Wednesday, July 16, 2014

ललाट पर तिलक

वस्त्र धारण करने के उपरान्त उत्तर की ओर मुंह
करके ललाट पर तिलक लगाना चाहिए। श्वेत चन्दन, रक्त चंदन,
कुंकुम, मृत्रिका विल्वपत्र भस्म आदि कई पदार्थों से साधक
तिलक लगाते हैं। विप्र यदि बिना तिलक के संध्या तर्पण करता है
तो वह सर्वथा निष्फल जाता है। एक ही साधक
को उर्ध्व पुण्डर तथा भस्म से त्रिपुंड
नहीं लगाना चाहिए। चन्दन से दोनों प्रकार के तिलक
किए जा सकते हैं।
ललाट के मध्यभाग में दोनों भौहों से कुछ ऊपर ललाट बिंदु
कहलाता है। सदैव इसी स्थान पर तिलक
लगाना चाहिए।
अनामिका उंगली से तिलक करने से
शान्ति मिलाती है, मध्यमा से आयु
बढ़ाती है, अंगूठे से तिलक करना पुष्टिदायक
कहा गया है, तथा तर्जनी से तिलक करने पर मोक्ष
मिलता है।
विष्णु संहिता के अनुसार देव कार्य में अनामिका, पितृ कार्य में
मध्यमा, ऋषि कार्य में कनिष्ठिका तथा तांत्रिक कार्यों में
प्रथमा अंगुली का प्रयोग होता है।
सिर, ललाट, कंठ, हृदय, दोनों बाहुं, बाहुमूल, नाभि,
पीठ, दोनों बगल में, इस प्रकार बारह स्थानों पर
तिलक करने का विधान है!
विष्णु आदि देवताओं की पूजा में पीत
चंदन, गणपति-पूजन में हरिद्रा चन्दन, पितृ कार्यों में रक्त
चन्दन, शिव पूजा में भस्म, ऋषि पूजा में श्वेत चन्दन, मानव
पूजा में केशर व चन्दन, लक्ष्मी पूजा में केसर एवं
तांत्रिक कार्यों में सिंदूर का प्रयोग तिलक के लिए करना चाहिए।

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