Saturday, July 12, 2014

कुलक्षण षानित के उपाय

कुलक्षण षानित के उपाय :-
जहा तक हो सके सूर्योदय से, कम से कम 20 मिनट पहले
अवष्य उठ जाया करें। यदि सुविधा हो तो और पहले ब्रमुहूर्त
में उठना और श्रैयस्कर होता है। यह समय सूर्योदय से 48
मिनट पहले प्रारम्भ होता है, ऐसा सामान्यत: समझ कर चलें।
तत्पष्चात दैनिक कि्रयांए करेंं प्रतिदिन स्नान करें।
गर्मी में दो-बार स्नान कर सकते है। देवता, गुरू,
र्इष्वर, पर श्र द्वा व विष्वास रखें। तथा अपने रोजाना के काम मे
लगने से पहले तथा नाष्ता करने से पूर्व नहा-धोकर घर मे
धुपबती, अगरबती और सम्भव
हो तो घी का दिया जला कर कोर्इ
भी स्तुति, मन्त्र,
आरती आदि सुविधानुसार अवष्य करने का नियम
बना लें। रोज जप करने के लिए गायत्री मंत्र कम से
कम 10 बार या ऊ नम: षिवाय 108 बार अथवा सम्प्रदायानुसार
कोर्इ भी मन्त्र कम से कम 10 या 108 बार
सुविधानुसार लिया करें।
रात में सोते समय बत्ती बुझााने के बाद
भी कम से कम 10 बार गायत्री मन्त्र
का जाप करके या केवल 'ऊ' का बार बार उच्चारण करते हुए
यो जाएं।
1. प्रात: काल उठकर सूर्र्य नमस्कार करने के बाद तांबे के पात्र
में
रखा पानी या किसी भी लोटे,
जग या गिलास आदि में
रखा बासी पानी कम से कम एक गिलास
पिया करें। बाद में 5 मिनट बाद, आदत हो तो चाय वगैरह
भी पी सकते हों।
2. सुबह उठकर सबसे पहले मुंह धोए। मुंह में
पानी भर कर 7 बार आखों पर पानी के
चुल्लू अवष्य फेंकें।
3. जंहा तक हो सके सोम, बुध व षनि में से
किसी दिन सप्ताह में कम से कम एक बार
षरीर पर तेल मालिष करके स्नान करें।
कभी-कभी कान में तेल
भी डाला करें। इससे षरीर स्वस्थ, मन
प्रसन्न एंव साधारण रोग नही होते है।
4. घर में एक षीषी में गंगाजल
या किसी तीर्थ का साफ जल रखा करें।
प्रतिदिन नहा धोकर नाष्ते से पूर्व तीन बार
मामूली जल से आचमन करके कुछ खाया करें। पूजा न
कर सके तो भगवान तीर्थस्थान
या किसी मनिदर का चढ़ाया हुआ फूल या घर में पूजा में
प्रयोग किया गया फूल या तीर्थस्थान, देवस्थान
की भस्म, रज या गंगाजल से मस्तक पर तिलक करे,
और फल वगैरह के सिर से छुआ लें।
5. अपने काम को पूरी र्इमानदारी,
सर्मपण भाव, निश्ठा, लगन व मेहनत से करें। तथा मन
को दुर्भावनाओं से कलुशित न करें। र्इष्वर
आपकी सहायता करेगा तथा जीवन मेंं
सफलता अवष्य मिलेगी।
6. दूसरों की उन्नति को देखकर मन मेंबूरे विचार
कभी न लाएं, उससे षिक्षा लेकर स्ंवय
भी आगे बढ़ने का प्रयत्न करे।
दूसरों की बढ़ोतरी को देखकर हार्दिक
प्रसन्नता अनुभव न करने वाले का गोहत्या का पाप लगता है।
7. मन वाण ी, कर्म, विचार से
किसी भी प्रकार हिंसा, घात
या परपीड़ा न करें। भोजन के समय जहा तक सम्भव
हो दक्षिण की ओर मुंह करे। षान्त चित्त से, सिर
पर टोपी, मफलर वगैरह हो तो उसे उतार कर, उचित
षान्त स्थान पर भोजन करें। भोजन के समय
या किसी स्वादिश्ठ पद्वार्थ को अपने लिए औराें से
छिपाकर या बचाकर रखने से बेहाल होना पड़ता है। खाते समय
वातावरण सदैव षान्त रखें। भोजन के पहले व बाद में कम से
कम 10 मिनट अधिक जल न पिएं। भोजन के बीच में
थोड़ा-थोड़ा जल पीना उत्तम है। पहले
पानी से अपच, बाद में
पानी पीने से तोंद बढ़ना तथ
बीच में पीने से उत्तम पाचन होता है।
भोजन के बाद मूत्र त्याग करने की आदत ड़ाले। खाने
के समय उपसिथत लोगो से मनोयोग से भोजनादि हेतु अवष्य
आग्रह करें।
8. थोड़ी देर करवट लेटकर या थोड़ा रूककर
ही भोजन के बाद काम में लगें। दिन में,
गर्मी को छोड़कर, सोना तथा मैथुन
(स्त्री संग) पुंण्यो का नाष करता है।
9. रात में दिन में कभी भी पूर्व
या दक्षिण की ओर पैर करके न सोयें। यदि घर
की व्यवस्था अपरिवर्तनीय
हो तो दक्षिण की ओर करके सोना सर्वथा वर्जित
करें।
10. दिन में, अपने जन्मदिन को सक्रानित (हर
महीने 15 तारीख के आसपास
होती है) के दिन, ग्रहण के दिन, श्राद्व क दिन,
पूर्णिमा, अमावस्या व अश्टमी को तथा खाते
ही स्त्री मिलन का नियम ले लें। जो लोग
अपनी स्त्री से ही प्रेम
करते है। नियमानुसार, बीच में निषिचन्त अन्तर
रखकर सम्भोग करते है, वे गृहस्थी होते हुए
भी ब्रáचारी होते है।
11. जो व्यवहार या बात या वस्तु अपने लिए पसन्द
नही करते, उसे जान बूझकर किसी के
लिए भी न करें। यह सबसे बड़ा धर्म है।
दूसरों को सताना बड़ा अधर्म है।
जीवन में उन्नति करना चाहते है। तो 6
महादोशों का छोड़ दीजिए, फिर देखिए आपका भाग्य रेस
की घोड़े की तरह भागेगा।
1. आलसी स्वभाव होना, परिश्रम ये बचना,
आरामजलब होना यह पहला दोश है
2. स्त्री सेवा अर्थात हर समय
स्त्री के पल्लू से बधें
रहना या किसी अन्य स्त्री के फेर में
पड़ना, सदा घर में ही घुसे रहना।
3. जन्मभूमि से इतना मोह व लगाव होना कि काम के लिए
भी उत्तम अवसर की खोज के लिए
किसी दूसरे स्थान पर न जाने की कसम
खाए रहना।
4. सन्तोश, अर्थात जितना और जो बैठे मिल जाए,
उसी से सतुंश्ट होकर,
अपनी महत्वकांक्षाओं को बिल्कुल ताले में बन्द कर
देना। बढ़ोतरी ,
अपनी आमदनी, जीवन
स्तर बढ़ाने के लिए कुछ भी न करना।
5. भीरूता, दब्बुपन, डर, आंषका, व दुविधा से ग्रस्त
होकर, सही को सही व गलत
को गलत कहने की हिम्मत न रखना।
6. रोगी होना। अपने स्वास्थ्य
को अपनी आदतों से बिगाड़ लेना।
कुदरती तौर पर कोर्इ रोगादि हो तो कोर्इ बात
नही, क्षम्य है। परन्तु जो लोग
अपनी दिनचर्या व खानपान से
ही रोगों को निमनित्रत करते रहते है,
उनका तो भगवान ही मालिक है। इसके अतिकित
अत्याधिक काम, क्रोध, लोभ, मद आदि मानसिक रोगो को अधिक
मात्रा में मन में बसाना। ये 6 बाते ऐसी है जो व्यकित
को कभी भी बड़ा नही बनने
देती है।
कुलक्षण निवारक मुद्रांए
1. प्रतिदिन कुछ समय तक ध्यान लगाने व प्राणायाम करने
तथा सरल योगासन लगाने से सब दोश दूर होते है।
2. जप या पूजा के दौरान पालथी मारकर बैठे हुए,
अपनी पहली अंगुली व
अंगूठे की नोक के मिलाकर,कलार्इ को घुटनों पर रखेंं।
बाकी तीनों अंंगुलियों को सीधा तना का रखेंं।
इससे मानसिक दोश दूर होते है।
3. प्राणायाम का प्रतिदिन यथाषकित अभ्यास करें। इससे तन व मन
के दोश दूर होते है।
4. यदि हाथ में गुरू पर्वत कमजोर हो तो यह मुद्रा विषेश
लाभकारी होती है।
5. भोजन के बाद वज्रासन लगाना सर्वदोश निवारक होता है।
घुटने मोड़कर नितम्ब को एडि़यो पर टिका का थोड़ी देर
बैठना चाहिए। यह वह सिथति है, जिस सिथति में नमाज
अदा करते समय बैठा जाता है। इस मुद्रा में
दोनो हथेलियां घुटनों पर टिका कर हाथ सीधे रखने
चाहिए।
6. जलनेति का षुरू षुरू में एक दिन छोड़कर, गर्मियों में सम्भव
हो तो प्रतिदिन और सर्दी में साप्ताहिक अभ्यास
करें। वर्शा ऋतु में इसे बन्द रखें। इससे नाक, आंख व कान के
दोश दूर होते है।
सर्व कुलक्षण निवारक व्रत
यधपि षास्त्रों में 'रूपसत्रादि' कठिन व्रत
भी लक्षणदोश निवारण के लिए बताए बए है, किन्तु
वे बिना गुरू या विद्वान पंडित की देखरेख व
सहायता के बिना करने कठिन होते है। अत: कुलक्षण षानित के
लिए एक सरल व्रतविधी षास्त्रानुसार बतार्इ
जा रही है। यह व्रत एक वर्श में पूरे होंगे।
तथा महीने में व्रत करना होगा।
व्रतों की कुल संख्या 12 रहेगी।
व्रत की विधी
मार्गषीर्श षुक्ल
की द्वादषी को पहला व्रत करे।
सभी व्रतों में बताए जा रहे पद्वाथों का केवल एक बार
भोजन करें। पीनें
की चीजों को एक बार से अधिक
भी ले सकते है। नीचे बताए जा रहे
मन्त्रों से, महीनेवार षुक्ल पक्ष
की हरेक द्वादषी अर्थात उजाले वाले
पखवाड़े की द्वादषी को व्रत करके
पूजन आदि करें। उस दिन मन व
विचाराें की कर्मो की षुद्वि अवष्य रखें।
1. मार्गषीर्श षुक्ल
की द्वादषी को 'ऊ केषवाय नम:' मन्त्र
से विश्णुजी की पूजा करें व्रत रखेंं। सारे
दिन जहां तक सम्भव हो, मन में इसी मन्त्र
का उच्चारण करते रहें।
2. अगले महीने पौश षुक्ल
द्वादषी को 'ऊ नमो नारायणाय' मन्त्र से पूजा का व्रत
करें।
3. माघ षुक्ल द्वादषी को मन्त्र को 'ऊ माधवाय
नम:' मन्त्र से विश्णु भगवान की पूजा का व्रत करें।
4. फाल्गुनी षुक्ल द्वादषी को मन्त्र
को 'ऊ गोविन्दाय नम:' हैं। इससे पूजा करें
विधीपूर्वक करें।
5. पंचवे महीने में चैत्रषुक्ल
द्वादषी को 'ऊ विश्णवें नम:' मन्त्र से पूजादि करे।
6. छठे मास में वैषाख षुक्ल द्वादषी को 'ऊ
मधुसूदनाय नम:' मन्त्र से व्रतादि करे। इसी तरह
ज्येश्ठ षुक्ल द्वादषी को 'ऊ त्रिविक्रमाय नम:'
आशाढ़ षुक्ल द्वादषी को 'ऊ वामनाय नम:'।
श्रावणषुक्ल द्वादषी को 'ऊ श्रीधराय
नम:'। भाद्रपद षुक्ल को 'ऊ âशीकेषाय नम:'।
अषिवन षुक्ल द्वादषी को दषहरे से 2 दिन बाद
(लगभग) 'ऊ पदनाभाय नम:'। कार्तिक षुक्ल
द्वादषी का 'ऊ दामोदराय नम:' मन्त्रों से
महीनेवार व्रत करे।ं
उसी महीने से भगवान विश्णु
को रोली, चावल, फुल, फल चढा़कर पूजा करें
तथा नमस्कार करे। यदि समय हो तो हरेक व्रत के दिन
'विश्णुसहस्त्रनाम' का एक या अधिक बार पाठ कर सकते है।
सारे दिन महीने के नाममन्त्र का मन
ही मन में उच्चारण करते रहेंं। आखर, विचार
की षुद्वि परमावष्यक है। यदि विषेश
इच्छा हो तो हर महीने के
दोनो पखवाड़ो की द्वादषी को भी व्रत
कर सकते हो। व्रत, जप, तप, तीर्थयात्रा, पूजापाठ
आदि तभी फल देते है, जब मन में श्रद्वा व
विष्वास हो।
भाग्यवर्धन स्नानविधी
पौश की पूर्णिमा को यदि पुश्य नक्षत्र पड़े तो बहुत
उत्तम है, अन्यथा किसी भी व मास में
पुश्य नक्षत्र रहने पर स्नान करना श्रैश्ठ है। इस स्नान
की संक्षिप्त
विधी यंहा दी जा रही है।
इसके कर्मकाण्ड व ज्योतिश षास्त्र का विद्वान
ज्योतिशी भी साथ होना आवष्यक है।
यह विधान सुरगुरू बृहस्पति जी ने इन्द्र
को बताया था। इस स्नान के करने से आयु, सन्तान, सौभाग्य, सुख,
यष, व धन बढ़ता है।
1. यह स्नान पुश्य नक्षत्र में ही होगा। पौश
पूर्णिमा को पुश्य नक्षत्र रहनं पर इसका विषेश फल होगा।
2. यह स्नान घर में भी किया जा सकता है। उस घर
में सौभाग्यवती सित्रयां व बालक होने आवष्यक है।
अथवा उत्तम उधान में जंहा कांटेदार पेड़ न हों तथा उल्लू
आदि न दिखते हों। किसी नदी में,
दो नदियों के संगम स्थान पर, तीर्थ स्थान पर ,
तीर्थ पर सिथत किसी कुण्ड
या बाबड़ी आदि में अथवा जंहा गाय
बांधी जाती हो अथवा समुद्र के किनारे
किसी पर्वतीय आश्रम में
अथवा किसी मनिदर में भी कर सकते है।
3. पहले दिन रात को घर से बाहर जाकर पूर्व या उत्तर
दिषा की ओर दही, खील,
फूल व बच्चे चांवलों से विद्वान दैवज्ञ द्वारा पूजन करांए। पूजन
के बाद घर के बाहर वाले कमरे में या कही अन्यत्र
निवास करें। अगले अदन प्रात: पुन: विस्तार से देवताओं व
ग्रहों की पूजा कराकर स्नान के स्थान पर दैवज्ञ
सहित जाए। घर मेंं स्नान करना हों तो आठ कलषों में
तीर्थजल या गंगाजल भरकर रखें। तथा उन्हें
पूजा कलषों के समान स्थापित कर लें।
4. स्नान समापित के बाद तिल व
घी षंकरजी, इन्द्र, बृहस्पति, नारायण
व वायु के मन्त्रों से हवन करे। दक्षिणादि विधान व गोदान करें।
इसका विस्तृत व विषेश मन्त्रों सहित विधान, विद्वान, जानकर
ज्योतिर्विद जानते ही है।
अंगविभागानुसार दोश निवारण
1. पैर या पिण्ड़ली में
लक्षणहीनता हो तो घृत पात्र का दक्षिणा सहित
दान करें। अथवा सोने या चांदी से
बनी अष्वमूर्ति का दान विधिविधान पूर्वक
करना चाहिए।
2. त्वचा, वर्ण, कानित व स्नेह
की कमी हो तो दो लोटों में तिल के तेल
भर कर दान करें। अथवा 'जातवेदेसे सुनवाम' इत्यादि मन्त्र से
कमल के बीजों का 108 बार हवन करें।
अथवा षहद का दान करें।
3. हाेंठों में रंगत
की हीनता हो तो दो लहसुनिया का दान
करे।
4. गुप्तागों में
लक्षणहीनता हो तो 'लक्षीम्यामिति'
सूक्त का रोज पाठ किया करे। अथवा उससे 1000 आहुतियां दें।
5. मूत्रदोश की षानित के लिए तीन बार
तिलपात्र का दान करें। बर्तन तांबे का हो।
6. पेट वाले क्षेत्र का कोर्इ हीन लक्षण
हो तो 'अगिनरसिम' इति मन्त्र का व श्रीसूक्त
का नित्य पाठ किया करें।
7. नीची कोख होने पर
तीन दिन विश्णु जी के निमित व्रत करे।
या गुड़ का ढ़ेर अपनी आर्थिक सिथति के अनुसार दान
करें।
8. हथेली पीली हो तो सोने
की कबूतर की मूर्ति का दान करें,
अथवा रोज कबूतरों को दाना दिया करें।
9. कण्ठ की गांठ निकली हो या गर्दन
नसों से व्याप्त हो तो कम्बल का दान करेंं।
10. मुंह या जुबान, स्वर आदि से सम्बनिधत कमजोर लक्षण
हाें तो 10000 गायत्री जप और दक्षिणासमेत चावल
या धान का दान करें।
11. बहुत बारीक या मोटे दांत हों या पूर्वोक्त
हीन लक्षणों में से कोर्इ
हो तो चीनी या षक्कर आदि से तूला दान
करे। और 'रूद्रसूक्त' के 11 पाठ करवाकर रूद्रमन्त्र से
ही तिलों की 108 आहुतियां दें।
12. वाणी दोश हो तो 'तामगिनवर्णा तपसा'
इत्यादि सूक्त का 30000 बार पाठ करें। अथवा गरीब
बच्चों या जरूरतमन्द विप्र का पुस्तकों का दान करें जरूरतमन्द व
पढ़ने के व्यवसनी लोग जंहा आते
हों वहां पूरा महाभारत दें।
13. कान सम्बन्धी कुलक्षण हों तो सांड़ छोड़े
अथवा तकिया समेत पूरा बिस्तर दान करें।
14. आंख सम्बन्धी हीन लक्षण
हो तो प्रतिदिन सूर्य को फूल व रोली से युक्त जल
का अध्र्य देंं। और 'चाक्षुशी उपनिशत' का पाठ
किया करें। आंखों में रंग का दोश हो तो लहसुनिये का जोड़ा दान करें
और बिल्ली कको दूध पिलाएं।
15. नाक के आकार प्रकार का कोर्इ दोश हो तो सोने
या चांदी के सिक्के यथाषकित दान करें।
16. सिर पर ललाट में मांग की जगह पर भंवर
हो तो सोने की सूर्य मूर्ति का दान करें
17. यदि थूक से सम्बधित दोश हो तो विश्णुसहस्त्रनाम
का प्रतिदिन पाठ किया करें।
18. सर्वत्र असफलता हाथ लगने पर
गणेषजी की मूर्ति स्थापित करवांए
अथवा गणेष मन्त्र का 1 लाख जप करवाकर हवन करेंं।
19. दरिद्रता यदि घर से न निकलती हो तो 1008
श्रीसूक्त का पाठ करके तददषांष हव
घी या खील व षहद से करवांए।
20. सवा लाख गायत्री जप, पुरूश सूक्त के 108
पाठ, गणेष मन्त्र का प्रतिदिन जप तथा श्रीसूक्त
का 108, 1008 या 10008 पाठ करने या करवाने से सर्वदोश
षान्त हो जाते है। यदि स्ंवय करें तो प्रतिदिन
गायत्री मन्त्र का 108 या 28 या 10 बार जप,
पुरूशसूक्त व श्रीसूक्त का 1-1 पाठ रोज करें और
गणेष व सूर्य का कोर्इ मन्त्र रोज जपें। यह क्रयमवशोर्ं तक
चलता रहे। तो सब प्रकार से कल्याण होगा।
21. जो पर्वत या ग्रह क्षेत्र कमजोर हो,
जो अंगुली दोशयुक्त हों, उसी ग्रह
की मणि या रत्न पहननें, धारण करने से
भी दोश दूर होते है।
धनी व्यकित के लक्षण
1. हाथ की अंगुलियां हों व साधारण
लम्बी हों।
2. हथेली का पिछला हिस्सा बालों से न
घिरा हो तथा कलार्इ के स्तर से थोड़ा ऊंचा हो।
3. कलार्इ व हथेली का जोड़ सब तरफ से मांसल
हों, भरा भरा सा लगे।
4. हथेली के पर्वत उठे हुए, हाथ बड़ा, तथा पर्व
उच्च हों। पर्व से तात्पर्य
हथेली की ओर
अंगुलियों की पर्व रेखाओं के बीच
का आयताकार भाग है।
5. पर्वो में खड़ी रेखांए होंं।
6. हाथ में उध्र्वरेखा हो।
7. पैर की अंगुलियां सटी हुर्इ व
सुगठित हों।
8. खड़े होने पर घुटने मांस में दबे रहे।
9. पिण्ड़लियां पीछे से चपटी न हों।
10. गर्दन भरी हुर्इ तथा छोटी हो।
सामने सीधा देखने पर ठुìी के
नीचे तीन अंगुल के करीब
हो।
11. गर्दन का पिछला भाग भी भरा हुआ हो।
तथा कन्धे की सीध में गर्दन पर हाथ
फिरांए तो वंहा पर रीढ़
की हìी में जंहा गांठे
सी महसूस हों, वह भाग उठा हुआ हो।
12. षरीर पर हाथ व पैर बहुत कम बाल हों।
13. सिर व दाढ़ी के बाल मुलायम हो व नाखून मोटे न
हों। हाथ के अंगूठों का नाखून चपटा हो या उठा हुआ
टी. वी. के पर्दे के समान ऊचा न हो।
14. ठुìी के निचे मांस
लटकता सा ना हो तथा ठुìी लम्बोतरी व
गïेदार न हो।
15. कन्धों व पीठ पर बिल्कुल बाल ना हों
16. मस्तक ऊंचा व विषाल हो। अथवा मस्तक पर तिलक व
त्रिषुल जैसी रेंखाए बनती हों। कान
मांसल लाल रहते हो।
हथेली की रंगज लाल
गुलाबी है।
17. हाथ मिलाते समय हथेली में गर्माहट हो,
पसीना न आता हो, पैर के तलुवें में
भी गर्माहट हो।
18. दातों में भी चमक हो व नाक
ऊंची हों।
19. हथेली में गïा पड़ता होंंं।
20. पैर के टखने एकसार मांस में छिपे हुए हों।
21. एड़ी लाल रहती हो तथा टखने
तक ऊंचार्इ चार अंगुल के करीब हो एंव
पीछे से देखने मे चौड़ी व
फेली हुर्इ न हों।
22. गले में दो या तीन रेखांए पासपास अधिकतम 2
अंगुल अन्तर पर हाें।
इन बातों में से दो तीन
भी हों तो सुगमता से गुजर बसर करने लायक धन
होता है। ये सारी बातें तो हमने करोड़पति में
तो क्या अरबपतियों में भी एक साथ
नही देखी है। अत:
आधी बातें भी हो तो व्यकित खूब
धनाढय होगा। धन, धान्य, सम्पति, वाहनों का सुख प्राप्त होगा।

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