शिव नैवेद्य ग्राह्य अथवा अग्राह्य ?
श्री शिव पुराण मे कहा गया है -
रोगं हरति निर्माल्यं शोकं तु चरणोदकं ।
अशेष पातकं हन्ति शम्भोर्नैवेद्य भक्षणम् ।।
भगवान् शिव का निर्माल्य समस्त रोगों को नष्ट
कर देता है । चरणोदक शोक नष्ट कर देता है
तथा शिव जी का नैवेद्य भक्षण करने से
सम्पूर्ण पाप विनष्ट हो जाते हैं ।
इतना ही नहीं शिव जी के
नैवेद्य प्रसाद
का दर्शन करने मात्र से पाप दूर भाग जाते हैं
और शिव का नैवेद्य ग्रहण करने से खाने से
करोड़ों पुण्य प्रसाद ग्रहण करने वाले मनुष्य मे
समा जाते हैं ।
दृष्ट्वापि शिवनैवेद्यं यान्ति पापानि दूरतः ।
भुक्ते तु शिव नैवेद्ये पुण्यान्यायान्त
ि कोटिशः ।।
जो भक्त शिव मन्त्र से दीक्षित हैं वे समस्त
शिव लिङ्गों पर चढ़े हुये प्रसाद को खाने के
अधिकारी हैं क्यों कि शिव भक्त के लिये शिव
नैवेद्य शुभदायक महाप्रसाद है ।
शिव दीक्षान्वितो भक्तो महाप्रसाद संज्ञकम् ।
सर्वेषामपि लिङ्गानां नैवेद्यं भक्षयेत् शुभम् ।।
यहाँ शिव मन्त्र के अतिरिक्त अन्य
मन्त्रों की दीक्षा से सम्पन्न भक्तों के
लिये
शिव नैवेद्य ग्रहण विधि का वर्णन
किया गया है ।
अन्य दीक्षा युत नृणां शिवभक्ति रतात्मनाम् ।
चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद्भोक्तव्यं न
मानवैः ।।
जो शिव जी से भिन्न दूसरे
देवता की दीक्षा से
युक्त हैं और शिव भक्ति में भी जिनका मन
लगा हुआ है ऐसे मनुष्यों को वह शिव नैवेद्य
नहीं खाना चाहिये जिस पर भगवान् शङ्कर के
गण चण्ड का अधिकार है । अर्थात् जहाँ चण्ड
का अधिकार नहीं है ऐसे शिव नैवेद्य
सभी भगवद्भक्त मनुष्य खायें तो कोई दोष
नहीं है ।
अब यह बताते हैं कि चण्ड का अधिकार
कहाँ नहीं होता है ।
बाण लिङ्गे च लौहे च सिद्ध लिङ्गे स्वयंभुवि ।
प्रतिमासु च सर्वासु न चण्डोsधिकृतो भवेत् ।।
नर्मदेश्वर , स्वर्ण लिङ्ग , किसी सिद्ध पुरुष
द्वारा स्थापित शिव लिङ्ग , स्वयं प्रगट होने
वाले शिव लिङ्ग में तथा शङ्कर
जी की सम्पूर्ण
प्रतिमाओं के नैवेद्य पर चण्ड का अधिकार
नहीं होता है । अतः इन शिव लिङ्गों पर
चढ़ा हुआ प्रसाद शिवभक्त ग्रहण कर सकता है
।
जिन शिव लिङ्गों के नैवेद्य पर चण्ड
का अधिकार है वहाँ भी यह व्यवस्था है -
लिङ्गोपरि च यद् द्रव्यं तदग्राह्यं मुनीश्वराः ।
सुपवित्रं च तज्ज्ञेयं यल्लिङ्ग स्पर्श
बाह्यतः ।।
हे मुनीश्वरों शिव लिङ्ग के ऊपर जो द्रव्य
चढ़ा दिया जाता है उसे ग्रहण
नहीं करना चाहिये , जो द्रव्य प्रसाद शिव लिङ्ग
स्पर्श से बाहर होता है अर्थात् शिव लिङ्ग के
समीप रख कर जो अर्पण किया जाता है भोग
लगाया जाता है उसको विशेष रूप से पवित्र
समझना चाहिये अतः ऐसे शिव नैवेद्य
को सभी मनुष्य ग्रहण कर सकते हैं
श्री शिव पुराण मे कहा गया है -
रोगं हरति निर्माल्यं शोकं तु चरणोदकं ।
अशेष पातकं हन्ति शम्भोर्नैवेद्य भक्षणम् ।।
भगवान् शिव का निर्माल्य समस्त रोगों को नष्ट
कर देता है । चरणोदक शोक नष्ट कर देता है
तथा शिव जी का नैवेद्य भक्षण करने से
सम्पूर्ण पाप विनष्ट हो जाते हैं ।
इतना ही नहीं शिव जी के
नैवेद्य प्रसाद
का दर्शन करने मात्र से पाप दूर भाग जाते हैं
और शिव का नैवेद्य ग्रहण करने से खाने से
करोड़ों पुण्य प्रसाद ग्रहण करने वाले मनुष्य मे
समा जाते हैं ।
दृष्ट्वापि शिवनैवेद्यं यान्ति पापानि दूरतः ।
भुक्ते तु शिव नैवेद्ये पुण्यान्यायान्त
ि कोटिशः ।।
जो भक्त शिव मन्त्र से दीक्षित हैं वे समस्त
शिव लिङ्गों पर चढ़े हुये प्रसाद को खाने के
अधिकारी हैं क्यों कि शिव भक्त के लिये शिव
नैवेद्य शुभदायक महाप्रसाद है ।
शिव दीक्षान्वितो भक्तो महाप्रसाद संज्ञकम् ।
सर्वेषामपि लिङ्गानां नैवेद्यं भक्षयेत् शुभम् ।।
यहाँ शिव मन्त्र के अतिरिक्त अन्य
मन्त्रों की दीक्षा से सम्पन्न भक्तों के
लिये
शिव नैवेद्य ग्रहण विधि का वर्णन
किया गया है ।
अन्य दीक्षा युत नृणां शिवभक्ति रतात्मनाम् ।
चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद्भोक्तव्यं न
मानवैः ।।
जो शिव जी से भिन्न दूसरे
देवता की दीक्षा से
युक्त हैं और शिव भक्ति में भी जिनका मन
लगा हुआ है ऐसे मनुष्यों को वह शिव नैवेद्य
नहीं खाना चाहिये जिस पर भगवान् शङ्कर के
गण चण्ड का अधिकार है । अर्थात् जहाँ चण्ड
का अधिकार नहीं है ऐसे शिव नैवेद्य
सभी भगवद्भक्त मनुष्य खायें तो कोई दोष
नहीं है ।
अब यह बताते हैं कि चण्ड का अधिकार
कहाँ नहीं होता है ।
बाण लिङ्गे च लौहे च सिद्ध लिङ्गे स्वयंभुवि ।
प्रतिमासु च सर्वासु न चण्डोsधिकृतो भवेत् ।।
नर्मदेश्वर , स्वर्ण लिङ्ग , किसी सिद्ध पुरुष
द्वारा स्थापित शिव लिङ्ग , स्वयं प्रगट होने
वाले शिव लिङ्ग में तथा शङ्कर
जी की सम्पूर्ण
प्रतिमाओं के नैवेद्य पर चण्ड का अधिकार
नहीं होता है । अतः इन शिव लिङ्गों पर
चढ़ा हुआ प्रसाद शिवभक्त ग्रहण कर सकता है
।
जिन शिव लिङ्गों के नैवेद्य पर चण्ड
का अधिकार है वहाँ भी यह व्यवस्था है -
लिङ्गोपरि च यद् द्रव्यं तदग्राह्यं मुनीश्वराः ।
सुपवित्रं च तज्ज्ञेयं यल्लिङ्ग स्पर्श
बाह्यतः ।।
हे मुनीश्वरों शिव लिङ्ग के ऊपर जो द्रव्य
चढ़ा दिया जाता है उसे ग्रहण
नहीं करना चाहिये , जो द्रव्य प्रसाद शिव लिङ्ग
स्पर्श से बाहर होता है अर्थात् शिव लिङ्ग के
समीप रख कर जो अर्पण किया जाता है भोग
लगाया जाता है उसको विशेष रूप से पवित्र
समझना चाहिये अतः ऐसे शिव नैवेद्य
को सभी मनुष्य ग्रहण कर सकते हैं
No comments:
Post a Comment