Tuesday, July 29, 2014

कुछ यक्षिणी साधना

तंत्र शास्त्र में यथा शीघ्र प्रसन्न होने
वाली कुछ यक्षिणी साधना -
यक्षिणी साधना - वनस्पति यक्षिणियां
भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया ,
उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने
वाली है ।
वनस्पति यक्षिणियां
कुछ
ऐसी यक्षिणियां भी होती हैं ,
जिनका वास किसी विशेष वनस्पति ( वृक्ष - पौधे )
पर होता है । उस वनस्पति का प्रयोग करते समय उस
यक्षिणी का मंत्र जपने से विशेष लाभ प्राप्त
होता है । वैसे भी वानस्पतिक
यक्षिणी की साधना की जा सकती है
। अन्य यक्षिणियों की भांति वे भी साधक
की कामनाएं पूर्ण करती हैं ।
वानस्पतिक यक्षिणियों के मंत्र भी भिन्न हैं । कुछ
बंदों के मंत्र भी प्राप्त होते हैं । इन
यक्षिणियों की साधना में काल
की प्रधानता है और स्थान
का भी महत्त्व है ।
जिस ऋतु में जिस वनस्पति का विकास हो , वही ऋतु
इनकी साधना में लेनी चाहिए । वसंत
ऋतु को सर्वोत्तम माना गया है । दूसरा पक्ष श्रावण मास
( वर्षा ऋतु ) का है । स्थान की दृष्टि से एकांत
अथवा सिद्धपीठ कामाख्या आदि उत्तम हैं । साधक
को उक्त साध्य वनस्पति की छाया में निकट बैठकर
उस यक्षिणी के दर्शन
की उत्सुकता रखते हुए एक माह तक मंत्र - जप
करने से सिद्धि प्राप्त होती हैं ।
साधना के पूर्व आषाढ़ की पूर्णिमा को क्षौरादि कर्म
करके शुभ मुहूर्त्त में बिल्वपत्र के नीचे बैठकर
शिव की षोडशोपचार पूजा करें और पूरे श्रावण मास में
इसी प्रकार पूजा - जप के साथ प्रतिदिन कुबेर
की पूजा करके निम्नलिखित कुबेर मंत्र का एक
सौ आठ बार जप करें -
'' ॐ यक्षराज नमस्तुभ्यं शंकर प्रिय बांधव ।
एकां मे वशगां नित्यं यक्षिणी कुरु ते नमः ॥
इसके पश्चात् अभीष्ट यक्षिणी के मंत्र
का जप करें । ब्रह्मचर्य और हविष्यान्न भक्षण
आदि नियमों का पालन आवश्यक है । प्रतिदिन
कुमारी - पूजन करें और जप के समय बलि नैवेद्य
पास रखें । जब यक्षिणी मांगे , तब वह अर्पित करें
। वर मांगने की कहने पर यथोचित वर मांगें । द्रव्य
- प्राप्त होने पर उसे शुभ कार्य में भी व्यय करें ।
यह विषय अति रहस्यमय है ।
सबकी बलि सामग्री , जप - संख्या ,
जप - माला आदि भिन्न - भिन्न हैं । अतः साधक
किसी योग्य गुरु की देख - रेख में
पूरी विधि जानकर सधना करें ,
क्योंकि यक्षिणी देवियां अनेक रुप में दर्शन
देती हैं उससे भय भी होता है ।
वानस्पतिक यक्षिणियों के वर्ग में प्रमुख नाम और उनके मंत्र इस
प्रकार हैं -
बिल्व यक्षिणी - ॐ
क्ली ह्रीं ऐं ॐ
श्रीं महायक्षिण्यै सर्वेश्वर्यप्रदात्र्यै ॐ
नमः श्रीं क्लीं ऐ आं स्वाहा ।
इस यक्षिणी की साधना से ऐश्वर्य
की प्राप्ति होती है ।
निर्गुण्डी यक्षिणी - ॐ ऐं
सरस्वत्यै नमः ।
इस यक्षिणी की साधना से विद्या - लाभ
होता है ।
अर्क यक्षिणी - ॐ ऐं महायक्षिण्यै
सर्वकार्यसाधनं कुरु कुरु स्वाहा ।
सर्वकार्य साधन के निमित्त इस
यक्षिणी की साधना करनी चाहिए

श्वेतगुंजा यक्षिणी - ॐ जगन्मात्रे नमः ।
इस यक्षिणी की साधना से अत्याधिक
संतोष की प्राप्ति होती है ।
तुलसी यक्षिणी - ॐ
क्लीं क्लीं नमः ।
राजसुख की प्राप्ति के लिए इस
यक्षिणी की साधना की जाती है

कुश यक्षिणी - ॐ वाड्मयायै नमः ।
वाकसिद्धि हेतु इस
यक्षिणी की साधना करें ।
पिप्पल यक्षिणी - ॐ ऐं
क्लीं मे धनं कुरु कुरु स्वाहा ।
इस यक्षिणी की साधना से
पुत्रादि की प्राप्ति होती है । जिनके
कोई पुत्र न हो , उन्हें इस
यक्षिणी की साधना करनी चाहिए

उदुम्बर यक्षिणी - ॐ
ह्रीं श्रीं शारदायै नमः ।
विद्या की प्राप्ति के निमित्त इस
यक्षिणी की साधना करें ।
अपामार्ग यक्षिणी - ॐ
ह्रीं भारत्यै नमः ।
इस यक्षिणी की साधना करने से परम
ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
धात्री यक्षिणी - ऐं
क्लीं नमः ।
इस यक्षिणी के मंत्र - जप और करने से साधना से
जीवन की सभी अशुभताओं
का निवारण हो जाता है ।
सहदेई यक्षिणी - ॐ
नमो भगवति सहदेई सदबलदायिनी सदेववत् कुरु कुरु
स्वाहा ।
इस यक्षिणी की साधना से धन -
संपत्ति की प्राप्ति होती है । पहले
के धन की वृद्धि होती है तथा मान -
सम्मान आदि इस यक्षिणी की कृपा से
सहज ही प्राप्त हो जाता है ।....

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