Friday, April 25, 2014

सनातन धर्म में विवाह के अलग अलग प्रकार

सनातन धर्म में विवाह के अलग अलग प्रकार => .
1. ब्रह्म विवाह =
जो दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के
सुशिक्षित और सचरित्र वर से
अपनी कन्या का विवाह निश्चित कर देना और आदर
सहित उन्हें अपने घर पर बुलाकर
उसकी पूजा मानसम्मान कर
अपनी कन्या को उसके साथ विवाह बंधन में
बंधना 'ब्रह्म विवाह' कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के
बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज
का जिसे आज के ज़माने में ऑरेन्ज मेरिज कहते है
वाही 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है।
2. दैव विवाह =
जब किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान)
यज्ञ आदि के उपरांत मातापिता द्वारा दक्षिणा के रूपमे
अपनी कन्या को दान में दे देना 'दैव विवाह'
कहलाता है।
३. आर्ष विवाह = जिस विवाह में कन्या पक्ष
वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से
विवाह कर लेना 'आर्ष विवाह' कहलाता है।
4. प्रजापत्य विवाह =
जिस
विवाह में दोनों अपने अपने धर्मो का आचरण निर्वाह कर और
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य
वर्ग के वर से कर देना 'प्रजापत्य विवाह' कहलाता है।
5. गंधर्व विवाह =
परिवार वालों की सहमति के बिना प्रेम वष में होकर
यदि वर और कन्या का बिना किसी रीति-
रिवाज के केवल भगवन कोआपससाक्षी मानकर एक
दूसरेको वार माला पहन कर एवं कन्या की मांग
भरकर संक्षिप्त में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह'
कहलाता है।
6. असुर विवाह = जिस विवाह में कन्या के
माता पिता को कन्या के तुल्य कुछ पैसे देकर
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर
लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।
7. राक्षस विवाह =
कन्या के परिवार वालो की हत्या कर के
रोटी बिलक्ति हुयी कन्या को शक्ति
पूर्वक कही लेजाकर
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके
जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह'
कहलाता है।
8. पैशाच विवाह =
जब
किसी कन्या की मदहोशी (
गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे
शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे बाद उसे
दरकार जोकलाज का दर दिखा कर विवाह करना 'पैशाच विवाह'
कहलाता है।
आज भी इन में
से कई प्रकार के विवाह वर्त्तमान स्थतियों में हो रहे है ,
और समाज इनको अपने दृष्टि कोनो से देखकर समम्मन और
अपमान के अनुपात में घडता हे , किन्तु करने वाला कोई धर्म और
कोई अधर्म का दामन पकड़ कर अपना कार्य सिद्ध जरूर कर
लेता हे ! किन्तु सबसे श्रेष्ठ विवाह पद्धति यानि ब्रह्म विवाह
हे जिसे हर सांस्कारिक परिवार को अपने कुलगुरु और अपने बढे
बुजुर्गो की सलाह और मंजूरी से
ही समापन करना चाहिए !

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