रोग निवारणार्थ लघु महामृत्युंजय साधना)
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शास्त्र कहता हैं, की पहला सुख
निरोगी काया पर आज के इस समय मे
निरोगी रह पाना इतना आसान कहाँ हैं,आधुनिक
जीवन शैली के कारण
अनेको बीमारियों से ग्रसित यह मानव शरीर
कभी कभी अपनी जीवन
शक्ति से इतना क्षीण हो जाता हैं.कि सामान्य काम
या कार्य करने के लिए भी यह उपयुक्त
नही रह पाता, इस अवस्था मे व्यक्ति जब चिकित्सक
और झाड फुक करने वालों के चक्कर लगाते लगाते व्यक्ति थक
जाता हैं तब इस निराश अवस्था मे वह किस ओर जाए कि फिर से उसे
आरोग्य मिल सके तब साधना क्षेत्र की ओर
देखता हैं,साधना क्षेत्र मे एक साधना जिसका महत्त्व
सभी जानते हैं, मानते हैं और
अनेको की अनुभूत हैं वह साधना हैं महामर्त्युन्ज्य
साधना ...
पर इस साधना के बारे मे जानना और करना और सफलता पा पाना,
दोनों ही एक अलग अलग बात हैं.यह अनुष्ठान बहुत
श्रम साध्य भी हैं और इसमे धन
भी लगता हैं पर जहाँ समय और धन
दोनों की कमी हो तब
क्या किया जाना चहिये,इसका भी विधान हमारे आचार्य
गणों ने स्पस्ट किया हैं वह हैं इस परम तेजस्वी मंत्र
विधान का एक लघु सरलतम रूप ..
और आज के परिपेक्ष मे सरल
विधानों की कहीं ज्यादा आवश्यकता हैं, एक
तो इन्हें पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार के लोगों मे से कोई
एक आसानी से कर सकता हैं. दूसरी ओर
ज्यादा ताम झाम न रहने से वह पूरी तरह से मंत्र और
अपनी साधना पर केंद्रित रह सकता हैं अन्यथा कई कई
बार व्यक्ति साधनात्मक नियमों मे ही उलझ कर रह
जाता हैं .हमारे पास अनेको पत्र इस हेतु आते हैं कि परिवार के कोई
महत्वपूर्ण सदस्य किसी गंभीर
बिमारी मे ग्रसित हो गया हैं कोई उपयुक्त साधना हेतु
निर्देशन करें पर इस विकट परिस्थिति मे व्यक्ति या उसके परिवार
स्वयम कई बार कुछ नही करना चाहता हैं .पर
साधना तो करनी ही होगी क्योंकि इसके
बिना कोई अन्य रास्ता नही .
भगवान शंकर के इस वरदायिनी स्वरुप
की विशेषताए कोई
भी नही गिना सकता हैं, क्योंकि अगर हम
सिर्फ एक पहली विशेषता ही माने कि यह
हमें रोग रूपी जहर से मुक्त कर आरोग्य
रूपी अमृत पान करा सकते हैं, तब इससे उच्च बात
क्या हो सकती हैं, क्योंकि सारे
साधनाए,सारी उच्चताये एक स्वस्थ्य शरीर
पर ही तो आश्रित हैं.और उसके न रहने पर एक रोग
ग्रस्त व्यक्ति के लिए कोई उपाय शेष नही रहता हैं,यूँ
तो आज अत्याधुनिक
चिकित्सा शैली भी उपलब्ध हैं पर यह
भी सत्य हैं,की यह बहुत अधिक
खर्चीली हैं और हर के वस कि बात
नही कि वह इसका पूर्णता के साथ लाभ ले पाए .
हमने इस हेतु अपना कार्य तो प्रारंभ कर दिया हैं
तो शीघ्र ही आपके सामने एक
उच्चस्तरीय अस्पताल का निर्माणअब प्रारंभ होने
वाला हैं जहाँ पीड़ित मानवता कि सेवा मे जो संभव
होगा,वह किया ही जायेगा,क्योंकि एक
यही कार्य हमारे आलोचकों और विरोधियों के लिए
हमारा जबाब होगा और अब देर
भी नही हैं ..
आज आपके सामने एक बहुत सरल विधान रख रहा हूँ,आप इस
का लाभ उठाये और यदि सामान्य साधना के नियम का पालन करते हुये
जैसे की ब्रम्हचर्य पालन, और शारीरिक
शुद्धि और साधना प्रारंभ करते समय सबसे पहले भगवान शिव
का जो भी सामान्य पूजन और ध्यान आपसे बनता हो वह
कर ले.हाँ यदि इसके लिए स्वत एक
मिटटी की भगवान शिव
की प्रतिमा बना ली जाए
तो कहीं जयादा उचित होगा .
मंत्र:
ॐ जूं स : (बीमार व्यक्ति का नाम )पालय पालय
स : जूं ॐ ||
मानलो राम प्रसाद के लिए जप करना है,जिसके पिता का नाम दिनेश
प्रसाद हैं तो .मंत्र इस प्रकार से होगा .
ॐ जूं स : दिनेश पुत्रम राम प्रसाद पालय पालय स : जूं
ॐ ||
स्वयम के पुत्र के लिए करना हो तो ..
ॐ जूं स : मम पुत्रम (पुत्र का नाम ) पालय पालय स : जूं
ॐ ||
इसके साथ ही साथ यदि महामृत्युंजय कवच का पाठ
जो किसी भी पूजा पाठ की दूकान
पर आसानी से मिल जायेगा उसे भी संकल्प ले
कर जिस तरह का रोग हैं स्वयम निर्धारण कर उसका पुरे मनोयोग से
पाठ करें यह ११, २१, ५१,१०८ जिस भी संख्या मे आप
करना चाहो आप कर सकते हैं.पाठ करते समय यह भावना रखे
कि भगवान महा मृत्युंजय के शरीर से दिव्य किरणे निकल
कर रोग ग्रस्त व्यक्ति मे प्रवेश कर उसे आरोग्य प्रदान कर
रही हैं .
यह प्रयोग किसी भी सोमबार से प्रारंभ किए
जा सकता हैं ,समय प्रात:काल उचित हैं पर समस्या अधिक
गंभीर होने पर किसी भी दिन से
सदगुरुदेव जी का पूजन और गुरू मंत्र जप करके प्रारंभ
कर दें.रुद्राक्ष माला से जप किया जाना उचित हैं,और वस्त्र और
आसन आप पीले रंग के ले सकते हैं, यह ध्यान मे
रखने वाली बात होगी कि इस प्रयोग के साथ
निखिल कवच की अपनी ही एक
विशेषता हैं .
चूँकि यह सरल प्रयोग हैं अतः विश्वास और एकाग्रता और
निष्ठा ही इसके सफलता के प्रथम सौपान होंगे.
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शास्त्र कहता हैं, की पहला सुख
निरोगी काया पर आज के इस समय मे
निरोगी रह पाना इतना आसान कहाँ हैं,आधुनिक
जीवन शैली के कारण
अनेको बीमारियों से ग्रसित यह मानव शरीर
कभी कभी अपनी जीवन
शक्ति से इतना क्षीण हो जाता हैं.कि सामान्य काम
या कार्य करने के लिए भी यह उपयुक्त
नही रह पाता, इस अवस्था मे व्यक्ति जब चिकित्सक
और झाड फुक करने वालों के चक्कर लगाते लगाते व्यक्ति थक
जाता हैं तब इस निराश अवस्था मे वह किस ओर जाए कि फिर से उसे
आरोग्य मिल सके तब साधना क्षेत्र की ओर
देखता हैं,साधना क्षेत्र मे एक साधना जिसका महत्त्व
सभी जानते हैं, मानते हैं और
अनेको की अनुभूत हैं वह साधना हैं महामर्त्युन्ज्य
साधना ...
पर इस साधना के बारे मे जानना और करना और सफलता पा पाना,
दोनों ही एक अलग अलग बात हैं.यह अनुष्ठान बहुत
श्रम साध्य भी हैं और इसमे धन
भी लगता हैं पर जहाँ समय और धन
दोनों की कमी हो तब
क्या किया जाना चहिये,इसका भी विधान हमारे आचार्य
गणों ने स्पस्ट किया हैं वह हैं इस परम तेजस्वी मंत्र
विधान का एक लघु सरलतम रूप ..
और आज के परिपेक्ष मे सरल
विधानों की कहीं ज्यादा आवश्यकता हैं, एक
तो इन्हें पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार के लोगों मे से कोई
एक आसानी से कर सकता हैं. दूसरी ओर
ज्यादा ताम झाम न रहने से वह पूरी तरह से मंत्र और
अपनी साधना पर केंद्रित रह सकता हैं अन्यथा कई कई
बार व्यक्ति साधनात्मक नियमों मे ही उलझ कर रह
जाता हैं .हमारे पास अनेको पत्र इस हेतु आते हैं कि परिवार के कोई
महत्वपूर्ण सदस्य किसी गंभीर
बिमारी मे ग्रसित हो गया हैं कोई उपयुक्त साधना हेतु
निर्देशन करें पर इस विकट परिस्थिति मे व्यक्ति या उसके परिवार
स्वयम कई बार कुछ नही करना चाहता हैं .पर
साधना तो करनी ही होगी क्योंकि इसके
बिना कोई अन्य रास्ता नही .
भगवान शंकर के इस वरदायिनी स्वरुप
की विशेषताए कोई
भी नही गिना सकता हैं, क्योंकि अगर हम
सिर्फ एक पहली विशेषता ही माने कि यह
हमें रोग रूपी जहर से मुक्त कर आरोग्य
रूपी अमृत पान करा सकते हैं, तब इससे उच्च बात
क्या हो सकती हैं, क्योंकि सारे
साधनाए,सारी उच्चताये एक स्वस्थ्य शरीर
पर ही तो आश्रित हैं.और उसके न रहने पर एक रोग
ग्रस्त व्यक्ति के लिए कोई उपाय शेष नही रहता हैं,यूँ
तो आज अत्याधुनिक
चिकित्सा शैली भी उपलब्ध हैं पर यह
भी सत्य हैं,की यह बहुत अधिक
खर्चीली हैं और हर के वस कि बात
नही कि वह इसका पूर्णता के साथ लाभ ले पाए .
हमने इस हेतु अपना कार्य तो प्रारंभ कर दिया हैं
तो शीघ्र ही आपके सामने एक
उच्चस्तरीय अस्पताल का निर्माणअब प्रारंभ होने
वाला हैं जहाँ पीड़ित मानवता कि सेवा मे जो संभव
होगा,वह किया ही जायेगा,क्योंकि एक
यही कार्य हमारे आलोचकों और विरोधियों के लिए
हमारा जबाब होगा और अब देर
भी नही हैं ..
आज आपके सामने एक बहुत सरल विधान रख रहा हूँ,आप इस
का लाभ उठाये और यदि सामान्य साधना के नियम का पालन करते हुये
जैसे की ब्रम्हचर्य पालन, और शारीरिक
शुद्धि और साधना प्रारंभ करते समय सबसे पहले भगवान शिव
का जो भी सामान्य पूजन और ध्यान आपसे बनता हो वह
कर ले.हाँ यदि इसके लिए स्वत एक
मिटटी की भगवान शिव
की प्रतिमा बना ली जाए
तो कहीं जयादा उचित होगा .
मंत्र:
ॐ जूं स : (बीमार व्यक्ति का नाम )पालय पालय
स : जूं ॐ ||
मानलो राम प्रसाद के लिए जप करना है,जिसके पिता का नाम दिनेश
प्रसाद हैं तो .मंत्र इस प्रकार से होगा .
ॐ जूं स : दिनेश पुत्रम राम प्रसाद पालय पालय स : जूं
ॐ ||
स्वयम के पुत्र के लिए करना हो तो ..
ॐ जूं स : मम पुत्रम (पुत्र का नाम ) पालय पालय स : जूं
ॐ ||
इसके साथ ही साथ यदि महामृत्युंजय कवच का पाठ
जो किसी भी पूजा पाठ की दूकान
पर आसानी से मिल जायेगा उसे भी संकल्प ले
कर जिस तरह का रोग हैं स्वयम निर्धारण कर उसका पुरे मनोयोग से
पाठ करें यह ११, २१, ५१,१०८ जिस भी संख्या मे आप
करना चाहो आप कर सकते हैं.पाठ करते समय यह भावना रखे
कि भगवान महा मृत्युंजय के शरीर से दिव्य किरणे निकल
कर रोग ग्रस्त व्यक्ति मे प्रवेश कर उसे आरोग्य प्रदान कर
रही हैं .
यह प्रयोग किसी भी सोमबार से प्रारंभ किए
जा सकता हैं ,समय प्रात:काल उचित हैं पर समस्या अधिक
गंभीर होने पर किसी भी दिन से
सदगुरुदेव जी का पूजन और गुरू मंत्र जप करके प्रारंभ
कर दें.रुद्राक्ष माला से जप किया जाना उचित हैं,और वस्त्र और
आसन आप पीले रंग के ले सकते हैं, यह ध्यान मे
रखने वाली बात होगी कि इस प्रयोग के साथ
निखिल कवच की अपनी ही एक
विशेषता हैं .
चूँकि यह सरल प्रयोग हैं अतः विश्वास और एकाग्रता और
निष्ठा ही इसके सफलता के प्रथम सौपान होंगे.
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