तीव्र शत्रुनाशक भद्रकाली साधना:-
शत्रु किसके नहीं होते..| और आज के युग में तो ज्ञात से अधिक गुप्त एवं अज्ञात शत्रु हैं..| आज के समय में शत्रु पक्ष कई प्रकार से हानि पहुँचाने की कोशिश करता है...| ख़ास कर तंत्र प्रहारों से..| और ऐसे शत्रु मुख्यतः अज्ञात ही होते हैं..| ऐसे समय में ही वरदान के सामान है ये तीव्र शत्रुनाशक भद्रकाली साधना..| इस साधना से साधक के चारो ओर भद्रकाली का कवच बन जाता है..| शत्रु पक्ष का विलय एवं विध्वंस हो जाता है..| शत्रु पक्ष का किया हुआ कोई भी पर-प्रयोग साधक का स्पर्श भी नहीं कर पाता | किसी भी स्थान पे साधक की उपस्थिति मात्र से शत्रु पक्ष पलायन कर जाता है..| इस साधना की सबसे बड़ी विशेषता ये है की ये नित्य साधना है..| इसलिए श्रमसाध्य नहीं है..||
विधि:-
जप संख्या:- नित्य एक माला |
मंत्र:- || क्रीं क्रीं क्रीं उग्रप्रभे विकट-दंष्ट्रे परपक्षं मोहय मोहय, पच पच, दह दह, हन हन, मारय मारय ये मां हिंसितु-मुद्यता योगिनी-चैक्रस्तान वारय वारय, छिंधि छिंधि, भिन्धि भिन्धि, करालिनी ग्रहण ग्रहण ॐ क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्फूर स्फूर, पूर पूर, पून पून, चूल्व चूल्व, धक् धक्, धम धम, मारय मारय सर्वजगत वशमानय ॐ नमः स्वाहा ||
माता काली के चित्र या विग्रह का पंचोपचार पूजन करें और वीर भाव से जप करें..| ये साधना पूर्ण रूप से सौम्य और उपयोगी है.||
यह मंत्र शत्रुओं के लिए अत्यंत तीक्ष्ण एवं कालदंड के समान प्रभावशाली एवं साधक के लिए अत्यंत उपयोगी है..| इस मंत्र को स्वयं भगवन शिव ने माता पार्वती को बताया था...| किसी परेशानी विशेष के लिए इस मंत्र रुपी कवच का अनुष्ठान भी किया जाता है..| किसी को जरूरत हुई तो उसका विधान बता दूंगा |
जय दत्तात्रेय...जय जय बगलामुखी...||
शत्रु किसके नहीं होते..| और आज के युग में तो ज्ञात से अधिक गुप्त एवं अज्ञात शत्रु हैं..| आज के समय में शत्रु पक्ष कई प्रकार से हानि पहुँचाने की कोशिश करता है...| ख़ास कर तंत्र प्रहारों से..| और ऐसे शत्रु मुख्यतः अज्ञात ही होते हैं..| ऐसे समय में ही वरदान के सामान है ये तीव्र शत्रुनाशक भद्रकाली साधना..| इस साधना से साधक के चारो ओर भद्रकाली का कवच बन जाता है..| शत्रु पक्ष का विलय एवं विध्वंस हो जाता है..| शत्रु पक्ष का किया हुआ कोई भी पर-प्रयोग साधक का स्पर्श भी नहीं कर पाता | किसी भी स्थान पे साधक की उपस्थिति मात्र से शत्रु पक्ष पलायन कर जाता है..| इस साधना की सबसे बड़ी विशेषता ये है की ये नित्य साधना है..| इसलिए श्रमसाध्य नहीं है..||
विधि:-
जप संख्या:- नित्य एक माला |
मंत्र:- || क्रीं क्रीं क्रीं उग्रप्रभे विकट-दंष्ट्रे परपक्षं मोहय मोहय, पच पच, दह दह, हन हन, मारय मारय ये मां हिंसितु-मुद्यता योगिनी-चैक्रस्तान वारय वारय, छिंधि छिंधि, भिन्धि भिन्धि, करालिनी ग्रहण ग्रहण ॐ क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्फूर स्फूर, पूर पूर, पून पून, चूल्व चूल्व, धक् धक्, धम धम, मारय मारय सर्वजगत वशमानय ॐ नमः स्वाहा ||
माता काली के चित्र या विग्रह का पंचोपचार पूजन करें और वीर भाव से जप करें..| ये साधना पूर्ण रूप से सौम्य और उपयोगी है.||
यह मंत्र शत्रुओं के लिए अत्यंत तीक्ष्ण एवं कालदंड के समान प्रभावशाली एवं साधक के लिए अत्यंत उपयोगी है..| इस मंत्र को स्वयं भगवन शिव ने माता पार्वती को बताया था...| किसी परेशानी विशेष के लिए इस मंत्र रुपी कवच का अनुष्ठान भी किया जाता है..| किसी को जरूरत हुई तो उसका विधान बता दूंगा |
जय दत्तात्रेय...जय जय बगलामुखी...||
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