Sunday, April 20, 2014

जाने अपनी कुंडली के बारे में

जाने अपनी कुंडली के बारे में ----------

आज के लेख में संतान प्राप्ति में बाधक योगों और दोषों के बारे में
चर्चा करेंगे। पति-पत्नी शारीरिक रूप से
स्वस्थ होते हुए भी संतान सुख से वंचित रहते है।
इसका ज्योतिषीय कारण पूर्वजन्म के दोष एवं श्राप है।
आज हम इसी की चर्चा करेंगे।
पितृ श्राप ---------
---- यदि पंचम स्थान में सूर्य
अपनी नीच राशि में हो और उसके आगे -
पीछे पाप ग्रह हो --
--- यदि सूर्य की राशि में गुरु हो और पंचमेश सूर्य
से युत हो तथा लग्न और पंचम में पाप ग्रह --
--- यदि लग्नेश दुर्बल होकर पंचम भाव में हो और पंचमेश
सूर्य से युत हो तथा पंचम और लग्न में पाप ग्रह हो --
----यदि पितृ स्थानेश १० भाव का स्वामी पंचम भाव में
हो और पंचमेश दशम भाव में हो तथा लग्न और पंचम में पाप ग्रह
हो --
--- यदि पितृ स्थान का स्वामी होकर भौम पंचमेश से
युत हो और लग्न ,पंचम और दशम भाव में पाप ग्रह हो --
---- पितृ स्थान का स्वामी ६,८,१२ भाव में
हो तथा कारक गुरु पाप ग्रह की राशि में हो --
--- यदि लग्न तथा पंचम भाव में सूर्य,भौम,शनि हो और ८,१२ भाव
में राहु , गुरु हो तथा लग्न में पाप ग्रह हो ---
---- यदि लग्न से आठवे सूर्य ,पांचवे भौम,शनि हो ,पंचमेश राहु
से युत हो और लग्न में पाप ग्रह हो --
--- यदि व्ययेश लग्न में हो ,अष्टमेश पांचवे भाव में हो तथा पितृ
स्थानेश आठवे भाव में हो तो पितृ दोष या श्राप होता है।
--- यदि रोगेष पंचम भाव में पितृ भावेश के साथ हो और कारक गुरु
राहु से युत हो तो पितृ श्राप से संतान सुख में
बाधा आती है।

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