क्या यम नियम के पालन करने के अलावा सुबह शाम ध्यान
करना चाहिए और उसकी क्या विधि है?
उत्तर: जरूर. यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन
की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम
का भोजन दे सके. वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ
ईश्वर से माँगना चाहिए. ओ३म् का उच्चारण
इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है. अब
क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं
१. किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो,
वहां अच्छी जगह पर कमर
सीधी कर के बैठ जाएँ. आँख बंद करके
थोड़ी देर गहरे सांस धीरे
धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे
शरीर में कोई तनाव न रहे.
२. दिन में ४ बार ओ३म् का उच्चारण बहुत
उपयोगी है. पहला सुबह सोकर उठते
ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद,
तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से
एकदम पहले. इसके अलावा जब
कभी खाली बैठे
किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर
रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं.
३. धीरे धीरे उच्चारण
की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर
उतनी ही जितनी अपने
सामर्थ्य में हो.
४. कम से कम एक समय में ५ बार जरूर उच्चारण करें. मुंह से
बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं.
५. अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने
की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन
ही मन ईश्वर से करना चाहिए.
६. हर बार उठने से पहले यह
प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार
बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा.
अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर
काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना.
कभी ईश्वर को दी हुई
प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना.
जरूरी बात: ईश्वर ही सबका पालक,
माता और पिता है. इसलिए कोई आदमी ईश्वर
का ध्यान करते हुए किसी गुरु, पीर,
बाबा आदि का ध्यान न करे. क्योंकि सब बाबा, गुरु, पीर
आदि अपने भक्तों का ही उद्धार करते हुए
दीखते हैं औरों का नहीं, और
इसी से वे सब पक्षपाती सिद्ध होते
हैं. किन्तु ईश्वर सबका पालक होने से पक्षपात आदि दोषों से
दूर है और इसलिए केवल वही ध्यान करने और
भजने योग्य है, और कोई नहीं.
करना चाहिए और उसकी क्या विधि है?
उत्तर: जरूर. यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन
की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम
का भोजन दे सके. वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ
ईश्वर से माँगना चाहिए. ओ३म् का उच्चारण
इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है. अब
क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं
१. किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो,
वहां अच्छी जगह पर कमर
सीधी कर के बैठ जाएँ. आँख बंद करके
थोड़ी देर गहरे सांस धीरे
धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे
शरीर में कोई तनाव न रहे.
२. दिन में ४ बार ओ३म् का उच्चारण बहुत
उपयोगी है. पहला सुबह सोकर उठते
ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद,
तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से
एकदम पहले. इसके अलावा जब
कभी खाली बैठे
किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर
रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं.
३. धीरे धीरे उच्चारण
की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर
उतनी ही जितनी अपने
सामर्थ्य में हो.
४. कम से कम एक समय में ५ बार जरूर उच्चारण करें. मुंह से
बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं.
५. अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने
की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन
ही मन ईश्वर से करना चाहिए.
६. हर बार उठने से पहले यह
प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार
बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा.
अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर
काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना.
कभी ईश्वर को दी हुई
प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना.
जरूरी बात: ईश्वर ही सबका पालक,
माता और पिता है. इसलिए कोई आदमी ईश्वर
का ध्यान करते हुए किसी गुरु, पीर,
बाबा आदि का ध्यान न करे. क्योंकि सब बाबा, गुरु, पीर
आदि अपने भक्तों का ही उद्धार करते हुए
दीखते हैं औरों का नहीं, और
इसी से वे सब पक्षपाती सिद्ध होते
हैं. किन्तु ईश्वर सबका पालक होने से पक्षपात आदि दोषों से
दूर है और इसलिए केवल वही ध्यान करने और
भजने योग्य है, और कोई नहीं.
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