ऐनक से
मुक्ति .
चश्मा हटाने के लिये चाक्षुषोपनिषद
यह चाक्षुषोपनिषद
की आरोग्य निधि पुस्तक में
दी गयी है वहां से संक्षेप में
इसका उद्वरण आम जन के हित के लिये किया जा रहा है।
जो कोई इस
चाक्षुष्मति विधा का नित्य पाठ करता है उसको नेत्र रोग
नहीं होते हैं तथा उसके कुल में कोई
भी अन्धा नहीं होता है।
आप इस चाक्षुषी विधा का पाठ करके
अपना चश्मा हटा सकते हैं चश्मा हटाने पर पूर्ण विवरण मैने
मेरे मूल अंग्रेजी के ब्लोग पर निम्न लिंक पर दिया है
कृपया वहां से पढ़ें यहां केवल चाक्षुषोपनिषद का वर्णन
दिया जा रहा है।
विनियोगः- हथेली में जल लेकर निम्न विनियोग मन्त्र
बोलें तथा जल धरती पर गिरा देवें।ॐ
अस्याश्चाक्षुषीविधाया अर्हिबुर्धन्य ऋषि ।
गायत्री छन्द । सूर्यो देवता । चक्षुरोगनिवृतयेजपे
विनियोगा ।
पाठः- फिर निम्न पाठ करें
ॐ चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव । मां पाहि पाहि ।
चक्षु रोगान शमय शमय । मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय
यथा अह अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय । कल्याणं कुरू कुरू
याति मम पूर्वजन्मोपार्जितानी चक्षु प्रतिरोधक
दुष्कृतानि सर्वाणी निर्मूल्य निर्मूल्य । ॐ
मम चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय । ॐ नम
करूणाकराय अमृताय ॐ नमः सूर्याय ॐ नम
भगवते सूर्याक्षि तेजसे नमः।खेचराय नमः । महते नमः । रजसे
नमः । तमसे नमः । असतो मा सदगम्य तमसो मा ज्योर्तिगम्य ।
मृत्र्यो मा अमृतं गमय ।उष्णो भगवांछुचिरूपः हसांे भगवान
शुचिप्रति-प्रतिरूप । य
इमां चाक्षुष्मति विधां ब्राहमणो नित्यमधीते न
तस्याक्षिरोगो भवति न तस्य कुले अन्धो भवति ।
अष्टौ ब्राहमणान सम्यग ग्राहयित्वा विधा सिद्धिर्भवति।
ॐ नमो भगवते आदित्याय
अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा।
मुक्ति .
चश्मा हटाने के लिये चाक्षुषोपनिषद
यह चाक्षुषोपनिषद
की आरोग्य निधि पुस्तक में
दी गयी है वहां से संक्षेप में
इसका उद्वरण आम जन के हित के लिये किया जा रहा है।
जो कोई इस
चाक्षुष्मति विधा का नित्य पाठ करता है उसको नेत्र रोग
नहीं होते हैं तथा उसके कुल में कोई
भी अन्धा नहीं होता है।
आप इस चाक्षुषी विधा का पाठ करके
अपना चश्मा हटा सकते हैं चश्मा हटाने पर पूर्ण विवरण मैने
मेरे मूल अंग्रेजी के ब्लोग पर निम्न लिंक पर दिया है
कृपया वहां से पढ़ें यहां केवल चाक्षुषोपनिषद का वर्णन
दिया जा रहा है।
विनियोगः- हथेली में जल लेकर निम्न विनियोग मन्त्र
बोलें तथा जल धरती पर गिरा देवें।ॐ
अस्याश्चाक्षुषीविधाया अर्हिबुर्धन्य ऋषि ।
गायत्री छन्द । सूर्यो देवता । चक्षुरोगनिवृतयेजपे
विनियोगा ।
पाठः- फिर निम्न पाठ करें
ॐ चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव । मां पाहि पाहि ।
चक्षु रोगान शमय शमय । मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय
यथा अह अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय । कल्याणं कुरू कुरू
याति मम पूर्वजन्मोपार्जितानी चक्षु प्रतिरोधक
दुष्कृतानि सर्वाणी निर्मूल्य निर्मूल्य । ॐ
मम चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय । ॐ नम
करूणाकराय अमृताय ॐ नमः सूर्याय ॐ नम
भगवते सूर्याक्षि तेजसे नमः।खेचराय नमः । महते नमः । रजसे
नमः । तमसे नमः । असतो मा सदगम्य तमसो मा ज्योर्तिगम्य ।
मृत्र्यो मा अमृतं गमय ।उष्णो भगवांछुचिरूपः हसांे भगवान
शुचिप्रति-प्रतिरूप । य
इमां चाक्षुष्मति विधां ब्राहमणो नित्यमधीते न
तस्याक्षिरोगो भवति न तस्य कुले अन्धो भवति ।
अष्टौ ब्राहमणान सम्यग ग्राहयित्वा विधा सिद्धिर्भवति।
ॐ नमो भगवते आदित्याय
अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा।
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