Monday, July 21, 2014

कांवर का ऐसा क्या महत्व है

कांवर का ऐसा क्या महत्व है कि भक्त कष्ट उठाकर
भी भोले का अभिषेक करने के लिए कांवर में जल
भरकर लाते हैं।इस प्रश्न का उत्तर पुराणों में मौजूद है। पुराणों में
बताया गया है कि 'धूपैदीपैस्तथा पुण्यै नैवेद्यै
विविधैरपि। नः तुष्यति तथा शम्भुर्यथा कामर वारिणी।।
यानी भगवान शिव शंकर कांवर से गंगाजल चढ़ाने से
जितना प्रसन्न होते हैं उतना प्रसन्न धूप, दीप,
नैवेद्य या फूल चढ़ाने से भी नहीं होते।
कांवर और शिव भक्ति के संबंध में यह
भी कहा गया है कि 'स्कन्धे च कामरं धृत्वा बम-
बम प्रोज्य क्षणे-क्षणे, पदे-पदे अश्वमेधस्त अक्षय
पुण्यम् सुते।। यानी कांधे पर कांवर रखकर बोल बम
का नारा लगाते हुए चलने से हर कदम के साथ एक अश्वेध
यज्ञ करने का पुण्य प्राप्त होता है।कांवर में जल लेकर
भगवान शिव का अभिषेक करने की परंपरा सदियों से
चली आ रही है। इस
परंपरा की कड़ी में भगवान का राम का नाम
भी शामिल है।
आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान
श्री राम ने कांवरिया बनकर सुल्तानगंज से जल
लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया।
भगवान शिव के परम भक्त लंकापति रावण ने भी शिव
जी को कांवर चढ़ाया था। शिव जी को कांवर
चढ़ाने वालों में भूतनाथ भैरव का भी नाम आता है।कांवर
लेकर शिव जी को अर्पित करना एक प्रकार
की तपस्या है। और हर तपस्या के कुछ नियम
होते हैं। कांवरियों के लिए भी शास्त्रों में कुछ नियम
बताए गए हैं। शास्त्र कहता है कि कांवड़ियों को सात्विक और
शुद्घ आहार लेना चाहिए। कांवर
को कभी भी भूमि पर
नहीं रखें।
आचरण और विचार शुद्घ रखें। निंदा से बचें और
किसी को कटु शब्द नहीं कहें। कांवर
यात्रा के दौरान काम क्रोध से बचें और भगवान शिव का ध्यान करते
रहें।

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