Sunday, July 20, 2014

वक्री ग्रहो की दशा

***वक्री ग्रहो की दशा***
वक्रोपगस्य हि दशा भ्रमयति च कुलालचक्रवत्पुरुषम्।
व्यसनानि रिपुविरोधं करोति पापस्य न शुभस्य।
(सारावली)
वक्री ग्रह की दशा में नित्य देशाटन,
व्यसन तथा शत्रुओं का विरोध होता है।
पापग्रहों की दशा में ही पाप फल
का भोग होता है किन्तु शुभ ग्रह
यदि वक्री हों तो उसका शुभफल
नहीं होता है।
वक्री ग्रह की दशा
1. जन्मांग में जो रह वक्री पड़ा हो वह
अपनी दशा अंतर्दशा में अदभुत
प्रभावशाली फल दिया करता है।
वक्री ग्रह अपने से बारहवें पर
भी प्रभावी होने से दो भावों से
संबंधित हो जाता है। अतः नवमस्थ ग्रह
वक्री होने पर अष्टम भाव
संबंधी फल भी देता है।
2. वक्री ग्रह की दशा में
स्थान्च्युति, धन व सुख
की कमी व विदेश/परदेश गमन
होता है। वक्री ग्रह यदि शुभ भावोन्मुख
हों (केंद्र, त्रिकोण, लाभ व धन भाव) तो सम्मान, सुख,
धन व यश की वृद्धि करता है। ध्यान रहे
मार्गी ग्रह त्रिक भाव में स्थित
हो तो अपनी दशा अंतर्दशा में
अभीष्ट सिद्धि में बाधा, व्यवधान व कठिनाई
देता है। प्रत्येक ग्रह की एक निश्चित
सामान्य चाल है पर कभी ये चाल अनिश्चित
हो जाती है।ऐसा प्रतीत
होता है मानो ग्रह
की गति धीमी पड़
गई हैA वह स्तंभित (स्थिर) सा जान पड़ता है फिर
वह ग्रह वक्री हो जाता है। पाप ग्रह
(मंगल, शनि) वक्री होने पर अधिक
पापी हो जाते हैं तो शुभ ग्रह (बुध, गुरु,
शुक्र) भी वक्री होने पर
अपनी शुभता में कमी महसूस
करते हैं। सूर्य व चंद्र
सदा ही मार्गी रहते हैं वे
कभी वक्री नहीं
होते राहू केतु सदा वक्री रहते हैं वे
कभी भी मार्गी
नहीं होते।
3. उदहारण के लिये यदि किसी जन्मांग से गुरु व
शनि वक्री होकर लग्न में स्थित हों तो,
वक्री गुरु
की पाँचवीं दृष्टि कभी
चौथे तो कभी कभी पंचम भाव
का फल देगी। इसी प्रकार
शनि की तीसरी दृष्टि
द्वितीय भाव पर पड़ने से वाद-विवाद, परनिंदा में
रूचि तो कभी आलस्य, अकर्मण्यता व श्रम
विमुखता देगी।
विभिन्न वक्री ग्रहों का प्रभाव
वक्री मंगल
1. उत्साह, साहस, परिश्रम, पराक्रम व संघर्ष
शक्ति का दाता है। वक्री मंगल जातक
को असहिष्णु,
अति क्रोधी तथा आतंकवादी बना
सकता है।
2. जातक की कार्यक्षमता सृजनात्मक न होकर,
विनाशकारी हो जाती है।
ऐसा लगता है मानो विधाता ने भूल से विकास
की बजाए ललाट पर विनाश
ही लिख दिया हो।
3. अपनी दशा अंतर्दशा में
वक्री मंगल वैर विरोध
तथा आपसी मतभेद बढ़ाकर शत्रुता व
मुकद्दमे बाजी भी दे सकता है।
4. ऐसा वक्री मंगल यदि जनमंग में दुस्थान
(त्रिक भाव ६, ८, १२) में हो तो जातक हठी,
जिद्दी व अड़ियल प्रकृति का होता है।
भूमि भवन व शौर्य पराक्रम संबंधी उसके
कार्य प्रायः आधे अधूरे छूट जाते हैं।
5. जातक किसी से भी सहयोग
करना अपना अपमान समझता है। वह देह बल
का अपव्यय कर मानो आत्म पीड़न में सुख
पाता है।
6. मंगल एक उग्र ग्रह है जो जातक
को स्वार्थी व पशुवत् बना सकता है।
ऐसा जातक आत्मतुष्टि व स्वार्थ सिद्धि के लिये अनुचित व
अनिष्ट कार्य करने में तनिक भी संकोच
नहीं करता वक्री मंगल
की दशा/अंतर्दशा में अग्रिम घटनाएं
हो सकती हैं।
वक्री मंगल में सावधानियाँ
वक्री मंगल के अनिष्ट प्रभाव से बचने के लिये
निम्नलिखित सावधानियाँ बरतेंA वक्री मंगल
की दशा अंतर्दशा में -
1. अस्त्र-शस्त्र न खरीदें, न
ही घर में घातक हथियार रखें।
2. वाहन व नयी संपत्ति भी न
खरीदें तो अच्छा है नये घर में गृह प्रवेश
भी, वक्री मंगल
की दशा में, अशुभ व
अमंगलकारी माना गया है।
3. यथासंभव ऑपरेशन (सर्जरी) से बचें,
क्योंकि ऐसी सर्जरी प्राण घातक
हो सकती है।
4. नया मुकद्दमा शुरू करना भी उचित
नहीं, कारण ये धन नाश व मानसिक
अशांति देगा।
5. नया नौकर/कर्मचारी न रखें कोई नया अनुबंध
भी न करें।
6. वक्री मंगल के गोचर में विवाह से बचें।
ध्यान रहे, मंगल वायदा व वचन बद्धता का प्रतीक
है। इसका वक्री होना बात से मुकर जाना, छल कपट
या धोखे द्वारा हानिप्रद हो सकता है।
वक्री बुध
1. साधारणतया बुध बुद्धि, वाणी, अभिव्यक्ति,
शिक्षा व साहित्य के प्रति लगाव का प्रतीक
है। प्रायः बुध अपनी दशा अंतर्दशा में मौलिक
चिंतन तथा सृजनात्मक शक्ति बढ़ाकर उत्कृष्ट साहित्य
की रचना करता है।
2. बुध वक्री होने पर अपनी दशा-
अंतर्दशा में आंकड़े व तथ्यों पर आधारित लेख व पुस्तक
लिखाएगा। जातक अपनी रचना में अंतर्विरोध व
परिवर्तन पर अधिक बल देगा कभी तो वह
त्रुटिपूर्ण व ग़लत निर्णयों को भी तर्क
द्वारा उचित ठहराएगा।
3. वक्री बुध विचार, भावनाओं व मानसिक
प्रवृतियों को प्रभावित कर उनमें क्रांतिकारी मोड़
(बदलाव) देने में सक्षम है। तर्क संगत विश्लेषण से
प्रचलित मान्यताओं को ध्वस्त कर जातक मौलिक चिंतन
को नयी दिशा दे सकता है।
वक्री गुरु
साधारणतया गुरु ज्ञान, विवेक, प्रसन्नता व दैवीय
ज्ञान का प्रतीक है।
1. जन्मांग में गुरु का वक्री होना, अदभुत
दैवी शक्ति या दैवी बल
का प्रतीक है। जिस कार्य को दूसरे लोग
असंभव जान कर अधूरा छोड़ देते हैं
वक्री गुरु वाला जातक ऐसे
ही कार्यों को पूरा कर यश व
प्रतिष्ठा पाता है।
2. अन्य शब्दों में
दूसरों की असफलता को सफलता में बदल
देना उसके लिये सहज संभव होता है।
किसी भी योजना के गुण, दोष,
शक्ति व दुर्बलताएं पहचानने की उसमे
अदभुत शक्ति होती है।
3. चतुर्थ भावस्थ वक्री गुरु, साथियों का मनोबल
बढ़ा कर, रुके या अटके हुए कार्यों को सफलतापूर्वक सिरे
चढ़ाने में दक्षता देता है। जातक
की दूरदृष्टि व दूरगामी प्रभावों के
आंकलन की शक्ति बढ़
जाती है।
4. वह जोखिम उठाकर भी प्रायः सफलता प्राप्त
करता है। उसकी प्रबंध क्षमता विशेषकर
संकटकालीन
व्यवस्था चमत्कारी हुआ
करती है।
वक्री शुक्र
1. शुक्र, मान-सम्मान, सुख-वैभव, वाहन, मनोरंजन,
पत्नी या दाम्पत्य सुख व
मैत्री पूर्ण सहयोग का प्रतीक
है। साधारणतया, शुक्र यदि पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट
न हो तो, जातक हंसमुख, हास्य-विनोद प्रिय, मिलनसार
व पार्टी की जान होता है।
उसको देखने भर से
ही उदासी भाग
जाती है व हँसी-
खुशी का वातावरण सहज बन जाता है।
2. किन्तु शुक्र जब वक्री होता है तो जातक
समाज में घुल मिल नहीं पाता। वह
एकाकी रहना पसंद करता है।
3. जातक
की अलगाववादी प्रवृति अपने
परिवार व परिवेश में
अरुचि तथा अनासक्ति बढ़ाती है।
कभी गैर पारंपरिक ढंग से
भी ऐसा जातक अपना प्यार वात्सल्य
दर्शाता है।
4. यदि किसी जन्मांग में शुक्र
वक्री होकर द्वादश भाव (भोग स्थान) में
हो तो जातक में भोगों से पृथक रहने
की प्रवृत्ति बढ़
जाती है। वह सुख वैभव से विमुख
हो कर संन्यासी भी बन
सकता है ।
वक्री शनि
1. शनि को काल पुरुष का दुःख माना जाता है। ये प्रायः दुःख-
दारिद्र्य, कष्ट, रोग व मनस्ताप देता है।
2. वक्री शनि जातक को नैराश्य व अवसाद
की स्थिति से उबारता है। जातक निराशा के
गहन अन्धकार में
भी आशा की किरण खोज
लेता है।
3. वक्री शनि अपनी दशा या अंतर्दशा
में आत्मरक्षण व अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के
लिये, जातक से सभी उचित, अनुचित कार्य
करा लेता है कभी तो जातक स्वार्थ सिद्धि के
लिये निम्न स्तर तक गिर सकता है।
4. ऐसा व्यक्ति सभा गोष्ठी में
आना जाना या लोगों से अधिक मेल जोल
रखना भी पसंद नहीं करता।
5. अपने अधिकारों के
प्रति भी उदासीन रहता है। कोई
व्यक्ति अपने कार्यों को गुप्त रख कर सफलता जनित
सुख पाता है।

No comments:

Post a Comment