लगन मे राहु और सप्तम में केतु
यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे के अनुसार लगन में राहु और सप्तम
में केतु के होने से और दो,तीन,चार,पांच,छ:
भावों सभी ग्रहों के होने से
अथवा आठ,नौ,दस,ग्यारह बारह
भावों सभी ग्रहों के होने से इस कालसर्प योग
का निर्माण होता है,राहु जो शंका का रूप है,शरीर के
प्रति शंकायें पैदा करता है,अगर सभी ग्रह राहु के
बाद है तो शंकायें सूर्य से पिता,या पुत्र चन्द्र से
माता या बहिन,मंगल से भाई या पति,बुध से चाचा या मामा या बहिन
बुआ बेटी,गुरु से शिक्षा या ज्ञान देने वाले लोग,शुक्र
से पत्नी या घर या भौतिक सम्पत्ति या वाहन,शनि से
जायदाद या कार्य के रूप में चिन्तायें
पैदा होती हैं,चूंकि यह भाग खुद के
शरीर से सम्बन्ध रखने वाले कारकों से होता है,और
जीव के बाद के समस्त कारकों के
प्रति अपनी क्रिया को जाहिर करता है। यह प्रभाव
शादी से पहले ही जीवन
में अच्छा बुरा फ़ल प्रदान करता है,शादी के बाद
इसका कारक केतु पति या पत्नी के रूप में अपने
द्वारा समस्त
अच्छी या बुरी अलामतों को संभाल
लेता है और जातक का जीवन सुचारु रूप से चलने
लगता है।राहु पहले भाव में
मंदी की निशानी माना जाता है,यहां राहु
होन से व्यक्ति दौलतमंद तो होता है किंतु उसका अच्छे कामों में
खर्चा भी बहुत होता है,यहां पर राहु के असर
को शुभ करने के लिये सूर्य
की चीजों जैसे गेंहूं आदि का दान बहुत
शुभ होता है,यह राह की शुभ और अशुभ
हालतों में एक बहुत बढिया उपाय माना जाता है। राहु केतु
का सीधा सम्बन्ध एक
सौ अस्सी डिग्री के अन्दर में
होता है,राहु और केतु का असर उस प्रकार से
भी मान सकते है जैसे कि एक
रोशनी सीधी अन्धकार
की तरफ़ जा रही है,वह
रोशनी इतनी तेज होती है
कि उसके आरपार किसी भी ग्रह
का प्रभाव नही जा सकता है,और
इसी कारण से राहु केतु के एक तरफ़ ग्रह होने
के कारण वे ग्रह किसी प्रकार से अपने सामने वाले
भाव पर अपना असर नही दे पाते और जातक
का जीवन या तो अपने लिये अथवा दूसरे के लिये
ही होकर रह जाता है। राहु केतु में पहले भाव
से सातवें भाव के केतु के बाद के अगर ग्रह होते है और मंगल
अगर राहु से बारहवां होता है,तो राहु के द्वारा दिये जाने वाले
प्रभावों में गलत प्रभाव अपना असर मंगल की ताकत
के अनुसार ही प्रदान कर पाते है,जैसे मंगल अगर
कमजोर है तो राहु अपने प्रभाव अधिक देगा और मंगल अगर
सशक्त है तो राहु अपना असर नही दे पायेगा,राहु
को अगर हाथी माने और मंगल को अंकुश माने
तो मंगल राहु पर अपना कन्ट्रोल कर सकता है। लेकिन राहु के
आसपास वाले ग्रह अगर कमजोर है तो राहु कमजोर मंगल
की ताकत को लेकर उन्हे धीरे
धीरे जलाने लगता है,जैसे सूर्य है
तो पिता को तकलीफ़ें बढ
जाती है,अन्जानी मुशीबतें
पिता पर आनी शुरु हो जाती है राहु
राजकीय मामलों में अचानक किसी न
किसी प्रकार का बल लेकर जातक को परेशान करने
लगता है। इस कालसर्प योग में राहु
की अच्छी या बुरी हालत
को देखने के लिये अगर बुध पहले भाव से लेकर छठे भाव तक
कमजोर है तो राहु बुरा फ़ल अधिक देगा और अगर बुध
की हालत मजबूत है तो राहु अच्छे फ़ल देगा और
कालसर्प दोष का असर कम मिलेगा। बुध के कमजोर होने
की निशानियों के लिये बहिन बुआ
बेटी की हालत देखकर
भी पता किया जा सकता है,राहु सशक्त है और बुध
कमजोर है यानी बुध पांच डिग्री से कम
है तो जातक की बहिन
दुखी रहेगी,जातक की बुआ
जातक के पैदा होने के बाद या उससे पहले ही मर
जायेगी,जातक
की बेटी की शादी के
बाद या तो वह वापस अपने पिता के पास
आजायेगी,अथवा वह किसी न
किसी राहु वाले कारण से खत्म
हो जायेगी,राहु वाले कारणों में वाहन से
हादसा,मिट्टी के तेल या पेट्रोल से आग लगा लेना,दवाई
के किसी प्रकार से रियेक्सन करने के बाद मर
जाना,किसी अस्पताली गल्ती से
मृत्यु का हो जाना माना जाता है। इस कालसर्प दोष
की एक पहिचान और
मानी जाती है कि जातक के पैदा होने के
बाद आसमानी ताकतें अपना बल
दिखातीं है,
यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे के अनुसार लगन में राहु और सप्तम
में केतु के होने से और दो,तीन,चार,पांच,छ:
भावों सभी ग्रहों के होने से
अथवा आठ,नौ,दस,ग्यारह बारह
भावों सभी ग्रहों के होने से इस कालसर्प योग
का निर्माण होता है,राहु जो शंका का रूप है,शरीर के
प्रति शंकायें पैदा करता है,अगर सभी ग्रह राहु के
बाद है तो शंकायें सूर्य से पिता,या पुत्र चन्द्र से
माता या बहिन,मंगल से भाई या पति,बुध से चाचा या मामा या बहिन
बुआ बेटी,गुरु से शिक्षा या ज्ञान देने वाले लोग,शुक्र
से पत्नी या घर या भौतिक सम्पत्ति या वाहन,शनि से
जायदाद या कार्य के रूप में चिन्तायें
पैदा होती हैं,चूंकि यह भाग खुद के
शरीर से सम्बन्ध रखने वाले कारकों से होता है,और
जीव के बाद के समस्त कारकों के
प्रति अपनी क्रिया को जाहिर करता है। यह प्रभाव
शादी से पहले ही जीवन
में अच्छा बुरा फ़ल प्रदान करता है,शादी के बाद
इसका कारक केतु पति या पत्नी के रूप में अपने
द्वारा समस्त
अच्छी या बुरी अलामतों को संभाल
लेता है और जातक का जीवन सुचारु रूप से चलने
लगता है।राहु पहले भाव में
मंदी की निशानी माना जाता है,यहां राहु
होन से व्यक्ति दौलतमंद तो होता है किंतु उसका अच्छे कामों में
खर्चा भी बहुत होता है,यहां पर राहु के असर
को शुभ करने के लिये सूर्य
की चीजों जैसे गेंहूं आदि का दान बहुत
शुभ होता है,यह राह की शुभ और अशुभ
हालतों में एक बहुत बढिया उपाय माना जाता है। राहु केतु
का सीधा सम्बन्ध एक
सौ अस्सी डिग्री के अन्दर में
होता है,राहु और केतु का असर उस प्रकार से
भी मान सकते है जैसे कि एक
रोशनी सीधी अन्धकार
की तरफ़ जा रही है,वह
रोशनी इतनी तेज होती है
कि उसके आरपार किसी भी ग्रह
का प्रभाव नही जा सकता है,और
इसी कारण से राहु केतु के एक तरफ़ ग्रह होने
के कारण वे ग्रह किसी प्रकार से अपने सामने वाले
भाव पर अपना असर नही दे पाते और जातक
का जीवन या तो अपने लिये अथवा दूसरे के लिये
ही होकर रह जाता है। राहु केतु में पहले भाव
से सातवें भाव के केतु के बाद के अगर ग्रह होते है और मंगल
अगर राहु से बारहवां होता है,तो राहु के द्वारा दिये जाने वाले
प्रभावों में गलत प्रभाव अपना असर मंगल की ताकत
के अनुसार ही प्रदान कर पाते है,जैसे मंगल अगर
कमजोर है तो राहु अपने प्रभाव अधिक देगा और मंगल अगर
सशक्त है तो राहु अपना असर नही दे पायेगा,राहु
को अगर हाथी माने और मंगल को अंकुश माने
तो मंगल राहु पर अपना कन्ट्रोल कर सकता है। लेकिन राहु के
आसपास वाले ग्रह अगर कमजोर है तो राहु कमजोर मंगल
की ताकत को लेकर उन्हे धीरे
धीरे जलाने लगता है,जैसे सूर्य है
तो पिता को तकलीफ़ें बढ
जाती है,अन्जानी मुशीबतें
पिता पर आनी शुरु हो जाती है राहु
राजकीय मामलों में अचानक किसी न
किसी प्रकार का बल लेकर जातक को परेशान करने
लगता है। इस कालसर्प योग में राहु
की अच्छी या बुरी हालत
को देखने के लिये अगर बुध पहले भाव से लेकर छठे भाव तक
कमजोर है तो राहु बुरा फ़ल अधिक देगा और अगर बुध
की हालत मजबूत है तो राहु अच्छे फ़ल देगा और
कालसर्प दोष का असर कम मिलेगा। बुध के कमजोर होने
की निशानियों के लिये बहिन बुआ
बेटी की हालत देखकर
भी पता किया जा सकता है,राहु सशक्त है और बुध
कमजोर है यानी बुध पांच डिग्री से कम
है तो जातक की बहिन
दुखी रहेगी,जातक की बुआ
जातक के पैदा होने के बाद या उससे पहले ही मर
जायेगी,जातक
की बेटी की शादी के
बाद या तो वह वापस अपने पिता के पास
आजायेगी,अथवा वह किसी न
किसी राहु वाले कारण से खत्म
हो जायेगी,राहु वाले कारणों में वाहन से
हादसा,मिट्टी के तेल या पेट्रोल से आग लगा लेना,दवाई
के किसी प्रकार से रियेक्सन करने के बाद मर
जाना,किसी अस्पताली गल्ती से
मृत्यु का हो जाना माना जाता है। इस कालसर्प दोष
की एक पहिचान और
मानी जाती है कि जातक के पैदा होने के
बाद आसमानी ताकतें अपना बल
दिखातीं है,
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