Wednesday, April 30, 2014

अड़चनों से बचने के लिए रोज पढ़ें बजरंग बली का मंत्र

अड़चनों से बचने के लिए रोज पढ़ें बजरंग बली का मंत्र
बार-बार परेशानी व कार्यों में रुकावट हो तो हर मंगलवार
हनुमानजी के मंदिर में जाकर गुड एवं चने का प्रसाद
चढ़ाना चाहिए। उस प्रसाद को वहीं मंदिर में
ही बांट देना चाहिए। रोज सुबह निम्न मंत्र का जाप
अवश्य करें-
आदिदेव नमस्तुभ्यं सप्तसप्ते दिवाकर!
त्वं रवे तारय स्वास्मानस्मात्संसार सागरात!!
उपरोक्त उपाय से परेशानियों एवं बाधाओं से आश्चर्यजनक रूप से
मुक्ति मिलने लगेगी।

पेड़-पौधों के अलग-अलग उपाय

पेड़-पौधों के अलग-अलग उपायों से भी घर-परिवार
की धन संबंधी और अन्य
परेशानियों को दूर किया जा सकता है। यहां जानिए एक ऐसे वृक्ष
के चमत्कारी उपाय, जो हमारे घर के आसपास
आसानी से मिल जाता है। इस पेड़ के पत्तों को घर के
दरवाजे पर लगाया जाता है। एक बार दरवाजे पर ये पत्ते लगा दिए
जाए तो छ: माह तक वे चमत्कारी असर दिखाते हैं।
वंदनवार के रूप में लगाएं पत्तों को
ये चमत्कारी वृक्ष है अशोक। अशोक के पत्ते घर
के दरवाजे पर वंदनवार के रूप में लगाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है
कि जिस घर के मुख्य द्वार पर अशोक के
पत्तों की वंदनवार
लगी होती है,
वहां किसी प्रकार की नकारात्मक
ऊर्जा का प्रभाव नहीं होता है। घर का वातावरण
पवित्र और सकारात्मक बना रहता है। इन पत्तों का उपयोग
सभी प्रकार के मांगलिक और धार्मिक कार्यों में मुख्य
रूप से किया जाता है।
सदाबहार है अशोक
अशोक का वृक्ष सदाबहार है, हर मौसम में यह हरा-
भरा रहता है। अशोक के पत्तों का उपयोग घर
की सजावट में और अन्य पूजन
संबंधी कार्यों में किया जाता है।
किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य अशोक
के पत्तों की वंदनवार के बिना अधूरे
ही रहते हैं। इन पत्तों के कारण घर का वातावरण
भी धार्मिक और पवित्र दिखाई देता है।
विद्वानों की मान्यता है कि सफेद
या पीले रंग से संयुक्त लाल रंग के नाखून, तालू,
जीभ, होंठ, करतल तथा पदतल
वाली स्त्री धन-धान्य से युक्त, उदार
एवं सौभाग्यवती होती है।
- समुद्र शास्त्र के अनुसार विश्व में सबसे ज्यादा सांवले रंग के
लोग होते हैं। इसे काले रंग से युक्त कहा जाता है क्योंकि यह
एकदम गहरा काला रंग न होकर सफेद एवं लाल रंग से मिश्रित
काला होता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार इसके दो भेद होते
ैं। प्रथम के अंतर्गत रजोगुण प्रधानता के साथ तमोगुण
की हल्की सी प्रवृत्ति होती है।
ऐसे जातक अस्थिर, परिश्रमी और
कभी सुस्त, सामान्य बुद्धि वाले, सामान्य समृद्ध
तथा सामान्य अध्ययन-मनन एवं चिंतनप्रिय तथा प्राय: उच्च
मध्यम वर्ग के होते हैं।

काले रंग से प्रभावित स्त्रियों के संबंध में

एकदम काले रंग से प्रभावित स्त्रियों के संबंध में समुद्र शास्त्र में
वर्णन है कि अत्यधिक काले रंग के नेत्र, त्वचा, रोम, बाल,
होंठ, तालु एवं जीभ आदि जिन स्त्रियों के हों, वे
निम्न वर्ग में आती है। इस वर्ण
की स्त्रियां स्वामीभक्त और बात को अंत
तक निभाने वाली एवं निर्भिक होती है।
रति में पूर्ण सहयोग और आनन्द देती हैं।
विश्वसनीय, उत्तम मार्गदर्शिका और प्यार में बलिदान
देने वाली होती हैं। इनके प्यार में धूप
सी गर्मी व
चंद्रमा सी शीतलता पाई
जाती है। यही इनका गुण होता है।

गोरे रंग के लोगो में मुख्य रूप से दो भेद

समुद्र शास्त्र के अनुसार 
होते हैं हैं। प्रथम में लाल एवं सफेद रंग का मिश्रण होता है
जिसे हम गुलाबी कहते हैं। ऐसे लोगमृदु स्वभाव,
बुद्धिमान, साधारण परिश्रमी, रजोगुणी एवं
अध्ययन तथा विचरण प्रेमी होते हैं। ऐसे
लोगदिखने में सुंदर तथा आकर्षक होते हैं
तथा सभी को अपनी ओर आकर्षित
करने में सक्षम होते हैं।
- दूसरे भेद में लाल व पीले रंग का मिश्रण होता है,
जिसे पिंगल कहा जाता है। ऐसे जातक परिश्रमी,
धैर्यवान, सौम्य, गंभीर, रजोगुणी,
भोगी, समृद्ध एवं व्यवहार कुशल होते हैं। देखने
में आता है कि ऐसे जातक बीमार रहते हैं
तथा इन्हें रक्त
संबंधी बीमारी अधिक
होती है।

दरिद्रता दूर कर धनवान बनने के उपाय

दरिद्रता दूर कर धनवान बनने के उपाय---
1 पूर्व की ओर मुख करके खाना खाने से आयु
बढ़ती है। उत्तर की ओर मुख करके
भोजन करने से आयु तथा धन
की प्राप्ति होती है। दक्षिण
की ओर मुख करके भोजन करने से प्रेतत्व
की प्राप्ति होती है तथा पश्चिम
की ओर मुख करके भोजन करने से
व्यक्ति रोगी होता है।
2 घर का पूजास्थल पूर्व, उत्तर या इशान कोण में होना चाहिए।
पूजास्थल को नियमित साफ कर शुद्ध
घी का दीपक जलाकर "
श्री सूक्त " का पाठ करें।
3 घर की पूर्व उत्तर दिशा और इशान कोण
को हमेशा साफ रखें।
4 स्फटिक श्री यंत्र घर में अवश्य रखें।
5 घर में जितनी भी ख़राब
चीजें हो जैसे घड़ी कैलकुलेटर प्रेस
आदि इन्हें बनवा लें या कबाड़ में दे दें।
6 घर में कभी भी कांटे वाले और दूध वाले
पेड़ - पौधे न लगाएं।
7 धन की कमी दूर करने के लिए अनार
का पेड़ अवश्य लगाएं।
8 घर में हमेशा समुद्री नमक का पोंछा लगाएं।
9 उत्तर दिशा में रसोई घर न हो।
10 शयनकक्ष में कमरे के प्रवेश द्वार के सामने
वाली दीवार के बाएं कोने पर धातु
की कोई चीज लटकाकर रखें।
वास्तुशास्त्र के अनुसार यह स्थान भाग्य और संपत्ति का क्षेत्र
होता है।
11 घर में जल की निकासी दक्षिण
अथवा पश्चिम दिशा में हो तो उन्हें आर्थिक समस्याओं के साथ
अन्य कई तरह
की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उत्तर
दिशा एवं पूर्व दिशा में जल
की निकासी आर्थिक दृष्टि से शुभ है।

क्या हैं बंधन और उनके उपाय

. क्या हैं बंधन और उनके उपाय?
बंधन अर्थात् बांधना। जिस प्रकार रस्सी से बांध देने से
व्यक्ति असहाय हो कर कुछ कर नहीं पाता,
उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार
आदि को तंत्र-मंत्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बांध दिया जाए
तो उसकी प्रगति रुक जाती है और घर परिवार
की सुख शांति बाधित हो जाती है। ये बंधन
क्या हैं और इनसे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है जानने
केलिए पढ़िए यह आलेख...
मानव अति संवेदनशील प्राणी है।
प्रकृति और भगवान हर कदम पर हमारी मदद करते
हैं। आवश्यकता हमें सजग रहने की है। हम
अपनी दिनचर्या में अपने आस-पास होने
वाली घटनाओं पर नजर रखें और मनन करें। यहां बंधन
के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं।
किसी के घर में ८-१० माह का छोटा बच्चा है। वह
अपनी सहज बाल हरकतों से सारे परिवार का मन मोह
रहा है। वह खुश है, किलकारियां मार रहा है। अचानक वह
सुस्त या निढाल हो जाता है।
उसकी हंसी बंद हो जाती है।
वह बिना कारण के रोना शुरू कर देता है, दूध पीना छोड़
देता है। बस रोता और चिड़चिड़ाता ही रहता है। हमारे
मन में अनायास ही प्रश्न आएगा कि ऐसा क्यों हुआ?
किसी व्यवसायी की फैक्ट्री या व्यापार
बहुत अच्छा चल रहा है। लोग उसके व्यापार
की तरक्की का उदाहरण देते हैं। अचानक
उसके व्यापार में नित नई परेशानियां आने लगती हैं।
मशीन और मजदूर की समस्या उत्पन्न
हो जाती है। जो फैक्ट्री कल तक फायदे में
थी, अचानक घाटे की स्थिति में आ
जाती है।
व्यवसायी की फैक्ट्री उसे
कमा कर देने के स्थान पर उसे खाने लग गई। हम सोचेंगे
ही कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
किसी परिवार का सबसे जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति,
जो उस परिवार का तारणहार है, समस्त परिवार
की धुरी उस व्यक्ति के आस-पास
ही घूम रही है, अचानक
बिना किसी कारण के उखड़ जाता है। बिना कारण के घर में
अनावश्यक कलह करना शुरू कर देता है। कल तक
की उसकी सारी समझदारी और
जिम्मेदारी पता नहीं कहां चली जाती है।
वह परिवार की चिंता बन जाता है। आखिर
ऐसा क्यों हो गया?
कोई परिवार संपन्न है। बच्चे ऐश्वर्यवान, विद्यावान व सर्वगुण
संपन्न हैं। उनकी सज्जनता का उदाहरण सारा समाज
देता है। बच्चे शादी के योग्य हो गए हैं, फिर
भी उनकी शादी में अनावश्यक
रुकावटें आने लगती हैं। ऐसा क्यों होता है?
आपके पड़ोस के एक परिवार में पति-पत्नी में अथाह प्रेम
है। दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण समर्पित हैं। आपस में एक दूसरे
का सम्मान करते हैं। अचानक उनमें कटुता व तनाव उत्पन्न
हो जाता है। जो पति-पत्नी कल तक एक दूसरे के लिए
पूर्ण सम्मान रखते थे, आज उनमें झगड़ा हो गया है। स्थिति तलाक
की आ गई है। आखिर ऐसा क्यों हुआ?
हमारे घर के पास हरा भरा फल-फूलों से लदा पेड़ है।
पक्षी उसमें चहचहा रहे हैं। इस वृक्ष से हमें
अच्छी छाया और हवा मिल रही है।
अचानक वह पेड़ बिना किसी कारण के जड़ से
ही सूख जाता है। निश्चय ही हमें भय
की अनुभूति होगी और मन में यह प्रश्न
उठेगा कि ऐसा क्यों हुआ?
हमें अक्सर बहुत से ऐसे प्रसंग मिल जाएंगे
जो हमारी और हमारे आसपास
की व्यवस्था को झकझोर रहे होंगे, जिनमें 'क्यों''
की स्थिति उत्पन्न होगी।
विज्ञान ने एक नियम प्रतिपादित किया है कि हर
क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हमें निश्चय
ही मनन करना होगा कि उपर्युक्त घटनाएं जो हमारे
आसपास घटित हो रही हैं, वे किन क्रियाओं
की प्रतिक्रियाएं हैं? हमें यह
भी मानना होगा कि विज्ञान की एक निश्चित
सीमा है। अगर हम परावैज्ञानिक आधार पर इन
घटनाओं को विस्तृत रूप से देखें तो हम निश्चय ही यह
सोचने पर विवश होंगे कि कहीं यह बंधन या स्तंभन
की परिणति तो नहीं है ! यह आवश्यक
नहीं है कि यह किसी तांत्रिक अभिचार के
कारण हो रहा हो। यह स्थिति हमारी कमजोर ग्रह
स्थितियों व गण के कारण भी उत्पन्न
हो जाया करती है। हम भिन्न श्रेणियों के अंतर्गत
इसका विश्लेषण कर सकते हैं। इनके अलग-अलग लक्षण हैं। इन
लक्षणों और उनके निवारण का संक्षेप में वर्णन यहां प्रस्तुत है।
कार्यक्षेत्र का बंधन, स्तंभन या
रूकावटें
दुकान/फैक्ट्री/कार्यस्थल की बाधाओं के
लक्षण
किसी दुकान या फैक्ट्री के मालिक का दुकान
या फैक्ट्री में मन नहीं लगना।
ग्राहकों की संख्या में कमी आना।
आए हुए ग्राहकों से मालिक का अनावश्यक तर्क-वितर्क-कुतर्क
और कलह करना।
श्रमिकों व मशीनरी से संबंधित परेशानियां।
मालिक को दुकान में अनावश्यक शारीरिक व मानसिक
भारीपन रहना।
दुकान या फैक्ट्री जाने की इच्छा न करना।
तालेबंदी की नौबत आना।
दुकान ही मालिक को खाने लगे और अंत में दुकान बेचने
पर भी नहीं बिके।
कार्यालय बंधन के लक्षण
कार्यालय बराबर नहीं जाना।
साथियों से अनावश्यक तकरार।
कार्यालय में मन नहीं लगना।
कार्यालय और घर के रास्ते में शरीर में
भारीपन व दर्द की शिकायत होना।
कार्यालय में बिना गलती के भी अपमानित
होना।
घर-परिवार में बाधा के लक्षण
परिवार में अशांति और कलह।
बनते काम का ऐन वक्त पर बिगड़ना।
आर्थिक परेशानियां।
योग्य और होनहार बच्चों के रिश्तों में अनावश्यक अड़चन।
विषय विशेष पर परिवार के सदस्यों का एकमत न होकर अन्य
मुद्दों पर कुतर्क करके आपस में कलह कर विषय से भटक जाना।
परिवार का कोई न कोई सदस्य शारीरिक दर्द, अवसाद,
चिड़चिड़ेपन एवं निराशा का शिकार रहता हो।
घर के मुख्य द्वार पर अनावश्यक गंदगी रहना।
इष्ट की अगरबत्तियां बीच में
ही बुझ जाना।
भरपूर घी, तेल, बत्ती रहने के बाद
भी इष्ट का दीपक बुझना या खंडित होना।
पूजा या खाने के समय घर में कलह की स्थिति बनना।
व्यक्ति विशेष का बंधन
हर कार्य में विफलता।
हर कदम पर अपमान।
दिल और दिमाग का काम नहीं करना।
घर में रहे तो बाहर की और बाहर रहे तो घर
की सोचना।
शरीर में दर्द होना और दर्द खत्म होने के बाद
गला सूखना।
हमें मानना होगा कि भगवान दयालु है। हम सोते हैं पर
हमारा भगवान जागता रहता है। वह
हमारी रक्षा करता है। जाग्रत अवस्था में तो वह
उपर्युक्त लक्षणों द्वारा हमें बाधाओं आदि का ज्ञान
करवाता ही है, निद्रावस्था में भी स्वप्न के
माध्यम से संकेत प्रदान कर हमारी मदद करता है।
आवश्यकता इस बात की है कि हम होश व मानसिक
संतुलन बनाए रखें। हम किसी भी प्रतिकूल
स्थिति में अपने विवेक व अपने इष्ट की आस्था को न
खोएं, क्योंकि विवेक से बड़ा कोई साथी और भगवान से
बड़ा कोई मददगार नहीं है। इन बाधाओं के निवारण हेतु
हम निम्नांकित उपाय कर सकते हैं।
उपाय : पूजा एवं भोजन के समय कलह की स्थिति बनने
पर घर के पूजा स्थल की नियमित सफाई करें और मंदिर में
नियमित दीप जलाकर पूजा करें। एक
मुट्ठी नमक पूजा स्थल से वार कर बाहर फेंकें,
पूजा नियमित होनी चाहिए।
इष्ट पर आस्था और विश्वास रखें।
स्वयं की साधना पर ज्यादा ध्यान दें।
गलतियों के लिये इष्ट से क्षमा मांगें।
इष्ट को जल अर्पित करके घर में उसका नित्य छिड़काव करें।
जिस पानी से घर में पोछा लगता है, उसमें थोड़ा नमक डालें।
कार्य क्षेत्र पर नित्य शाम को नमक छिड़क कर प्रातः झाडू से साफ
करें।
घर और कार्यक्षेत्र के मुख्य द्वार को साफ रखें।
हिंदू धर्मावलंबी हैं, तो गुग्गुल की और
मुस्लिम धर्मावलम्बी हैं, तो लोबान की धूप
दें।
व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए
व्यक्तिगत बाधा के लिए एक मुट्ठी पिसा हुआ नमक
लेकर शाम को अपने सिर के ऊपर से तीन बार उतार लें
और उसे दरवाजे के बाहर फेंकें। ऐसा तीन दिन लगातार
करें। यदि आराम न मिले तो नमक को सिर के ऊपर वार कर शौचालय में
डालकर फ्लश चला दें। निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।
हमारी या हमारे परिवार के
किसी भी सदस्य की ग्रह
स्थिति थोड़ी सी भी अनुकूल
होगी तो हमें निश्चय ही इन उपायों से
भरपूर लाभ मिलेगा।
अपने पूर्वजों की नियमित पूजा करें। प्रति माह
अमावस्या को प्रातःकाल ५ गायों को फल खिलाएं।
गृह बाधा की शांति के लिए पश्चिमाभिमुख होकर क्क
नमः शिवाय मंत्र का २१ बार या २१ माला श्रद्धापूर्वक जप करें।
यदि बीमारी का पता नहीं चल
पा रहा हो और व्यक्ति स्वस्थ
भी नहीं हो पा रहा हो, तो सात प्रकार के
अनाज एक-एक मुट्ठी लेकर पानी में उबाल
कर छान लें। छने व उबले अनाज (बाकले) में एक तोला सिंदूर
की पुड़िया और ५० ग्राम तिल का तेल डाल कर
कीकर (देसी बबूल) की जड़ में
डालें या किसी भी रविवार को दोपहर १२ बजे
भैरव स्थल पर चढ़ा दें।
बदन दर्द हो, तो मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में
सिक्का चढ़ाकर उसमें लगी सिंदूर का तिलक करें।
पानी पीते समय यदि गिलास में
पानी बच जाए, तो उसे अनादर के साथ फेंकें
नहीं, गिलास में ही रहने दें। फेंकने से
मानसिक
अशांति होगी क्योंकि पानी चंद्रमा का कारक
है।
नजर बाधा दूर करने के लिए
मिर्च, राई व नमक को पीड़ित व्यक्ति के सिर से वार कर
आग में जला दें। चंद्रमा जब राहु से पीड़ित होता है तब
नजर लगती है। मिर्च मंगल का, राई शनि का और नमक
राहु का प्रतीक है। इन तीनों को आग
(मंगल का प्रतीक) में डालने से नजर दोष दूर
हो जाता है। यदि इन तीनों को जलाने पर
तीखी गंध न आए तो नजर दोष
समझना चाहिए। यदि आए तो अन्य उपाय करने चाहिए।
आर्थिक परेशानियों से मुक्ति के लिए गणपति की नियमित
आराधना करें। इसके अलावा श्वेत गुजा (चिरमी) को एक
शीशी में गंगाजल में डाल कर प्रतिदिन
श्री सूक्त का पाठ करें। बुधवार को विशेष रूप से प्रसाद
चढ़ाकर पूजा करें।
विवाह बाधा दूर करने के लिए कन्या को चाहिए कि वह बृहस्पतिवार
को व्रत रखे और बृहस्पति की मंत्र के साथ पूजा करे।
इसके अतिरिक्त पुखराज या सुनैला धारण करे। छोटे बच्चे
को बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र दान करे। लड़के
को चाहिए कि वह हीरा या अमेरिकन जर्कन धारण करे
और छोटी बच्ची को शुक्रवार को श्वेत वस्त्र
दान करे।

ज्योतिष में राहु का महत्त्व

ज्योतिष में राहु का महत्त्व
भारतीय वैदिक ज्योतष में राहु
को मायावी ग्रह के नाम से
भी जाना जाता है तथा मुख्य रूप से राहु
मायावी विद्याओं तथा मायावी शक्तियों के
ही कारक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त राहु
को बिना सोचे समझे मन में आ जाने वाले विचार, बिना सोचे समझे
अचानक मुंह से निकल जाने वाली बात, क्षणों में
ही भारी लाभ अथवा हानि देने वाले
क्षेत्रों जैसे जुआ, लाटरी, घुड़दौड़ पर पैसा लगाना,
इंटरनैट तथा इसके माध्यम से होने वाले व्यवसायों तथा ऐसे
ही कई अन्य व्यवसायों तथा क्षेत्रों का कारक
माना जाता है। नवग्रहों में यह
अकेला ही ऐसा ग्रह है जो सबसे कम समय में
किसी व्यक्ति को करोड़पति, अरबपति या फिर कंगाल
भी बना सकता है तथा इसी लिए इस
ग्रह को मायावी ग्रह के नाम से जाना जाता है।
अगर आज के युग की बात करें तो इंटरनैट पर कुछ
वर्ष पहले साधारण सी दिखने
वाली कुछ वैबसाइटें चलाने वाले
लोगों को पता भी नहीं था की कुछ
ही समय में उन वैबसाइटों के चलते वे
करोड़पति अथवा अरबपति बन जाएंगे।
किसी लाटरी के माध्यम से
अथवा टैलीविज़न पर होने वाले किसी गेम
शो के माध्यम से रातों रात कुछ लोगों को धनवान बना देने का काम
भी इसी ग्रह का है।

मंदिर जाने का वैज्ञानिक महत्व

मंदिर जाने का वैज्ञानिक महत्व--
- वैदिक पद्धति के अनुसार मंदिर वहां बनाना चाहिए जहां से
पृथ्वी की चुम्बकीय तरंगे
घनी हो कर जाती है.
- इन मंदिरों में गर्भ गृह में
देवता की मूर्ती ऐसी जगह पर
स्थापित की जाती है.
- इस मूर्ती के नीचे ताम्बे के पत्र रखे जाते
है जो यह तरंगे अवशोषित करते है.
- इस प्रकार जो व्यक्ति रोज़ मंदिर जा कर इस
मूर्ती की घडी के चलने
की दिशा में प्रदक्षिणा करता है वह इस
एनर्जी को अवशोषित कर लेता है.
- यह एक धीमी प्रक्रिया है और नियमित
करने से व्यक्ति की सकारात्मक शक्ति का विकास
होता है.
- मंदिर तीन तरफ से बंद रहता है जिससे
ऊर्जा का असर बढ़ता है.
- मूर्ती के सामने प्रज्वलित दीप
उष्मा की ऊर्जा का वितरण करता है.
- घंटानाद से मन्त्र उच्चार से
ध्वनी बनती है जो ध्यान केन्द्रित
करती है.
- समूह में मंत्रोच्चार करने से व्यक्तिगत समस्याएँ भूल
जाती है.
- फूलों , कर्पुर और धुप की सुगंध से तनाव से
मुक्ति हो कर मानसिक शान्ति मिलती है.
- तीर्थ जल मंत्रोच्चार से उपचारित होता है.
चुम्बकीय ऊर्जा के घनत्व वाले स्थान में स्थित ताम्रपत्र
को स्पर्श करता है और यह तुलसी कपूर मिश्रित
होता है. इस प्रकार यह दिव्य औषधि बन जाता है.
- तीर्थ लेते समय
वयुमुद्रा बना ली जाती है. देने
वाला भी मन्त्र उच्चारित करता है, फिर पिने के बाद
हाथों को शिखा यानी सहस्त्रार , आँखों पर स्पर्श करते
है.
- मंदिर में जाते समय वस्त्र यानी सिर्फ
रेशमी पहनने का चालान इसीसे शुरू हुआ
क्योंकि ये उस ऊर्जा के अवशोषण में सहायक होते है.
- मंदिर जाते समय महिलाओं को गहने पहनने चाहिए. धातु के बने
ये गहने ऊर्जा अवशोषित कर उस स्थान और चक्र को पहुंचाते है
जैसे गले , कलाई , सिर आदि .
- नए गहनों और वस्तुओं को भी मंदिर
की मूर्ती के चरणों से स्पर्श कराकर फिर
उपयोग में लाने का रिवाज है जो अब हम समझ सकते है
की क्यों है .
- मंदिर का कलश पिरामिड आकृति का होता है
जो ब्रम्हांडीय ऊर्जा तरंगों को अवशोषित कर उसके
नीचे बैठने वालों को लाभ पहुंचाता है.
- हर एक सामान्य व्यक्ति को उच्च वैज्ञानिक कारण समझ में आये
ऐसा आवश्यक नहीं इसलिए हमारे
सभी रीती रिवाज धर्म और
बड़ों के आदेश के रूप में निभाये जाते है.

मंत्र जो शुगर और कैंसर का काल है

मंत्र जो शुगर और कैंसर का काल है
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने चाहे जितनी प्रगति कर
ली हो, पर बीमारियों पर नियंत्रण
का उसका सपना आज तक अधूरा है। आंकड़े तो यहां तक बयान
करते हैं कि दवाओं के अनुपात में
रोगों की वृद्धि अधिक तेजी से
हो रही है। किन्तु ऐसी विकट
स्थिति में भी निराश होने
की आवश्यकता नहीं है।
प्राचीन समय में भारत में यंत्र-तंत्र और मंत्र के रूप
में एक ऐसे विज्ञान का प्रचलन रहा है, जो बहुत
ही शक्तिशाली और
चमत्कारी है। आज जिन
बीमारियों को लाइलाज माना जा रहा है, उनका मंत्रों के
द्वारा स्थाई निवारण संभव है। तो आइये जाने ऐसे
ही कुछ दुर्लभ और गुप्त मंत्र-
कैंसर रोग: कैंसर के रोगी इंसान को नीचे
दिये गए सूर्य गायत्री मंत्र का प्रतिदिन कम से कम
पांच माला और अधिक से अधिक आठ माला जप, नियम पूर्वक एवं
पूरी श्रृद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिये। इसके
अतिरिक्त दूध में
तुलसी की पत्ती का रस
मिलाकर पीना चाहिए। सूर्य-
गायत्री का का जप एक अभेद्य कवच का काम
करता है-
सूर्य गायत्री मंत्र - भास्कराय विद्यहे, दिवाकर
धीमहि , तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
मधुमेह रोग: मधुमेह यानि कि शुगर
की बीमारी से छुटकारा पाने के
लिये नौ दिन तक रुद्राक्ष की माला से आगे दिये गए
निम्र मंत्र का 5 माला जप करें।
मंत्र - क्क ह्रौ जूं स:

वास्तुशास्त्र में कौन सा पेड़ शुभ, कौन सा अशुभ

वास्तुशास्त्र में कौन सा पेड़ शुभ, कौन सा अशुभ ?
*******************************
कुछ फलों से लगे पेड़ को अपने आंगन या बगीचे में
देख भले खुश हो लेते हों, लेकिन सच यह है कि उनमें से
कई पेड़ों का घर के आस-पास होना अशुभ माना जाता है ।
यदि घर में आंवले का पेड़ लगा हो और वह
भी उत्तर दिशा और पूरब दिशा में तो यह अत्यंत
लाभदायक है। यह आपके कष्टों का निवारण करता है।
ज्यादातर घरों में आम के पेड़ लगे होते हैं और लग बड़े शौक से
अलग-अलग तरह के आम का पेड़ लगाते हैं, लेकिन
क्या आपको मालूम है कि इसका घर के आसपास
लगा होना आपको किस तरह
की हानि पहुंचा सकता है?
दरअसल घर के पास आम का पेड़ होना आपके बच्चों पर
बुरा असर डालता है। ऐसे पेड़ शौक से तो कभी न
लगाएं और यदि पहले से मौजूद हो तो आप यह कर सकते हैं
कि इस पेड़ के पास ऐसे पेड़ लगाएं जो शुभ माने जाते हैं। जैसे-
नारियल, नीम, अशोक आदि का पेड़ आप लगा सकते
हैं।
कहते हैं, जिनके घर में नारियल के पेड़ लगे हों, उनके मान-
सम्मान में खूब वृद्धि होती है।
सामान्तया लोग घर में नीम का पेड़ लगाना पसंद
नहीं करते, लेकिन घर में इस पेड़
का लगा होना काफी शुभ माना जाता है। पॉजिटिव
एनर्जी के साथ यह पेड़ कई प्रकार से
कल्याणकारी होता है।
हिन्दू धर्म में इस पौधे का खास महत्व है।
तुलसी के पौधे को एक तरह से
लक्ष्मी का रूप माना गया है। आपके घर में
यदि किसी भी तरह
की निगेटिव एनर्जी मौजूद है तो यह
पौधा उसे नष्ट करने की ताकत रखता है।
ध्यान रखें कि तुलसी का पौधा घर के
दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए,
क्योंकि यह आपको फायदे के बदले काफी नुकसान
पहुंचा सकता है।
केले का पौधा धार्मिक कारणों से
भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है।
गुरुवार
को इसकी पूजा की जाती है
और अक्सर पूजा-पाठ के समय केले के पत्ते
का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए घर में केले
का पेड़ ईशान कोण में हो तो बेहतर है। कहते हैं इस पेड़
की छांव तले यदि आप बैठकर पढ़ाई करते हैं
तो वह जल्दी जल्दी याद
भी होता चला जाता है।
बांस का पौधा घर में लगाना अच्छा माना जाता है। यह समृद्धि और
आपकी सफलता को ऊपर ले जाने
की क्षमता रखता है।

अलमारियां खुली न रखें

अलमारियां खुली न रखें:
पुस्तकें यदि खुली अलमारी में
रखी जाएं तो ये अशुभ ऊर्जा को उत्पन्न
करती हैं, जो इस कमरे में रहने वाले व्यक्ति के
लिए बहुत बुरी होती हैं। ये
अलमारियां चाकू के समान होती हैं। यह
बुरी फेंगशुई होती है।
इनको हमेशा बंद अलमारी में रखें।
अलमारी कभी भी खुली न
छोड़ें, इससे इस कमरे में रहने वाला व्यक्ति बीमार
पड़ सकता है।

क्या करें अक्षय तृतीया के दिन

क्या करें अक्षय तृतीया के दिन..
अक्षय तृतीया पर्व को कई नामों से जाना जाता है.
इसे अखतीज और वैशाख तीज
भी कहा जाता है. इस वर्ष यह पर्व 02 मई
2014 (शुक्रवार) के दिन मनाया जाएगा. इस पर्व को भारतवर्ष के
खास त्यौहारों की श्रेणी में
रखा जाता है.इस दिन रोहिणी नक्षत्र तथा मिथुन
राशि का चन्द्रमा रहेगा..अक्षय तृतीया पर इस वर्ष
स्थिर लग्न वृष भी है,
अक्षय तृतीया तिथि “ईश्वर तिथि” है।
इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और
हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए
इनकी जयंतियां भी अक्षय
तृतीया को मनाई जाती है।
शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया दो को, दुकानदारों के साथ ग्राहक
भी कर रहे इस दिन रोहिणी व
मृगशिरा नक्षत्र के कारण व्यापारी और
खरीदारों को मिलेगा लाभ इस दिन सोना,
चांदी खरीदना अच्छा माना जाता है।
अक्षय तृतीया पर बड़ी संख्या में
शादियां है तथा इस दिन सभी का विवाह
हो सकता है
अक्षय तृतीया का माहात्म्य
* इस दिन समुद्र या गंगा स्नान करना चाहिए।
* प्रातः पंखा, चावल, नमक, घी, शक्कर, साग,
इमली, फल तथा वस्त्र का दान करके
ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देनी चाहिए।
* ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
* इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए।
* आज के दिन नवीन वस्त्र, शस्त्र,
आभूषणादि बनवाना या धारण करना चाहिए।
* नवीन स्थान, संस्था, समाज
आदि की स्थापना या उद्घाटन भी आज
ही करना चाहिए।
शास्त्रों में अक्षय तृतीया
* इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।
* इसी दिन श्री बद्रीनारायण
के पट खुलते हैं।
* नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार
लिया था।
* श्री परशुरामजी का अवतरण
भी इसी दिन हुआ था।
* हयग्रीव का अवतार
भी इसी दिन हुआ था।
* वृंदावन के
श्री बाँकेबिहारीजी के मंदिर
में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-
दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढँके रहते हैं।
व्रत कथा : प्राचीनकाल में
सदाचारी तथा देव-ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने
वाला धर्मदास नामक एक वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था।
इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से
इस व्रत के माहात्म्य को सुना। कालांतर में जब यह पर्व
आया तो उसने गंगा स्नान किया।
विधिपूर्वक देवी-देवताओं
की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल
से भरे घड़े, जौ, गेहूँ, नमक, सत्तू, दही, चावल,
गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान
कीं। स्त्री के बार-बार मना करने,
कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से
पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म-
कर्म और दान-पुण्य से विमुख न हुआ।
यही वैश्य दूसरे जन्म में
कुशावती का राजा बना।
अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से
ही वह बहुत
धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न
होने पर
भी उसकी बुद्धि कभी धर्म
से विचलित नहीं हुई।
अक्षय तृतीया का माहात्म्य
* जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, उसे पापों से
मुक्ति मिलती है।
* इस दिन परशुरामजी की पूजा करके
उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।
* शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे
प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है।
* श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि यह
तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप,
तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने
वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।
दान के पर्व के रूप में :—-
अक्षय तृतीया वाले दिन दिया गया दान अक्षय पुण्य
के रूप में संचित होता है। इस दिन अपनी सामथ्र्य
के अनुसार अधिक से अधिक दान-पुण्य करना चाहिए। इस
तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल,
दूध से बने व्यंजन, खरबूज, लड्डू का भोग लगाकर दान करने
का भी विधान है।
कैसे करें अक्षय तृतीया व्रत!
अक्षय तृतीया पर मिलता है अक्षय फल
वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय
तृतीया कहते हैं। चूँकि इस दिन किया हुआ जप,
तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे
'अक्षय तृतीया' कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार
तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महाफलदायक
माना जाता है।
यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष
काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है।
इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं,
उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। यह व्रत
दानप्रधान है। इस दिन अधिकाधिक दान देने का बड़ा माहात्म्य
है। इसी दिन से सतयुग का आरंभ होता है इसलिए
इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं।
कैसे करें तृतीया व्रत!
* व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
* घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर
पवित्र या शुद्ध जल से स्नान करें।
* घर में ही किसी पवित्र स्थान पर
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
निम्न मंत्र से संकल्प करें :-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये
भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।
संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें।
भगवान विष्णु को सुगंधित पुष्पमाला पहनाएं।
नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने
की दाल अर्पण करें।
अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें।
अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक
आरती करनी चाहिए। इसके पश्चात
उपवास रहें

कारगार/ जेल से मुक्ति हेतु सरल प्रयोग

कारगार/ जेल से मुक्ति हेतु सरल प्रयोग
यदि कोई व्यक्ति बिना किसी कारण झूठे मुक़दमे से जेल में
बंद हो तो
किसी योग्य ब्राह्मण से जेल से मुक्ति का संकल्प
करवा कर
पंचदेव पूजन, नवग्रह पूजन, कुल देव पूजन करवा कर श्वेतार्क
गणपति या मूल स्थापित करें और
श्री गणपति कवच
के 21 पाठ प्रातः सांय
ॐ नमो गणेशाय, सर्व ऋण सर्व बंधन
वीमोचनाये स्वाहा।
से संपुटित कर 21 दिनों तक करें
और 11 माला जप
ॐ गं गणपतये नमः। त्वमेव केवलं हर्तासि।
का जप प्रतिदिन करें या करवाएं और
अगले अर्थात 22वें दिन प्रातः काल विधि पूर्वक पूजन कर उक्त
श्वेतार्क गणपति या मूल को ससम्मान जल में प्रवाहित कर दें।
साथ में यदि जेल में बंद व्यक्ति को श्वेतार्क का सिद्ध किया हुआ
ताबीज पहनाएं तो अतिशीघ्र
मुक्ति मिलती है।
प्रयोग गणेश चतुर्थी से प्रारंभ
हो तो अच्छा अन्यथा किसी भी मंगल, बुध,
गुरु या रविवार से किया जा सकता है।
किसी अपराध वश जेल गए व्यक्ति के छूटने में और
यदि किसी गलती या साजिश के कारन
अथवा किसी मुक़दमे के कारण जेल जाने
की संभावनाएं बन रही है
तो भी ये प्रयोग सहायक है।

Tuesday, April 29, 2014

यदि आप पैर पर पैर रखकर बैठते है तो हो जाये साबधान अन्यथा धन से जुड़ी परेशानियां झेलना पड़ सकती है

यदि आप पैर पर पैर रखकर बैठते है तो हो जाये साबधान
अन्यथा धन से जुड़ी परेशानियां झेलना पड़
सकती है
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जब भी कोई व्यक्ति घर में पैर पर पैर रखकर बैठते
हैं तो अक्सर जानकार
वृद्धजनों द्वारा ऐसा नहीं करने
की सलाह दी जाती है।
पुराने समय से ही कई ऐसी बातें
चली आ रही हैं जिनका संबंध हमारे
जीवन में प्राप्त होने वाले सुख और दुख से
जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पैर पर पैर रखकर बैठने से
स्वास्थ्य को नुकसान होता है साथ ही इसे धर्म
की दृष्टि से भी अशुभ समझा जाता है।
हमारे स्वभाव, हाव-भाव और व्यवहार में क्या-
क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए? इस
संबंध में शास्त्रों में कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। इन
परंपराओं का निर्वहन आज
भी बड़ी संख्या में
लोगों द्वारा किया जाता है।
यदि किसी पूजन कार्य में या शाम के समय पैर पर पैर
रखकर बैठते हैं
तो महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त
नहीं होती है। धन
संबंधी कार्यों में विलंब होता है।
पैसों की तंगी बढ़ती है।
शास्त्रों के अनुसार शाम के समय धन
की देवी महालक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण
पर रहती हैं ऐसे में यदि कोई व्यक्ति पैर पर पैर
रखकर बैठा रहता है तो देवी उससे नाराज
हो जाती हैं।
लक्ष्मी की नाराजगी के बाद
धन से जुड़ी परेशानियां झेलना पड़ती हैं।
अत: बैठते समय ये बात ध्यान रखें। पैर पर पैर रखकर न बैठें।
बैठे-बैठे पैर भी नहीं हिलाना चाहिए।
काफी लोगों की आदत
होती है कि वे बैठे-बैठे पैर हिलाते हैं जबकि यह
कार्य भी शास्त्रों के अनुसार वर्जित किया गया है।
कहते है जिससे कर्ज बढता है और स्वास्थ्य
की दृष्टि से भी ऐसा करने से पैरों से
संबंधित बीमारियां होने की संभावनाएं
बढ़ती हैं। कम उम्र में ही जोड़ों में
दर्द प्रारंभ हो सकता है।
यदि हम किसी पूजन कार्य में व्यस्थित ढंग से
नहीं बैठते हैं तो उस धर्म कर्म से पूर्ण पुण्य
की प्राप्ति नहीं हो पाती है।
पूजन कार्य में ध्यान रखना चाहिए कि हम बार-बार इधर-उधर
ना देखें। हमारा ध्यान भगवान की ओर
ही होना चाहिए। साथ ही बार-बार
बैठने
की अवस्था भी नहीं बदलनी चाहिए।

आज अमावस्या: ये हैं धन लाभ और कालसर्प दोष निवारण के उपाय

आज अमावस्या: ये हैं धन लाभ और कालसर्प दोष निवारण के
उपाय
धर्म डेस्क | ये है धन लाभ का उपाय
- अमावस्या की रात को करीब 10 बजे
नहाकर साफ पीले रंग के कपड़े पहन लें। इसके
उत्तर दिशा की ओर मुख करके ऊन या कुश के
आसन पर बैठ जाएं।
- अब अपने सामने पटिए(बाजोट या चौकी) पर एक
थाली में केसर का स्वस्तिक या ऊँ बनाकर उस पर
महालक्ष्मी यंत्र स्थापित करें। इसके बाद उसके
सामने एक दिव्य शंख थाली में स्थापित करें।
- अब थोड़े से चावल को केसर में रंगकर दिव्य शंख में डालें।
घी का दीपक जलाकर नीचे
लिखे मंत्र का कमलगट्टे की माला से ग्यारह
माला जप करें-
मंत्र
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी।
मंत्र पुते
सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
- मंत्र जप के बाद इस पूरी पूजन
सामग्री को किसी नदी या तालाब
में विसर्जित कर दें। इस प्रयोग से कुछ ही दिनों में
आपको अचानक धन लाभ होगा।

Monday, April 28, 2014

भगवान शिव के विभिन्न प्रकार के लिंग और पूजा से लाभ

भगवान शिव के विभिन्न प्रकार के लिंग और पूजा से
लाभ !!!!
धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत
पिता बताया गया हैं। क्योकि भगवान शिव
सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव
को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव
शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम
आनंद प्रदान करता हैं। भगवान शिव भारतीय
संस्कृति को दर्शन ज्ञान के
द्वारा संजीवनी प्रदान
करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादि काल से
भारतीय
धर्म साधना में निराकार रूप में होते हुवे भी शिवलिंग के रूप
में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं।
देश-विदेश में भगवान
शिव के मंदिर हर छोटे-बडे शहर एवं कस्बो में मोजुद हैं,
जो भगवान महादेव की व्यापकता को एवं उनके
भक्तो कि आस्था को प्रकट करते हैं।
भगवान शिव एक मात्र एसे देव हैं जिसे भोले
भंडारी कहा जाता हैं, भगवान शिव
थोङी सी पूजा-
अर्चना से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं। मानव
जाति की उत्पत्ति भी भगवान शिव से
मानी जाती हैं।
अतः भगवान शिव के स्वरूप को जानना प्रत्येक शिव
भक्त के लिए परम आवश्यक हैं। भगवान भोले नाथ ने
समुद्र मंथन से निकले हुए समग्र विष को अपने कंठ में
धारण कर वह नीलकंठ कहलाये।
शिव उपासना का महत्व
भगवान शिव का सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण तीनों पर
एक समान अधिकार हैं। शिवने अपने मस्तक पर
चंद्रमा को धारण कर शशि शेखर कहलाये हैं। चंद्रमा से
शिव को विशेष स्नेह होने के कारण चंद्र सोमवार
का अधिपति हैं इस लिये शिव का प्रिय वार सोमवार हैं।
शिव कि पूजा-अर्चना के लिये सोमवार के दिन करने
का विशेष महत्व हैं, इस दिन व्रत रखने से या शिव लिंग पर
अभिषेक करने से शिवकी विशेष कृपा प्राप्त
होती हैं।
शिवलिंग के विभिन्न प्रकार व लाभ
1-"गन्धलिंग" दो भाग कस्तुरी, चार भाग चन्दन और
तीन
भाग
कुंकम से बनाया जाता हैं।
2-मिश्री(चिनी) से बने शिव लिंग
कि पूजा से रोगो का नाश होकर सभी प्रकार से सुखप्रद
होती हैं।
3-सोंढ, मिर्च, पीपल के चूर्ण में नमक मिलाकर बने
शिवलिंग कि पूजा से वशीकरण और अभिचार कर्म के लिये
किया जाता हैं।
4-फूलों से बने शिव लिंग कि पूजा से भूमि- भवन
कि प्राप्ति होती हैं।
5- जौं, गेहुं, चावल तीनो का एक समान
भाग में मिश्रण कर आटे के बने शिवलिंग कि पूजा से परिवार
में
सुख समृद्धि एवं संतान का लाभ होकर रोग से
रक्षा होती हैं।
6-किसी भी फल को शिवलिंग के समान रखकर
उसकी पूजा करने से फलवाटिका में अधिक उत्तम फल
होता हैं।
7-यज्ञ कि भस्म से बने शिव लिंग कि पूजा से अभीष्ट
सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
8-यदि बाँस के अंकुर को शिवलिंग के समान काटकर
पूजा करने
से वंश वृद्धि होती है।
9-दही को कपडे में बांधकर निचोड़ देने के पश्चात उससे
जो शिवलिंग बनता हैं उसका पूजन करने से समस्त सुख एवं
धन कि प्राप्ति होती हैं।
10- गुड़ से बने शिवलिंग में अन्न
चिपकाकर शिवलिंग बनाकर पूजा करने से कृषि उत्पादन में
वृद्धि होती हैं।
11-आंवले से बने शिवलिंग का रुद्राभिषेक करने से
मुक्ति प्राप्त होती हैं।
12-कपूर से बने शिवलिंग का पूजन करने
से आध्यात्मिक उन्नती प्रदत एवं मुक्ति प्रदत
होता हैं।
13-यदि दुर्वा को शिवलिंग के आकार में गूंथकर
उसकी पूजा करने
से अकाल- मृत्यु का भय दूर हो जाता हैं।
14-स्फटिक के
शिवलिंग का पूजन करने से
व्यक्ति कि सभी अभीष्ट
कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं।
15-मोती के बने शिवलिंग
का पूजन स्त्री के सौभाग्य में वृद्धि करता हैं।
16-स्वर्ण
निर्मित शिवलिंग का पूजन करने से समस्त सुख-
समृद्धि कि वृद्धि होती हैं।
17- चांदी के बने शिवलिंग का पूजन
करने से धन-धान्य बढ़ाता हैं।
18-पीपल कि लकडी से बना शिवलिंग
दरिद्रता का निवारण
करता हैं।
19-लहसुनिया से बना शिवलिंग शत्रुओं का नाश कर
विजय प्रदत्त होता हैं।

ईश्वर को कौन सा पुष्प पसंद है

ईश्वर को कौन सा पुष्प पसंद है -----
पुष्प यानि की फूल। नारद जी ने मानस
पुष्प श्रेष्ठ फूल माना है। उन्होंने देवराज इन्द्र
को कहा कि हजारों-करोड़ों बाध्य फूलों को चढ़ाकर जो फल प्राप्त
होता है वे केवल मानस भाव-फूल चढ़ाने से प्राप्त हो जाता है।
बताया जाता है कि फूल-फल व पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे
ही इन्हें चढ़ाना चाहिये। खिले फूल का मुख ऊपर
की ओर होता है अत: चढ़ाते समय ऊपर
की ओर मुख करके चढ़ायें, इनका मुख
नीचे की ओर नहीं करे।
दूर्वा व तुलसी दल को अपनी ओर
तथा बिल्व पत्र को नीचे मुखकर चढ़ाना चाहिये।
दाहिने हाथ के करतल को आकाश मुखी कर मध्यमा,
अनामिका व अंगूठे की सहायता से फूल चढ़ायें।
चढ़े हुई फूल को अंगूठे व
तर्जनी की सहायता से उतारे। भगवान
पर चढ़ाया हुआ फूल ‘निर्माल्य’ कहलाता है। सूंघा, अंग से
लगा, कीड़ों से खाया हुआ,
पुखंड़िया जिसकी टूट गयी हो,
पृथ्वी पर गिरा हो, सडांध, निर्गन्ध, आग से
झुसला या अपवित्र स्थान में उत्पन्न फूल भगवान पर
नहीं चढ़ाना चाहिये।
कलियों को चढ़ायी जा तकती है।
फूल को जल में डुबोंकर धोना मना है। केवल जल से
इसका प्रोक्षण कर सकते हैं।
जो फूल, पत्ते जब बासी हो गये हो उन्हें
देवता पर न चढ़ायें। परंतु तुलसीदल व गंगाजल
बासी नहीं होता है।
तीर्थों का जल
भी बासी नहीं है।
माली के घर में रखे हुए फूलों में
बासी दोष नहीं आता है। दौना,
तुलसी की ही प्रिच है।
स्कन्दपुराण में आया है कि दौना की माला भगवान
को इतनी प्रिय है कि इसे सूख जाने पर
भी स्वीकार कर लेते हैं। मणि रत्न,
सुवर्ण वस्त्र आदि से बनाये गये फूल
भी बासी नहीं होते।
फूल तोड़ने का मंत्र-
हाथ पैर धोकर पूर्व की ओर मुख करके हाथ जोड़
कर कहें।
मा नु शोंक कुरुष्व त्वं स्थान त्यांग च मा कुरु।
देवता पूजडनार्थाय प्रार्थयामि वनस्पते।।
पहिला फूल तोड़ते समय ‘ऊँ वरुणाय नम:’ कहे।
दूसरा फूल तोड़ते समय ‘ऊँ व्योमाय नम:’ तथा
तीसरा फूल तोड़ते समय ‘ऊँ पृथिव्यै नम:’ बोले।
भगवान को मानस पूजा अर्पित करने की विधि
---------------------------------------------
------------
1 ऊँ लं पृथिव्यात्मंक गन्धं परिक्लपयामि।
(प्रभो! मैं पृथिवीरूप गंध (चन्दन) आपको अर्पित
करता हूं।)
2. ऊँ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिक्लपयामि।
(प्रभो! मैं आकाशा रूप पुष्प आपको अर्पित करता हूं।)
3. ऊँ यं वाटवात्मकं धूपं परिकल्पयामि।
(प्रभो! मैं वायुदेव के रूप में धूप आपको प्रदान करता हूं)
4. ऊँ रं वहन्यात्मकं दीपं दर्शयामि।
(प्रभो में आग्निदेव के रूप में धूप आपको प्रदान करता हूं)
5. ऊँ व अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदामि।
(प्रभो! मैं अमृत के समान नैवेद्य आपको निवेदन करता हूं।)
6. ऊँ सौं सर्वांत्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि।
(प्रभो में सर्वात्मा के रूप में संसार के
सभी उपचारों को आपके चरणों में समर्पित करता हूं।
इन मंत्र से भावनापूर्वक भक्ति व श्रद्धा से मानस पूजा नारद
जी द्वारा सर्व श्रेष्ठ
पूजा कही गयी है।)
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तित:।
मया अह्रतानि पुष्पाणि पूजार्यं प्रतिगृह्ताम्।
।। गृहण परमेश्वर।।
मंत्र-
श्रद्धया सिक्त्या भकत्या हार्दप्रेम्णा समर्पित।
मंत्र पुष्पाज्जलिश्चायं कृपया प्रति गृह्ताम्।।
गणपति को तुलसी छोड़कर सभी पत्र
पुष्प प्रिय है परंतु उनमें से दूर्वा अधिक प्रिय है।
देवी की पूजा में जितने लाल फूल है
मां को बहुत प्रिय है। आक व मदार के न चढ़ाएं। दूर्वा,
मालती, तुलसी, भांगरे के फूल न चढ़ायें।
ऊमामार्ग पुष्प देवी मां को विशेष प्रिय होता है।
शिवजी को सभी फूल जो विष्णु को पसंद
है सभी शिवजी पर चढ़ाये जा सकते
हैं। केतकी-केवड़े का निषेद्य है।
मौलासिरी के फूल शिव को अधिक पसंद है।
विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। कमल का फूल
बहुत पसंद है विष्णु रहस्य में कहा गया है कि एक कमल
का फूल चढ़ा देने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। सौ लाल
कमल चढ़ाने का फल सफेद कमल चढ़ाने से प्राप्त होता है
तथा लाखों श्वेत कमल चढ़ाने से बढ़कर एक नील
कमल चढ़ाने से प्राप्त होता है तथा नयन कमल
ही पद्म चढ़ाने से फल प्राप्त होता है।
आक-धतूरा, अपराजिता, भटकटैया, कचनार बरगद, गूलर, पाकर
आदि विष्णु पर नहीं चढ़ाने चाहिये। निषिद्ध माने गए
है।
फूल की अपेक्षा माला पहिनाने से दुगुना फल प्राप्त
होता है। परंतु इन सबके साथ आपकी आस्था और
विश्वास का होना भी बेहद जरूरी है
यदि आप में आस्था व विश्वास नहीं है तो यकिन
माने किसी भी प्रकार की भेट
भगवान को प्रिय नहीं हो सकती और
यदि आस्था और विश्वास से भगवान को अर्पित किया गया एक,
भी पुष्प भगवान को सर्वप्रिय होता है।
भगवान सूर्य को एक आक का फूल चढ़ाने से तो सोने
की 10 अशर्फिया चढ़ाने का पुण्य मिलता है। केसर
व लाल कनरे का फूल कमल का फूल सूर्य भगवान को विशेष प्रिय
है। धतूरा, अपराजिता, भटकटैया, लगट व आमड़ा सूर्य भगवान पर
न चढ़ाये। बेल का पत्र, तुलसी, कमल भगवान
को प्रिय है।.........

बवासीर का मन्त्र द्वारा 100 प्रतिशत सफल उपचार

बवासीर का मन्त्र द्वारा 100 प्रतिशत सफल उपचार
बवासीर का मन्त्रोपचार भी है
तथा मेरी माता जी को काफी
समय से बवासीर
की पीड़ा थी और मैने इस
मंत्र का प्रयोग करवाया तो प्रथम दिन से ही 10
प्रतिशत आराम मिला और एक माह में बवासीर पूर्ण
स्वस्थ हो गयी।
इसके अलावा भी मैने और लोगों को बताया है
किसी ने भी यह
नहीं कहा कि मेरी बवासीर
मन्त्र पढ़ने के बाद भी ठीक
नहीं हुयी हां दो आलसियों ने मन्त्र
ही नहीं किया तथा यह कहा कि इससे
कोई ठीक थोड़े
ही होता होगा उनका तो क्या उपचार है?
आप या आपके संबधि के बवासीर हो तो यह मन्त्र
प्रयोग करवा कर भारतिय विज्ञान का चम्तकार देखें यह मन्त्र
खुनी और बादी दोनो बवासीर
पर काम करता है तथा यहां तक लिखा है कि कोई इसका लाख
बार जाप करले तो उसके वंश में
किसी को बवासीर
नहीं हो सकती है।यहां पर
बवासीर के
रोगी को तो खाली 21 बार रोज
ही जाप करना है।
रोज रात को पानी रखकर सोवे तथा सुबह उठकर इस
मन्त्र से 21 बार अभिमंत्रित करे तथा अभिमंत्रित करने के
पश्चात उससे गुदा को धोना है।यहां यह
भी प्रावधान है कि इस मन्त्र को जानने
वाला यदि बवासीर के रोगी को मन्त्र
नहीं बताएगा और
रोगी पीड़ा भुगत रहा है तो मन्त्र जानने
वाले को 12 ब्रहमहत्या का पाप लगता है।
बवासीर वालों से निवेदन है कि पहले दिन कोई लाभ
न भी हो तो भी भगवान पर विश्वास
रखकर सात दिन जरूर करें जरूर जरूर लाभ होगा एक माह लगातार
करने से कुछ रोगी तो इतने ठीक हो जाते
हैं कि जैसे उनको बवासीर
थी या नहीं यह मंत्र भगंदर पर
भी काम करता है।
मन्त्रः- ॐ
काका कता क्रोरी कर्ता ॐ कर्ता से होय
यरसना दश हंस प्रगटे
खुनी बादी बवासीर न होय
मन्त्र जानकर न बतावे तो द्वाद्वश ब्रहम हत्या का पाप होय
लाख पढ़े उसके वंश में न होय शब्द सांचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र
इश्वरो वाचा ।