मनुष्य के सोलह संस्कार
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1 गर्भाधान संस्कारः संतान प्राप्ति के लिए यह
संस्कारकिया जाता है। इसके लिए स्त्री-पुरूष
को परमात्मा का निवेदन वसुमिरण प्रातः निष्ठा से करके फिर सायं
निवेदन व सुमिरण करकेरात्रि मे गर्भ में वीर्य स्थापित
करना चाहिए। दोनों को सच्चेनाम का इसी तरह
अभ्यास करते हुए गर्भाधान संस्कारकरना चाहिए।
2 पुंसवन संस्कारः गर्भाधान सफल होने के बाद अर्थात् एक
महीने केबाद फिर हवन उसवार
की लकडि़यो से करें। यह संस्कार गर्भपात सेबचाव
के लिए किया जाता है।
3 सीमांतोन्नयन संस्कारः संतान का विकास व्यवस्थित
हो संतानकी (गर्भ) सारी बाधाओं को दूर
करने के लिए यह संस्कारकिया जाता है।
4 जातकर्म संस्कारः प्रसव के बाद शिशु को स्नान
आदि कराकरपिता की गोद मे दिया जाता है। पिता पंच
ओंकार के साथ शिशुके जिह्ना पर ऊँ लिखता है। फिर अकेले
बैठकर हवन करता है।
5 नामकरण संस्कारः माता-पिता सवा महीने के बाद
श्री पूर्णगुरूजी का पूजन करते हैं और
बच्चे का नाम निर्धारित करके बच्चे केकान में बोलते हैं।
6 निष्क्रमण संस्कारः जन्म के पाँचवें महीने मे
माता-पिता हवनकरके बच्चे को बाहर प्रकृति से प्रथम भेंट
कराते हैं।
7 अन्नप्राशन संस्कारः छठे महीने में माता-
पिता हवन करके बच्चेको अन्न खिलाते हैं। ब्राहम्णों को भोजन
कराते हैं।
8 चौलकर्म संस्कारः 5 वर्ष की आयु में बच्चे के
सिर के सारे बालपिता काटता है, माॅं हवन करती है।
9 कर्णभेदन संस्कारः 5 वर्ष होने पर बच्चे के कानों मे
छेदकिया जाता है। सोने
या तुलसी की लकड़ी कानों मे
पहनाते हैं।
10 विद्यारंभ संस्कारः 5 वर्ष मे माता-
पिता औरबच्चा तीनों हवन करते हैं। बच्चे से
पहले ऊँ लिखवाते हैं। फिरश्री पूर्णगुरू का नाम
लिखवाते हैं।
11 उपनयन संस्कारः ग्यारहवें वर्ष मे माता-
पिता बच्चेको श्री पूर्णगुरू से
दीक्षा दिलवाते हैं। पूर्णगुरू बच्चे को मार्ग दर्शनदेते
हैं।
12 वेदारंभ संस्कारः बच्चा शिष्य का रूप लेने के बाद
पहली बारस्वयं श्री पूर्णगुरू का पूजन
करता है, हवन करता है।
13 केशांत संस्कारः दाढ़ी, मूँछ व सिर के बाल कटवाकर
एक दिनमौन रहकर पूरे दिन श्री पूर्णगुरू का पूजन
करता हैं।
14 सभावर्तन संस्कारः पूर्णगुरू से आज्ञा लेकर माता-पिता के
साथहवन करके वीर्य रक्षा का वर्त समाप्त कर
ग्रहस्थ में प्रवेश करता है।
15 विवाह संस्कारः इसमे स्त्री-पुरूष मृत्यु तक साथ
रहने का वचन देतेहैं। बिना क्लेश के साथ रहने का वचन देते
हैं। धर्म की रक्षा ही शपथलेते हैं।
16 अंत्येष्ठि संस्कारः ये अन्तिम संस्कार है।
शरीर छोड़ने के 13 वेंदिन हवन किया जाता है
तथा 13 दिनों तक लगातार पंच ओंकारकिया जाता है।
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1 गर्भाधान संस्कारः संतान प्राप्ति के लिए यह
संस्कारकिया जाता है। इसके लिए स्त्री-पुरूष
को परमात्मा का निवेदन वसुमिरण प्रातः निष्ठा से करके फिर सायं
निवेदन व सुमिरण करकेरात्रि मे गर्भ में वीर्य स्थापित
करना चाहिए। दोनों को सच्चेनाम का इसी तरह
अभ्यास करते हुए गर्भाधान संस्कारकरना चाहिए।
2 पुंसवन संस्कारः गर्भाधान सफल होने के बाद अर्थात् एक
महीने केबाद फिर हवन उसवार
की लकडि़यो से करें। यह संस्कार गर्भपात सेबचाव
के लिए किया जाता है।
3 सीमांतोन्नयन संस्कारः संतान का विकास व्यवस्थित
हो संतानकी (गर्भ) सारी बाधाओं को दूर
करने के लिए यह संस्कारकिया जाता है।
4 जातकर्म संस्कारः प्रसव के बाद शिशु को स्नान
आदि कराकरपिता की गोद मे दिया जाता है। पिता पंच
ओंकार के साथ शिशुके जिह्ना पर ऊँ लिखता है। फिर अकेले
बैठकर हवन करता है।
5 नामकरण संस्कारः माता-पिता सवा महीने के बाद
श्री पूर्णगुरूजी का पूजन करते हैं और
बच्चे का नाम निर्धारित करके बच्चे केकान में बोलते हैं।
6 निष्क्रमण संस्कारः जन्म के पाँचवें महीने मे
माता-पिता हवनकरके बच्चे को बाहर प्रकृति से प्रथम भेंट
कराते हैं।
7 अन्नप्राशन संस्कारः छठे महीने में माता-
पिता हवन करके बच्चेको अन्न खिलाते हैं। ब्राहम्णों को भोजन
कराते हैं।
8 चौलकर्म संस्कारः 5 वर्ष की आयु में बच्चे के
सिर के सारे बालपिता काटता है, माॅं हवन करती है।
9 कर्णभेदन संस्कारः 5 वर्ष होने पर बच्चे के कानों मे
छेदकिया जाता है। सोने
या तुलसी की लकड़ी कानों मे
पहनाते हैं।
10 विद्यारंभ संस्कारः 5 वर्ष मे माता-
पिता औरबच्चा तीनों हवन करते हैं। बच्चे से
पहले ऊँ लिखवाते हैं। फिरश्री पूर्णगुरू का नाम
लिखवाते हैं।
11 उपनयन संस्कारः ग्यारहवें वर्ष मे माता-
पिता बच्चेको श्री पूर्णगुरू से
दीक्षा दिलवाते हैं। पूर्णगुरू बच्चे को मार्ग दर्शनदेते
हैं।
12 वेदारंभ संस्कारः बच्चा शिष्य का रूप लेने के बाद
पहली बारस्वयं श्री पूर्णगुरू का पूजन
करता है, हवन करता है।
13 केशांत संस्कारः दाढ़ी, मूँछ व सिर के बाल कटवाकर
एक दिनमौन रहकर पूरे दिन श्री पूर्णगुरू का पूजन
करता हैं।
14 सभावर्तन संस्कारः पूर्णगुरू से आज्ञा लेकर माता-पिता के
साथहवन करके वीर्य रक्षा का वर्त समाप्त कर
ग्रहस्थ में प्रवेश करता है।
15 विवाह संस्कारः इसमे स्त्री-पुरूष मृत्यु तक साथ
रहने का वचन देतेहैं। बिना क्लेश के साथ रहने का वचन देते
हैं। धर्म की रक्षा ही शपथलेते हैं।
16 अंत्येष्ठि संस्कारः ये अन्तिम संस्कार है।
शरीर छोड़ने के 13 वेंदिन हवन किया जाता है
तथा 13 दिनों तक लगातार पंच ओंकारकिया जाता है।
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