यदि आप यौन
दुर्बलता आदि से ग्रस्त हैं तो उसके ज्योतिषीय
उपाय क्या हो सकते हैं. ज्योतिष बहुत
ही विस्तृत विज्ञान है और मनुष्य
की हर बात को इस से समझा जा सकता है. आज
के युग में जिसमें की शुक्र
की प्रधानता बढती जा रही है ,
हम रोज़मर्रा के जीवन में देखते है
की सम्भोग शक्ति से सम्बंधित दावा और
मशीनें बढती जा रही है
जो की कुछ नहीं है ,
लोगों की शर्म का मनोवैज्ञानिक आर्थिक दोहन है.
सम्भोग
की समयसीमा की अधिकता पौरुष
का मार्का बन गयी है. जब हम
किसी दवाई की दूकान में जाते हैं तो सामने
ही हमें पुरुषों की सम्भोग शक्ति बढाने
वाले तेल , पाउडर , कैप्सूल , गोली और
स्त्रीयों के वक्ष बढाने वाले उत्पाद
दीखते हैं , जीवन रक्षक और
आवश्यक दवा पीछे
कहीं पड़ी रहती है. लोग
भी अंधों की तरह एक के बाद एक
नुस्खा आजमा रहे हैं बिना किसी सफलता के ,
सम्भोग आज के जीवन
की प्राथमिकता बन गया है . हमारे शास्त्रों में
सम्भोग के लिए भी विधान है किन्तु उसको भूलकर
लोग अपनी कामेच्छा शांत करने में लगे हुए है .
इन सबसे होता यह है की जो था वोह
भी चला जाता है, ज्योतिष में इन सबके लिए
भी उपाय हैं जो की देर सबेर
फायदा भी करते हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से
सहारा भी देते हैं. सभी ग्रहों के लिंग
ज्योतिष में निर्धारित है जो की निम्न हैं :
१) सूर्य : पुरुष
२) चन्द्र : स्त्री
३) मंगल : पुरुष
४) बुध : नपुंसक , किन्तु अन्य
ग्रहों की युति दृष्टि से अन्य योनी .
५) गुरु : पुरुष
६) शुक्र : स्त्री
७) शनि : नपुंसक
ग्रहों के अनुसार
ही राशियों का भी निर्धारण है जैसे हर
दूसरी राशी स्त्री राशी है ,
अतः मेष पुरुष और वृषभ
स्त्री राशी हुई ,
इसी प्रकार से मीन तक
लीजिये. स्वाभाविक रूप से जब एक पुरुष गृह
स्त्री राशी में या स्त्री गृह
पुरुष राशी में विचरण करेगा तो भाव के फल में फर्क
पड़ेगा. यह सामान्य बात है . कुंडली के सप्तम
और अष्टम भाव सेक्स के प्रकार और यौनांगों से सम्बंधित होते
हैं. नपुंसकता आमतौर पर मनोवैज्ञानिक
दुर्बलता होती है और यह ठीक
करी जा सकती है बशर्ते व्यक्ति के
सम्बंधित अंग किसी बिमारी या दुर्घटना के
कारण नष्ट न हो गए हों.
कुछ योग जिनसे नपुंसकता आ सकती है ,
१) राहू या शनि द्वित्य भाव में हों , बुध अष्टम में तथा चन्द्रम
द्वादश में हो ,
२) यदि चन्द्रमा पापकर्तरी में हो तथा अष्टम भाव
में बुध या केतु हों ,
३) यदि शनि और बुध अष्टम भाव में हों तथा चन्द्र पाप
कर्तरी में हो ,
यह कुछ योग हैं जिनसे यौन दुर्बलता आ
सकती है किन्तु यह मनोवैज्ञानिक और अस्थिर
होती है ना की सदा के लिए . इन
अंगों की प्रकृति अश्तामाधिपति के अनुसार इस प्रकार
हो सकती है ,
१) यदि सूर्य अष्टमेश है तो व्यक्ति के अंग अछे होंगे और
ठीक से कार्य करेंगे ,
२) यदि चन्द्र है तो व्यक्ति के अंग अछे होंगे किन्तु वह
सेक्स को लेकर मूडी होगा ,
३) यदि मंगल है तो व्यक्ति के अंग छोटे होंगे किन्तु वह
बहुत ही कामुक होगा ,
४) यदि बुध है तो व्यक्ति सेक्स को लेकर हीन
भावना से ग्रस्त होगा ,
५) यदि गुरु है तो व्यक्ति व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ होगा ,
६) यदि शुक्र है तो व्यक्ति के अंग सुंदर होंगे और
उसकी काम क्रिया में तीव्र
रूचि रहेगी ,
७) यदि शनि है तो व्यक्ति के अंग की लम्बाई
अधिक होगी किन्तु क्रिया में शिथिलता और विकृति रह
सकती है ,
अष्टम भाव में बैठे ग्रहों के अनुसार फल में परिवर्तन आ
जायेगा, बुध यदि अष्टम में हो ,
स्वराशी का ना हो और उस पर कोई शुभ
दृष्टि भी न हो तो व्यक्ति काम क्रिया में असफल
रहता है, राहू के होने से व्यक्ति अत्यंत
भोगवादी हो जाता है तथा केतु से उसके अन्दर
तीव्र
उत्कंठा बनी रहती है.
व्यक्ति का यौन व्यवहार सप्तम भाव से प्रदर्शित
होता है ,सप्तम भाव और उसमें बैठे ग्रहों के कारण फल में
अंतर आता जाता है ,
१) सप्तम में यदि मंगल हो तो या दृष्टि हो तो व्यक्ति काम
क्रिया में क्रोध का प्रदर्शन करता है और सारा आनंदं नष्ट कर
देता है ,
२) यदि गुरु हो तो व्यक्ति आदर्श क्रिया संपन्न करता है ,
३) यदि शनि हो व्यक्ति का बहुत
ही हीन द्रष्टिकोण होता है और
वह जानवरों जैसा व्यवहार भी करता है ,
४) यदि राहू हो तो व्यक्ति ऐसे बर्ताव करता है जैसे कुछ
चुरा रहा हो ,
५) यदि केतु हो तो व्यक्ति शीघ स्खलन से ग्रस्त
होता है ,
६) यदि शुक्र हो तो व्यक्ति पूर्ण आनंद प्राप्त करता है ,
७) यदि बुध हो तो व्यक्ति नसों में दुर्बलता और
जल्दी थक जाने से ग्रस्त होता है ,
८) यदि चन्द्र अष्टम मैं हो तो व्यक्ति काम क्रिया में बहुत
आनंद देता है किन्तु चन्द्र
की दृष्टि निष्प्रभावी होती है ,
९) यदि सूर्य हो तो व्यक्ति क्रिया में अति उत्तेजना का प्रदर्शन
करता है
दुर्बलता आदि से ग्रस्त हैं तो उसके ज्योतिषीय
उपाय क्या हो सकते हैं. ज्योतिष बहुत
ही विस्तृत विज्ञान है और मनुष्य
की हर बात को इस से समझा जा सकता है. आज
के युग में जिसमें की शुक्र
की प्रधानता बढती जा रही है ,
हम रोज़मर्रा के जीवन में देखते है
की सम्भोग शक्ति से सम्बंधित दावा और
मशीनें बढती जा रही है
जो की कुछ नहीं है ,
लोगों की शर्म का मनोवैज्ञानिक आर्थिक दोहन है.
सम्भोग
की समयसीमा की अधिकता पौरुष
का मार्का बन गयी है. जब हम
किसी दवाई की दूकान में जाते हैं तो सामने
ही हमें पुरुषों की सम्भोग शक्ति बढाने
वाले तेल , पाउडर , कैप्सूल , गोली और
स्त्रीयों के वक्ष बढाने वाले उत्पाद
दीखते हैं , जीवन रक्षक और
आवश्यक दवा पीछे
कहीं पड़ी रहती है. लोग
भी अंधों की तरह एक के बाद एक
नुस्खा आजमा रहे हैं बिना किसी सफलता के ,
सम्भोग आज के जीवन
की प्राथमिकता बन गया है . हमारे शास्त्रों में
सम्भोग के लिए भी विधान है किन्तु उसको भूलकर
लोग अपनी कामेच्छा शांत करने में लगे हुए है .
इन सबसे होता यह है की जो था वोह
भी चला जाता है, ज्योतिष में इन सबके लिए
भी उपाय हैं जो की देर सबेर
फायदा भी करते हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से
सहारा भी देते हैं. सभी ग्रहों के लिंग
ज्योतिष में निर्धारित है जो की निम्न हैं :
१) सूर्य : पुरुष
२) चन्द्र : स्त्री
३) मंगल : पुरुष
४) बुध : नपुंसक , किन्तु अन्य
ग्रहों की युति दृष्टि से अन्य योनी .
५) गुरु : पुरुष
६) शुक्र : स्त्री
७) शनि : नपुंसक
ग्रहों के अनुसार
ही राशियों का भी निर्धारण है जैसे हर
दूसरी राशी स्त्री राशी है ,
अतः मेष पुरुष और वृषभ
स्त्री राशी हुई ,
इसी प्रकार से मीन तक
लीजिये. स्वाभाविक रूप से जब एक पुरुष गृह
स्त्री राशी में या स्त्री गृह
पुरुष राशी में विचरण करेगा तो भाव के फल में फर्क
पड़ेगा. यह सामान्य बात है . कुंडली के सप्तम
और अष्टम भाव सेक्स के प्रकार और यौनांगों से सम्बंधित होते
हैं. नपुंसकता आमतौर पर मनोवैज्ञानिक
दुर्बलता होती है और यह ठीक
करी जा सकती है बशर्ते व्यक्ति के
सम्बंधित अंग किसी बिमारी या दुर्घटना के
कारण नष्ट न हो गए हों.
कुछ योग जिनसे नपुंसकता आ सकती है ,
१) राहू या शनि द्वित्य भाव में हों , बुध अष्टम में तथा चन्द्रम
द्वादश में हो ,
२) यदि चन्द्रमा पापकर्तरी में हो तथा अष्टम भाव
में बुध या केतु हों ,
३) यदि शनि और बुध अष्टम भाव में हों तथा चन्द्र पाप
कर्तरी में हो ,
यह कुछ योग हैं जिनसे यौन दुर्बलता आ
सकती है किन्तु यह मनोवैज्ञानिक और अस्थिर
होती है ना की सदा के लिए . इन
अंगों की प्रकृति अश्तामाधिपति के अनुसार इस प्रकार
हो सकती है ,
१) यदि सूर्य अष्टमेश है तो व्यक्ति के अंग अछे होंगे और
ठीक से कार्य करेंगे ,
२) यदि चन्द्र है तो व्यक्ति के अंग अछे होंगे किन्तु वह
सेक्स को लेकर मूडी होगा ,
३) यदि मंगल है तो व्यक्ति के अंग छोटे होंगे किन्तु वह
बहुत ही कामुक होगा ,
४) यदि बुध है तो व्यक्ति सेक्स को लेकर हीन
भावना से ग्रस्त होगा ,
५) यदि गुरु है तो व्यक्ति व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ होगा ,
६) यदि शुक्र है तो व्यक्ति के अंग सुंदर होंगे और
उसकी काम क्रिया में तीव्र
रूचि रहेगी ,
७) यदि शनि है तो व्यक्ति के अंग की लम्बाई
अधिक होगी किन्तु क्रिया में शिथिलता और विकृति रह
सकती है ,
अष्टम भाव में बैठे ग्रहों के अनुसार फल में परिवर्तन आ
जायेगा, बुध यदि अष्टम में हो ,
स्वराशी का ना हो और उस पर कोई शुभ
दृष्टि भी न हो तो व्यक्ति काम क्रिया में असफल
रहता है, राहू के होने से व्यक्ति अत्यंत
भोगवादी हो जाता है तथा केतु से उसके अन्दर
तीव्र
उत्कंठा बनी रहती है.
व्यक्ति का यौन व्यवहार सप्तम भाव से प्रदर्शित
होता है ,सप्तम भाव और उसमें बैठे ग्रहों के कारण फल में
अंतर आता जाता है ,
१) सप्तम में यदि मंगल हो तो या दृष्टि हो तो व्यक्ति काम
क्रिया में क्रोध का प्रदर्शन करता है और सारा आनंदं नष्ट कर
देता है ,
२) यदि गुरु हो तो व्यक्ति आदर्श क्रिया संपन्न करता है ,
३) यदि शनि हो व्यक्ति का बहुत
ही हीन द्रष्टिकोण होता है और
वह जानवरों जैसा व्यवहार भी करता है ,
४) यदि राहू हो तो व्यक्ति ऐसे बर्ताव करता है जैसे कुछ
चुरा रहा हो ,
५) यदि केतु हो तो व्यक्ति शीघ स्खलन से ग्रस्त
होता है ,
६) यदि शुक्र हो तो व्यक्ति पूर्ण आनंद प्राप्त करता है ,
७) यदि बुध हो तो व्यक्ति नसों में दुर्बलता और
जल्दी थक जाने से ग्रस्त होता है ,
८) यदि चन्द्र अष्टम मैं हो तो व्यक्ति काम क्रिया में बहुत
आनंद देता है किन्तु चन्द्र
की दृष्टि निष्प्रभावी होती है ,
९) यदि सूर्य हो तो व्यक्ति क्रिया में अति उत्तेजना का प्रदर्शन
करता है
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