बहुत से लोगों के मन में यह सवाल उठता रहता है कि एक
ही समय दुनिया में कई लोगों का जन्म होता है।
उनकी ग्रह दशा भी लगभग एक
जैसी ही होती है।
इतना होने पर भी कोई करोड़पति और
सुखी होता है जबकि कोई कठिन मेहनत से चार
पैसा कमा पाता है। कोई स्वस्थ तो कोई अक्सर बीमार
रहता है।
इसी प्रकार की शंका से ग्रसित एक राजा ने
अपने ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा कि जिस समय मेरा जन्म हुआ है
उसी समय कई लोगों का जन्म हुआ होगा लेकिन
सभी राजा क्यों नहीं बने।
इसके उत्तर में एक बूढ़े ज्योतिषी ने कहा कि आप
राजधानी से कुछ दूर जंगल में जाइये वहां आपको एक
महात्मा मिलेंगे वही आपके इस प्रश्न का उत्तर दे
पाएंगे।
राजा जंगल की ओर चला पड़ा। जंगल में पहुंचने पर एक
महत्मा मिले जो अंगारे खा रहे थे। राज के प्रश्न को सुनकर उसने
उत्तर दिया मैं भूख से तड़प रहा हूं। तुम आगे जाओ एक
माहत्मा मिलेंगे वही तुम्हें इसका उत्तर देंगे।
राजा जब दूसरे महत्मा के पास पहुंचे तो देखा वह चिमटे से
अपना ही मांस नोचकर खा रहा है। राजा के प्रश्न
को सुनकर उसने कहा, मेरे पास समय नहीं है देख
नहीं रहे मैं बहुत भूखा हूं तुम
पहाड़ी के पार गांव में जाओ वहां एक बालक का जन्म
होने वाला है। वही बालक तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर
देगा।
राजा पहाड़ी पार करके गांव में पहुंचा। महात्मा ने
जैसा कहा था वैसा ही हुआ प्रातः काल एक बालक
का जन्म हुआ। जब राजा ने अपना प्रश्न बालक के सामने
रखा तो वह हंसने लगा। मैं कुछ समय तक जिंदा रहूंगा लेकिन
तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा।
बालक ने कहा मार्ग में मिले महात्मा, मैं और तुम
सभी पूर्वजन्म में भाई थे। एक बार भोजन के समय हमारे
पास एक महात्मा पहुंचे। एक भाई ने महत्मा से कहा कि तुम्हें
भोजन दे दूंगा तो मैं क्या अंगारे खाऊंगा इसलिए आज वह अंगारे
खा रहा है।
दूसरे ने महत्मा से कहा कि तुम्हें भोजन दूंगा तो क्या आपना मांस
नोचकर खाऊंगा इसलिए आज वह अपना ही मांस नोंचकर
खा रहा है। महत्मा जब मेरे पास भोजन मांगने पहुंचे तो मैंने
कहा तुम्हें भोजन दे दूं तो क्या मैं भूखे मरुं।
लेकिन तुमने उदारता दिखाई और महात्मा को भोजन दे दिया। उस पुण्य
के प्रभाव से आज तुम राजा हो। इसलिए यह समझ
लो ज्योतिषशास्त्र कर्तव्यशास्त्र और व्यवहारशास्त्र
भी है।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि यह
धरती कर्मभूमि है। यहां जो जैसा कर्म करता है
उसका फल भी उसे उसी रुप में मिलता है।
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