Monday, April 28, 2014

ईश्वर को कौन सा पुष्प पसंद है

ईश्वर को कौन सा पुष्प पसंद है -----
पुष्प यानि की फूल। नारद जी ने मानस
पुष्प श्रेष्ठ फूल माना है। उन्होंने देवराज इन्द्र
को कहा कि हजारों-करोड़ों बाध्य फूलों को चढ़ाकर जो फल प्राप्त
होता है वे केवल मानस भाव-फूल चढ़ाने से प्राप्त हो जाता है।
बताया जाता है कि फूल-फल व पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे
ही इन्हें चढ़ाना चाहिये। खिले फूल का मुख ऊपर
की ओर होता है अत: चढ़ाते समय ऊपर
की ओर मुख करके चढ़ायें, इनका मुख
नीचे की ओर नहीं करे।
दूर्वा व तुलसी दल को अपनी ओर
तथा बिल्व पत्र को नीचे मुखकर चढ़ाना चाहिये।
दाहिने हाथ के करतल को आकाश मुखी कर मध्यमा,
अनामिका व अंगूठे की सहायता से फूल चढ़ायें।
चढ़े हुई फूल को अंगूठे व
तर्जनी की सहायता से उतारे। भगवान
पर चढ़ाया हुआ फूल ‘निर्माल्य’ कहलाता है। सूंघा, अंग से
लगा, कीड़ों से खाया हुआ,
पुखंड़िया जिसकी टूट गयी हो,
पृथ्वी पर गिरा हो, सडांध, निर्गन्ध, आग से
झुसला या अपवित्र स्थान में उत्पन्न फूल भगवान पर
नहीं चढ़ाना चाहिये।
कलियों को चढ़ायी जा तकती है।
फूल को जल में डुबोंकर धोना मना है। केवल जल से
इसका प्रोक्षण कर सकते हैं।
जो फूल, पत्ते जब बासी हो गये हो उन्हें
देवता पर न चढ़ायें। परंतु तुलसीदल व गंगाजल
बासी नहीं होता है।
तीर्थों का जल
भी बासी नहीं है।
माली के घर में रखे हुए फूलों में
बासी दोष नहीं आता है। दौना,
तुलसी की ही प्रिच है।
स्कन्दपुराण में आया है कि दौना की माला भगवान
को इतनी प्रिय है कि इसे सूख जाने पर
भी स्वीकार कर लेते हैं। मणि रत्न,
सुवर्ण वस्त्र आदि से बनाये गये फूल
भी बासी नहीं होते।
फूल तोड़ने का मंत्र-
हाथ पैर धोकर पूर्व की ओर मुख करके हाथ जोड़
कर कहें।
मा नु शोंक कुरुष्व त्वं स्थान त्यांग च मा कुरु।
देवता पूजडनार्थाय प्रार्थयामि वनस्पते।।
पहिला फूल तोड़ते समय ‘ऊँ वरुणाय नम:’ कहे।
दूसरा फूल तोड़ते समय ‘ऊँ व्योमाय नम:’ तथा
तीसरा फूल तोड़ते समय ‘ऊँ पृथिव्यै नम:’ बोले।
भगवान को मानस पूजा अर्पित करने की विधि
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1 ऊँ लं पृथिव्यात्मंक गन्धं परिक्लपयामि।
(प्रभो! मैं पृथिवीरूप गंध (चन्दन) आपको अर्पित
करता हूं।)
2. ऊँ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिक्लपयामि।
(प्रभो! मैं आकाशा रूप पुष्प आपको अर्पित करता हूं।)
3. ऊँ यं वाटवात्मकं धूपं परिकल्पयामि।
(प्रभो! मैं वायुदेव के रूप में धूप आपको प्रदान करता हूं)
4. ऊँ रं वहन्यात्मकं दीपं दर्शयामि।
(प्रभो में आग्निदेव के रूप में धूप आपको प्रदान करता हूं)
5. ऊँ व अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदामि।
(प्रभो! मैं अमृत के समान नैवेद्य आपको निवेदन करता हूं।)
6. ऊँ सौं सर्वांत्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि।
(प्रभो में सर्वात्मा के रूप में संसार के
सभी उपचारों को आपके चरणों में समर्पित करता हूं।
इन मंत्र से भावनापूर्वक भक्ति व श्रद्धा से मानस पूजा नारद
जी द्वारा सर्व श्रेष्ठ
पूजा कही गयी है।)
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तित:।
मया अह्रतानि पुष्पाणि पूजार्यं प्रतिगृह्ताम्।
।। गृहण परमेश्वर।।
मंत्र-
श्रद्धया सिक्त्या भकत्या हार्दप्रेम्णा समर्पित।
मंत्र पुष्पाज्जलिश्चायं कृपया प्रति गृह्ताम्।।
गणपति को तुलसी छोड़कर सभी पत्र
पुष्प प्रिय है परंतु उनमें से दूर्वा अधिक प्रिय है।
देवी की पूजा में जितने लाल फूल है
मां को बहुत प्रिय है। आक व मदार के न चढ़ाएं। दूर्वा,
मालती, तुलसी, भांगरे के फूल न चढ़ायें।
ऊमामार्ग पुष्प देवी मां को विशेष प्रिय होता है।
शिवजी को सभी फूल जो विष्णु को पसंद
है सभी शिवजी पर चढ़ाये जा सकते
हैं। केतकी-केवड़े का निषेद्य है।
मौलासिरी के फूल शिव को अधिक पसंद है।
विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। कमल का फूल
बहुत पसंद है विष्णु रहस्य में कहा गया है कि एक कमल
का फूल चढ़ा देने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। सौ लाल
कमल चढ़ाने का फल सफेद कमल चढ़ाने से प्राप्त होता है
तथा लाखों श्वेत कमल चढ़ाने से बढ़कर एक नील
कमल चढ़ाने से प्राप्त होता है तथा नयन कमल
ही पद्म चढ़ाने से फल प्राप्त होता है।
आक-धतूरा, अपराजिता, भटकटैया, कचनार बरगद, गूलर, पाकर
आदि विष्णु पर नहीं चढ़ाने चाहिये। निषिद्ध माने गए
है।
फूल की अपेक्षा माला पहिनाने से दुगुना फल प्राप्त
होता है। परंतु इन सबके साथ आपकी आस्था और
विश्वास का होना भी बेहद जरूरी है
यदि आप में आस्था व विश्वास नहीं है तो यकिन
माने किसी भी प्रकार की भेट
भगवान को प्रिय नहीं हो सकती और
यदि आस्था और विश्वास से भगवान को अर्पित किया गया एक,
भी पुष्प भगवान को सर्वप्रिय होता है।
भगवान सूर्य को एक आक का फूल चढ़ाने से तो सोने
की 10 अशर्फिया चढ़ाने का पुण्य मिलता है। केसर
व लाल कनरे का फूल कमल का फूल सूर्य भगवान को विशेष प्रिय
है। धतूरा, अपराजिता, भटकटैया, लगट व आमड़ा सूर्य भगवान पर
न चढ़ाये। बेल का पत्र, तुलसी, कमल भगवान
को प्रिय है।.........

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