Sunday, April 27, 2014

भुवनेश्वरी माता के मन्दिर

इस मन्दिर को बनाकर शैव और शक्ति के उपासकों का मुख्य
उद्देश्य विपरीत कारकों से सिद्धियों को प्राप्त
करना और माना जा सकता है,वास्तु का मुख्य रूप जो इस मन्दिर से
मिलता है उसके अनुसार
आसुरी शक्तियां जिनका निवास दक्षिण पश्चिम
(नैऋत्य) के कोने से मिलता है उसको भी दर्शाने
का है,मुख्य मंदिर जिसके नीचे भौतिक तत्व
विहीन शिव लिंग (केवल वायु निर्मित शिवलिंग)
है,को समझने के लिये यह भी जाना जाता है कि जिन
मकानों में उत्तर की तरफ़ अधिक ऊंचा और दक्षिण
की तरफ़ अधिक
नीचा होता है,अथवा उत्तर से दक्षिण
की तरफ़ ढलान बनाया जाता है उन घरों के लोग केवल
अघोर साधना की तरफ़ ही उन्मुक्त भाव
से चले जाते है,व्यभिचार जुआ शराब मारकाट आदि बातें
उन्ही घरों में मिलती है,लेकिन जब
यह बात धार्मिक स्थानों में आती है
तो जो भी धार्मिक स्थान दक्षिण
मुखी होते है अथवा उनका उत्तर का भाग
ऊंचा होता है वहां पर जो व्यक्ति के दिमाग में
आसुरी वृत्तियां भरी होती है,उनका निराकरण
भी इसी प्रकार के स्थानों में होता है।
जैसे कि किसी भी अस्पताल
को देखिये,जो दक्षिण
मुखी होगा उसकी प्रसिद्धि और इलाज
बहुत अच्छा होगा,और जो अन्य दिशाओं में
अपनी मुखाकृति बनायें होंगे वहां अन्य प्रकार के
तत्वों का विकास मिलता होगा,यही बात भोजन और
इन्जीनियरिंग वाले मामलों में
जानी जाती है। माता कामाख्या के और
ऊपर भुवनेश्वरी माता का मन्दिर है,उस मंदिर
का निर्माण भी इसी तरीके से
किया जाता है लेकिन यह
प्रकृति की कल्पना ही कही जाये
कि जितनी भीड इस कामाख्या के मंदिर में
होती है
उतनी भुवनेश्वरी माता के मन्दिर में
नही होती है।
जो व्यक्ति अपनी कामना की सिद्धि के
लिये आता है वह केवल कामाख्या को ही जानता है
लेकिन जो कामनाओं की सिद्धि से
भी ऊपर चला गया है वह
ही भुवनेश्वरी माता के दर्शन और
परसन कर पाता है। यही बात मैने खुद
देखी जहां कामाख्या में पुजारी धन
की मांग करते है वहीं मैने अपने आप
पूजा करने के बाद भुवनेश्वरी माता के मंदिर में
पुजारी को दक्षिणा देनी चाही तो उस
पुजारी ने यह कह कर मना कर दिया कि "जब मैनें
आपकी कोई
पूजा ही नही की है तो मै
दक्षिणा लेने
का अधिकारी नही होता",जब मैने अधिक
हठ की तो उसने कोई तर्क नही करके
अपने निवास के कपाट बंद कर लिये।

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