जाने अपनी कुंडली के बारे में ------------4
प्रस्तुत लेख उन जिज्ञासु लोगों को समर्पित है जो ज्योतिष शब्द देखते ही बिना किसी औपचारिकता के प्रश्न करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते है।
कुंडली में पाये जाने वाले कुछ प्रमुख योग ----
कुंडली में पाये जाने वाले कुछ प्रमुख योग ----
--- यदि चन्द्र से केंद्र में गुरु हो तो 'गजकेसरी' योग बनता है। इसके साथ ही चन्द्र नीच अस्तादि में न गए हुए -शुक्र,गुरु और बुध से देखा जाता हो तो गजकेसरी योग बनता है।
-- यदि जन्म लग्न या चन्द्र से दशम स्थान में केवल शुभ ग्रह हो तो 'अमला' योग बनता है।
--- यदि गुरु और चतुर्थेश परस्पर केंद्र में हो और लग्नेश बली हो तो 'काहल' योग बनता है।
--- यदि लग्नेश अपनी उच्च राशि का होकर केंद्र में में हो और गुरु से देखा जाता हो तो 'चामर' योग बनता है।
---- यदि पंचमेश और षष्ठेश परस्पर केंद्र में हो लग्नेश बलवान हो तो 'शंख' योग बनता है। लग्नेश कर्मेश दोनों चर राशि में हो और भाग्येश बली हो तो शंख योग बनता है।
---- यदि भाग्येश अपने परम उच्च का होकर केंद्र १,४,७,१० या अपने मूल त्रिकोण राशि में हो और लग्नेश बलवान हो तो 'लक्ष्मी' योग बनता है।
राजयोग
---- यदि सुखेश दशम स्थान में और कर्मेश सुख स्थान में हो और पंचमेश नवमेश से देखा जाता हो तो 'राजयोग' बनता है।
--- यदि नवम स्थान में गुरु की राशि हो और अपने स्थान में शुक्र हो तथा पंचमेश से युक्त हो तो जातक राजतुल्य होता है।
-- तीसरे ,छठे,आठवे भाव में अपनी नीच राशि का ग्रह भी योग कारक होता है इसमें से जो ग्रह लग्न को देखता हो वह राज योग कारक होता है।
-- यदि जन्म लग्न या चन्द्र से दशम स्थान में केवल शुभ ग्रह हो तो 'अमला' योग बनता है।
--- यदि गुरु और चतुर्थेश परस्पर केंद्र में हो और लग्नेश बली हो तो 'काहल' योग बनता है।
--- यदि लग्नेश अपनी उच्च राशि का होकर केंद्र में में हो और गुरु से देखा जाता हो तो 'चामर' योग बनता है।
---- यदि पंचमेश और षष्ठेश परस्पर केंद्र में हो लग्नेश बलवान हो तो 'शंख' योग बनता है। लग्नेश कर्मेश दोनों चर राशि में हो और भाग्येश बली हो तो शंख योग बनता है।
---- यदि भाग्येश अपने परम उच्च का होकर केंद्र १,४,७,१० या अपने मूल त्रिकोण राशि में हो और लग्नेश बलवान हो तो 'लक्ष्मी' योग बनता है।
राजयोग
---- यदि सुखेश दशम स्थान में और कर्मेश सुख स्थान में हो और पंचमेश नवमेश से देखा जाता हो तो 'राजयोग' बनता है।
--- यदि नवम स्थान में गुरु की राशि हो और अपने स्थान में शुक्र हो तथा पंचमेश से युक्त हो तो जातक राजतुल्य होता है।
-- तीसरे ,छठे,आठवे भाव में अपनी नीच राशि का ग्रह भी योग कारक होता है इसमें से जो ग्रह लग्न को देखता हो वह राज योग कारक होता है।
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