Thursday, July 24, 2014

भैरव और भैरवी का पूजन

श्रीबटुक के पटल में भगवान् शंकर ने कहा कि “हे
पार्वति ! मैंने प्राणियों को सभी प्रकार के सुख देने
वाले बटुकभैरव का रुप धारण किया है । अन्य देवता तो देर से
कृपा करते हैं, किन्तु भैरव शीघ्र
ही अपने
साधकों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते
हैं । उदाहरण के तौर पर भैरव का वाहन
कुत्ता अपनी स्वामी-भक्ति के लिए
प्रसिद्ध है ।
शारदा तिलक आदि तन्त्र ग्रन्थों में श्री बटुक भैरव
के सात्त्विक, राजस, तामस तीनों ध्यान भिन्न-भिन्न
प्रकार से वर्णित है । रुप उपासना भेद से उनका फल
भी भिन्न हैं । सात्त्विक ध्यान अपमृत्यु-नाशक,
आयु-आरोग्य-प्रद तथा मोक्ष-प्रद है । धर्म, अर्थ, काम के
लिए राजस ध्यान है । कृत्या, भूतादि तथा शत्रु-शमन के लिए
तामस ध्यान किया जाता है ।
तान्त्रिक पूजन में आनन्द भैरव और भैरवी का पूजन
आवश्यक होता है । इनका ध्यान आदि पूजा पद्धतियों में वर्णित
किया गया है । तन्त्र साधना में “मजूंघोष”
की साधना का वर्णन है । ये भैरव के
ही स्वरुप माने गए हैं ।
इनकी उपासना से स्मृति की वृद्धि और
जड़ता का नाश होता है ।
भैरव पूजा में रखी जाने वाली सावधानियाँ
१॰ भैरव साधना से नमोकामना पूर्ण होती है,
अपनी मनोकामना संकल्प में
बोलनी चाहिये ।
२॰ भैरव को नैवेद्य में मदिरा चढ़ानी चाहिए, यह
सम्भव नहीं हो, तो मदिरा के स्थान पर
दही-गुड़ मिलाकर अर्पित करें ।
३॰ भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें

४॰ भैरव मन्त्र का जप रुद्राक्ष माला से किया जा सकता है,
इसके अतिरिक्त काले हकीक
की माला भी उपयुक्त है ।
५॰ भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक
का ही उपयोग करना चाहिये ।
६॰ भैरव को अर्पित नैवेद्य को पूजा के बाद
उसी स्थान पर ग्रहण कर लेना चाहिये ।
७॰ भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार
निर्धारित है । रविवार को खीर, सोमवार को लड्डू,
मंगलवार को घी और गुड़ अथवा गुड़ से
बनी लापसी, बुधवार
को दही-बूरा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार
को भुने हुए चने, शनिवार को उड़द के पकौड़े
अथवा जलेबी तथा तले हुए पापड़ आदि का भोग
लगाया जाता है

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