Friday, July 18, 2014

नागपंचमी

सावन महीने का सबसे पुण्यकारी दिन
है नागपंचमी :
हर साल श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग
पंचमी मनाई जाती है। इस व्रत के
प्रताप से कालभय, विषजन्य मृत्यु और सर्पभय
नहीं रहता। नागपंचमी के व्रत
का सीधा संबंध उस नागपूजा से भी है
जो शेषनाग भगवान शंकर और भगवान विष्णु
की सेवा में भी तत्पर हैं।
इनकी पूजा से शिव और विष्णु पूजा के तुल्य फल
मिलता है।
पुराना है इतिहास :
नागजाति का वैदिक युग में बहुत लंबा इतिहास रहा है जो भारत
से लेकर चीन तक फैला है। चीन में
आज भी ड्रैगन यानी महानाग
की पूजा होती है और
उनका राष्ट्रीय चिन्ह
भी यही ड्रैगन है। एक समय था जब
नागलोक धरती से लेकर समुद्र तल तक फैला था।
नाग जाति की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने
मानव जाति को वरदान दिया था कि जो इस लोक में नाग
पूजा करेगा या उनकी रक्षा करेगा उसको कालभय,
अकालमृत्यु, विषजन्य, सर्पदोष या कालसर्प दोष और सर्पदंश
का भय नहीं रहेगा।
नागों को प्रिय है यह तिथि :
ब्रह्माजी ने यह वरदान
मानवजाति को पंचमी के दिन दिया था। आस्तिक मुनि ने
भी पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी,
तभी नागपंचमी की यह
तिथि नागों को अत्यंत प्रिय है। श्रावण शुक्ल
पंचमी को उपवास कर
नागों की पूजा करनी चाहिए। बारह
महीने तक चतुर्थी तिथि के दिन एक बार
भोजन करके पंचमी को व्रत करें।
मिट्टी के नाग बनाकर पंचमी के दिन
करवीर, कमल चमेली आदि पुष्प, गंध,
धूप और विविध नैवेद्य से उसकी पूजा करके
घी, खीर ब्राह्मणों को खिलाएं।
व्रत से मिलता है शुभ फल :
नाग के कई नाम हैं जैसे शेष यानी अनंत, बासुकि,
शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, घृतराष्ट, ऊ शंखपाल,
कालिया, तक्षक और पिंगल इन बारह नागों की बारह
महीनों में पूजा करने का विधान है।
जो भी कोई नाग पंचमी को व्रत करता है
उसे शुभ फल मिलता है। इस दिन नागों को दूध पान कराने से
सभी बड़े-बड़े नाग अभय दान देते हैं। परिवार में
सर्पभय नहीं रहता। कालसर्पयोग का प्रभाव
क्षीण हो जाता है। इस दिन कालसर्पदोष
की निवृति के लिए
पूजा करना भी फलदायक होता है।

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