ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से
ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार,
प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध
मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक
किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद
और चीनी से अलग-अलग अथवा सब
को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है।
तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से
भी अभिषेक करने का विधान है। इस प्रकार विविध
द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर
अभीष्ट
कामना की पूर्ति होती है।
इसमें कोई संदेह
नहीं कि किसी भी पुराने
नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत
ही उत्तम फल देता है। किन्तु यदि पारद के शिवलिंग
का अभिषेक किया जाय तो बहुत
ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम
मिलता है।
रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र
प्राप्त होता है। वेदों में विद्वानों ने
इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है।
पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त
होता है।
वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण
ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक
किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर
दिया था। जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया। भष्मासुर ने
शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से
किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
रुद्राभिषेक करने की तिथियां
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी,
पंचमी, अष्टमी, एकादशी,
द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष
की द्वितीया, पंचमी,
षष्ठी, नवमी, द्वादशी,
त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-
समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट
सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के
लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए
फलदायक है।
किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास
का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और
मनोवांछित फल प्राप्त होता है। प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष
की प्रतिपदा, अष्टमी,
अमावस्या तथा शुक्लपक्ष
की द्वितीया व नवमी के दिन
भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथि में
रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध
होती है।
कृष्णपक्ष की चतुर्थी,
एकादशी तथा शुक्लपक्ष
की पंचमी व
द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर
होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार में आनंद-
मंगल होता है।
कृष्णपक्ष की पंचमी,
द्वादशी तथा शुक्लपक्ष
की षष्ठी व
त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार
होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है। अत: इन तिथियों में
रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
कृष्णपक्ष की सप्तमी,
चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा,
अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में
समाधिस्थ रहते हैं। अतएव इन तिथियों में
किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने
वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर
उनकी साधना भंग होती है जिससे
अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।
कृष्णपक्ष की द्वितीया,
नवमी तथा शुक्लपक्ष
की तृतीया व दशमी में
महादेव देवताओं की सभा में
उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम
अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।
कृष्णपक्ष की तृतीया,
दशमी तथा शुक्लपक्ष
की चतुर्थी व एकादशी में
सदाशिव क्रीडारत रहते हैं। इन तिथियों में सकाम
रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।
कृष्णपक्ष की षष्ठी,
त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष
की सप्तमी व चतुर्दशी में
रुद्रदेव भोजन करते हैं। इन तिथियों में सांसारिक कामना से
किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।
ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-
प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए
बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत:
शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न
करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और
उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त
हो जाती हैं। अतः हम यह कह सकते हैं
कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं
श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है
की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव
साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है। संसार में
ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है
जो हमें रुद्राभिषेक से प्राप्त न हो सके।
सुख-शांति-वैभव और मोक्ष का प्रतीक महाशिवरात्रि
साथ ही महाशिवरात्रि पूजन का प्रभाव हमारे
जीवन पर बड़ा ही व्यापक रूप से
पड़ता है। सदाशिव प्रसन्न होकर हमें धन-धान्य, सुख-
समृधि, यश तथा वृद्धि देते हैं। महाशिवरात्रि पूजन को विधिवत
करने से हमें सदाशिव का सानिध्य प्राप्त होता है और
उनकी महती कृपा से हमारा कल्याण
होता है।
शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता में बताया गया है
कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष
दोनों ही प्राप्त होते हैं। देवताओं के पूछने पर
भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य
की प्राप्ति तथा मोक्ष
की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि परम
कल्याणकारी व्रत है जिसके विधिपूर्वक करने से
व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे
इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, धन, सौभाग्य,
समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है। पूजन करने
वाला अपने तप-साधना के बल पर मोक्ष
की प्राप्ति करता है। परम
कल्याणकारी व्रत महाशिवरात्रि के व्रत को विधि-
पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत
होता है और उसे इच्छित फल-प्राप्ति, पति, पत्नी,
पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त
होती है तथा वह जीवन में गति और
मोक्ष को प्राप्त करते हैं और चिरंतर-काल तक शिव-
स्नेही बने रहते हैं और शिव-आशीष
प्राप्त करते हुए जीवन व्यतीत करते
हैं।
परोपकार करने के लिए महाशिवरात्रि का दिवस
होना भी आवश्यक नहीं है। पुराण में
चार प्रकार के शिवरात्रि पूजन का वर्णन है। मासिक शिवरात्रि,
प्रथम आदि शिवरात्रि, तथा महाशिवरात्रि। पुराण वर्णित अंतिम
शिवरात्रि है-नित्य शिवरात्रि। वस्तुत: प्रत्येक
रात्रि ही `शिवरात्रि` है अगर हम उन परम
कल्याणकारी आशुतोष भगवान में स्वयं
को लीन कर दें तथा कल्याण मार्ग का अनुसरण करें,
वही शिवरात्रि का सच्चा व्रत है।
महाशिवरात्रि का व्रत मनोवांछित अभिलाषाओं को पूर्ण
करनेवाली तथा परम कल्याणकारी है।
देवों-के-देव महादेव
की प्रसन्नता की कामना लिये हुए
जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनका अभीष्ट
मनोरथ पूर्ण होता है तथा वे हमेशा-हमेशा के लिया शिव-
सानिध्यता को प्राप्त कर लेते हैं।
ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार,
प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध
मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक
किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद
और चीनी से अलग-अलग अथवा सब
को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है।
तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से
भी अभिषेक करने का विधान है। इस प्रकार विविध
द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर
अभीष्ट
कामना की पूर्ति होती है।
इसमें कोई संदेह
नहीं कि किसी भी पुराने
नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत
ही उत्तम फल देता है। किन्तु यदि पारद के शिवलिंग
का अभिषेक किया जाय तो बहुत
ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम
मिलता है।
रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र
प्राप्त होता है। वेदों में विद्वानों ने
इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है।
पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त
होता है।
वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण
ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक
किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर
दिया था। जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया। भष्मासुर ने
शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से
किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
रुद्राभिषेक करने की तिथियां
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी,
पंचमी, अष्टमी, एकादशी,
द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष
की द्वितीया, पंचमी,
षष्ठी, नवमी, द्वादशी,
त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-
समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट
सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के
लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए
फलदायक है।
किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास
का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और
मनोवांछित फल प्राप्त होता है। प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष
की प्रतिपदा, अष्टमी,
अमावस्या तथा शुक्लपक्ष
की द्वितीया व नवमी के दिन
भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथि में
रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध
होती है।
कृष्णपक्ष की चतुर्थी,
एकादशी तथा शुक्लपक्ष
की पंचमी व
द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर
होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार में आनंद-
मंगल होता है।
कृष्णपक्ष की पंचमी,
द्वादशी तथा शुक्लपक्ष
की षष्ठी व
त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार
होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है। अत: इन तिथियों में
रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
कृष्णपक्ष की सप्तमी,
चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा,
अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में
समाधिस्थ रहते हैं। अतएव इन तिथियों में
किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने
वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर
उनकी साधना भंग होती है जिससे
अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।
कृष्णपक्ष की द्वितीया,
नवमी तथा शुक्लपक्ष
की तृतीया व दशमी में
महादेव देवताओं की सभा में
उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम
अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।
कृष्णपक्ष की तृतीया,
दशमी तथा शुक्लपक्ष
की चतुर्थी व एकादशी में
सदाशिव क्रीडारत रहते हैं। इन तिथियों में सकाम
रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।
कृष्णपक्ष की षष्ठी,
त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष
की सप्तमी व चतुर्दशी में
रुद्रदेव भोजन करते हैं। इन तिथियों में सांसारिक कामना से
किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।
ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-
प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए
बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत:
शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न
करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और
उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त
हो जाती हैं। अतः हम यह कह सकते हैं
कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं
श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है
की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव
साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है। संसार में
ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है
जो हमें रुद्राभिषेक से प्राप्त न हो सके।
सुख-शांति-वैभव और मोक्ष का प्रतीक महाशिवरात्रि
साथ ही महाशिवरात्रि पूजन का प्रभाव हमारे
जीवन पर बड़ा ही व्यापक रूप से
पड़ता है। सदाशिव प्रसन्न होकर हमें धन-धान्य, सुख-
समृधि, यश तथा वृद्धि देते हैं। महाशिवरात्रि पूजन को विधिवत
करने से हमें सदाशिव का सानिध्य प्राप्त होता है और
उनकी महती कृपा से हमारा कल्याण
होता है।
शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता में बताया गया है
कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष
दोनों ही प्राप्त होते हैं। देवताओं के पूछने पर
भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य
की प्राप्ति तथा मोक्ष
की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि परम
कल्याणकारी व्रत है जिसके विधिपूर्वक करने से
व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे
इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, धन, सौभाग्य,
समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है। पूजन करने
वाला अपने तप-साधना के बल पर मोक्ष
की प्राप्ति करता है। परम
कल्याणकारी व्रत महाशिवरात्रि के व्रत को विधि-
पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत
होता है और उसे इच्छित फल-प्राप्ति, पति, पत्नी,
पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त
होती है तथा वह जीवन में गति और
मोक्ष को प्राप्त करते हैं और चिरंतर-काल तक शिव-
स्नेही बने रहते हैं और शिव-आशीष
प्राप्त करते हुए जीवन व्यतीत करते
हैं।
परोपकार करने के लिए महाशिवरात्रि का दिवस
होना भी आवश्यक नहीं है। पुराण में
चार प्रकार के शिवरात्रि पूजन का वर्णन है। मासिक शिवरात्रि,
प्रथम आदि शिवरात्रि, तथा महाशिवरात्रि। पुराण वर्णित अंतिम
शिवरात्रि है-नित्य शिवरात्रि। वस्तुत: प्रत्येक
रात्रि ही `शिवरात्रि` है अगर हम उन परम
कल्याणकारी आशुतोष भगवान में स्वयं
को लीन कर दें तथा कल्याण मार्ग का अनुसरण करें,
वही शिवरात्रि का सच्चा व्रत है।
महाशिवरात्रि का व्रत मनोवांछित अभिलाषाओं को पूर्ण
करनेवाली तथा परम कल्याणकारी है।
देवों-के-देव महादेव
की प्रसन्नता की कामना लिये हुए
जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनका अभीष्ट
मनोरथ पूर्ण होता है तथा वे हमेशा-हमेशा के लिया शिव-
सानिध्यता को प्राप्त कर लेते हैं।
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