Thursday, July 31, 2014

मंगलवार

आसान उपाय जो धन संपदा के साथ मन की शांति के
लिए उत्तम हैं :
मंगलवार हनुमान जी के साथ ये दिन को गणेश
जी के लिए भी शुभ माना गया है। यह
दिन कर्ज से मुक्ति के लिए सबसे उत्तम है।
* इस दिन सुबह लाल गाय को रोटी देना शुभ है।
* मंगलवार को हनुमान मंदिर में नारियल रखना अच्छा माना जाता है।
* मंगलवार के दिन लाल वस्त्र, लाल फल, लाल फूल और लाल
रंग की मिठाई श्री गणेश को चढ़ाने से
मनचाही कामना पूरी होती है
* मंगलवार के दिन किसी देवी मंदिर में
ध्वजा चढ़ा कर आर्थिक
समृद्धि की प्रार्थना करनी चाहिए। पांच
मंगलवार तक ऐसा करने से धन के मार्ग
की सारी रूकावटें दूर
हो जाएगी।
* मन की शांति के लिए पांच लाल फूल
किसी मिट्टी के पात्र में गेहूं के साथ
रखकर घर की छत के पूर्वी कोने में
मंगलवार को ढंक कर रखें और अगले मंगलवार तक उसे छुए
नहीं। अगले मंगलवार को सारे गेहूं छत पर फैला दें
और फूलों को घर के मंदिर में रख लें। आपके जीवन
के सारे तनाव दूर होंगे और शांति आप खुद महसूस करेंगे।
* मंगलवार को इन चीजों के प्रयोग व दान का विशेष
महत्व है- तांबा, मतान्तर से सोना, केसर, कस्तूरी,
गेहूं, लाल चंदन, लाल गुलाब, सिन्दूर, शहद, लाल पुष्प, शेर,
मृगछाला, मसूर की दाल, लाल कनेर, लाल मिर्च, लाल
पत्थर, लाल मूंगा।

परिक्रमा करने के महत्व

परिक्रमा  करने के महत्व
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परिक्रमा के माध्यम से हम दैवीय शक्तियों को ग्रहण
कर सकते हैं और परिक्रमा के माधयम से हम
देवी देवताओ को प्रश्न कर सकते है ।
इसी वजह से परिक्रमा की परंपरा बनाई गई
है। जिससे भक्तों की सोच भी सकारात्मक
बनती है और बुरे विचारों से
मुक्ति मिलती है। प्रतिमा की परिक्रमा करने
से हमारे मन को भटकाने वाले विचार समाप्त हो जाते हैं और
शरीर ऊर्जावान व नयी उमंग उत्पन
होती है। रुके कार्यों में सफलता मिलती है।
देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर
से करनी चाहिए क्योकि दैवीय
शक्ति की आभामंडल
की गति दक्षिणावर्ती होती है।
बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर
दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और
हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे
हमारा तेज नष्ट हो जाता है.जाने-अनजाने की गई
उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है.
१. परिक्रमासे पहले देवतासे प्रार्थना करें ।
२. हाथ जोडकर, भावपूर्ण नामजप करते हुए मध्यम गतिसे
परिक्रमा लगाएं । ऐसा करते समय गर्भगृहको स्पर्श न करें ।
३. परिक्रमा लगाते हुए,
देवताकी पीठकी ओर पहुंचनेपर
रुकें एवं देवता को नमस्कार करें ।
४. संभव हो, तो देवताकी परिक्रमा सम संख्यामें (उदा. २,
४) एवं देवीकी विषम संख्यामें (उदा. १, ३)
परिक्रमा लगाएं ।
५. प्रत्येक परिक्रमाके उपरांत रुककर देवताको नमस्कार करें ।
किस देवता की, कितनी परिक्रमा करे ?
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जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान
की परिक्रमा जरुर लगाते है. पर
क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव
मूर्ति की परिक्रमा क्यो की जाती है?
शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण
प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ
दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है,यह निकट
होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए
प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के
ज्योतिर्मडल से निकलने वाले तेज की सहज
ही प्राप्ती हो जाती है।
किस देव
की कितनी परिक्रमा करनी चाहिये ?
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वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं
की एक
ही परिक्रमा की जाती है परंतु
शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए
परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई
है।इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान
की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य
की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप
नष्ट होते है.सभी देवताओं की परिक्रमा के
संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं.
1. - महिलाओं द्वारा "वटवृक्ष"
की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक है.
2. - "शिवजी"
की आधी परिक्रमा की जाती है.है
शिव जी की परिक्रमा करने से बुरे खयालात
और अनर्गल स्वप्नों का खात्मा होता है।भगवान शिव
की परिक्रमा करते समय जलाधार को न लांघे।
3. - "देवी मां" की एक या तीन
परिक्रमा की जानी चाहिए। नवार्ण मंत्र
का ध्यान जरूरी है।
4. - "श्रीगणेशजी और
हनुमानजी" की तीन
परिक्रमा करने का विधान है.गणेश
जी की परिक्रमा करने से
अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं
की तृप्ति होती है। गणेशजी के
विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने
लगते हैं।
5. - "भगवान विष्णुजी" एवं उनके
सभी अवतारों की चार
परिक्रमा करनी चाहिए.विष्णु
जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और
संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते
हैं.
6. - सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र
और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश
होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं.हमें भास्कराय मंत्र
का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है
जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर "ॐ भास्कराय नमः" का जाप
करना.इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं.
परिक्रमा के संबंध में नियम
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१. - परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में
रुकना नहीं चाहिए.साथ परिक्रमा वहीं खत्म
करें जहां से शुरु की गई थी.ध्यान रखें
कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण
नही मानी जाती
२. - परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत
कतई ना करें.जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं,
उनका ही ध्यान करें.
३.- उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ
परिक्रमा नहीं करनी चाहिये.
इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत
करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व
समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है.इस
प्रकार सही परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ
की प्राप्ती होती है।
विघ्न-बाधा दूर करें देव परिक्रमा
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मंदिरों, उपासना स्थलों में जाने से जहाँ हृदय पवित्र बनता है,
वहीं स्वच्छ, पवित्र शुभ एवं उत्तम
विचारों की सरिता भी कल-कल
बहती रहती है और सदा सकारात्मक
भावों का पोषण होकर इनके प्रति आस्था भी दृढ़
होती है। इनमें मंदिरों में
मूर्तियों की परिक्रमा करने से अनेक विघ्न- बाधाएँ दूर
होकर अनेक सोचे हुए कार्य भी सिद्ध होते देखे गए
हैं।
महिलाओं द्वारा वटवृक्ष की परिक्रमा करना सौभाग्य
का सूचक है। अपनी श्रद्धा-भावना और आस्था के
मुताबिक मंदिरों में मूर्ति दर्शन अत्यंत शुभ,
कल्याणकारी और ऊर्जादायी बताया गया है।
मंदिरों में प्रवेश करते ही, देवी-देवताओं के
सम्मुख हमारा ध्यान एकाग्र चित हो जाता है।
परिक्रमा के कुछ फायदे-
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विष्णु मंदिर की परिक्रमा निर्धारित क्रम से चार दफे करने
पर हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच
की वृद्धि करते हैं।
रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गजानंद
की परिक्रमा तीन बार करने से
अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं
की तृप्ति होती है। गणेशजी के
विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने
लगते हैं।
सूर्य मंदिर की परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद
से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ
विचार पोषित होते हैं। हमें भास्कराय मंत्र
का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है
जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर "ॐ भास्कराय नमः" का जाप
करना। देवी के मंदिर में महज एक परिक्रमा कर नवार्ण
मंत्र का ध्यान जरूरी है। इससे सँजोए गए संकल्प और
लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं।
भगवान भोलेनाथ की उपासना और
आधी परिक्रमा के साथ शिव पंचाक्षर मंत्र जाप
करना भी फायदेमंद है जिससे बुरे खयालात और अनर्गल
स्वप्नों का खात्मा होता है।
विष्णु मंदिर की परिक्रमा निर्धारित क्रम से चार दफे करने
पर हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच
की वृद्धि करते हैं।
इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत
करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व
समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है।
दार्शनिक महत्व :-
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इसका एक दार्शनिक महत्व यह भी है कि संपूर्ण
ब्रह्मांड का प्रत्येक ग्रह-
नक्षत्री किसी न किसी तारे
की परिक्रमा कर रहा है। यह
परिक्रमा ही जीवन का सत्य है।
व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र
है। इस चक्र को समझने के लिए ही परिक्रमा जैसे
प्रतीक को निर्मित किया गया। भगवान में
ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे
ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम
उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने
सारी सृष्टि की परिक्रमा कर
ली है।
परिक्रमा करने का व्यावहारिक और वैज्ञानिक पक्ष वास्तु और
वातावरण में फैली सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है।
दरअसल, भगवान की पूजा-अर्चना,
आरती के बाद भगवान के उनके आसपास के वातावरण में
चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है इस
सकारात्मक ऊर्जा के घेरे के भीतर चारों और
परिक्रमा करके व्यक्ति के भीतर
भी सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता और
नकारात्मकता घटती है। इससे मन में विश्वास का संचार
होकर जीवेषणा बढ़ती है।
धार्मिक महत्व :-
==========
भगवान की परिक्रमा का धार्मिक महत्व तो है
ही विद्वानों का मत है भगवान
की परिक्रमा से अक्षय पुण्य मिलता है, सुरक्षा प्राप्त
होती है और पापों का नाश होता है। पग-पग चलकर
प्रदक्षिणा करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
सभी पापों का तत्क्षण नाश हो जाता है। प्रदक्षिणा करने
से तन-मन-धन पवित्र हो जाते हैं व मनोवांछित फल
की प्राप्ति होती है। जहां पर यज्ञ
होता है वहां देवताओं साथ गंगा, यमुना व
सरस्वती सहित समस्त तीर्थों आदि का वास
होता है।
प्रदक्षिणा या परिक्रमा करने का मूल भाव स्वयं को शारीरिक
एवं मानसिक रूप से भगवान के समक्ष समर्पित कर
देना भी है।

कालसर्प योग

कालसर्प योग के दुष्परिणाम संक्षेप में
* विभिन्न प्रकार के दैहिक व मानसिक कष्ट भोगने पड़ते हैं।
स्वास्थ्य प्राय: बिगड़ा रहता है।
* पैतृक संपत्ति उसके जीवन में नष्ट
हो जाती है या पैतृक संपत्ति उसे
नहीं मिलती।
मिलती भी है तो आधी-
अधूरी।
* भाइयों का जातक को सुख नहीं मिलता। कार्य-
व्यवसाय में भाई-बंधु धोखा देते हैं।
* जन्म स्थान से दूर जाकर जीविकोपार्जन करता है।
भूमि-भवन का सुख नहीं मिलता है।
* शिक्षा भरपूर लेकर भी उसका जीवन
में उपयोग नहीं होता।
* संतान से कष्ट पाता है। संतान निकम्मी व
चरित्रहीन होती है।
* आजीवन जातक संघर्ष करता रहता है। शत्रु
भय निरंतर बना रहता है।
* गृहस्थ जीवन
सुखी नहीं रहता। गृहकलह
पीड़ा देता है। पत्नी मनोनुकूल
नहीं मिलती।
* भाग्य कभी साथ नहीं देता।
* दु:स्वप्न वशात् अनिद्रा का रोग पाल लेता है।
* कोर्ट-कचहरी, दावे-थाने के चक्कर लगाने पड़ते
हैं। धन का नाश

"रक्त दान,जीवन दान मगल दान

रक्त दान करने से मांगलिक दाेष काफी हद तक दूर
हाेता,
रक्त दान करने से दुर्घटना याेग कम होता करन यह है
की मंगल रक्त कारक,और दुर्घटना कारक है, रक्त
दा न करने से शरीर अंग अंश दान हाेता है
मंगल प्रसन्न होता है
रक्त दान करने से
"रक्त दान,जीवन दान
मगल दान,

घर के दरवाजे का चमत्कारी उपाय

घर के दरवाजे का चमत्कारी उपाय करें और चमकाएं
किस्मत
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काफी लोगों का मानना है कि इंसान चाहे लाख कोशिशें कर लें
लेकिन किस्मत का साथ न मिले तो कोई सफल
नहीं हो सकता। वहीं कुछ लोग कर्म
को प्रधान मानते हैं लेकिन कई बार पूरी मेहनत और
ईमानदारी से किए गए कर्म में
भी असफलता प्राप्त होती है। ऐसे में लोग
किस्मत या भाग्य को दोष देते हैं।
यदि भाग्य का साथ नहीं मिल रहा हो तो यहां जानिए
आपके घर पर किन बातों का ध्यान रखने से
आपकी किस्मत चमक जाएगी.
वास्तु के अनुसार घर की हर वस्तु
की स्थिति हमारे भाग्य को सीधे-
सीधे प्रभावित करती है।
इसी वजह से वास्तु में हर छोटी-
छोटी चीज का भी स्थान निर्धारित
किया गया है। इसके अलावा घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश न
हो और हमेशा परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बना रहे,
इसलिए कई अचूक उपाय बताए हैं।
शास्त्रों में श्री गणेश को परिवार का देवता माना गया है और
नियमित रूप से इनके दर्शन मात्र से
ही हमारी कई समस्याएं खुद
की समाप्त हो जाती है। गजानन को प्रथम
पूज्य का पद प्राप्त हैं और परिवार का देवता माना जाता है।
इनकी आराधना से घर
की सभी समस्याएं स्वत:
ही खत्म हो जाती है और सुख-समृद्धि में
बढ़ोतरी होती है।
वास्तु के अनुसार श्रीगणेश की एक अद्भुत
फोटो मुख्य दरवाजे के ऊपर लगाएं। ध्यान रहे
गणेशजी के इस फोटो में उनकी सूंड बाएं हाथ
की ओर होना चाहिए। इससे हमारे घर आने वाले
मेहमानों के मन को शांति मिलेगी और वे प्रसन्न होंगे।
ऐसा करने पर किस्मत के दरवाजे आपके लिए खुल जाएंगे।
सभी रुके हुए कार्य पूर्ण होने लगेंगे। ध्यान रहे इस
समय में किसी भी प्रकार का अधार्मिक कृत्य
न करें।
घर के कई वास्तु दोष दूर करने के लिए मुख्य द्वार पर प्रतिदिन
फूलों के हार लगाएं। ऐसा करने पर कई प्रकार के दोष दूर हो जाते
हैं। फूलों की महक से वातावरण सुगंधित होता है और
पवित्रता बनी रहती है। साथ
ही नेगेटिव एनर्जी निष्क्रीय
होती है और पॉजीटिव
एनर्जी सक्रिय रहती है। कोई
व्यक्ति हमारे घर में मुख्य दरवाजे से ही प्रवेश
करता है ऐसे में फूलों को देखकर वह प्रसन्नचित्त हो जाएगा और
इससे आपसी रिश्ते और अधिक गहरे हो जाएंगे। हार-
फूल को देखकर सभी देवी-
देवता भी प्रसन्न होते हैं। इससे हमारे घर पर
उनकी कृपा हमेशा बनी रहेगी।
यदि आप महालक्ष्मी की विशेष कृपा चाहते
हैं तो प्रतिदिन सुबह-सुबह आपके घर की मुख्य
महिला को यह उपाय करना चाहिए। उपाय के अनुसार सुबह घर के
दरवाजे के बाहर रंगोली बनाना चाहिए।
रंगोली के सकारात्मक प्रभाव से घर के आसपास
का वातारवण भी पॉजिटिव हो जाएगा और आपको कार्यों में
सफलता मिलेगी।

महाशक्तियों के मंत्र और उनके फल

जानिए महाशक्तियों के मंत्र और उनके फल
महाकाली मंत्र
ऊं ए क्लीं ह्लीं श्रीं ह्सौ: ऐं
ह्सौ: श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं जूं
क्लीं सं लं श्रीं र: अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं
लं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: ऊं कं खं गं घं डं ऊं चं छं जं झं त्रं ऊं टं
ठं डं ढं णं ऊं तं थं दं धं नं ऊं पं फं बं भं मं ऊं यं रं लं वं ऊं शं षं
हं क्षं स्वाहा।
विधि
यह महाकाली का उग्र मंत्र है।
इसकी साधना विंध्याचल के अष्टभुजा पर्वत पर त्रिकोण में
स्थित काली खोह में करने से शीघ्र
सिद्धि होती है अथवा श्मशान में
भी साधना की जा सकती है,
लेकिन घर में साधना नहीं करनी चाहिए। जप
संख्या 1100 है, जिन्हें 90 दिन तक अवश्य करना चाहिए। दिन में
महाकाली की पंचोपचार पूजा करके यथासंभव
फलाहार करते हुए निर्मलता, सावधानी,
निभीर्कतापूर्वक जप करने से
महाकाली सिद्धि प्रदान करती हैं। इसमें
होमादि की आवश्यकता नहीं होती।
फल
यह मंत्र सार्वभौम है। इससे सभी प्रकार के सुमंगलों,
मोहन, मारण, उच्चाटनादि तंत्रोक्त षड्कर्म
की सिद्धि होती है।
तारा
ऊं ह्लीं आधारशक्ति तारायै पृथ्वीयां नम:
पूजयीतो असि नम:
इस मंत्र का पुरश्चरण 32 लाख जप है। जपोपरांत होम द्रव्यों से
होम करना चाहिए।
फल
सिद्धि प्राप्ति के बाद साधक को तर्कशक्ति, शास्त्र ज्ञान,
बुद्धि कौशल आदि की प्राप्ति होती है।
भुवनेश्वरी
ह्लीं
अमावस्या को लकड़ी के पटरे पर उक्त मंत्र लिखकर
गर्भवती स्त्री को दिखाने से उसे सुखद
प्रसव होता है। गले तक जल में खड़े होकर, जल में
ही सूर्यमंडल को देखते हुए तीन हजार
बार मंत्र का जप करने वाला मनोनुकूल कन्या का वरण करता है।
अभिमंत्रित अन्न का सेवन करने से
लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
कमल पुष्पों से होम करने पर राजा का वशीकरण
होता है।
त्रिपुर सुंदरी
मंत्र
श्रीं ह्लीं क्लीं एं सौ: ऊं
ह्लीं श्रीं कएइलह्लीं हसकहलह्लीं संकलह्लीं सौ:
एं क्लीं ह्लीं श्रीं
विधि
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जप के पश्चात त्रिमधुर
(घी, शहद, शक्कर) मिश्रित कनेर के पुष्पों से होम
करना चाहिए।
फल
कमल पुष्पों के होम से धन व संपदा प्राप्ति, दही के
होम से उपद्रव नाश, लाजा के होम से राज्य प्राप्ति, कपूर, कुमकुम
व कस्तूरी के होम से कामदेव से भी अधिक
सौंदर्य की प्राप्ति होती है। अंगूर के होम
से वांछित सिद्धि व तिल के होम से मनोभिलाषा पूर्ति व गुग्गुल के होम
से दुखों का नाश होता है। कपूर के होमत्व से कवित्व
शक्ति आती है।
छिन्नमस्ता
ऊं श्रीं ह्लीं ह्लीं वज्र
वैरोचनीये ह्लीं ह्लीं फट्
स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। जप का दशांश होम पलाश
या बिल्व फलों से करना चाहिए।
तिल व अक्षतों के होम से सर्वजन वशीकरण,
स्त्री के रज से होम करने पर आकर्षण, श्वेत कनेर
पुष्पों से होम करने से रोग मुक्ति, मालती पुष्पों के होम
से वाचासिद्धि व चंपा के पुष्पों से होम करने पर सुख-
समृद्धि की प्राप्ति होती है।
धूमावती
मंत्र
ऊं धूं धूं धूमावती स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जप का दशांश तिल मिश्रित
घृत से होम करना चाहिए।
नीम की पत्ती व कौए के पंख
पर उक्त मंत्र खओ 108 बार पढ़कर देवता का नाम लेते हुए धूप
दिखाने से शत्रुओं में परस्पर विग्रह होता है।
बगलामुखी
ऊं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय
जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊं
स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जपोपरांत चंपा के पुष्प से
दशांश होम करना चाहिए। इस साधना में पीत वर्ण
की महत्ता है।
इंद्रवारुणी की जड़ को सात बार अभिमंत्रित
करके पानी में डालने से वर्षा का स्तंभन होता है।
सभी मनोरथों की पूर्ति के लिए एकांत में एक
लाख बार मंत्र का जप करें। शहद व शर्करायुत तिलों से होम करने
पर वशीकरण, तेलयुत नीम के पत्तों से होम
करने पर हरताल, शहद, घृत व शर्करायुत लवण से होम करने पर
आकर्षण होता है।
मातंगी
ऊं ह्लीं एं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्ट
चांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वंशकरि स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण दस हजार जप है। जप का दशांश शहद व
महुआ के पुष्पों से होम करना चाहिए। काम्य प्रयोग से पूर्व एक
हजार बार मूलमंत्र का जाप करके पुन: शहदयुक्त महुआ के
पुष्पों से होम करना चाहिए। पलाश के पत्तों या पुष्पों के होम से
वशीकरण, मल्लिका के पुष्पों के होम से लाभ, बिल्व
पुष्पों से राज्य प्राप्ति, नमक से आकर्षण होता है।
कमला
ऊं नम: कमलवासिन्यै स्वाहा
दस लाख जप करें। दशांश शहद, घी व शर्करा युक्त
लाल कमलों से होम करें, तो सभी कामनाएं पूर्ण
होंगी। समुद्र से गिरने
वाली नदी के जल में आकंठ जप करने पर
सभी प्रकार
की संपदा मिलती है।
महालक्ष्मी
ऊं श्रीं ह्लीं श्रीं कमले
कमलालयै प्रसीद प्रसीद ऊं
श्रीं ह्लीं श्रीं महालक्ष्मयै
नम:
एक लाख बार जप करें। शहद, घी व शर्करायुक्त बिल्व
फलों से दशांश होम करने से साधक के घर में
लक्ष्मी वास करती है।
यदि किसी को अधिक धन की प्रबल
कामना हो, तो वह सत्य वाचन करे, लक्ष्मी मंत्र व
श्रीसूक्त का पाठ व मंत्र करे। पूर्वाभिमुख होकर भोजन
करे व वार्तादि भी पूर्वाभिमुख होकर करे। जल में नग्न
होकर स्नान न करें। तेल मलकर भोजन करें। अनावश्यक रूप से भू-
खनन न

घर पर झंडा लगाने से बढ़ता है सुख क्योंकि...

घर पर झंडा लगाने से बढ़ता है सुख क्योंकि...
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झंडे या ध्वजा को विजय और
सकारात्मकता ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
इसीलिए पहले के जमाने में जब युद्ध में
या किसी अन्य कार्य में विजय प्राप्त
होती थी तो ध्वजा फहराई
जाती थी। वास्तु के अनुसार
भी झंडे को शुभता का प्रतीक
माना गया है। माना जाता है कि घर पर ध्वजा लगाने से नकारात्मक
ऊर्जा का नाश तो होता ही है साथ
ही घर को बुरी नजर
भी नहीं लगती है। लेकिन
घर के उत्तर-पश्चिम कोने में यदि ध्वजा लगाई
जाती है तो उसे वास्तु के दृष्टिकोण से बहुत अधिक
शुभ माना जाता है।
वायव्य कोण यानी उत्तर पश्चिम में
झंडा या ध्वजा वास्तु के अनुसार जरूर लगाना चाहिए
क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण
यानी वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है।
ज्योतिष के अनुसार राहु को रोग, शोक व दोष का कारक
माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि घर के इस
कोने में किसी भी तरह का वास्तुदोष
हो या ना भी हो तब
भी ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले
सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर
की सुख व समृद्धि बढ़ती है।

Tuesday, July 29, 2014

कहां होगी आपकि ससुराल

****कहां होगी आपकि ससुराल ****
ससुराल कि दिशा व स्थान का निर्धारण
कुंडली में शुक्र
कि स्थिति से किया जाता है| शुक्र यदि शुभ
स्थान,
राशि में हो व कोई भी पाप ग्रह उसे नहीं देख
रहा हो तो ससुराल स्थानीय या आसपास
होती है|
यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व शुक्र किसी पाप
ग्रह से देखे
जा रहे हों या शुक्र 6 , 8 , 12 वें भाव में
हो तो जन्म
स्थान से दूर कन्या का ससुराल होता है|
विवाह जन्म
स्थान से किस दिशा में
होगा इसका निर्धारण भी शुक्र
से ही किया जाता है| कुंडली में जहां शुक्र
स्थित है उस
से सातवें स्थान पर जो राशि स्थित है उस
राशि के
स्वामी की दिशा में ही विवाह होता है|
ग्रहों के
स्वामी व उनकी दिशा निम्न प्रकार है:-
राशि स्वामी दिशा
मेष, वृश्चिक मंगल दक्षिण
वृषभ , तुला शुक्र अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व)
मिथुन, कन्या बुध उत्तर
कर्क चंद्रमा वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम)
सिंह सूर्य( पूर्व)
धनु, मीन गुरु ईशान (उत्तर-पूर्व)
मकर, कुम्भ शनि (पश्चिम)
मतान्तर से मिथुन के स्वामी राहु व धनु के
स्वामी केतु
माने गए हैं तथा इनकी दिशा नैऋत्य (दक्षिण-
पश्चिम)
कोण मानी गयी है|
उदाहरण के लिए किसी कन्या का जन्म लग्न
मेष है व
शुक्र उसके पंचम भाव में बैठे हैं तो शुक्र से 7 गिनने
पर 11
वां भाव आता है, जहां कुम्भ राशि है| इसके
स्वामी शनि हैं| राशि कि दिशा पश्चिम है|
इसलिए
इस कन्या का ससुराल जन्म स्थान से पश्चिम
दिशा में
होगा| कन्या के पिता को चाहिए कि वह
इस दिशा से
प्राप्त विवाह प्रस्तावों पर प्रयास करें
ताकि समय व
धन की बचत हो !!

कुछ यक्षिणी साधना

तंत्र शास्त्र में यथा शीघ्र प्रसन्न होने
वाली कुछ यक्षिणी साधना -
यक्षिणी साधना - वनस्पति यक्षिणियां
भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया ,
उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने
वाली है ।
वनस्पति यक्षिणियां
कुछ
ऐसी यक्षिणियां भी होती हैं ,
जिनका वास किसी विशेष वनस्पति ( वृक्ष - पौधे )
पर होता है । उस वनस्पति का प्रयोग करते समय उस
यक्षिणी का मंत्र जपने से विशेष लाभ प्राप्त
होता है । वैसे भी वानस्पतिक
यक्षिणी की साधना की जा सकती है
। अन्य यक्षिणियों की भांति वे भी साधक
की कामनाएं पूर्ण करती हैं ।
वानस्पतिक यक्षिणियों के मंत्र भी भिन्न हैं । कुछ
बंदों के मंत्र भी प्राप्त होते हैं । इन
यक्षिणियों की साधना में काल
की प्रधानता है और स्थान
का भी महत्त्व है ।
जिस ऋतु में जिस वनस्पति का विकास हो , वही ऋतु
इनकी साधना में लेनी चाहिए । वसंत
ऋतु को सर्वोत्तम माना गया है । दूसरा पक्ष श्रावण मास
( वर्षा ऋतु ) का है । स्थान की दृष्टि से एकांत
अथवा सिद्धपीठ कामाख्या आदि उत्तम हैं । साधक
को उक्त साध्य वनस्पति की छाया में निकट बैठकर
उस यक्षिणी के दर्शन
की उत्सुकता रखते हुए एक माह तक मंत्र - जप
करने से सिद्धि प्राप्त होती हैं ।
साधना के पूर्व आषाढ़ की पूर्णिमा को क्षौरादि कर्म
करके शुभ मुहूर्त्त में बिल्वपत्र के नीचे बैठकर
शिव की षोडशोपचार पूजा करें और पूरे श्रावण मास में
इसी प्रकार पूजा - जप के साथ प्रतिदिन कुबेर
की पूजा करके निम्नलिखित कुबेर मंत्र का एक
सौ आठ बार जप करें -
'' ॐ यक्षराज नमस्तुभ्यं शंकर प्रिय बांधव ।
एकां मे वशगां नित्यं यक्षिणी कुरु ते नमः ॥
इसके पश्चात् अभीष्ट यक्षिणी के मंत्र
का जप करें । ब्रह्मचर्य और हविष्यान्न भक्षण
आदि नियमों का पालन आवश्यक है । प्रतिदिन
कुमारी - पूजन करें और जप के समय बलि नैवेद्य
पास रखें । जब यक्षिणी मांगे , तब वह अर्पित करें
। वर मांगने की कहने पर यथोचित वर मांगें । द्रव्य
- प्राप्त होने पर उसे शुभ कार्य में भी व्यय करें ।
यह विषय अति रहस्यमय है ।
सबकी बलि सामग्री , जप - संख्या ,
जप - माला आदि भिन्न - भिन्न हैं । अतः साधक
किसी योग्य गुरु की देख - रेख में
पूरी विधि जानकर सधना करें ,
क्योंकि यक्षिणी देवियां अनेक रुप में दर्शन
देती हैं उससे भय भी होता है ।
वानस्पतिक यक्षिणियों के वर्ग में प्रमुख नाम और उनके मंत्र इस
प्रकार हैं -
बिल्व यक्षिणी - ॐ
क्ली ह्रीं ऐं ॐ
श्रीं महायक्षिण्यै सर्वेश्वर्यप्रदात्र्यै ॐ
नमः श्रीं क्लीं ऐ आं स्वाहा ।
इस यक्षिणी की साधना से ऐश्वर्य
की प्राप्ति होती है ।
निर्गुण्डी यक्षिणी - ॐ ऐं
सरस्वत्यै नमः ।
इस यक्षिणी की साधना से विद्या - लाभ
होता है ।
अर्क यक्षिणी - ॐ ऐं महायक्षिण्यै
सर्वकार्यसाधनं कुरु कुरु स्वाहा ।
सर्वकार्य साधन के निमित्त इस
यक्षिणी की साधना करनी चाहिए

श्वेतगुंजा यक्षिणी - ॐ जगन्मात्रे नमः ।
इस यक्षिणी की साधना से अत्याधिक
संतोष की प्राप्ति होती है ।
तुलसी यक्षिणी - ॐ
क्लीं क्लीं नमः ।
राजसुख की प्राप्ति के लिए इस
यक्षिणी की साधना की जाती है

कुश यक्षिणी - ॐ वाड्मयायै नमः ।
वाकसिद्धि हेतु इस
यक्षिणी की साधना करें ।
पिप्पल यक्षिणी - ॐ ऐं
क्लीं मे धनं कुरु कुरु स्वाहा ।
इस यक्षिणी की साधना से
पुत्रादि की प्राप्ति होती है । जिनके
कोई पुत्र न हो , उन्हें इस
यक्षिणी की साधना करनी चाहिए

उदुम्बर यक्षिणी - ॐ
ह्रीं श्रीं शारदायै नमः ।
विद्या की प्राप्ति के निमित्त इस
यक्षिणी की साधना करें ।
अपामार्ग यक्षिणी - ॐ
ह्रीं भारत्यै नमः ।
इस यक्षिणी की साधना करने से परम
ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
धात्री यक्षिणी - ऐं
क्लीं नमः ।
इस यक्षिणी के मंत्र - जप और करने से साधना से
जीवन की सभी अशुभताओं
का निवारण हो जाता है ।
सहदेई यक्षिणी - ॐ
नमो भगवति सहदेई सदबलदायिनी सदेववत् कुरु कुरु
स्वाहा ।
इस यक्षिणी की साधना से धन -
संपत्ति की प्राप्ति होती है । पहले
के धन की वृद्धि होती है तथा मान -
सम्मान आदि इस यक्षिणी की कृपा से
सहज ही प्राप्त हो जाता है ।....

विवाह बाधा

गुरूवार के दिन सुबह स्नान कर भगवान विष्णु का पूजन करें।
उसके बाद हल्दीयुक्त रोटियां बनाकर प्रत्येक
रोटी पर गुड़ रखें व उसे गाय को खिलाएं ।7 गुरूवार
नियमित रूप से यह विधि करने से जल्दी विवाह
होता है ।
- यदि किसी को मंगल दोष हो तो मंगलवार के दिन
देवी -मंदिर में लाल गुलाब का फूल चढ़ाएं और पूजन
करें।मंगलवार का व्रत रखें। यह काम नौ मंगलवार तक करें।
अंतिम मंगलवार को नौ कन्याओं को भोजन करवाकर लाल वस्त्र,
मेंहदी और दक्षिणा दें। शीघ्र फल
की प्राप्ति होगी ।
- कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि नंद गोपसुतं
देविपतिं में कुरू ते नम:।
मां कात्यायनि देवी या पार्वती देवी के
फोटो को सामने रखकर जो कन्या पूजन कर इस कात्यायनि मंत्र
की माला का जाप प्रतिदिन करती है , उस
कन्या की विवाह बाधा शीघ्र दूर
होती है ।
- यदि किसी लड़के
या लड़की की कुंडली में
सूर्य की वजह से विवाह होने में बाधा उत्पन्न
हो रही हो तो प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में सूर्य
को जल चढ़ाएं और इस मंत्र का जप करें। मंत्र: ऊँ सूर्याय:
नम:।

हमारे पापकर्म और हमारी पीडाएं

हमारे पापकर्म और हमारी पीडाएं
============================
हम अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि मैंने
कभी कोई बुरा काम नहीं किया फिर
भी मैं बीमारियों से परेशान हूँ. ऐसा मेरे साथ
क्यों हो रहा हैं. क्या भगवान बहुत कठोर और
निर्दयी हैं ?
पहली बात तो हमें ये समझ लेनी चाहिए
कि हमारे कार्यों और भगवान का कोई सम्बन्ध नहीं है
इसलिए हमें अपनी परेशानियों और पीडाओं के
लिए ईश्वर को दोषी नहीं मानना चाहिए.
यदि आप सह्गुनी हैं तो आप जीवन में
संपन्न और सुखी रहते हैं. यदि आप लोगों को सताते हैं
या पाप कर्म करते हैं तो आप पीड़ित होते हैं और
तरह तरह की बीमारियाँ कष्ट
देती हैं. हमारे कार्यों का हम पर निश्चित रूप से असर
होता है. कभी हमारे कर्मों का प्रभाव
इसी जन्म में तो कभी अगले जन्म में
मिलता हैं लेकिन मिलता जरुर है. आशय है कि हम अपने कर्मों के
प्रभाव से कभी मुक्त नहीं होते यह बात
अलग है कि इसका प्रभाव तुरंत दिखाई न दे .
इस लेख में इस बात का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है कि हमारे
पाप हमें किस रूप में लौटकर मिलते हैं और पीड़ित करते
हैं. यदि आप किसी रोग से पीड़ित है तो ये
समझें कि आपने अवश्य ही कोई पाप पूर्व जन्म में
किया है. आपके पाप कर्म द्वारा होने वाली कुछ
बीमारियों को साकेंतिक रूप में नीचे
दिया जा रहा है.
- लोगों का धन लूटने वाले गले
की बीमारी से पीड़ित
होते हैं.
- पढ़े लिखे ज्ञानी जन के प्रति दुर्भावना से काम करने
वाले व्यक्ति को सिरदर्द की शिकायत
रहती है.
- हरे पेड़ काटने वाले और
सब्जियों की चोरी करने में लगे व्यक्ति अगले
जन्म में शरीर के अन्दर अल्सर (घाव)से
पीड़ित होते हैं.
- झूठे और धोखाधड़ी करने वाले
लोगों को उल्टी की बीमारी होती है.
- गरीब लोगों का धन चुराने वाले लोगों को कफ और
खांसी से कष्ट होता है.
- यदि कोई समाज के श्रेष्ठ पुरुष (विद्वान)
की हत्या कर देता है तो उसे तपेदिक रोग होता है.
- गाय का वध करने वाले कुबड़े बनते हैं.
- निर्दोष व्यक्ति का वध करने वाले को कोढ़ होता है.
- जो अपने गुरु का अपमान करता है उसे मिर्गी का रोग
होता है.
- वेद और पुराणों का अपमान और निरादर करने वाले व्यक्ति को बार बार
पीलिया होता है.
- झूठी गवाही देने वाले व्यक्ति गूंगे हो जाते
हैं.
- पुस्तकों और ग्रंथो की चोरी करने वाले
व्यक्ति अंधे हो जाते हैं.
- गाय और विद्वानों को लात मरने वाले व्यक्ति अगले जन्म में लगड़े
बनते हैं.
- वेदों और उसके अनुयायियों का निरादर करने वाले
व्यक्ति को किडनी रोग होता है.
- दूसरों को कटु वचन बोलने वाले अगले जन्म में हृदय रोग से कष्ट
पाते हैं.
- जो सांप, घोड़े और गायों का वध करता है वह
संतानहीन होता है.
- कपड़े चुराने वालों को चर्म रोग होते हैं.
- परस्त्रीगमन करने वाला अगले जन्म में
कुत्ता बनता है.
- जो दान नहीं करता है वह
गरीबी में जन्म लेता है.
- आयु में बड़ी स्त्री से सहवास करने से
डायबिटीज़ रोग होता है.
- जो अन्य महिलाओं को कामुक नजर से देखता है
उसकी आंखें कमजोर होती हैं.
- नमक चुराने वाला व्यक्ति चींटी बनता है.
- जानवरों का शिकार करने वाले बकरे बनते हैं.
- जो ब्राह्मन होकर भी गायत्री मंत्र
नहीं पढ़ता वो अगले जन्म में बगुला बनता है.
- जो ज्ञानी और सदाचारी पुरुषों को दिए गए
अपने वचन से मुकर जाता है वह अगले जन्म में
गीदड़ बनता है.
- जो दुकानदार नकली माल बेचते हैं वे अगले जन्म में
उल्लू बनते हैं.
- जो अपनी पत्नी को पसंद
नहीं करते वो खच्चर बनते है.
- जो व्यक्ति अपने माता पिता और गुरुजनों का निरादर करता है
उसकी गर्भ में
ही हत्या हो जाती है.
- मित्र की पत्नी से सम्बन्ध बनाने
की इच्छा रखने वाला अगले जन्म में गधा बनता है.
- मदिरा का सेवन करने वाला व्यक्ति भेड़ियाँ बनता है.
- जो स्त्री अपने पति को छोड़कर दूसरे पुरुष के साथ भाग
जाती है वह घोड़ी बन
जाती है.
पूर्व जन्म में किये गए पापों से उत्त्पन्न रोग कैसे दूर हों ?
पूर्व जन्मार्जितं पापं व्याधि रूपेण व्याधिते,
तछंती: औषधनैधान्ने: जपाहोमा क्रियादिभी:
पूर्व जन्म के जो पाप हमें रोग के रूप में आकर पीड़ित
करते हैं उनका निराकरण करने के लिए दवाइयां, दान, मंत्र जप, पूजा,
अनुष्ठान करने चाहिए. केवल यह
ही नहीं हमें गलत काम करने से
भी बचना चाहिए. तभी हम पूर्वजन्म कृत
पापों के दुष्प्रभाव से मुक्त हो सकेगें.

मंत्र लिख देने से बच्चा विद्वान होता है।

उपाय :-
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बच्चे के गर्भ से निकलने के बाद
उसकी जीभ पर
चांदी की शलाका मधु में डुबाकर उससे
‘ऐं’ मंत्र लिख देने से बच्चा विद्वान होता है। अगर जन्म के
समय ऐसा संभव नहीं हो, तो प्रत्येक बुधवार
या पंचमी को यह क्रिया करें।
बच्चे को पढ़ते समय पूर्वाभिमुख होकर बैठना चाहिए और टेबल
पर आगे में एजुकेशन टॉवर तथा छोटा ग्लोब रखना चाहिए।
वृष या कुंभ लग्न के जातक को सोने
की अंगूठी में सवा 6 या सवा 7
रत्ती का पन्ना बुधवार को कनिष्ठिका में धारण
करना चाहिए।
उच्च शिक्षा के लिए मेष लग्न के जातक माणिक्य, मिथुन के
हीरा, कर्क के मूंगा, सिंह के पुखराज, कन्या के
नीलम, तुला के नीलम, वृश्चिक के
पुखराज, धनु के मूंगा, मकर के हीरा और
मीन के जातक मोती धारण कर सकते
हैं।
बच्चे को परीक्षा में मनोनुकूल फल
नहीं मिलता हो या वह असफल रहता हो,
तो किसी भी माह के शुक्ल पक्ष
की पंचमी से अगले कृष्ण पक्ष
की पंचमी तक गणेश
जी को ‘ॐ गं गणेशाय नमः’ पढ़ते हुए
108 बार बारी-बारी से दुर्वा चढ़ाएं।
परीक्षा के दिन
यही दुर्वा अपनी दाहिनी तरफ
लेकर जाएं, सफलता मिलेगी।
विद्यार्थी को प्रातःकाल गणपति जी के
श्लोक का पाठ कर गणेश जी का ध्यान करके
अध्ययन करना चाहिए।
शुक्लाम्बरं धरंदेव शशिवर्णं चतुर्भुजम। प्रसन्नवदनं ध्यायेत
सर्वाविघ्नोपशान्तये॥ सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लंबोदरश्च विकटो विघ्न नाशो विनायकः॥ धूम्र केतुर्गणाध्यक्षो भाल
चंद्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानियः य. पठेच्छ् श्रुणयादपि॥
गणेश चतुर्थी को गणेश
जी की पूजा करके ‘ॐ गं
गणेशाय नमः’ या ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का 108 बार
जप करें।
वसंत पंचमी के दिन
सरस्वती जी की पूजा करने
के बाद स्फटिक माला पर ‘ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः’ मंत्र
का 1008 बार जप करें।
किसी भी माह के प्रथम शुक्रवार
को हरे हकीक पर ‘ॐ ऐं ऐं ॐ’
मंत्र 51 बार पढ़ कर हरे वस्त्र में लपेटकर मजार पर चढ़ा देने
से शिक्षा में आने वाली बाधा दूर
हो जाती है।
गुरुवार को धर्म स्थान में धार्मिक पुस्तक दान करें।
घर में सरस्वती यंत्र प्राण-प्रतिष्ठित करके स्थापित
करने से शिक्षा सुचारू रूप से चलती है।

Monday, July 28, 2014

सूर्योपासना

!!ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।!
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।वेदों में
सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त
चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही हैं।
सूर्य से ही इस पृथ्वी पर
जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य शाश्वत
सच्चाई है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे
जगत का कर्ता-धर्ता मानते थे। सूर्य का शब्दार्थ है सर्व
प्रेरक। यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व
कल्याणकारी हैं। ऋग्वेद के अनुसार देवताओं में
सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने
``चक्षो सूर्यो जायत'' कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र
माना है। छांदोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरुपित कर
उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ
बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप
मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक
ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य
को ही संपूर्ण जगत
की उत्पत्ति का एकमात्र कारण निरुपित किया गया है
और उन्हीं को संपूर्ण जगत
की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद
की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत
की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य
ही करते हैं। सूर्य ही संपूर्ण जगत
की अंतरात्मा हैं। अत: कोई आश्चर्य
नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में
सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह
सूर्योपासना मंत्रों से होती थी, बाद में
मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र-तत्र सूर्य मंदिरों का निर्माण
हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा-विष्णु के मध्य एक संवाद में
सूर्य पूजा तथा मंदिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक
पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है
कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त
श्रीकृष्ण पुत्र सांब ने सूर्य
की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुिक्त
पायी थी। प्राचीन काल में
भगवान सूर्य के अनेक मंदिर भारत में बने हुए थे। उनमें से कुछ
आज विश्व प्रसिद्ध हैं। कोणार्क का सूर्य मंदिर उनमें से एक
है। वैदिक साहित्य में ही नहीं,
बल्कि आयुर्वेद और ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में
भी सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
सूर्य के आदित्य मंत्र :
विनियोग : ॐ आकृष्णेनि मंत्रस्य हिरण्यस्तूपांगिरस
ऋषि स्त्रिष्टुप्छंद: सूर्यो देवता सूर्यप्रीत्यर्थे जपे
विनियोग:
देहांगन्यास : आकृष्णेन शिरसि, रजसा ललाटे, वर्तमानो मुखे,
निवेशयन हृदये, अमृतं नाभौ, मर्त्यं च कट्याम, हिरण्येन
सविता ऊर्व्वौ, रथेना जान्वो:, देवो याति जंघयो:, भुवनानि पश्यन
पादयो:
करन्यास : आकृष्णेन रजसा अंगुष्ठाभ्याम नम:,
वर्तमानो निवेशयन तर्जनीभ्याम नम:, अमृतं: मर्त्यं
च मध्यामाभ्याम नम:, हिरण्ययेन अनामिकाभ्याम नम:,
सविता रथेना कनिष्ठिकाभ्याम नम:, देवो याति भुवनानि पश्यन
करतलपृष्ठाभ्याम नम:
हृदयादिन्यास : आकृष्णेन रजसा हृदयाय नम:,
वर्तमानो निवेशयन शिरसे स्वाहा, अमृतं मर्त्यं च शिखायै वषट,
हिरण्येन कवचाय हुम, सविता रथेना नेत्रत्र्याय वौषट,
देवो याति भुवनानि पश्यन अस्त्राय फ़ट (दोनों हाथों को सिर के
ऊपर घुमाकर दायें हाथ
की पहली दोनों उंगलियों से बायें हाथ पर
ताली बजायें।)
ध्यानम : पदमासन: पद मकरो द्विबाहु: पद मद्युति:
सप्ततुरंगवाहन: । दिवाकरो लोकगुरु:
किरीटी मयि प्रसादं विद्धातु देव:।।
सूर्य गायत्री : ॐ आदित्याय विद्महे
दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।
सूर्य बीज मंत्र : ॐ
ह्रां ह्रीं ह्रौं स: ॐ भूर्भुव: स्व:
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतम्मर्तंच।
हिण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन ॐ स्व:
भुव: भू: ॐ स:
ह्रौं ह्रीं ह्रां ॐ सूर्याय नम: ।।
सूर्य जप मंत्र : ॐ ह्राँ ह्रीं ह्रौं स:
सूर्याय नम: । नित्य जाप 7000

सावन स्पेशल: जानिए महत्व, उपाय

सावन स्पेशल: जानिए महत्व, उपाय, टोटके, पूजन विधि और
भी बहुत कुछ........
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हिंदू पंचांग के पांचवे महीने को सावन कहते हैं।
धर्म शास्त्रों में इसे श्रावण भी कहा गया है।
श्रावण का अर्थ है सुनना। इसलिए यह
भी कहा जाता है कि इस महीने में
सत्संग, प्रवचन व धर्मोपदेश सुनने से विशेष फल मिलता है।
यह महीना भगवान शंकर की भक्ति के
लिए विशेष माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मास में
विधि पूर्वक शिव उपासना करने से मनचाहे फल
की प्राप्ति होती है। सावन में
ही कई प्रमुख त्योहार जैसे-
हरियाली अमावस्या,
नागपंचमी तथा रक्षा बंधन आदि आते हैं। इस माह
में भक्ति, आराधना तथा प्रकृति के कई रंग देखने को मिलते हैं।
सावन की रिमझिम बारिश और प्राकृतिक वातावरण
बरबस में मन में उल्लास व उमंग भर देती है। अगर
यह कहा जाए कि सावन
का महीना पूरी तरह से शिव
तथा प्रकृति को समर्पित है
तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसलिए
कहते हैं श्रावण
हिन्दू पंचांग का पांचवा माह श्रावण होता है। ज्योतिष के अनुसार
इस मास के दौरान या पूर्णिमा के दिन आकाश में श्रवण नक्षत्र
का योग बनता है इसलिए श्रवण नक्षत्र के नाम से इस माह
का नाम श्रावण हुआ। इस माह से चातुर्मास
की शुरुआत होती है। यह माह
चातुर्मास के चार महीनों में बहुत शुभ माह
माना जाता है। चातुर्मास धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व
रखता है। शिव पूजा का विशेष महत्व
धर्म शास्त्रों में सावन में भगवान शिव
की आराधना का महत्व अधिक बताया गया है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार ऋषि मार्कण्डेय ने
लंबी उम्र के लिए शिव की प्रसन्नता के
लिए श्रावण मास में कठिन तप किया, जिसके प्रभाव से मृत्यु के
देवता यमराज भी पराजित हो गए। यह
भी मान्यता है कि सावन में शिव
द्वारा पार्वती को सुनाई गई अमरत्व कथा सुनाने से
सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
यही कारण है कि सावन में शिव आराधना का विशेष
महत्व है। राशि अनुसार ये उपाय करें
धर्म ग्रंथों के अनुसार इस महीने में यदि भगवान
शंकर की पूजा विधि-विधान से की जाए
तो हर
मनोकामना जल्दी ही पूरी हो जाती है।
अगर आप चाहते हैं कि आपकी हर
इच्छा पूरी हो तो सावन में पूरे महीने
अपनी राशि के अनुसार ये उपाय करें-
मेष- इस राशि के लोग प्रतिदिन जल में गुड़ मिलाकर भगवान शिव
का अभिषेक करें अथवा जल में कुंकुम मिलाकर भी शिव
का अभिषेक कर सकते हैं। शिव पंचाक्षर मंत्र का जप करें।
वृष- इस राशि के लोगों के लिए दही से शिव
का अभिषेक शुभ फल देता है। इससे धन
संबंधी समस्या का निदान होता है। साथ
ही भगवान शिव की स्तुति करें व बिल्व
पत्र भी चढ़ाएं तो और जल्दी फल
प्राप्त होगा।मिथुन- इस राशि का लोग गन्ने के रस से भगवान शिव
का अभिषेक रोज एक महीने तक करें
तो जल्दी ही उसकी हर
मनोकामना पूरी हो जाएगी। भगवान शिव
को धतूरा भी चढ़ाएं।कर्क- इस राशि के शिवभक्त
अपनी राशि के अनुसार शक्कर मिला हुआ दूध
भगवान शिव को चढ़ाएं। साथ ही आंकड़े के फूल
भी अर्पित करें।सिंह- सिंह राशि के व्यक्ति लाल
चंदन के जल से शिव जी का अभिषेक करें तथा शिव
अमृतवाणी सुनें। इससे इनकी हर
मनोकामना पूरी होगी।कन्या- इस राशि के
व्यक्तियों को विजया(भांग) मिश्रित जल से भगवान शिव का अभिषेक
करना चाहिए इससे यदि इन्हें कोई रोग होगा तो वह समाप्त
हो जाएगा।तुला- इस राशि के तो लोग भगवान शिव का गाय के
घी और इत्र या सुगंधित तेल से अभिषेक करें। साथ
ही केसर मिश्रित मिठाई का भोग
भी लगाएं। इससे इनके जीवन में सुख-
समृद्धि आएगी।वृश्चिक- शहद मिश्रित जल से
भगवान शिव जी का अभिषेक वृश्चिक राशि के
जातकों के लिए शीघ्र फल देने वाला माना जाता है।
शहद न हो तो शक्कर का उपयोग भी कर सकते
हैं।धनु- इस राशि के जातकों को दूध में केसर मिलाकर भगवान शिव
का अभिषेक करना चाहिए। साथ ही शिव पंचाक्षर
स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
मकर- आप अपनी राशि के अनुसार
तिल्ली के तेल से शिव जी का अभिषेक
करें तो आपको हर काम में सफलता मिलेगी। भगवान
शिव को बिल्व पत्र भी चढ़ाएं।कुंभ- इस राशि के
व्यक्तियों को पूरे सावन माह में नारियल के
पानी या सरसों के तेल से भगवान शिव का अभिषेक
करना चाहिए। इससे इन्हें धन लाभ होगा।मीन- इस
राशि के जातक पानी में केशर मिलाकर भगवान शिव
जी का अभिषेक करें।
मनोकामना पूर्ति के अचूक टोटके
शिवमहापुराण में विभिन्न रसों से शिव
की पूजा का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है,
जिससे साधक को कई रोगों से छुटकार मिल जाता है
वहीं मन चाहे फल
की प्राप्ति भी होती है।
यह इस प्रकार है-
- ज्वर(बुखार) से पीडि़त होने पर भगवान शिव
को जलधारा चढ़ाने से शीघ्रताशीघ्र लाभ
मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए
भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम
बताई गई है।
- नपुंसक व्यक्ति अगर घी से शिव
की पूजा करे व ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार
का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान हो जाता है।
- तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।
- सुगंधित तेल से शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में
वृद्धि होती है।
- भगवान शिव पर ईख (गन्ना) के रस की धारा चढ़ाई
जाए
तो सभी आनन्दों की प्राप्ति होती है।
- शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष
दोनों की प्राप्ति होती है। - मधु
(शहद) की धारा शिव पर चढ़ाने से
राजयक्ष्मा(टीबी) रोग दूर हो जाता है।
फूल चढ़ाकर करें शिव को प्रसन्न
शिवपुराण की रुद्रसंहिता में भगवान शिव का विभिन्न
पुष्पों से पूजन करने तथा उनसे प्राप्त होने वाले फलों का विस्तृत
वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है-
- लाल व सफेद आंकड़े के फूल से शिव का पूजन करने पर भोग
व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख
मिलता है।
- अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य
भगवान विष्णु को प्रिय होता है। - शमी पत्रों से
पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।
- बेला के फूल सेपूजन करने पर शुभ लक्षणों से युक्त
पत्नी मिलती है।
- जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में
कभी अन्न
की कमी नहीं होती।
- कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नवीन
वस्त्रों की प्राप्ति होती है।
- हरसिंगार के पुष्पों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में
वृद्धि होती है।
- धतूरे के पुष्प के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र
प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
- लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।
- दुर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।अनाज से
भी प्रसन्न होते हैं शिव
धर्म ग्रंथों में भगवान शिव को विभिन्न प्रकार के अनाज अर्पित
करने का भी विधान बताया गया है जो इस प्रकार है-
- भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन
की प्राप्ति होती है।
- तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।
- जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।
- भगवान शिव को गेंहू चढ़ाने से संतान
वृद्धि होती है।
यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने पश्चात
गरीबों में वितरित कर देना चाहिए।शिव पूजन
की आसान विधि
सावन में भगवान शिव को रोज पूजा करने से पुण्य फल प्राप्त
होते हैं।
भगवान शिव की पूजा इस विधि से करें-
- सुबह और शाम स्नान के बाद सफेद कपड़े पहन शिव के साथ
माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय और
नंदीगण की पूजा करें।
- पूजा में सवेरे मुख पूर्व दिशा में वहीं शाम के वक्त
पश्चिम दिशा की ओर रखें।
- शिव परिवार को पंचामृत यानी दूध, दही,
शहद, शक्कर, घी व जलधारा से स्नान कराकर,
गंध, चावल, चंदन, रोली, सफेद फूल, बिल्वपत्र व
सफेद वस्त्र चढ़ाएं।
- शिव को प्रिय बेलपत्र, भांग-धतूरा भी पूजा में
चढ़ाएं। सफेद मिठाई या पकवानों का भोग लगाएं।
- पूजा के दौरान शिव के पंचाक्षरी ऊँ नम: शिवाय मंत्र
का जप करते रहें।
- शिव की धूप व गाय के
घी का दीप जलाकर
आरती करें।
- पूजा के बाद शिव स्त्रोत, शिव ताण्डव स्त्रोत, शिव भजन करें।
- पूजा व जीवन में हुए सारे जाने अनजाने दोषों के
लिए भगवान शिव से क्षमा मांगे। प्रसाद ग्रहण करें व बांटें।

सुंदरकांड का पाठ क्यों किया जाता है,

सुंदरकांड का पाठ क्यों किया जाता है, जानिए खास बातें
अक्सर शुभ अवसरों पर
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित
श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ किया जाता है।
शुभ कार्यों की शुरुआत से पहले सुंदरकांड का पाठ
करने का विशेष महत्व माना गया है। जब
भी किसी व्यक्ति के जीवन
में ज्यादा परेशानियां हों, कोई काम नहीं बन रहा हो,
आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और
समस्या हो, सुंदरकांड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जात
हैं। कई ज्योतिषी और संत
भी विपरीत परिस्थितियों में सुंदरकांड
का पाठ करने की सलाह देते हैं। यहां जानिए
सुंदरकांड का पाठ विशेष रूप से क्यों किया जाता है?
सुंदरकांड के लाभ से मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभ
वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड
की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण
श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के
गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है। सुंदरकांड
एकमात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त
हनुमान की विजय का कांड है। मनोवैज्ञानिक नजरिए
से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने
वाला कांड है। सुंदरकांड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक
शक्ति प्राप्त होती है।
किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए
आत्मविश्वास मिलता है।
हनुमानजी जो कि वानर थे, वे समुद्र को लांघकर
लंका पहुंच गए और
वहां सीता की खोज की।
लंका को जलाया और सीता का संदेश लेकर
श्रीराम के पास लौट आए। यह एक भक्त
की जीत का कांड है,
जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार
कर सकता है। सुंदरकांड में जीवन
की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र
भी दिए गए हैं। इसलिए पूरी रामायण में
सुंदरकांड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में
आत्मविश्वास बढ़ाता है। इसी वजह से सुंदरकांड
का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।
सुंदरकांड के लाभ से मिलता है धार्मिक लाभ
हनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं
को पूर्ण करने वाली मानी गई है।
बजरंग बली बहुत जल्दी प्रसन्न
होने वाले देवता हैं। शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के
कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं उपायों में से एक
उपाय सुंदरकांड का पाठ करना है। सुंदरकांड के पाठ से
हनुमानजी के साथ
ही श्रीराम
की भी विशेष कृपा प्राप्त
होती है। किसी भी प्रकार
की परेशानी हो, सुंदरकांड के पाठ से दूर
हो जाती है। यह एक श्रेष्ठ और सबसे सरल
उपाय है। इसी वजह से काफी लोग
सुंदरकांड का पाठ नियमित रूप करते हैं।

नवग्रह शांति हेतु (उपयोगी तेल )

अनुभूत प्रयोग नवग्रह शांति हेतु (उपयोगी तेल )
सूर्य तेल :=सूरजमुखी और तिल का तेल आधा-
आधा लीटर लेकर उसमे पांच ग्राम लौंग का तेल और
दस ग्राम केसर मिलाये और सात दिनों तक एक कांच के बोतल में
सूर्य कि रौशनी में रखे
सात दिनों बाद इस तेल को स्नान के बाद सर पे लगाये ....सूर्य
का अनिष्ट प्रभाव दूर होगा
चन्द्र तेल :=सफ़ेद तिल का एक लीटर तेल ले उसमे
सौ ग्राम चन्दन का तेल एवं पचास ग्राम कपूर डालकर एक कांच
के बोतल में भरकर सात दिनों तक चन्द्रमा कि रौशनी में
रखे
सात दिनों बाद नित्य स्नान पूर्व सारे शरीर पर इस तेल
कि मालिश करे ..स्नान बाद यही तेल बालो में
भी लगाये ..चन्द्र का अनिष्ट प्रभाव दूर होगा
मंगल तेल :=सफ़ेद तिल का तेल आधा लीटर और
पिली सरसो का तेल आधा लीटर लेकर
दोनों को मिला ले फिर इसमें सौ ग्राम लौंग का तेल मिला ले इसे
भी कांच कि बोतल में भरकर किसी कुऐ के
पास दो या तीन गढ़हा खोदकर उसमे यह तेल
कि बोतल तीन महीने के लिए गाढ़
दे ...तीन महीने बाद इस तेल को स्नान
के पूर्व शारीर पर मालिश करे ..स्नान के बाद इस तेल
को बालो में भी लगाये
बुध तेल :=एक लीटर तिल का तेल लेकर उसमे
ब्राह्मी एवं खस खस डालकर इस तेल को उबाले
ठंडा कर इस तेल को छान ले और पांच ग्राम लौंग का तेल इसमें
मिला ले ..और हरे रंग कि कांच कि बोतल में भरकर जहा प्रकाश
ना हो ऐसे जगह पर सात दिनों तक रखे ...और सात दिनों बाद
स्नान पूर्व इस तेल कि मालिश करे ..स्नान बाद
यही तेल बालो में भी लगाये ...इस तेल
से बुध का अनिष्ट प्रभाव दूर होगा
बृहस्पति तेल :=एक लीटर नारियल का तेल ले इसमें
पांच ग्राम हल्दी और पांच ग्राम खस खस डालकर
उबाल ले ठंडा कर इस तेल को छान ले फिर इसमें दस ग्राम चन्दन
का तेल मिलाये स्नान पूर्व इस तेल कि मालिश करे ...इस तेल के
प्रयोग से बृहस्पतिं का अनिष्ट प्रभाव दूर होगा
शुक्र तेल := आधा लीटर नारियल का तेल पांच ग्राम
चन्दन का तेल दो ग्राम चमेली का तेल इन
सभी तेल को मिश्रित कर एक सफ़ेद कांच कि बोतल में
भर ले तीन दिन धुप में रखे और इससे स्नान पूर्व
मालिश करे ..शुक्र का अनिष्ट प्रभाव दूर होगा
शनि तेल :=एल लीटर तिल के तेल ले
भृंगराज ,जायफल एवं कस्तूरी पांच -पांच ग्राम लेकर
इसे पानी में भिगोकर पीस ले और तिल के
तेल में मिलकर इससे अच्छी तरह उबाले ठंडा कर
इसे छान ले फिर इसमें पांच ग्राम लौंग का तेल मिलकर सात दिनों के
लिए अँधेरी जगह पर रखे और स्नान पूर्व इस तेल
कि मालिश करे ..शनि का अनिष्ट प्रभाव दूर होगा
राहु तेल := एक लीटर तिल का तेल ले |
भृंगराज ,जायफल ,कस्तूरी सभी पांच -
पांच ग्राम लेकर इसे पानी में भिगो दे और कूट ले और
तिल के तेल में मिलकर उबाले ..ठण्डा कर इससे छान ले और
इसमें पांच ग्राम लौंग का तेल मिला ले नीले रंग के कांच
कि बोतल में भरकर सात दिनों के लिए मकान के पश्चिम भाग में उचाई
वाले स्थान पर रख दे और सात दिनों बाद स्नान पूर्व इस तेल
कि मालिश करे ..राहु के सभी अनिष्ट शांत होंगे
केतु तेल :=एक लीटर तिल या सरसो का तेल ले इस
तेल में लोध्र मिलकर उबाले ..फिर तेल को ठंडा कर पांच ग्राम लौंग
का तेल मिलाये ..और सात दिनों के लिए काले रंग कि कांच कि बोतल में
भरकर मकान के पश्चिम दिशा में रखे..और सन्न पूर्व इस तेल
कि मालिश करे |