाली करने वाले
कुत्ते को देख लिजीये ।
एसे ही एक ऊँट को देखिये । एसे
ही एक खेल दिखाने वाले मदारी के पास
में बंधे हुये बंदर भालु को देखिये ।
ओर भी एसे अनेक उदाहरण है । ओर हम सब
भी इस जीवन में
किसी ना किसी का ऋण
ही चुका रहे है । ईश्वर
कि लीला विचित्र है ।
यथासंभव कोशिश यही रखे कि आप
किसी के ऋणी ना हो । एक
सेठजी थे, जब भी उनके पास कोई उधार
रूपये मांगने आता था तो वो उस से स्टाम्प पेपर पर
नहीं लिखवाकर केवल एक ही प्रश्न
किया करते थे ।
प्रश्न:- आप यह धन इस जन्म में लोटाओगे या अगले जन्म
में । कई लोग अगले जन्म का नाम लेकर के उनसे धन ले
जाया करते थे ओर
सेठजी बिना किसी संशय के दे दिया करते
थे, क्यों कि सेठ जी को अपने पिछले जन्म
कि स्मृति थी । वो जानते थे कि यही धन
मुझे अनन्त गुना होकर के मिलेगा ।
सामान्यतः लोग इस शब्द से केवल मात्र उधार लिये हुये धन से
समझते है । लेकिन यह शब्द केवल मात्र इतने में
ही नहीं सिमटा हुआ है । इस ऋण
शब्द कि व्याख्या कि जाये तो इस पर पूरी एक किताब
कि रचना कि जा सकती है ।
संसार में आये हुये प्रत्येक मानव पर तीन ऋण
होते है ।
1. पितृ ऋण:--
2. देव ऋण
3. ऋषि ऋण
पितृ ऋण से हम संतान को जन्म देकर के मुक्त होते है
देव ऋण से मुक्ति के लिये हम यज्ञ,पूजा इत्यादि करते है ।
3. ऋषि ऋण से मुक्ति के लिये हम ऋषियों को तर्पण प्रदान
करते है ।
यह तो प्रत्येक मानव के उपर होने वाले ऋण है ।
अब बात करते है कि मानव स्वार्थ के वशीभूत
होकर किस प्रकार ऋणी बनता है ।
1. कई बार लोग दुकान पर लोग सामान खरीदते समय
10 , 20 रूपये कम पडने पर दुकान वाले से बोल देते है,
भैया बाद मैं आयेंगे तब दे जायेंगे ओर वहाँ से आने पर मन में पाप
आ जाता है ।
2. जब आप कहीं मार्ग भटक जायें ओर कोई
आपको सही मार्ग बताये, तो उस व्यक्ति का ऋण
आप पर चढ जाता है, कम से कम उस व्यक्ति को धन्यवाद
तो देना ही चाहिये ।
3. जब आप मन्दिर में जाने पर
पुजारी जी, या ब्राह्मण के हाथों अपने
मस्तक पर तिलक लगवाते हो ओर बदले में उन्हे कुछ
नहीं देते हो तो आप ऋणी हो जाते
हो, अगर यदि आप के पास देने के लिये धन
नहीं हो तो कम से कम प्रणाम तो अवश्य करे,
किन्तु एसे पण्डितों से बचे
जो आपको जबरदस्ती पूजा या दान या तिलक के लिये
कहे ।
4. जब आप कहीं कथा, प्रवचन में जाते
हो तो कुछ ना कुछ अवश्य चढाकर आयें
क्यों कि आपको वहाँ कथावाचक से ज्ञान मिलता है ।
नहीं चढाने पर आप पर कथावाचक या ज्ञान देने
वाले का ऋण हो जायेगा ।
4. जब आप किसी के यहाँ भोजन करने जाते
हो तो कम से कम आपके भोजन के मूल्य कि कीमत
जितना उपहार वहाँ भेंट करके जरूर आये। या भोजन करवाने वाले
को को भी आप भोजन करवाये ।
5.जब आप किसी गुरू से ज्ञान ग्रहण करते है
तथा बदले में उन्हे दक्षिणा नहीं देते हो तो आप
के जीवन में गुरू का वह ज्ञान फलित
नहीं होगा । एकलव्य ने गुरू द्रोणाचार्य को हाथ
का अंगुठा काटकर एसे ही नहीं दे
दिया था ।
6. जब आप किसी ज्योतिषी से
अपनी जन्मपत्रिका का या हस्तरेखा का परीक्षण
करवाते हो ओर बदले में कुछ नहीं देते हो तो उस
ज्योतिषी द्वारा बताई गई बातें आपके
जीवन में फलित
नहीं होती है , बाद में लोग
ज्योतिषी पर दोषारोपण किया करते है।
ज्योतिषी का आप पर ऋण चढ जाता है
क्यों कि ज्योतिषी अपने अनमोल जीवन
का कुछ समय ओर अपना ज्ञान आपको देता है !
7. जब आप किसी से भी अपना कार्य
करवाकर उसको उसका मेहनताना नहीं देते
हो तो आप ऋणी हो जाते हो ।
मानव का विवेक उसे सब कुछ बताता है
कि सही क्या है ओर गलत क्या है किन्तु मानव
कि आँखों पर स्वार्थ कि पट्टी बंध
जाती है ।
यह सब ऋण हमें किसी ना किसी रूप
में 100% ब्याज सहित चुकाना पडता है , इस जन्म में
नहीं तो अगले जन्म में चुकाना पडेगा लेकिन
चुकाना पडेगा ।
आपने देखा होगा कि एक ताँगे वाला घोडे से धन कमाता है, उस
घोडे के उपर उस घोडे के मालिक का ऋण होता है जिसे वह
कमाकर सारी जिन्दगी चुकाता है ।
एसे ही एक घर कि रखवाली करने वाले
कुत्ते को देख लिजीये ।
एसे ही एक ऊँट को देखिये । एसे
ही एक खेल दिखाने वाले मदारी के पास
में बंधे हुये बंदर भालु को देखिये ।
ओर भी एसे अनेक उदाहरण है । ओर हम सब
भी इस जीवन में
किसी ना किसी का ऋण
ही चुका रहे है । ईश्वर
कि लीला विचित्र है ।
यथासंभव कोशिश यही रखे कि आप
किसी के ऋणी ना हो । एक
सेठजी थे, जब भी उनके पास कोई उधार
रूपये मांगने आता था तो वो उस से स्टाम्प पेपर पर
नहीं लिखवाकर केवल एक ही प्रश्न
किया करते थे ।
प्रश्न:- आप यह धन इस जन्म में लोटाओगे या अगले जन्म
में । कई लोग अगले जन्म का नाम लेकर के उनसे धन ले
जाया करते थे ओर
सेठजी बिना किसी संशय के दे दिया करते
थे, क्यों कि सेठ जी को अपने पिछले जन्म
कि स्मृति थी । वो जानते थे कि यही धन
मुझे अनन्त गुना होकर के मिलेगा ।
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