Thursday, July 31, 2014

परिक्रमा करने के महत्व

परिक्रमा  करने के महत्व
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परिक्रमा के माध्यम से हम दैवीय शक्तियों को ग्रहण
कर सकते हैं और परिक्रमा के माधयम से हम
देवी देवताओ को प्रश्न कर सकते है ।
इसी वजह से परिक्रमा की परंपरा बनाई गई
है। जिससे भक्तों की सोच भी सकारात्मक
बनती है और बुरे विचारों से
मुक्ति मिलती है। प्रतिमा की परिक्रमा करने
से हमारे मन को भटकाने वाले विचार समाप्त हो जाते हैं और
शरीर ऊर्जावान व नयी उमंग उत्पन
होती है। रुके कार्यों में सफलता मिलती है।
देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर
से करनी चाहिए क्योकि दैवीय
शक्ति की आभामंडल
की गति दक्षिणावर्ती होती है।
बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर
दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और
हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे
हमारा तेज नष्ट हो जाता है.जाने-अनजाने की गई
उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है.
१. परिक्रमासे पहले देवतासे प्रार्थना करें ।
२. हाथ जोडकर, भावपूर्ण नामजप करते हुए मध्यम गतिसे
परिक्रमा लगाएं । ऐसा करते समय गर्भगृहको स्पर्श न करें ।
३. परिक्रमा लगाते हुए,
देवताकी पीठकी ओर पहुंचनेपर
रुकें एवं देवता को नमस्कार करें ।
४. संभव हो, तो देवताकी परिक्रमा सम संख्यामें (उदा. २,
४) एवं देवीकी विषम संख्यामें (उदा. १, ३)
परिक्रमा लगाएं ।
५. प्रत्येक परिक्रमाके उपरांत रुककर देवताको नमस्कार करें ।
किस देवता की, कितनी परिक्रमा करे ?
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जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान
की परिक्रमा जरुर लगाते है. पर
क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव
मूर्ति की परिक्रमा क्यो की जाती है?
शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण
प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ
दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है,यह निकट
होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए
प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के
ज्योतिर्मडल से निकलने वाले तेज की सहज
ही प्राप्ती हो जाती है।
किस देव
की कितनी परिक्रमा करनी चाहिये ?
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वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं
की एक
ही परिक्रमा की जाती है परंतु
शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए
परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई
है।इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान
की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य
की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप
नष्ट होते है.सभी देवताओं की परिक्रमा के
संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं.
1. - महिलाओं द्वारा "वटवृक्ष"
की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक है.
2. - "शिवजी"
की आधी परिक्रमा की जाती है.है
शिव जी की परिक्रमा करने से बुरे खयालात
और अनर्गल स्वप्नों का खात्मा होता है।भगवान शिव
की परिक्रमा करते समय जलाधार को न लांघे।
3. - "देवी मां" की एक या तीन
परिक्रमा की जानी चाहिए। नवार्ण मंत्र
का ध्यान जरूरी है।
4. - "श्रीगणेशजी और
हनुमानजी" की तीन
परिक्रमा करने का विधान है.गणेश
जी की परिक्रमा करने से
अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं
की तृप्ति होती है। गणेशजी के
विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने
लगते हैं।
5. - "भगवान विष्णुजी" एवं उनके
सभी अवतारों की चार
परिक्रमा करनी चाहिए.विष्णु
जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और
संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते
हैं.
6. - सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र
और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश
होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं.हमें भास्कराय मंत्र
का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है
जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर "ॐ भास्कराय नमः" का जाप
करना.इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं.
परिक्रमा के संबंध में नियम
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१. - परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में
रुकना नहीं चाहिए.साथ परिक्रमा वहीं खत्म
करें जहां से शुरु की गई थी.ध्यान रखें
कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण
नही मानी जाती
२. - परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत
कतई ना करें.जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं,
उनका ही ध्यान करें.
३.- उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ
परिक्रमा नहीं करनी चाहिये.
इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत
करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व
समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है.इस
प्रकार सही परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ
की प्राप्ती होती है।
विघ्न-बाधा दूर करें देव परिक्रमा
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मंदिरों, उपासना स्थलों में जाने से जहाँ हृदय पवित्र बनता है,
वहीं स्वच्छ, पवित्र शुभ एवं उत्तम
विचारों की सरिता भी कल-कल
बहती रहती है और सदा सकारात्मक
भावों का पोषण होकर इनके प्रति आस्था भी दृढ़
होती है। इनमें मंदिरों में
मूर्तियों की परिक्रमा करने से अनेक विघ्न- बाधाएँ दूर
होकर अनेक सोचे हुए कार्य भी सिद्ध होते देखे गए
हैं।
महिलाओं द्वारा वटवृक्ष की परिक्रमा करना सौभाग्य
का सूचक है। अपनी श्रद्धा-भावना और आस्था के
मुताबिक मंदिरों में मूर्ति दर्शन अत्यंत शुभ,
कल्याणकारी और ऊर्जादायी बताया गया है।
मंदिरों में प्रवेश करते ही, देवी-देवताओं के
सम्मुख हमारा ध्यान एकाग्र चित हो जाता है।
परिक्रमा के कुछ फायदे-
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विष्णु मंदिर की परिक्रमा निर्धारित क्रम से चार दफे करने
पर हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच
की वृद्धि करते हैं।
रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गजानंद
की परिक्रमा तीन बार करने से
अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं
की तृप्ति होती है। गणेशजी के
विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने
लगते हैं।
सूर्य मंदिर की परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद
से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ
विचार पोषित होते हैं। हमें भास्कराय मंत्र
का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है
जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर "ॐ भास्कराय नमः" का जाप
करना। देवी के मंदिर में महज एक परिक्रमा कर नवार्ण
मंत्र का ध्यान जरूरी है। इससे सँजोए गए संकल्प और
लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं।
भगवान भोलेनाथ की उपासना और
आधी परिक्रमा के साथ शिव पंचाक्षर मंत्र जाप
करना भी फायदेमंद है जिससे बुरे खयालात और अनर्गल
स्वप्नों का खात्मा होता है।
विष्णु मंदिर की परिक्रमा निर्धारित क्रम से चार दफे करने
पर हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच
की वृद्धि करते हैं।
इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत
करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व
समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है।
दार्शनिक महत्व :-
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इसका एक दार्शनिक महत्व यह भी है कि संपूर्ण
ब्रह्मांड का प्रत्येक ग्रह-
नक्षत्री किसी न किसी तारे
की परिक्रमा कर रहा है। यह
परिक्रमा ही जीवन का सत्य है।
व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र
है। इस चक्र को समझने के लिए ही परिक्रमा जैसे
प्रतीक को निर्मित किया गया। भगवान में
ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे
ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम
उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने
सारी सृष्टि की परिक्रमा कर
ली है।
परिक्रमा करने का व्यावहारिक और वैज्ञानिक पक्ष वास्तु और
वातावरण में फैली सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है।
दरअसल, भगवान की पूजा-अर्चना,
आरती के बाद भगवान के उनके आसपास के वातावरण में
चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है इस
सकारात्मक ऊर्जा के घेरे के भीतर चारों और
परिक्रमा करके व्यक्ति के भीतर
भी सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता और
नकारात्मकता घटती है। इससे मन में विश्वास का संचार
होकर जीवेषणा बढ़ती है।
धार्मिक महत्व :-
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भगवान की परिक्रमा का धार्मिक महत्व तो है
ही विद्वानों का मत है भगवान
की परिक्रमा से अक्षय पुण्य मिलता है, सुरक्षा प्राप्त
होती है और पापों का नाश होता है। पग-पग चलकर
प्रदक्षिणा करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
सभी पापों का तत्क्षण नाश हो जाता है। प्रदक्षिणा करने
से तन-मन-धन पवित्र हो जाते हैं व मनोवांछित फल
की प्राप्ति होती है। जहां पर यज्ञ
होता है वहां देवताओं साथ गंगा, यमुना व
सरस्वती सहित समस्त तीर्थों आदि का वास
होता है।
प्रदक्षिणा या परिक्रमा करने का मूल भाव स्वयं को शारीरिक
एवं मानसिक रूप से भगवान के समक्ष समर्पित कर
देना भी है।

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