क्या करें अक्षय तृतीया के दिन..
अक्षय तृतीया पर्व को कई नामों से जाना जाता है.
इसे अखतीज और वैशाख तीज
भी कहा जाता है. इस वर्ष यह पर्व 02 मई
2014 (शुक्रवार) के दिन मनाया जाएगा. इस पर्व को भारतवर्ष के
खास त्यौहारों की श्रेणी में
रखा जाता है.इस दिन रोहिणी नक्षत्र तथा मिथुन
राशि का चन्द्रमा रहेगा..अक्षय तृतीया पर इस वर्ष
स्थिर लग्न वृष भी है,
अक्षय तृतीया तिथि “ईश्वर तिथि” है।
इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और
हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए
इनकी जयंतियां भी अक्षय
तृतीया को मनाई जाती है।
शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया दो को, दुकानदारों के साथ ग्राहक
भी कर रहे इस दिन रोहिणी व
मृगशिरा नक्षत्र के कारण व्यापारी और
खरीदारों को मिलेगा लाभ इस दिन सोना,
चांदी खरीदना अच्छा माना जाता है।
अक्षय तृतीया पर बड़ी संख्या में
शादियां है तथा इस दिन सभी का विवाह
हो सकता है
अक्षय तृतीया का माहात्म्य
* इस दिन समुद्र या गंगा स्नान करना चाहिए।
* प्रातः पंखा, चावल, नमक, घी, शक्कर, साग,
इमली, फल तथा वस्त्र का दान करके
ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देनी चाहिए।
* ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
* इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए।
* आज के दिन नवीन वस्त्र, शस्त्र,
आभूषणादि बनवाना या धारण करना चाहिए।
* नवीन स्थान, संस्था, समाज
आदि की स्थापना या उद्घाटन भी आज
ही करना चाहिए।
शास्त्रों में अक्षय तृतीया
* इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।
* इसी दिन श्री बद्रीनारायण
के पट खुलते हैं।
* नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार
लिया था।
* श्री परशुरामजी का अवतरण
भी इसी दिन हुआ था।
* हयग्रीव का अवतार
भी इसी दिन हुआ था।
* वृंदावन के
श्री बाँकेबिहारीजी के मंदिर
में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-
दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढँके रहते हैं।
व्रत कथा : प्राचीनकाल में
सदाचारी तथा देव-ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने
वाला धर्मदास नामक एक वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था।
इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से
इस व्रत के माहात्म्य को सुना। कालांतर में जब यह पर्व
आया तो उसने गंगा स्नान किया।
विधिपूर्वक देवी-देवताओं
की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल
से भरे घड़े, जौ, गेहूँ, नमक, सत्तू, दही, चावल,
गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान
कीं। स्त्री के बार-बार मना करने,
कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से
पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म-
कर्म और दान-पुण्य से विमुख न हुआ।
यही वैश्य दूसरे जन्म में
कुशावती का राजा बना।
अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से
ही वह बहुत
धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न
होने पर
भी उसकी बुद्धि कभी धर्म
से विचलित नहीं हुई।
अक्षय तृतीया का माहात्म्य
* जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, उसे पापों से
मुक्ति मिलती है।
* इस दिन परशुरामजी की पूजा करके
उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।
* शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे
प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है।
* श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि यह
तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप,
तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने
वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।
दान के पर्व के रूप में :—-
अक्षय तृतीया वाले दिन दिया गया दान अक्षय पुण्य
के रूप में संचित होता है। इस दिन अपनी सामथ्र्य
के अनुसार अधिक से अधिक दान-पुण्य करना चाहिए। इस
तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल,
दूध से बने व्यंजन, खरबूज, लड्डू का भोग लगाकर दान करने
का भी विधान है।
कैसे करें अक्षय तृतीया व्रत!
अक्षय तृतीया पर मिलता है अक्षय फल
वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय
तृतीया कहते हैं। चूँकि इस दिन किया हुआ जप,
तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे
'अक्षय तृतीया' कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार
तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महाफलदायक
माना जाता है।
यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष
काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है।
इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं,
उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। यह व्रत
दानप्रधान है। इस दिन अधिकाधिक दान देने का बड़ा माहात्म्य
है। इसी दिन से सतयुग का आरंभ होता है इसलिए
इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं।
कैसे करें तृतीया व्रत!
* व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
* घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर
पवित्र या शुद्ध जल से स्नान करें।
* घर में ही किसी पवित्र स्थान पर
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
निम्न मंत्र से संकल्प करें :-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये
भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।
संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें।
भगवान विष्णु को सुगंधित पुष्पमाला पहनाएं।
नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने
की दाल अर्पण करें।
अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें।
अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक
आरती करनी चाहिए। इसके पश्चात
उपवास रहें