****कहां होगी आपकि ससुराल ****
ससुराल कि दिशा व स्थान का निर्धारण कुंडली में शुक्र
कि स्थिति से किया जाता है| शुक्र यदि शुभ स्थान,
राशि में हो व कोई भी पाप ग्रह उसे
नहीं देख
रहा हो तो ससुराल स्थानीय या आसपास
होती है|
यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व शुक्र किसी पाप ग्रह
से देखे
जा रहे हों या शुक्र 6 , 8 , 12 वें भाव में हो तो जन्म
स्थान से दूर कन्या का ससुराल होता है| विवाह जन्म
स्थान से किस दिशा में होगा इसका निर्धारण भी शुक्र
से ही किया जाता है| कुंडली में
जहां शुक्र स्थित है उस
से सातवें स्थान पर जो राशि स्थित है उस राशि के
स्वामी की दिशा में
ही विवाह होता है| ग्रहों के
स्वामी व उनकी दिशा निम्न प्रकार है:-
राशि स्वामी दिशा
मेष, वृश्चिक मंगल दक्षिण
वृषभ , तुला शुक्र अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व)
मिथुन, कन्या बुध उत्तर
कर्क चंद्रमा वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम)
सिंह सूर्य( पूर्व)
धनु, मीन गुरु ईशान (उत्तर-पूर्व)
मकर, कुम्भ शनि (पश्चिम)
मतान्तर से मिथुन के स्वामी राहु व धनु के
स्वामी केतु
माने गए हैं तथा इनकी दिशा नैऋत्य (दक्षिण-
पश्चिम)
कोण मानी गयी है|
उदाहरण के लिए किसी कन्या का जन्म लग्न मेष
है व
शुक्र उसके पंचम भाव में बैठे हैं तो शुक्र से 7 गिनने पर 11
वां भाव आता है, जहां कुम्भ राशि है| इसके
स्वामी शनि हैं| राशि कि दिशा पश्चिम है| इसलिए
इस कन्या का ससुराल जन्म स्थान से पश्चिम दिशा में
होगा| कन्या के पिता को चाहिए कि वह इस दिशा से
प्राप्त विवाह प्रस्तावों पर प्रयास करें ताकि समय व
धन की बचत हो|
ससुराल कि दिशा व स्थान का निर्धारण कुंडली में शुक्र
कि स्थिति से किया जाता है| शुक्र यदि शुभ स्थान,
राशि में हो व कोई भी पाप ग्रह उसे
नहीं देख
रहा हो तो ससुराल स्थानीय या आसपास
होती है|
यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व शुक्र किसी पाप ग्रह
से देखे
जा रहे हों या शुक्र 6 , 8 , 12 वें भाव में हो तो जन्म
स्थान से दूर कन्या का ससुराल होता है| विवाह जन्म
स्थान से किस दिशा में होगा इसका निर्धारण भी शुक्र
से ही किया जाता है| कुंडली में
जहां शुक्र स्थित है उस
से सातवें स्थान पर जो राशि स्थित है उस राशि के
स्वामी की दिशा में
ही विवाह होता है| ग्रहों के
स्वामी व उनकी दिशा निम्न प्रकार है:-
राशि स्वामी दिशा
मेष, वृश्चिक मंगल दक्षिण
वृषभ , तुला शुक्र अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व)
मिथुन, कन्या बुध उत्तर
कर्क चंद्रमा वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम)
सिंह सूर्य( पूर्व)
धनु, मीन गुरु ईशान (उत्तर-पूर्व)
मकर, कुम्भ शनि (पश्चिम)
मतान्तर से मिथुन के स्वामी राहु व धनु के
स्वामी केतु
माने गए हैं तथा इनकी दिशा नैऋत्य (दक्षिण-
पश्चिम)
कोण मानी गयी है|
उदाहरण के लिए किसी कन्या का जन्म लग्न मेष
है व
शुक्र उसके पंचम भाव में बैठे हैं तो शुक्र से 7 गिनने पर 11
वां भाव आता है, जहां कुम्भ राशि है| इसके
स्वामी शनि हैं| राशि कि दिशा पश्चिम है| इसलिए
इस कन्या का ससुराल जन्म स्थान से पश्चिम दिशा में
होगा| कन्या के पिता को चाहिए कि वह इस दिशा से
प्राप्त विवाह प्रस्तावों पर प्रयास करें ताकि समय व
धन की बचत हो|
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