आरती मंगलदीप क्यों?
यदि शाम के समय हम मंदिर में गए हों... और
आरती का समय हो गया हो... तो अवश्य
आरती व मंगलदीप उतारने चाहिए।
आरती से मन की अरति-अस्वस्थता दूर
हो जाती है... मन एवं प्राण परमात्मा के प्रेम के
लिए आर्त्त बनते हैं... आर्द्र बन जाते हैं।
आरती की थाली दोनों हाथों में
लेकर बहुमान के साथ भावविभोर होकर आरती बाएँ
हाथ की तरफ से ऊपर उठाएँ और दाहिने हाथ
की तरफ से नीचे लाकर वापस ऊपर
उठाएँ। इस तरह आरती का गान गाने के साथ-साथ
ढाई बार ऊपर से नीचे घुमाना है। ढाई वर्तुल
कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने
का प्रतीक है।
आरती होने के पश्चात मंगलदीप उतारने
का है। वास्तव में मंगलदीप
अग्नि की ऊपर
उठती ज्वाला भी भाँति ऊपर-
नीचे, नीचे-ऊपर लाना-ले जाना है
(वर्तुलाकार नहीं।) पर फिलहाल
आरती की भाँति ही वर्तुलाकार
घुमाने का रिवाज है। यदि अन्य जन उपस्थित हों तो उन्हें
मंगलदीप उतारने का मौका दें
यदि शाम के समय हम मंदिर में गए हों... और
आरती का समय हो गया हो... तो अवश्य
आरती व मंगलदीप उतारने चाहिए।
आरती से मन की अरति-अस्वस्थता दूर
हो जाती है... मन एवं प्राण परमात्मा के प्रेम के
लिए आर्त्त बनते हैं... आर्द्र बन जाते हैं।
आरती की थाली दोनों हाथों में
लेकर बहुमान के साथ भावविभोर होकर आरती बाएँ
हाथ की तरफ से ऊपर उठाएँ और दाहिने हाथ
की तरफ से नीचे लाकर वापस ऊपर
उठाएँ। इस तरह आरती का गान गाने के साथ-साथ
ढाई बार ऊपर से नीचे घुमाना है। ढाई वर्तुल
कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने
का प्रतीक है।
आरती होने के पश्चात मंगलदीप उतारने
का है। वास्तव में मंगलदीप
अग्नि की ऊपर
उठती ज्वाला भी भाँति ऊपर-
नीचे, नीचे-ऊपर लाना-ले जाना है
(वर्तुलाकार नहीं।) पर फिलहाल
आरती की भाँति ही वर्तुलाकार
घुमाने का रिवाज है। यदि अन्य जन उपस्थित हों तो उन्हें
मंगलदीप उतारने का मौका दें
No comments:
Post a Comment