क्यों मंदिर में भगवान की ओर पीठ करके
नहीं बैठना चाहिए...
शास्त्रों के अनुसार ईश्वर कण-कण में विराजमान हैं, हर
जीव में परमात्मा निवास करते हैं। ईश्वर
की साक्षात् अनुभूति के लिए मंदिर या देवालय बनाए
गए हैं और हमारे घरों में भी भगवान के लिए अलग
स्थान रहता है। मंदिर में देवी-देवताओं
की प्रतिमाएं या चित्र रखे जाते हैं। जब
भी श्रद्धालु कोई मनोकामना लेकर मंदिर या देवालय में
जाते हैं तो वहां कुछ समय बैठते अवश्य हैं। मंदिर में कैसे
बैठना चाहिए इस संबंध में भी कुछ खास बातें बताई
गई हैं। इन बातों का पालन करने पर मंदिर जाने का पूर्ण पुण्य
लाभ प्राप्त होता है |
ऐसा माना जाता है कि मंदिर में ईश्वर साक्षात् रूप में विराजित होते
हैं। किसी भी मंदिर में भगवान के होने
की अनुभूति प्राप्त
की जा सकती है। भगवान
की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर हमारा मन शांत
हो जाता है और हमें सुख प्राप्त होता है। भगवान में ध्यान
लगाने के लिए बैठते समय ध्यान रखना चाहिए
कि हमारी पीठ भगवान
की ओर न हो। इसे अशुभ माना जाता है।
मंदिर में कई दैवीय शक्तियों का वास होता है और
वहां सकारात्मक ऊर्जा हमेशा प्रवाहित
रहती है। यह शक्ति या ऊर्जा देवालय में आने
वाले हर व्यक्ति के लिए सकारात्मक वातावरण निर्मित
करती है। यह हम पर ही निर्भर
करता है कि हम उस ऊर्जा को कितना ग्रहण कर पाते हैं। इन
सभी शक्तियों का केंद्र भगवान
की प्रतिमा की ओर होता है। जहां से
यह सकारात्मक ऊर्जा संचारित
होती रहती है। ऐसे में यदि हम
भगवान की प्रतिमा की ओर
पीठ करके बैठ जाते हैं तो यह शक्ति हमें प्राप्त
नहीं हो पाती। इस ऊर्जा को ग्रहण
करने के लिए हमारा मुख भी भगवान
की ओर होना आवश्यक है।
भगवान की ओर पीठ करके
नहीं बैठना चाहिए इसका धार्मिक कारण
भी है। ईश्वर को पीठ दिखाने का अर्थ
है उनका निरादर। भगवान की ओर पीठ
करके बैठने से भगवान का अपमान माना जाता है।
इसी वजह से ऋषिमुनियों और
विद्वानों द्वारा बताया गया है कि हमारा मुख भगवान के सामने
होना चाहिए।
नहीं बैठना चाहिए...
शास्त्रों के अनुसार ईश्वर कण-कण में विराजमान हैं, हर
जीव में परमात्मा निवास करते हैं। ईश्वर
की साक्षात् अनुभूति के लिए मंदिर या देवालय बनाए
गए हैं और हमारे घरों में भी भगवान के लिए अलग
स्थान रहता है। मंदिर में देवी-देवताओं
की प्रतिमाएं या चित्र रखे जाते हैं। जब
भी श्रद्धालु कोई मनोकामना लेकर मंदिर या देवालय में
जाते हैं तो वहां कुछ समय बैठते अवश्य हैं। मंदिर में कैसे
बैठना चाहिए इस संबंध में भी कुछ खास बातें बताई
गई हैं। इन बातों का पालन करने पर मंदिर जाने का पूर्ण पुण्य
लाभ प्राप्त होता है |
ऐसा माना जाता है कि मंदिर में ईश्वर साक्षात् रूप में विराजित होते
हैं। किसी भी मंदिर में भगवान के होने
की अनुभूति प्राप्त
की जा सकती है। भगवान
की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर हमारा मन शांत
हो जाता है और हमें सुख प्राप्त होता है। भगवान में ध्यान
लगाने के लिए बैठते समय ध्यान रखना चाहिए
कि हमारी पीठ भगवान
की ओर न हो। इसे अशुभ माना जाता है।
मंदिर में कई दैवीय शक्तियों का वास होता है और
वहां सकारात्मक ऊर्जा हमेशा प्रवाहित
रहती है। यह शक्ति या ऊर्जा देवालय में आने
वाले हर व्यक्ति के लिए सकारात्मक वातावरण निर्मित
करती है। यह हम पर ही निर्भर
करता है कि हम उस ऊर्जा को कितना ग्रहण कर पाते हैं। इन
सभी शक्तियों का केंद्र भगवान
की प्रतिमा की ओर होता है। जहां से
यह सकारात्मक ऊर्जा संचारित
होती रहती है। ऐसे में यदि हम
भगवान की प्रतिमा की ओर
पीठ करके बैठ जाते हैं तो यह शक्ति हमें प्राप्त
नहीं हो पाती। इस ऊर्जा को ग्रहण
करने के लिए हमारा मुख भी भगवान
की ओर होना आवश्यक है।
भगवान की ओर पीठ करके
नहीं बैठना चाहिए इसका धार्मिक कारण
भी है। ईश्वर को पीठ दिखाने का अर्थ
है उनका निरादर। भगवान की ओर पीठ
करके बैठने से भगवान का अपमान माना जाता है।
इसी वजह से ऋषिमुनियों और
विद्वानों द्वारा बताया गया है कि हमारा मुख भगवान के सामने
होना चाहिए।
No comments:
Post a Comment