Friday, May 30, 2014

क्या है ज्योतिषी

क्या है ज्योतिषी ?------
वाराह मिहिर वृहद सहिंता के अनुसार
ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले
व्यक्ति को ज्योतिषी, ज्योतिर्विद, कालज्ञ,
त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ आदि शब्दों से संबोधित
किया जाता है। सांवत्सर, गुणक देवज्ञ, ज्योतिषिक,
ज्योतिषी, मोहूर्तिक, सांवत्सरिक आदि शब्द
भी ज्योतिषी के लिए प्रयुक्त किए जाते
हैं।और आधुनिक युग
मे astrologer याastroशब्द प्रयुक्त किये जाते है !
ज्योतिषी के लक्षण
एक ज्योतिषी के लक्षण बताते हुए आचार्य
वराहमिहिर कहते हैं कि ज्योतिषी को देखने में
प्रिय, वाणी में संयत, सत्यवादी,
व्यवहार में विनम्र होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वह
दुर्व्यसनों से दूर, पवित्र अन्तःकरण वाला, चतुर, सभा में
आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला, प्रतिभाशाली,
देशकाल व परिस्थिति को जानने वाला, निर्मल हृदय वाला, ग्रह
शान्ति के उपायों को जानने वाला, मन्त्रपाठ में दक्ष, पौष्टिक कर्म
को जानने वाला, अभिचार मोहन विद्या को जानने वाला, देवपूजन,
व्रत-उपवासों को निरंतर, प्राकृतिक शुभाशुभों के संकेतों को समझाने
वाला, ग्रहों की गणित, सिद्धांत संहिता व
होरा तीनों में निपुण ग्रंथी के अर्थ
को जानने वाला व मृदुभाषी होना चाहिए।
सामुद्रिक शास्त्र में ज्योतिषी के लिए हिदायत
दी गई है कि सूर्योदय के पहले, सूर्यास्त के बाद,
मार्ग में चलते हुए, जहाँ हँसी-मनोविनोद होता हो,
उस स्थान में एवं
अज्ञानी लोगों की सभा में
भविष्यवाणी न करें।
ज्योतिषी को अधिकतम अपने स्थान पर बैठकर
जिज्ञासु व्यक्ति की दक्षिणा का फल, पुष्प व पुण्य
भाव को प्राप्त करने के पश्चात अपने ईष्ट को ध्यान करके
ही हस्तरेखाओं एवं कुण्डलियों पर फलादेश
करना चाहिए क्योंकि ईश्वर, ज्योतिषी व राजा के पास
खाली हाथ
आया व्यक्ति खाली ही जाता है।

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