Sunday, May 25, 2014

कुंडलियों का मिलान

कुंडलियों का मिलान कराने के बाद ही विवाह करने
का निर्णय करना चाहिए।
शनि, सूर्य, राहु, 12वें भाव का स्वामी (द्वादशेश )
तथा राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी (जैसे राहु
मीन राशि में हो तो, मीन
का स्वामी गुरु राहु अधिष्ठित
राशि का स्वामी होगा) ये पांच ग्रह विच्छेदात्मक
प्रवृति के होते हैं। इनमें से किन्हीं दो या अधिक
ग्रहों का युति अथवा दृष्टि संबंध जन्म कुंडली के
जिस भाव/भाव स्वामी से होता है तो उसे नुक्सान
पहुंचाते हैं। अत: सप्तम भाव अथवा उसके
स्वामी को इन ग्रहों द्वारा प्रभावित करने पर
दाम्पत्य जीवन में कटुता आती है।
सप्तमेश जन्म लग्न से 6, 8, 12वें भाव में
हो अथवा नीच, शत्रुक्षेत्रीय या अस्त
हो तो वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा होगा। सप्तम
भाव में शनि पार्टनर को नीरस बनाता है, मंगल से
तनाव होता है, सूर्य आपस में मतभेद पैदा करता है। सप्तम
भाव में बुध-शनि दोनों नपुंसक
ग्रहों की युति व्यक्ति को भीरू (डरपोक)
तथा निरुत्साही बनाते हैं। यदि इन ग्रह स्थितियों के
कोई अन्य परिहार (काट) अथवा उपाय
जन्मकुंडली में उपलब्ध
नहीं हों तो विवाह नहीं करें।
बुध तथा शुक्र सप्तम भाव के कारक हैं। अत: बुध अश्लेषा,
ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्र में रहते हुए
अकेला सप्तम भाव में हो अथवा शुक्र-भरणी,
पूर्वा फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में रहते हुए
अकेला सप्तम भाव में हो तथा इन पर किसी अन्य
ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो तो त्रिखल दोष के
कारण सुखी दाम्पत्य जीवन में बाधक
बनेंगे।
कलत्र कारक शुक्र वैवाहिक तथा यौन संबंधों का नैसर्गिक कारक
है। अत: शुक्र बली, स्वराशि, उच्चगत
हो अथवा शुभ भावों (केंद्र-त्रिकोण) में स्थित हो तथा दूषित
प्रभाव से मुक्त हो तो अन्य दूषित ग्रहों का प्रभाव होते हुए
भी दाम्पत्य जीवन को सुखद बनाता है।
इसके विपरीत शुक्र के अशुभ प्रभाव में,
नीचगत, अथवा त्रिक भाव में होने पर दाम्पत्य
जीवन के लिए कष्टकारक हो सकता है।
इसी प्रकार शुक्र-मंगल
की युति अति कामुक और
उत्साही बनाती है। सूर्य तथा शनि के
साथ मिलकर शुक्र जातक की यौन शक्ति को कम
करके नीरसता लाता है। इन परिस्थितियों में शुक्र
ग्रह के उपाय मंत्र, दान, व्रत करने से लाभ मिलता है।
अष्टकूट गुण मिलान में ध्यान रखें
1 शुद्ध भकूट और नाड़ी दोष रहित 18 से अधिक
गुण हों तो विवाह शुभ मान्य होता है।
2 अशुद्ध भकूट (द्विद्र्वादश, नवपंचम, षड़ाष्टक) होने पर
भी यदि मित्र भकूट
की श्रेणी में हो तो 20 से अधिक गुण
होने पर विवाह श्रेष्ठ माना जाता है।
3 शत्रु षड़ाष्टक (6-8) भकूट दोष होने पर विवाह
नहीं करें। दाम्पत्य जीवन में अनिष्ट
की संभावना रहेगी।
4 मित्र षड़ाष्टक भकूट दोष में भी पति-पत्नि में
कलह होती रहती है। इसलिए
षड़ाष्टक भकूट दोष में विवाह करने से सदैव बचना चाहिए।
5 नाड़ी दोष के साथ यदि षड़ाष्टक भकूट दोष (चाहे
मित्र षड़ाष्टक
हो अथवा दोनों की राशियों का स्वामी एक
ही ग्रह हो) हो तो, विवाह
कदापि नहीं करें।
6 शुद्ध भकूट से गुण-दोष का परिहार स्वत:
ही हो जाता है।

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