इस अनुष्ठान से सभी प्रकार
की मनोकामनाएँ निश्चय ही पूर्ण
होती है । अनेक व्यक्तियों द्वारा यह अनुभूत है
।
सर्वप्रथम अपने पूजा स्थान में श्रीहनुमान
जी का एक सुन्दर चित्र विधि-वत् प्रतिष्ठित कर लें
। उस चित्र के सम्मुख दीपक एवं
धूपबत्ती जलाकर रखें । चित्र का यथा-शक्ति भक्ति-
भाव के साथ पूजन करें ।
पूजन कर चुकने पर ‘श्रीराम-चरित-मानस‘ के
‘किष्किन्धा-काण्ड‘ की निम्न-लिखित पंक्तियों का पाठ
हाथ जोड़ कर 11 बार करें -
“कहइ रीछ-पति-’सुनु हनुमाना ! का चुप
साधि रहेहु बलवाना ?
पवन-तनय बल पवन समाना , बुधि विवेक विग्यान निधाना ।।
कौन-सी काजु कठिन जग माँहीं,
जो नहीं होत तात तुम पाहीं ।“
11 पाठ कर चुकने पर ‘सुन्दर-काण्ड‘ का आद्योपान्त पाठ करें ।
तदनन्तर पुनः उक्त पंक्तियों का पाठ 11 बार करें । इस प्रकार
यह ‘एक पाठ‘ हुआ ।
उक्त पाठ को 45 बार करना है । इस अनुष्ठान
को किसी भी मंगलवार के दिन
श्रीहनुमान जी के दर्शन करने के बाद
प्रारम्भ करना चाहिए । प्रतिदिन तीन पाठ करें, तो 15
दिनों में अनुष्ठान पूरा हो जाएगा । यदि तीन पाठ न कर
सकें, तो प्रतिदिन एक ही पाठ कर 45 दिनों में
अनुष्ठान पूर्ण कर सकते हैं ।
अनुष्ठान काल में अपनी दिन-चर्या इस प्रकार
बितानी चाहिए, जिससे श्रीहनुमान
जी प्रसन्न हों अर्थात् ब्रह्मचर्य, सत्य-वादिता,
भगवान् श्रीराम का गुणानुवाद, सत्संग आदि में तत्पर
रहे ।
की मनोकामनाएँ निश्चय ही पूर्ण
होती है । अनेक व्यक्तियों द्वारा यह अनुभूत है
।
सर्वप्रथम अपने पूजा स्थान में श्रीहनुमान
जी का एक सुन्दर चित्र विधि-वत् प्रतिष्ठित कर लें
। उस चित्र के सम्मुख दीपक एवं
धूपबत्ती जलाकर रखें । चित्र का यथा-शक्ति भक्ति-
भाव के साथ पूजन करें ।
पूजन कर चुकने पर ‘श्रीराम-चरित-मानस‘ के
‘किष्किन्धा-काण्ड‘ की निम्न-लिखित पंक्तियों का पाठ
हाथ जोड़ कर 11 बार करें -
“कहइ रीछ-पति-’सुनु हनुमाना ! का चुप
साधि रहेहु बलवाना ?
पवन-तनय बल पवन समाना , बुधि विवेक विग्यान निधाना ।।
कौन-सी काजु कठिन जग माँहीं,
जो नहीं होत तात तुम पाहीं ।“
11 पाठ कर चुकने पर ‘सुन्दर-काण्ड‘ का आद्योपान्त पाठ करें ।
तदनन्तर पुनः उक्त पंक्तियों का पाठ 11 बार करें । इस प्रकार
यह ‘एक पाठ‘ हुआ ।
उक्त पाठ को 45 बार करना है । इस अनुष्ठान
को किसी भी मंगलवार के दिन
श्रीहनुमान जी के दर्शन करने के बाद
प्रारम्भ करना चाहिए । प्रतिदिन तीन पाठ करें, तो 15
दिनों में अनुष्ठान पूरा हो जाएगा । यदि तीन पाठ न कर
सकें, तो प्रतिदिन एक ही पाठ कर 45 दिनों में
अनुष्ठान पूर्ण कर सकते हैं ।
अनुष्ठान काल में अपनी दिन-चर्या इस प्रकार
बितानी चाहिए, जिससे श्रीहनुमान
जी प्रसन्न हों अर्थात् ब्रह्मचर्य, सत्य-वादिता,
भगवान् श्रीराम का गुणानुवाद, सत्संग आदि में तत्पर
रहे ।
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